“दहिसर के ज्येष्ठ स्वयंसेवक, सहकार एवं शिक्षा क्षेत्र के अग्रणी और भाजपा के कार्यकर्ता राम ब्रिज यादव जी का कल दुःखद निधन हुआ है। अत्यंत प्रतिकूल वातावरण में दीर्घकाल तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, सहकार, शिक्षा, सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में दीर्घकाल तक निरपेक्ष भावना से कार्य करके जिन्होंने समाज में अपना स्थान निर्माण किया था, ऐसे रामब्रिज यादव जी असामान्य व्यक्तित्व थे। दिसंबर,2013 में रामब्रिज यादव जी के अमृत महोत्सवी वर्ष निमित्त हिंदी विवेक मासिक पत्रिका ने उनके कार्य का लेखा जोखा प्रस्तुत करने वाला विशेषांक का प्रकाशित किया गया था। विशेषांक में रामब्रिज यादव जी के कर्तृत्व संपन्न एवं बहुआयामी व्यक्तित्व के संदर्भ में समाज के विशेष मान्यवारों ने अपने विचार आलेखों के माध्यम से प्रस्तुत किए थे। रामब्रिज यादव जी को हिंदी विवेक मासिक पत्रिका के माध्यम से विनम्र श्रद्धांजलि व्यक्त करते हैं। विभिन्न क्षेत्र के मान्यवारों ने उनके संदर्भ में अपने विचार आलेखों के माध्यम से प्रस्तुत किए हुए थे, मान्यवारों के वह विचार आने वाले सप्ताह में हिंदी विवेक मासिक पत्रिका के सोशल मीडिया एवं वेब साइट के माध्यम से वह आलेख आप सभी तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं। हिंदी विवेक मासिक पत्रिका की ओर से हम बहुआयामी व्यक्तित्व स्वर्गीय राम ब्रिज यादव जी को विनम्र श्रद्धांजलि व्यक्त करते हैं।”-भवदीय,
अमोल पेडणेकर ( मुख्य कार्यकारी अधिकारी ), हिंदी विवेक मासिक पत्रिका.
जनसेवा सहकारी बैंक की स्थापना १९८२ में हुई। उसकी शुरुआत सामान्य रूप से हुई और किसी नवगठित संस्था के समक्ष विकास और प्रगति की जो आरंभिक समस्याएं आती हैं वैसी उसे भी झेलनी पड़ीं। परिणामस्वरूप सीमित क्षमता के साथ ही वह उचित गली से प्रगति नहीं कर सकी। १९८२-९६ की अवधि में उसका डिपॉजिट संग्रह और ऋण प्रदान करना सीमित रहा और उसे बहुत कम मुनाफा हुआ। मुंबई के तेजी से बढ़ते उपनगर बोरीवली में उसका मुख्यालय होने के बावजूद ऐसी स्थिति थी। इस क्षेत्र की जनसंख्या में शिक्षित मध्यम वर्ग और अच्छी संख्या में उद्यमी भी थे।
यह छोटा सा बैंक होने के बावजूद उसमें दो प्रतिद्वंद्वी युनियनें थीं और इसका बैंक के कामकाज पर काफी असर हुआ करता था। यही नहीं, बैंक का समर्पित व समाजोन्मुख संचालक मंडल होने के बावजूद आपसी सामूहिक दृष्टिकोण के अभाव में सुसंगति की कमी थी। यही नहीं, इलाके के लगभग सभी बैंकों ने अपने परिचालन में कंप्यूटरीकरण किया था या उस प्रक्रिया में थे, लेकिन जनसेवा बैंक ने इस दिशा में पहल करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए।
यूनियनों के बीच आंतरिक प्रतिद्वंद्विता के कारण बैंक खातों को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका और उनका अंकेक्षण भी बाकी रह गया। परिणामस्वरूप, खातों का विवरण विभिन्न प्राधिकारियों, विशेष कर रिजर्व बैंक को पेश नहीं किया जा सका। रिजर्व बैंक ने इस स्थिति को गंभीरता से लिया ऐसी कठिन परिस्थिति में १९९६ में बैंक के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी श्री रामब्रिज यादव को सौंपी गई।
