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आतंकवाद की नागफनी

आतंकवाद की नागफनी

by सुशील शर्मा
in फरवरी-२०१५, सामाजिक
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आतंकवाद की नागफनी (थूहर- cactus) भुजाएं बड़ी ही तेजी और मजबूती के साथ तमाम देशों की सरहदों को पार करती जा रही हैं। अभी तो इन भुजाओं के हाथ पारंपरिक हथियार लगे हैं लेकिन जिस तरह आतंकी तत्वों की घुसपैठ पाकिस्तान जैसे देशों की फौज में भी बढ़ रही है, उससे आशंका है कि उनके हाथ परमाणु हथियार भी पड़ जाए। दुर्भाग्य से ऐसा हुआ तो महाविनाश की ऐसी शृंखला शुरू हो जाएगी, जो मानवता के अस्तित्व को ही खतरे में डाल देगी। अतः आतंकवाद की नागफनी को कुचलने के लिए सभ्य समाज के सभी देशों को मिलकर उसकी जड़ों में तेजाब डालना होगा। आतंकवाद को अच्छे और बुरे आतंकवाद के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए वर्ना वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई कमजोर पड़ जाएगी।
फ्रांस की एक व्यंग्य पत्रिका ‘शार्ली अब्दो’ के दफ्तर पर पिछली ७ जनवरी को हुए आतंकी हमले में दस पत्रकारों और दो पुलिस कर्मियों की मौत हो गई। पिछले कुछ महीनों में विश्व के अलग-अलग भागों में हमले हुए। कनाडा, आस्ट्रेलिया, पाकिस्तान में पेशावर और अब फ्रांस की राजधानी पेरिस में पत्रिका के कार्यालय पर हमले में आतंकी संगठनों या ऐसे संगठनों से प्रेरित लोगों का हाथ रहा। कभी फिलिस्तीनी आतंकवादियों के फिदाइन हमलों से शुरू हुए आतंकवाद ने अब विशाल रूप धारण कर लिया है। १९७९ में अफगानिस्तान पर सोवियत कब्जे के बाद अमेरिका की मदद से तैयार किए गए जेहादियों के बूते सोवियत सेना के खिलाफ चले संघर्ष और अंततः सोवियत सेना की वापसी के बाद जेहादी मानसिकता को एक नया बल मिला। तब इस्लामी जेहादियों को लगने लगा कि जब सोवियत संघ जैसी सैन्य ताकत को गुरिल्ला युद्ध में हराया जा सकता है तो दुनिया की किसी भी ताकत को झुकाया जा सकता है। इसी मानसिकता की जमीन पर ओसामा बिन लादेन ने अल कायदा जैसे कट्टर इस्लामी आतंकी संगठन को खड़ा किया जिसने आगे चल कर ११ सितंबर २००१ को उसी अमेरिका पर हमला किया जिसने सोवियत संघ के खिलाफ संघर्ष में जेहादियों और ओसामा बिन लादेन की मदद की थी। यात्री विमानों को मिसाइलों के तौर पर इस्तेमाल करते हुए अल कायदा ने ऐसा हमला किया जिसकी सभ्य समाज में कभी कल्पना नहीं की जा सकती थी।
अमेरिकी राजनीतिक विचारक सैमुअल पी. हटींगटन ने १९९६ में लिखी अपनी पुस्तक ’क्लैश ऑफ सिविलाइजेशंस’ में विचार रखा था कि ९० के दशक में शीत युद्ध समाप्ति के बाद विश्व एक ऐसे संघर्ष की ओर बढ़ेगा जिसका आधार सभ्यताओं की भिन्नता होगी। आज विश्व भर में व्याप्त आतंकवाद उन्हीं सभ्यताओं के बीच संघर्ष के रूप में सामने है। यूं तो ईसाई, बौद्ध, इस्लाम, हिंदू धर्मों से पहचानी जाने वाली कई सभ्यताएं मौजूद हैं जिनके बीच समय-समय पर बड़े संघर्ष भी हुए लेकिन आज एक ओर इस्लाम और दूसरी ओर बाकी सभ्यताओं के बीच संघर्ष हो रहा है।
आतंकवाद एक ओर रणनीति और दूसरी ओर विचारधारा के रूप में भी उभर कर आया है। एक वैचारिक लक्ष्य के लिए दहशत का सहारा लेना आतंकवाद है। युद्ध के रूप में यह अपारंपरिक युद्ध और मानसिक युद्ध है। युद्ध शब्द जब भी इस्तेमाल होता है तब लक्ष्य होता है शत्रु। आज हम जिस वैश्विक आतंकवाद को देख रहे हैं वह पश्चिम के खिलाफ इस्लामिक दुनिया की बगावत है। एक जमाने में वामपंथी छापामारों की रणनीति भी इसी प्रकार की थी। अफ्रीका और एशिया के कई देश कम्युनिस्ट छापामारों के निशाने पर थे। उनके सम्पर्क सूत्र अंतरराष्ट्रीय थे। इंडोनेशिया, वियतनाम, कम्बोडिया, लाओस से लेकर कांगो तक उस युद्ध का विस्तार हो गया था। आतंक का इस्तेमाल दक्षिणपंथी और वामपंथी दोनों किस्म की विचारधाराओं ने अपने-अपने हितों में किया है। बीसवीं सदी में फलस्तीनी मुक्ति संगठन ने जब पहली बार यात्री विमानों का अपहरण शुरू किया तब राजनीतिक हथियार के रूप में आतंकवाद का सबसे प्रभावशाली रूप सामने आया। पश्चिम से उठी वह लहर अफगानिस्तान और इराक से होते हुए सीरिया और अफ्रीका के देशों तक चली गई है।
