आज 2 ऑक्टूबर देश के पूर्व प्रधान मंत्री लालबहादुर शास्त्री की 122वीं जयंती। लालबहादुर शास्त्रीस्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधान मंत्री पं. नेहरू के निधन के बाद देश के प्रधान मंत्री बने। विति हो कि देश के प्रधान मंत्री बनने से पूर्व ये उत्तर प्रदेश के गृह एवं परिवहन मंत्री थे। उत्तर प्रदेश भारत का जनसंख्या एवं क्षेत्रफल दोनों की दृष्टि से सबसे बड़ा प्रदेश है। इन दोनों मंत्रालयों पर कार्य करना तथा प्रदेश की जनता को व्यवस्थित बनाना यह अत्यंत कठिन कार्य शास्त्री जी ने अच्छी तरह से किया था।
2 अक्टूबर 1904 को जन्में शास्त्री जी का पूरा नाम लालबहादुर श्रीवास्तव था।
गरीब परिवार में जन्म लेने के बावजूद बचपन से ही वे पढ़ाई में अव्वल थे । काशी विश्वविद्यालय से शास्त्री की उपाधि अर्जित करने के बाद लोग उन्हें लाल बहादुर शास्त्री के नाम से ही जानने लगे। महात्मा गांधी के आवाहन पर विद्यार्थी काल से ही स्वतंत्रता आंदोलन में शास्त्रीजी ने स्वयं को झोंक दिया। अपने देश पर उनकी अटूट श्रद्धा एवं निष्ठा थी। देश की स्वतंत्रता के पश्चात शास्त्री जी को उत्तरप्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया। उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्य मंत्री गोविंद वल्लभपंत के मंत्रिमंडल में गृह एवं पुलिस तथा परिवहन मंत्रालय उन्हें सौपा गया था। परिवहन मंत्री के कार्यकाल में शास्त्री जी ने प्रथम बार महिला संवाहकों( कंडक्टरों) की नियुक्ति की थी। पुलिस मंत्री होने के बाद उन्होंने भीड़ को नियंत्रण में रखने के लिए लाठी की जगह पानी की बौछार का प्रारंभ कराया।
1951 में नेहरू जी के नेतृत्व में शास्त्री जी अखिल भारतीय काँग्रेस कमिटी के महासचिव नियुक्ति किए गए। उन्होंने 1952, 1957 एवं 1962 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से विजय दिलाने के लिए अत्यंत परिश्रम किया। स्वयं के कार्य पर उन्हें पूर्ण विश्वास था। कार्य के प्रति समर्पित भाव, नीति मूल्यों पर अटूट विश्वास, सादगीयुक्त सख्तपन, देशहित के लिए समयोचित कठोर निर्णय लेने की क्षमता इन सभी गुण-विशेषताओं के कारण ही शास्त्री जी राजनीति में अंगद की पांव की तरह अटल थे। स्वतंत्रता आंदोलन में मिली प्रत्येक जिम्मेदारी का उन्होंने प्रामाणिकता के साथ वहन किया।
स्वतंत्रता के पश्चात नेहरूजी के नेतृत्व में विविध जिम्मेदारियां शास्त्रीजी ने मात्र देशहित दृष्टिगत रखते हुए निभाई। शास्त्रीजी अत्यंत शांत स्वभाव के थे। नेहरू और पुरुषोत्तमदास टण्डन इन दो विरुद्ध व्यक्तित्व के लोगों को एकसाथ करने की कला शास्त्री जी के पास थी। कहते हैं कि दो अलग-अलग वजन की वस्तुओं का मूल्यांकन तराजू का कांटा ही कर सकता है, शास्त्री जी इन दो विरुद्ध व्यक्तित्वों मे तराजू का काम करते थे। नेहरू के देहावसान के बाद शास्त्री जी की साफ-सुथरी छवि के कारण सर्वसम्मति से 1964 मे प्रधान मंत्री बनाया गया।
