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लद्दाख की लपटें : लहूलुहान लेह और विदेशी फंडिंग का फंडा

लद्दाख की लपटें : लहूलुहान लेह और विदेशी फंडिंग का फंडा

by हिंदी विवेक
in राजनीति
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लेह-लद्दाख, जहां शांति और सहिष्णुता की हवा बहती है, वहां अचानक धधक उठी आग ने पूरे देश को झकझोर दिया। यह केवल प्रशासनिक असंतोष का विस्फोट नहीं था, बल्कि सुनियोजित षड्यंत्र की पटकथा थी।

लेह-लद्दाख, जहां शांति और सहिष्णुता की हवा बहती है, वहां अचानक धधक उठी आग ने पूरे देश को झकझोर दिया। यह केवल प्रशासनिक असंतोष का विस्फोट नहीं था, बल्कि सुनियोजित षड्यंत्र की पटकथा थी। भीड़ ने चुन-चुन कर सरकारी दफ्तरों को निशाना बनाया, बीजेपी कार्यालय तक को नहीं छोड़ा। और अब सरकार ने इस षड्यंत्र के पीछे छिपे चेहरों को बेनकाब करना शुरू कर दिया है।

सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि इतनी बड़ी भीड़ अचानक कहां से जुट गई? यह कोई स्वस्फूर्त जनाक्रोश नहीं था। सुरक्षा सूत्रों ने स्पष्ट किया कि उपद्रवियों को बाहर से लाया गया। यह भीड़ स्थानीय असंतोष का प्रतीक नहीं, बल्कि सुनियोजित भीड़-राजनीति का हथियार थी। चुने हुए सरकारी दफ्तरों पर हमला और चिह्नित स्थलों को आग के हवाले करना इस बात का प्रमाण है कि उपद्रवियों के पास पूर्व-निर्धारित नक्शा और आदेश था।

लेफ्टिनेंट गवर्नर कविंद्र गुप्ता ने सुरक्षा अधिकारियों के साथ उच्चस्तरीय बैठक के बाद स्पष्ट कहा कि ’यह लद्दाख को जलाने की साजिश थी।’ उनका यह बयान बताता है कि यह हिंसा केवल सामाजिक या आर्थिक शिकायतों का परिणाम नहीं थी, बल्कि कुछ राजनीतिक दलों और संगठित गिरोहों का साझा षड्यंत्र था। लोकतंत्र में असहमति का अधिकार है, परंतु लोकतांत्रिक असहमति और हिंसक षड्यंत्र में स्पष्ट भेद होता है। हिंसा की पृष्ठभूमि में सबसे बड़ा नाम आया है पर्यावरण और शिक्षा के नाम पर मशहूर बने सोनम वांगचुक का। गृह मंत्रालय ने पंजीकरण रद्द कर दिया है। इसका सीधा अर्थ यह है कि अब यह संगठन विदेश से कोई भी चंदा नहीं ले सकेगा।

सरकार की जांच में वित्तीय गड़बड़ियों और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे गंभीर आरोपों के सबूत मिले। 20 अगस्त को ही छॠज को नोटिस भेजा गया था, परंतु दिए गए जवाब ने अनियमितताओं पर कोई संतोषजनक सफाई नहीं दी। इस प्रकार, केंद्र ने कानून का पालन करते हुए छॠज पर कठोर प्रहार किया, ताकि विदेशी धन के सहारे आग लगाने वालों की जड़ें काटी जा सकें। गृह मंत्रालय ने साफ कहा है कि सोनम वांगचुक हिंसा भड़काने के दोषी हैं। उन्होंने भूख हड़ताल को अंत तक खींचा, जबकि कई नेताओं ने उन्हें रोकने की अपील की थी।
वे केवल सामाजिक मांग नहीं रख रहे थे, बल्कि अरब स्प्रिंग का उदाहरण देकर लोगों को उकसा रहे थे। उन्होंने नेपाल में चल रहे ॠशप न विरोध प्रदर्शनों का हवाला दिया और युवाओं को हिंसक तरीके से सड़क पर उतरने का संदेश दिया। यही नहीं, उनके उत्तेजक भाषणों से भीड़ अनशन स्थल से उठी और सरकारी दफ्तरों व राजनीतिक कार्यालयों पर टूट पड़ी। यह महज संयोग नहीं, बल्कि पूर्व-नियोजित सामाजिक विद्रोह की साजिश थी।

अरब स्प्रिंग और नेपाल संदर्भ : क्यों खतरनाक?
’अरब स्प्रिंग’ शब्द का इस्तेमाल साधारण नहीं था। पश्चिम एशिया में इस आंदोलन ने कई देशों को अस्थिरता, गृहयुद्ध और आतंक के दलदल में धकेला। वहीं, नेपाल में हाल ही में ॠशप न आंदोलन ने राजनीतिक अस्थिरता की नई लहर पैदा की है। वांगचुक द्वारा इन उदाहरणों का उपयोग, उनके वास्तविक इरादों को उजागर करता है। लद्दाख को भी वैसा ही अस्थिर मैदान बनाना, जहां सामाजिक मांगों की आड़ में राष्ट्रविरोधी तत्व फलें-फूलें।

सामरिक और सांस्कृतिक दृष्टि से लद्दाख क्यों निशाने पर?
लद्दाख सिर्फ भौगोलिक सीमांत नहीं है। यह भारत की सामरिक सुरक्षा का प्रहरी है। कारगिल से लेकर गलवान तक। यहां की अस्थिरता सीधे-सीधे चीन और पाकिस्तान को लाभ पहुंचा सकती है। यही कारण है कि बाहरी फंडिंग, विदेशी छॠज और भड़काऊ भाषणों के जरिए भारत के सबसे संवेदनशील क्षेत्र को हिलाने का प्रयास हुआ।
सरकार की यह कार्रवाई केवल एक छॠज पर रोक नहीं है, बल्कि विदेशी फंडिंग से उपजी अस्थिरता पर निर्णायक प्रहार है। यह संदेश भी है कि भारत अब ’अरब स्प्रिंग’ या ’नेपाल शैली’ के प्रयोगों को अपनी धरती पर सफल नहीं होने देगा।

विदित हो कि कई छॠज की गतिविधियों में चीन की नीतियों के अनुरूप स्थानीय असंतोष को हवा देने के संकेत मिले हैं। विदेशी फंडिंग के माध्यम से ’सॉफ्ट पावर’ की आड़ में ’हार्ड एजेंडा’ चलाया जा रहा है। यह कोई नई रणनीति नहीं है। चीन-तिब्बत नीति से लेकर नेपाल में बढ़ते प्रभाव तक, बीजिंग लगातार ’सीमा क्षेत्रों में अस्थिरता’ का बीज बोने का प्रयास करता रहा है। लेह की हिंसा में इसी नीति की छाया साफ दिखाई देती है। लेह की हिंसा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत के विरोधी तत्व अब ’सूचना युद्ध’ और ’भीड़ युद्ध’ दोनों का सहारा ले रहे हैं। नेपाल कनेक्शन इस बात का प्रतीक है कि सीमा पार ताकतें भारत की आंतरिक एकता को चोट पहुंचाने में लगी हैं। समाधान केवल पुलिसिया कार्रवाई नहीं है, बल्कि जन-जागरूकता, राजनीतिक शुचिता और सांस्कृतिक सतर्कता का सामूहिक प्रयास है।

-प्रणय विक्रम सिंह

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Tags: #lehladdakh #viral #news #world #police #ngo #updates

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