बैंक का अध्यक्ष पद संभालते ही श्री यादव जी ने एक के बाद एक कदम उठाकर स्थिति को ठीक करना शुरू किया। रिजर्व बैंक के अधिकारियों से मुलाकात करने के पूर्व श्री यादव जी ने स्वतंत्र रूप से या कभी कभी संयुक्त रूप से दोनों यूनियनों से मुलाकातें कीं और उन्हें स्पष्ट रूप से बताया कि अनुशासनहीनता किसी भी हालत में सहन नहीं की जाएगी तथा हरेक से अनुरोध किया कि वे अपना काम सुचारू रूप से करें तथा समयबद्ध कार्यक्रम के अनुसार बकाया दस्तावेजी काम पूरा करें। उन्होंने उन्हें समझाया कि बैंक की प्रगति होगी तो उनकी अपनी प्रगति भी होगी। उन्होंने उन्हें आश्वस्त किया कि बैंक के संचालन में एक बार पूर्ण सुचारुता आने पर उनकी दिक्कतों पर गौर किया जाएगा और उनका समाधान किया जाएगा। कर्मचारियों ने स्थिति की गंभीरता का अनुभव किया और सकारात्मक सहयोग दिया।
इस मामले में यादव जी ने समझाने-बुझाने के अपने प्रभावी कौशल का उपयोग किया। कर्मचारियों से सम्बंधित मामले सुलझाने के लिए को-आपरेटिव बैंक्स एम्प्लाइज यूनियन के अध्यक्ष सांसद श्री आनंदराव अडसूल एवं भारतीय मजदूर संघ के श्री शरद देवधर का भी विशेष रूप से उल्लेख करना होगा।
बैंक के परिचालन को सुधारने के लिए कार्य-योजना लागू करने के बाद श्री यादव जी ने रिजर्व बैंक के अधिकारियों से मुलाकात की। उन्होंने संचालक मंडल के सदस्यों के साथ बैंक के सुचारू संचालन के लिए उठाए गए कदमों से रिजर्व बैंक को विस्तृत रूप से अवगत कराया तथा सभी दस्तावेजों तथा बैंक के अंकेक्षित तुलन-पत्र को पेश करने के लिए ६ माह की अवधि मांगी।
बैंक के संचालन में सुधार के लिए उठाए गए कदमों और श्री यादव जी के प्रामाणिक प्रयासों को ध्यान में रखकर रिजर्व बैंक ने अवधि देने के बैंक के अनुरोध को स्वीकार कर लिया। यह एक बड़ी सफलता थी। यहां तत्कालीन सांसद श्री रामभाऊ नाईक के प्रयासों का भी उल्लेख करना होगा, जिन्होंने रिजर्व बैंक के साथ चर्चा और बैठकें आयोजित करने में अहम भूमिका निभाई।
साथ-साथ, यादव जी ने संचालक मंडल को एक समन्वित टीम के रूप में परिवर्तित करने और बैंक के विकास व प्रगति के प्रति एक समान सामूहिक दृष्टि अपनाने के लिए अपना काफी समय और शक्ति खर्च की। संचालक मंडल की नियमित बैठकें हुआ करती थी जिनमें मुक्त व खुलकर चर्चाएं होती थर्थी- कभी-कभी गहमा-गहमी व कटुताभरी चर्चाएं भी होती थीं। इन सभी बैठकों के दौरान बैंक के समक्ष समस्याओं पर व्यापक बहस की अनुमति देते थे। उन्होंने कभी अपना संयम और मिजाज नहीं खोया और अंत में बैंक के विकास और प्रगति की नीतियां और योजनाएं बनाने में सफल रहे। बैंक के प्रति उनके पूर्ण समर्पण, उचित और संतुलित दृष्टिकोण तथा सभी के प्रति समान भाव के कारण यह से संभव हो पाया।
बीच के काल में ऋण बकाया राशि बहुत बढ़ गई थी और इस बकाये की वसूली करना सब से बड़ा और पहला काम था। इसके लिए निरंतर प्रयासों की जरूरत थी। उन दिनों ऋणकों की बकाया राशि पर उन्हें कोई राहत देने या ओटीएस (वन टाइम सेटलमेंट अर्थात एकमुश्त समझौता) के लिए कोई दिशानिर्देश नहीं थे। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक तथा निजी क्षेत्र के बैंक मुक्त हस्त से रियायतें देते थे, लेकिन सहकारी बैंक, चाहे मूल धन हो या ब्याज, यदि कोई रियायत देते तो अधिकारियों की ओर से उनके खिलाफ दण्डात्मक कार्रवाई की जाती थी। बकाया कर्जदार इस स्थिति से अवगत नहीं थे और इस कारण असंभव रियायतों की अक्सर मांग किया करते थे। उनके गुस्से से बचते हुए और कानून का उल्लंघन न करते हुए बकाया राशि की वसूली का भारी दायित्व श्री यादव जी पर था। निरंतर बातचीत, बार-बार अवलोकन तथा जहां जरूरी हो वहां कठोर कार्रवाई कर और सब से बड़ी बात यह कि व्यावहारिक तथा अमल में लाने लायक वसूली योजनाएं बनाकर बैंक ने पर्याप्त बकाया वसूली कर ली।