9 जून 1964 को शास्त्रीजी ने भारत के प्रधान मंत्री के रूप मे पदभार ग्रहण किया। देश की जनता के दिल दिमाग पर नेहरू के आकर्षक और जादुई व्यक्तित्व का असर था, परंतु धीरे-धीरे शास्त्री जी के शांत, संयमी, सामन्य रहन-सहन ने, उनके कर्तृत्व से देशवासियों पर उनकी छाप पड़ने लगी। मात्र 18 महीनों के अत्यंत अल्प एवं परीक्षा का कार्यकाल प्रधान मंत्री के रूप में उन्हें मिला। शास्त्री जी जब प्रधान मंत्री बने तब देश स्वतंत्रता के मामले में बाल्यावस्था में ही था, इस कारण अनेक मुद्दों में बाकी देशों से पिछड़ा था। फसल उत्पादन, औद्योगिकीकरण, शस्त्रास्त्र निर्माण, स्वसंरक्षण जैसी अनेक समस्या सुरसा की तरह मुहं खोले खड़ी थीं। भारी मात्रा में हमें विदेशों से सहायता लेनी पड़ती थी। 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध में भारत को हार का सामना करना पड़ा था।
देश आर्थिक तंगी से गुजर रहा था इसी बीच पाकिस्तान अपनी फितरत के अनुसार हमें परेशान करने का काम कर रहा था। देश जिस कठिन दौर से गुजर रहा था, शायद उसे ही देखकर पाकिस्तानने 1965 में अपने देश पर आक्रमण करने की बचकाना हरकत की थी अर्थात युद्धभूमि पर तथा अंतरराष्ट्रीय राजनीति के पायदान पर भारत ने उसका मुंहतोड़ जवाब दिया। हम ईंट का जवाब पत्थर से दे सकते हैं और शीशे के घर में रहने वालों दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंकते हैं। इस आक्रामक शैली में शास्त्री जी ने पाकिस्तान को जवाब दिया।
1962 और 1965 के युद्धों का नतीजा था कि देश खराब आर्थिक परिस्थिति से गुजर रहा था शास्त्री जी ने देश की जनता को आवाहन किया कि हर एक सप्ताह में एक बार उपवास रखें ताकि देश इस भूखमरी की स्थिति से उबर जाए। शास्त्री जी की इस विनती को देश की जनता ने सम्मान दिया। ईश्वर की कृपा से कहें या शास्त्री जी का राष्ट्रहित का भाव कहे, उस वर्ष फसलें अच्छी हुईं और राष्ट्र भूखमरी की स्थिति से और आर्थिक तंगी से उबर गया। पाकिस्तान को मुँहतोड़ जवाब देना और देशवासियों का आत्मबल बढ़ाना इन दो विपरीत भावनाओं के कार्य शास्त्री जी ने अत्यंत संयम और सख्ती से कर दिखाए। शास्त्री जी का रहन-सहन अत्यंत सादगीपूर्ण था । राजनीति की चकाचौंध का उन पर कभी भी प्रभाव नहीं हुआ।
एक जोड़ी धोती और दो कुर्ते इसी परिधान पर उनकी दिनचर्या पूर्ण हो जाती थी। विदेशों में जाने के लिए मात्र दो जोड़ी कपड़े उन्होंने तैयार कर रखे थे। विदेशों में जाते समय भी शास्त्री जी ने अपना परिधान कभी बदला नहीं। वे कहते थे , यह मेरे देश का वेष है, मैं जिस देश प्रतिनिधित्व करता हूँ उस देश के परिधान की मुझे शर्म लगना और विदेश जाते समय उसे बदलना एक दृष्टि से मेरी मातृभूमि का असम्मान होगा।
