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ज्योति में ज्योति का समर्पण

ज्योति में ज्योति का समर्पण

by रमेश पतंगे
in ट्रेंडींग
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मधु भाई ने एक दीप की आराधना की, वह दीप याने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। युवावस्था में आकर्षित करने वाली असंख्य विचारधाराएं थी, परंतु मधु भाई ने अपना चित्त संघ रूपी दीपक से ढलने नहीं दिया। गोरखनाथ ने अपने भजन की अंतिम कड़ी में कहा है, “मैं ज्योति में ज्योति मिलाऊं जी”। मधु भाई ने भी अपनी जीवनज्योत संघ ज्योति में एक रूप की है।

संघ जीवन कैसे जीना, इसका उत्तम आदर्श रखकर मधु भाई कुलकर्णी पंचतत्व में विलीन हो गए। जिला प्रचारक, विभाग प्रचारक, पुणे महानगर प्रचारक, गुजरात प्रांत प्रचारक, गुजरात, महाराष्ट्र, विदर्भ (पश्चिम क्षेत्र) के क्षेत्र प्रचारक, अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य, ऐसा उनका संघ दायित्व का प्रवास रहा है।
संघ के बाहर के व्यक्ति को संघ दायित्व कैसे होता है, इसका आकलन होना कठिन है। प्रचारक का अर्थ जिसने गृहत्याग किया है, जो अविवाहित है, जिसने अपना संपूर्ण जीवन संघ को समर्पित किया है, संघ कहेगा वह दायित्व अर्थात जिम्मेदारी का निर्वहन करना, ऐसी जिसकी मन स्थिति होती है, जिसकी व्यक्तिगत संपत्ति शून्य होती है उसे प्रचारक कहते हैं। पारंपरिक भाषा का यदि उपयोग करना है तो यह सन्यास धर्म है, परंतु भारत के कुछ संन्यासी भगवा वस्त्र में होते हुए भी मठ और मठों की करोड़ों की संपत्ति के मालिक होते हैं। संपत्ति की दृष्टि से प्रचारक शून्य होता है। मधु भाई वैसे ही थे।

अपने प्रचारक जीवन में मधुभाई ने प्रचारक धर्म का आदर्शवत पालन किया। प्रचारक धर्म में अत्यंत मृदु भाषि, सभी सेवकों से आत्मीय संबंध, उनके सुख-दुख में जैसे दूध में शक्कर घुल जाती है उस प्रकार से घुल जाना, समरस होना, प्रत्येक की कार्य क्षमता पहचान कर उसकी आंतरिक शक्ति का विकास करना, संघ कार्य अर्थात राष्ट्र कार्य का यथोचित दायित्व देना, ऐसी सब बातें आती है। यह काम अत्यंत शांत चित्त से, किसी भी प्रकार का प्रचार न करते हुए, प्रसिद्धि के सभी माध्यमों से पूर्णतया दूर रहकर कार्य करना है।

किसी विशाल वृक्ष का बीजारोपण होता है और वह क्रमशः बढ़ता जाता है। बढ़ते-बढ़ते उसकी एक पूर्ण विकसित अवस्था निर्माण होती है। ऐसे बीज की प्रारंभ से ही अत्यंत जागरूकता से देखभाल करनी होती है। मधु भाई ने अपने प्रचारक जीवन में ऐसे कितने ही बीजों की देखभाल की होगी, इसकी गिनती करना कठिन है। इस जगह एक संस्कृत सुभाषित की याद आती है। वह सुभाषितकार मूसलाधार बारिश को उद्देशित करते हुए कहता है, “ओ पर्जन्य राजा तेरा बरसना सुख कारक होते हुए भी प्रचंड गर्मी में बीज का रक्षण करने में एक माली जो कष्ट सहन करता है वह तेरी अपेक्षा ज्यादा महान कार्य है”।