उपरोक्त सभी प्रयासों का परिणाम यह हुआ कि विभिन्न पदों पर काम करनेवाले लोगों का हौसला बढ़ा, ग्राहकों को दी जानेवाली सुविधाओं में वृद्धि हुई, जमाकर्ताओं का विश्वास बढ़ा और जमापूंजी में होने वाली कमी थम गई। नियामक प्राधिकरण जैसे रिजर्व बैंक आफ इंडिया और सहकार विभाग से भी सकारात्मक जवाब मिलने लगा।
बैंक के व्यवसाय में निश्चित बढ़ोतरी के लिये यादव जी ने जाना कि बैंक का कार्यभार कंप्यूटर से होना चाहिये जिसके कारण बाजार की प्रतियोगिता का सामना, किये गये खचों का उचित उपयोग, उत्पादकता में वृद्धि, उचित निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि इत्यादि सभी बातें हो सकती है जिसके कारण ग्राहकों की नयी योजनाएं और सेवायें दी जा सकें।
हालांकि कर्मचारियों और मेनेजमेंट के कुछ लोगों के द्वारा इसका विरोध होता रहा। जो लोग बैंक में कंप्यूटर से काम करने का विरोध कर रहे थे उनकी धारणा यह थी कि इसमें अत्यधिक पूंजी खर्च होगी, रोजगार के अवसर कम होंगे। आर्थिक लेनदेन और आंकड़ों पर भी इसका विपरीत परिणाम होगा।
बैंकिंग क्षेत्र में हो रहे बदलावों को देखते हुए वरिष्ठ कर्मचारियों और आई टी क्षेत्र के लोगों से विचार विमर्श करके यादव जी ने यह निर्णय लिया कि बैंक में अब कंप्यूटर का उपयोग करना उचित होगा। उन्होंने एक बार फिर अपने प्रभावशाली गुणों का उपयोग किया और अंततः बैंक के सभी स्तरों पर कंप्यूटर से काम करवाने में वे सफल हो गये।
यह एक बहुत बड़ा कदम था। इस योजना को मूर्त रूप देने के लिये प्रशिक्षण देने, समस्या का समाधान करने वाली टीम बनाने और विभिन्न स्तरों पर कर्मचारियों से समीक्षा करवायी गयी। एक निश्चित समय में बैंक का सारा कामकाज पूरी तरह से कंप्यूटर से करवाने का सारा श्रेय यादव जी को जाता है।
जैसे-जैसे बैंकिंग प्रक्रिया ने गति पकडी यादव जी और बोर्ड के अन्य सदस्यों ने निरंतर प्रगति के लिये नये कदम उठाने की योजना बनाई। आज जनसेवा सहकारी बैंक लि. मुंबई की उत्तम बैंकों में गिनी जाती है।
जिन दस वर्षों में यादव जी अध्यक्ष थे, बैंक ने जो शानदार प्रगति की वह आंकड़ों के रूप में इस प्रकार है। Growth Rate, हिंदी में चक्रवृद्धि वार्षिक विकास दर। बैंक के विकास की गणना करने का यह शास्त्रशुद्ध मापदंड है। जनसेवा बैंक का यह विकास दर सराहनीय माना जाता है। भागधारकों का विचार किया जाय तो लगातार १८ वर्ष भागधारकों को १५ प्रतिशत लाभांश दिया जा रहा है।
इतने सालों में यादव जी ने हमेशा ही सादा जीवन जीया और अपने लिये किसी भी प्रकार के प्रचार या पद की आकांक्षा नहीं की। अतः सहकार क्षेत्र में काम करनेवाले अन्य लोगों की तरह उनके पास कोई पद या अधिकार नहीं है। परंतु निर्देशक के तौर पर व्यतीत किये गये २८ साल के अपने कार्यकाल में यादव जी ने अपने समर्पित नेतृत्व के द्वारा जनसेवा बैंक को एक ऐसा सक्षम उपकरण बना दिया जो हर उस व्यक्ति की मदद कर सके जिसे अपनी आर्थिक उन्नति के लिये उसकी आवश्यकता हो।
रामब्रिज यादव कौन है? जनसेवा बैंक के बाहर के लोग उनके बारे में बहुत कम जानते हैं। लोगों को जानकर आश्चर्य होगा कि उन्होंने बहुत कम शिक्षा प्राप्त की है। फिर भी उन्होंने जनसेवा बैंक को आज इस पायदान पर ला खड़ा किया है कि वह सहकारी बैंकिंग क्षेत्र की सशक्त बैंकों में गिनी जाती है।
उनके सगुणों में से एक गुण यह है कि वे एक अच्छे श्रोता है। वे हर समय हर किसी के लिये उपलब्ध रहते हैं। चतुराई से मित्र बनाते हैं और संघ की विचारधारा के अनुरूप ही कार्य करते हैं अतः उन्हें इस बार मुंबई के प्रगति केन्द्र द्वारा डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार सम्मान प्रदान किया गया।
-सतीश मराठे, राष्ट्रीय अध्यक्ष, सहकार भारती