एक बार एक पत्रकार ने शास्त्रीजी से पूछा कि आप बचपन में रोज पाठशाला जाते समय नदी में तैरकर जाते थे ऐसा हमने सुना है, तब ऐसा मैंने एक ही बार किया है शास्त्री जी ने उन्हें प्रामाणिकता के साथ बताया। प्रधान मंत्री पद पर रहते इस तरह की झूठी बातें, प्रसंग बताकर जनमानस में भ्रम फैलाने का कोई भी कार्य शास्त्री जी ने कभी भी नहीं किया। मंत्री पद का त्याग करने के बाद उनके मानदेय में कमी आई। बच्चों की शिक्षा का खर्च उनके मानदेय से पूरा नहीं हो रहा था, तब कपड़ों की धुलाई का खर्च कम करे और उसमेें से बच्चों की पाठशाला की फीस भरी जाए ऐसा अपनी पत्नी को बताया।
कार्यालय से घर जाते समय सब लाइट एवं पंखों को स्वयं बंद करते हुए जानेवाले प्रधान मंत्री केवल शास्त्रीजी ही हुए। प्रधान मंत्री पद पर रहते हुए उन्होंने अनेक देशों से मैत्री सम्बंध स्थापित किए। विकासनशील भारत को हर एक क्षेत्र में स्वयंपूर्ण करने का उन्होंने बीड़ा उठाया और उस दृष्टि से दमदार कदम उठाना प्रारंभ किया। 1965 का आक्रमण अगर नहीं होता तब यह पायदान हमारा देश निश्चित ही जल्दी पार कर लेता। आक्रमण काल में भी सरकार ही नहीं बल्कि विरोधी पक्ष को, देशवासियों को विश्वास में लेकर शास्त्रीजी ने सख्त निर्णय लिए। लाठी सेना का आत्मविश्वास बढ़ाया। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में चाणक्य नीति से पाकिस्तान को रुला कर छोड़ा।
पाकिस्तान से ताशकंद करार करते समय दोनों देशों में शांतता रहे यह शास्त्रीजी का विचार था, परंतु शांतता चाहिए इसका अर्थ यह नहीं की डरकर पीछे हटकर, देश की सुरक्षितता के साथ समझौता करना यह कदापि नहीं था। देश की सुरक्षा के लिए लड़नेवाले सैनिक स्वयं का जीवन दांव पर लगा देता है और पूरे देश को पेटभर भोजन देने वाला अन्नदाता किसान खुद भूखा या अर्ध पेट रह कर जीवन जीता है। सैनिक और किसान की देश की उन्नति में, प्रगति में महती भूमिका है, इसलिए उनके जीवन की जिम्मेदारी लेना मेरा प्रथम कर्तव्य है इस विचार से ही शास्त्रीजी ने जय जवान, जय किसान का नारा पूरे देश में प्रचालित किया। शास्त्रीजी ने यह नारा दिया परंतु मात्र नारा देनेवाले या ताशकंद करार करने वाले भारत के प्रधान मंत्री नहीं थे।
भारत कृषि प्रधान देश है, खेती बारिश पर निर्भर रहती है ,बारिश के साथ ही नहरों से पानी लेकर खेती करे, कम पानी से होनेवाली फसलें किसान लिया करे, खेती विषयक उन्नत प्रयोगों का अवलम्ब करे यह बताने वाले प्रधान मंत्री दुर्लभ ही हैं। राष्ट्र की संस्कृति खेती में है, उसे न बदलते हुए उस पर अच्छा कार्य करना, खेती को लाभ का धंधा बनाकर उसे किस प्रकार से बढ़ाया जाए, इस पर शास्त्रीजीने किसानों को उपाय बताए। शास्त्री जी की सादगी भरे व्यक्तित्व में राष्ट्रहित के लिए कठोर निर्णय लेने की क्षमता थी। इनके मन मस्तिष्क में राष्ट्र के प्रति अत्यंत अभिमान भरा हुआ था। अपने 62 वर्षों के जीवन को शास्त्री जी ने निष्कलंक जिया। प्रसिद्धि से दूर रहकर सतत राष्ट्र और उसकी जनता का विचार यही उनके जीवन का उद्देश्य था। 11 जनवरी 1966 इनका निधन हो गया। मरणोपरांत इन्हें ’भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।
-स्वाति गोडबोले