दरअसल आतंकवाद भस्मासुर की तरह है- अपने पोषक का भी शिकार करने से नहीं झिझकता। अमेरिका ने अफगानिस्तान में जेहादियों की मदद की। बाद में ये जेहादी धार्मिक उन्माद में उन्मत्त हो कर आतंकी बन गए और अमेरिका पर हमला कर दिया। ऐसा ही कुछ पाकिस्तान में हो रहा है। जिस पाकिस्तान ने पहले अफगानिस्तान और फिर भारत के खिलाफ जेहादी तैयार किए, वही जेहादी अब भस्मासुर बन कर पाकिस्तान को तबाह करने में लगे हैं। हाल ही में पेशावर के एक स्कूल के १०० से ज्यादा बच्चों और अन्य लोगों का कत्लेआम कर तालिबानी आतंकियों ने साबित कर दिया कि वे कितने बेरहम हो सकते हैं। यही नहीं, जिन तालिबानी आतंकियों को पाकिस्तान ने खड़ा किया था, वे अब पाकिस्तानी सेना के ही महत्वपूर्ण ठिकानों पर लगातार हमले करते रहे हैं। १६ अगस्त २०१२ को पाकिस्तानी वायुसेना के कामरा अड्डे पर तहरीके तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी), जो तालिबान लड़ाकों की ही एक शाखा है, ने हमला किया। इससे पहले २२ मई २०११ को टीटीपी ने पाकिस्तानी नौसेना के मेहरान अड्डे पर हमला किया जिसमें पाकिस्तानी नौसेना के २ पी३सी ओरायन विमान नष्ट हो गए। इन हमलों में आतंकवादियों समेत कई लोगों की जानें गईं। गत वर्ष ६ सितंबर को आतंकवादियों ने पाकिस्तानी नौसेना के एक जंगी पोत पीएनएस जुल्फीकार को अगवा करने का दुस्साहस तक कर लिया। यदि वह इसमें सफल हो जाते तो न जाने वे कितने ही व्यापारिक जहाजों को नष्ट कर सकते थे या अपने विरोधी देशों पर हमला कर सकते थे। सब से चिंताजनक बात तो यह है कि पाकिस्तान की सेना में कट्टरपंथियों के प्रवेश से उनके हाथ परमाणु बमों जैसे महाविनाशक हथियार लगने का खतरा पैदा हो गया है।
२६ नवंबर २००८ को भारत में मुंबई पर हुए पाकिस्तानी आतंकियों के हमले को सारी दुनिया ने लाइव देखा। इस हमले में १६६ निर्दोष लोगों की जानें गईं। भारत में मुंबई के अलावा दिल्ली, बनारस, बेंगलुरू, हैदराबाद, अहमदाबाद आदि कई शहरों पर आतंकी हमले हुए हैं। जम्मू-कश्मीर पिछले ३० वर्षों से आतंकवाद का शिकार है।
नाइजीरिया में पैदा हुए इस्लामी कट्टरपंथी आतंकी संगठन बोको हरम के पिछले पांच वर्षों के हमलों में पांच हजार से ज्यादा लोगों की जानें जा चुकी हैं। इसके अलावा इस संगठन ने गत वर्ष २७६ स्कूली लड़कियों का अपहरण कर लिया। बोको हरम पांच वर्षों में पांच सौ लोगों का अपहरण कर चुका है।
बांग्लादेश, इंडोनेशिया, चीन आदि देश भी इस्लाम के नाम पर मचाए जा रहे आतंकवाद के हमले झेल चुके हैं। रूस में चेचेन आतंकियों ने नर संहार किए। आज स्थिति यह है कि पूरी दुनिया आतंकवाद से त्रस्त है। कई प्रकार के राष्ट्रीय और उप राष्ट्रीय आंदोलन भी आतंकवाद के शिकार हो जाते हैं। श्रीलंका का तमिल आंदोलन भी इसी रास्ते पर चला गया था।
आतंकवाद का सब से खतरनाक चेहरा बन कर उभरा है इस्लामी स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) का प्रमुख अबु बक्र बगदादी। बगदादी ने खुद को इस्लाम धर्म का खलीफा घोषित कर एक ऐसा इस्लामी राष्ट्र बनाने का संघर्ष छेड़ा है जो इस्लाम धर्मावलंबियों का एक मात्र राष्ट्र होगा। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उसके समर्थक आतंकियों ने भयानक युद्ध छेड़ रखा है और विरोधियों का सरेआम सामूहित कत्ल किया जा रहा है। इस्लाम के नाम पर फैले आतंकवाद की जड़ें मजबूत होने के साथ-साथ तेजी से दुनिया भर में फैल रही हैं।
इन आतंकियों ने जमीन, आसमान और समुद्र-हर रास्ते से अपने हमले तेज कर दिए हैं। अमेरिका पर विमानों को हथियार बना कर हमले किए गए। भारत पर जमीन और समुद्र के रास्ते हमले हुए। हर देश आज समुद्र के रास्ते आतंकवाद के फैलने की आशंका से परेशान है। अमेरिकी पहल पर ’प्रोलिफेरेशन सिक्यूरिटी इनिशिएटिव’ (psi)और ’कंटेनर सिक्यूरिटी इनिशिएटिव’ (csi) जैसे कदम उठा कर कई देश अब समुद्र के रास्ते सामूहिक विनाश और अन्य अवैध खतरनाक हथियारों की रोकथाम पर लामबंद हुए हैं।
यूं तो इस्लाम के नाम पर आतंक फैलाने वाले संगठन पश्चिमी सभ्यता और पश्चिमी देशों के घोर विरोधी हैं लेकिन अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए ये संगठन पश्चिमी टेक्नोलॉजी का भरपूर इस्तेमाल करते हैं। सोशल मीडिया इसकी एक मिसाल है।
वैश्विक आतंकवाद का एक पहलू है सोशल मीडिया और तकनीक का इस्तेमाल्। हाल में ट्विटर ने पाकिस्तानी संगठन लश्करे तैयबा के अमीर हाफिज सईद का ट्विटर अकाउंट सस्पेंड किया। इसके कुछ समय बाद ही हाफिज सईद के तीन नए अकाउंट तैयार हो गए। इनके मार्फत भारत विरोधी प्रचार फिर से शुरू हो गया। साथ ही ट्विटर के संचालकों के नाम भी लानतें भेजी जाने लगीं। आईएस के एक ट्वीट हैंडलर की बेंगलुरु में गिरफ्तारी के बाद जो बातें सामने आईं उनसे लगता है कि ‘सायबर आतंकवाद’ का खतरा उससे कहीं ज्यादा बड़ा है, जितना सोचा जा रहा था। ब्रिटेन के जीसीएचक्यू (गवर्नमेंट कम्युनिकेशंस हैडक्वार्टर्स) प्रमुख रॉबर्ट हैनिगैन के अनुसार, फेसबुक और ट्विटर आतंकवादियों और अपराधियों के कमांड एंड कंट्रोल नेटवर्क बन गए हैं। फाइनेंशियल टाइम्स में प्रकाशित एक लेख में उन्होंने बताया कि आईएस (इस्लामिक स्टेट) ने वेब का पूरा इस्तेमाल करते हुए सारी दुनिया से ‘भावी जेहादियों’ को प्रेरित-प्रभावित करना शुरू कर दिया है। इसलिए माना जाता है कि इसका निराकरण राजनीतिक पहलकदमी से किया जाना चाहिए।

