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राष्ट्रीय समरसता का अनोखा अनुभव श्री गणेश उत्सव – नई दिल्ली

राष्ट्रीय समरसता का अनोखा अनुभव श्री गणेश उत्सव – नई दिल्ली

by हिंदी विवेक
in ट्रेंडींग
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– अभय थिटे

पिछले 10 दिनों से नई दिल्ली के नॉर्थ एवेन्यू पर “सुखकर्ता दुःखहर्ता वार्ता विघ्नाची” से लेकर “येई हो विठ्ठले माझे माऊलीये” और “शेंदूर लाल चढायो” तथा “ओम् जय जगदीश हरे” तक विभिन्न आरतियों की गूंज से सारा वातावरण गुंजायमान रहा है।

211 नॉर्थ एवेन्यू, महाराष्ट्र के भाजपा नेता एवं पूर्व राष्ट्रीय सचिव सुनील देवधर का दिल्ली स्थित निवास स्थान है। 2021 से उन्होंने यहाँ पर श्री समरसता गणेश की स्थापना शुरू की। दिल्लीवासियों को महाराष्ट्र की असली गणेश पूजा कैसी होती है, यह सिर्फ बताने के बजाय उसका वास्तविक अनुभव कराया जाए, और साथ ही हिंदू समाज में व्याप्त सामाजिक समरसता की कमी को ध्यान में रखते हुए, लोकमान्य तिलक ने जिस सद्भावना से सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत की थी, उस उद्देश्य को पुनः स्थापित करने के लिए दिल्ली में इस आयोजन की शुरुआत की।

गणेशोत्सव के दौरान सुबह 10 बजे या शाम 8 बजे अगर आप पहुँचते हैं, तो लाल या केसरी कुर्ता-पायजामा पहने 25 से 40 वर्ष की आयु के युवक-युवतियों को पूजा-आरती की तैयारी में व्यस्त देख सकते हैं। उसी समय अनगिनत लोग सुबह गणेश दर्शन के लिए आ-जा रहे होते हैं।

भाजपा नेता सुनील देवधरजी के निवास स्थान पर समरसता श्री गणेशजी की आरती उतारती दिल्ली की मुख्य मंत्री श्रीमती  रेखा गुप्ता.

इस गणेश प्रतिमा की स्थापना नॉर्थ एवेन्यू क्षेत्र के सफाई कर्मचारियों को साथ लेकर, उन्हीं के हाथों से की जाती है। उन्हें भोजन और वस्त्र दान देकर उचित सम्मान दिया जाता है। इसके बाद भी रोजाना समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों द्वारा ही पूजा-आरती की जाती है। कभी दिल्ली के मातंग समाज के कार्यकर्ता, कभी वाल्मीकि समाज के प्रमुख, कभी किन्नर समाज की डॉ. रेश्मा प्रसाद जी, कभी भाजपा के वरिष्ठ नेता विनय सहस्त्रबुद्धे जी – ऐसे लोगों की उपस्थिति रहती है। रोज यहाँ दर्शन के लिए आने वाले दो-ढाई सौ लोगों की सूची देखें तो आप हैरान रह जाएंगे, इतनी विविधता यहां होती है। कोई भी भाषावाद, प्रांतवाद, जातिवाद, धार्मिक भेद यहाँ तलाशने से भी नहीं मिलेगा। यहाँ आने वाले राजनीतिक नेता, केंद्रीय मंत्री, प्रशासनिक अधिकारी, पत्रकार- ये कुछ लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र होते हैं क्योंकि ऐसे लोगों के साथ “एक सेल्फी” ली जा सकती है, लेकिन उससे भी ज्यादा, यहाँ आने वाले बड़े लोग भी गणेशभक्त के रूप में और सुनील जी के मित्र के रूप में इतनी सहजता से घुल-मिल जाते हैं कि उनकी सादगी का मोह पड़ जाता है।

“ट्रांसजेंडर समाज के शैक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए निरंतर समर्पित रहने वालीं डॉ. रेश्मा प्रसाद जी   समरसता श्री गणेश के दर्शन कर विघ्नहर्ता से आशीर्वाद प्राप्त लिया। इस अवसर पर सुनील देवधर ने उन्हें मोदी 3.0 के प्रमुख भाषणों के संकलन पर आधारित अपनी पुस्तक “नमो संवाद” भेंट की।”

हिंदी विवेक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अमोल पेडणेकर ने हिंदी विवेक द्वारा प्रकाशित ‘समर्थ भारत’ विशेषांक, भाजपा केंद्रीय सचिव मुरलीधर राव और भाजपा नेता सुनील देवधर को भेंट किया.