आज संघ शताब्दी वर्ष में संघ पर प्रशंसा की मूसलाधार वर्षा हो रही है वह आनंददाई है, यह सच है, परन्तु संघ के अत्यंत कष्टदायक कालखंड में मधु भाई जैसे प्रचारकों ने स्वत: के रक्त और पसीने से जो बीज अंकुरित रखा उसकी महानता इस प्रशंसा से बड़ी है। संघ गीत की एक पंक्ति है, “सींच रहे हैं अगणित माली”। मधु भाई की गणना प्रखर धूप में संघ बीज का संवर्धन करने वाले सिंचनकार की है। उनके परलोक गमन का वृत्त सुनकर महाराष्ट्र और गुजरात प्रांत के जाने कितने हजार घरों में शोक छा गया होगा, कहना कठिन है। अपने महान दार्शनिकों ने जीवन की सार्थकता किस में है, यह अत्यंत सुंदरता से बताया है। जन्म लेने के बाद स्वत:के लिए कैसे जीना यह सीखना नहीं पड़ता। प्रत्येक मनुष्य अपनी क्षमता के अनुसार दौड़ धूप करता रहता है, परंतु इस प्रकार का जीवन जीने में जीवन जीने की सार्थकता नहीं है। जीवन की सार्थकता, ‘परोपकाराय’ पुण्याई में है और उसमें भी अपना संपूर्ण जीवन समाज को समर्पित करने में जीवन की सर्वश्रेष्ठता है। मधु भाई ने वैसा जीवन जी कर हमारे सामने आदर्श प्रस्तुत किया है।

गोरखनाथ का एक भजन है, “गुरुजी मैं तो एक निरंजन ध्याऊँ जी। दूजे के संग नहीं जाऊं जी”। इसका अर्थ होता है गुरुजी मैं तो एक ही दीपक की आराधना करूंगा मेरा चित् किसी दूसरी तरफ बिल्कुल भी नहीं जाएगा। मधुभाई ने एक ही ‘दिए’ की आराधना की, वह ‘दिया’ यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। युवावस्था में ध्यान भटकाने वाली असंख्य विचारधाराए थीं, परंतु मधु भाई ने अपना चित्त संघ रूपी दिए से नहीं ढलने दिया। गोरखनाथ ने यह भजन उनके गुरु को उद्देशित करते हुए लिखा है। मधुभाई की पीढ़ी परम पूज्य गुरु जी के विशाल, आल्हाददायी, कर्तव्याभिमुख, करने वाली छत्रछाया में पल्लवित हुई थी। प्रचारकों का वैचारिक आध्यात्मिक कर्तव्याभिमुख पालन पोषण करने का कार्य करने का काम श्री गुरु जी ने अपनी दिव्य वाणी से किया है। इस भजन के अंतिम चरण में गोरखनाथ कहते हैं, “मैं ज्योति में जोत मिलाऊं जी”।

मधु भाई ने अपने जीवन ज्योति संघ ज्योति में एक रूप की। इसलिए उनका जाना केवल पार्थिव शरीर का जाना है। मनुष्य देह पंचमहाभूतों से बना है। देह से ज्योति निकल जाने पर शेष देह पंचमहाभूतों में विलीन हो जाता है। ऐसा विज्ञान भी है और श्रद्धा भी। ज्योति रूप में मधु भाई अमर हैं। संघ ज्योति में जीवन ज्योति विलीन होने के बाद उसका अस्तित्व समाप्त नहीं होता। वह तो संघ ज्योति के रूप से प्रकाशमान रहता है और नित्य ऊर्जा उत्पन्न करता रहता है। इस महान जीवन ज्योति को विनम्र अभिवादन। उनके जीवन प्रकाश में हम चलते रहे, यही उनके लिए हमारी श्रद्धांजलि।

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Tags: #madhubhai #kulakarni #rssorg #sangh #vivek ##world #viral #hindivivek

रमेश पतंगे

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