यहाँ आने वाले कई मंत्री अपने पद की पदवी को बाहर निकाल कर, अभिनेता अपने चेहरे का मुखौटा उतार कर, टीवी एंकर अपना ग्लैमर दरकिनार कर, केवल व्यक्तिगत संबंधों को निभाने आते हैं और ऐसे ही कई लोगों से मिलने के लिए विशेष रूप से यहाँ उपस्थित होते हैं। यहाँ आने वाले सैकड़ों पूर्वोत्तर भारतीय युवक-युवतियाँ, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, किसी भी जनजाति के हों, गणपति बाप्पा की आरती करने को मिले, इसलिए आते हैं, आरती का माहौल अनुभव करने आते हैं। उन्हें बाप्पा की आरती करते देखकर ‘समरसता एक अनुभूति का विषय है, करने का विषय है, बोलने का नहीं’ यह बात आसानी से समझ आ जाती है।

जन्म से मुस्लिम रूबिका लियाकत अपने पति और बच्चों के साथ आरती में खड़ी होती है, कोई जावेद साहब बाप्पा के सामने हाथ जोड़े, आँखें बंद किए खड़े दिखते हैं, कोई रोमिओ जोर-जोर से बाप्पा की आरती गाते हुए तल्लीन दिखता है। असंख्य हिंदी भाषी युवा “दुर्गे दुर्घट भारी” और “युगे अठ्ठावीस” गाते हुए निर्विघ्न मराठी उच्चारण करते हैं और “स्मरण मात्रे मनकामनापूर्ती” ठीक से कहते हैं – इसका श्रेय निश्चित रूप से सुनील जी द्वारा कराई जा रही प्रैक्टिस को दिया जाना चाहिए।

गणेशोत्सव से एक महीने पहले से आरतियाँ गाने का अभ्यास, शुद्ध उच्चारण पर जोर, ताल और सुर का समन्वय – सब कुछ बहुत अनुशासित तरीके से चलता है। बाप्पा को पसंद आने वाले (उकडीचे मोदक)  चावल के आटे से बननेवाले मोदक घर पर बनाकर लाने वाले हर व्यक्ति को खूब मख्खन-घी के साथ खिलाना, यह मोदक कैसे बनता है इसका प्रायोगिक प्रदर्शन कई लोगों को दिखाना – इसके लिए महाराष्ट्र से आई स्वादिष्ट खाना बनाने वाली बहनों का योगदान भी सराहनीय होता है।

गणेशोत्सव के दौरान लगातार कुर्ता-पायजामा पहने युवा दिल्ली में कई जगह दिखाई देते हैं और दिल्लीवासियों को एहसास होता है कि 211 नॉर्थ एवेन्यू पर गणपति बाप्पा का आगमन हो गया है। एक ही वेशभूषा वाले ये युवा खाली समय वाले युवक हो सकते हैं, ऐसा किसी का भी मन हो सकता है। लेकिन ये भारत के विभिन्न राज्यों से आए उच्च शिक्षित युवा हैं। कोई व्यवसाय चलाते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है, कोई छुट्टी लेकर आता है, कोई व्यवसाय, परिवार को छोड़कर आता है। बाप्पा का उत्सव कारण जरूर है, लेकिन प्रेरणा सुनील जी ही हैं!
सुनील जी द्वारा त्रिपुरा में 2016 में शुरू किया गया एक गणेशोत्सव अब 5000 लोगों के रूप में सार्वजनिक हो गया है। चाहे नई दिल्ली हो या मणिपुर या पश्चिम बंगाल, देश भर की समस्याओं, कठिनाइयों, मतभेदों, मनमुटाव की छाया बाप्पा के इस उत्सव पर नहीं पड़ती। बाप्पा का ही सुंदर चैतन्य सबके चेहरे पर, बोलचाल में, व्यवहार में झलकता है। शायद इस तरह के उद्देश्यपूर्ण उत्सवों का आयोजन ही ऐसी समस्याओं का उत्तर हो सकता है।

अंत में, सभी स्तरों के सभी वर्गों, जातियों, भाषाओं, प्रांतों, वेशभूषाओं, भोजन की विविधताओं के बीच समरसता ही सबसे महत्वपूर्ण है।
लोकमान्य तिलक ने गणेश पूजा सार्वजनिक क्यों की, इसके उद्देश्य को “सही मायने” में रखते हुए देश की राजधानी में इसका प्रकटीकरण करना, यही सुनील जी की विशेषता है!

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