साइबर आतंकी अब अपनी पहचान छिपाने में भी कामयाब हो रहे हैं। वे ऐसे एनक्रिप्शन टूल्स का इस्तेमाल कर रहे हैं जो पहले केवल सरकारी एजेंसियों को ही उपलब्ध थे। हाल में उत्तरी इराक के मोसुल शहर पर हमला करते हुए आईएसआईएसआई ने एक दिन में तकरीबन ४०,००० ट्वीट किए।

सन २००८ मुम्बई हमले के दौरान पाकिस्तानी हमलावरों ने सोशल मीडिया के साथ-साथ भारतीय मीडिया में हो रही कवरेज का फायदा भी उठाया था। इसलिए मीडिया को भी इस मामले में विचार करना चाहिए। १६ नवम्बर को अमेरिकी सामाजिक कार्यकर्ता पीटर कैसिग की गर्दन काटे जाने वाले वीडियो के प्रचारित होने के बाद उनके परिवार वालों ने मीडिया से अनुरोध किया था कि वीडियो का प्रचार न करें। इसका प्रचार होने से आतंकियों का उद्देश्य पूरा होता है। दिक्कत यह है कि मीडिया जल्दबाजी में अपने कार्यों का आकलन नहीं कर पाता। अक्सर वह आतंकियों के प्रचारात्मक वीडियो भी दिखाता रहता है।

आतंकवाद की छत्रछाया में कई प्रकार के आर्थिक अपराध भी संरक्षण पाते हैं। भारत में कश्मीरी आतंकवाद के लिए हवाला के मार्फत पैसा लाने से जुड़े अपराध का भंडोफोड़ होने के बाद जैन हवाला मामले का भंडाफोड़ भी हुआ। पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर चल रही तालिबानी गतिविधियों को अफीम की अवैध खेती से पैसा मिलता है। इराक में इस्लामी स्टेट की सेना को आसपास के इलाकों से की गई वसूली से स्रोत-साधन मिलते हैं।
आतंकवाद आज किसी एक देश की समस्या नहीं है। यह एक वैश्विक समस्या है और इस समस्या से निपटने के लिए तमाम देशों को मिल कर प्रयास करने होंगे बल्कि इस चुनौती से निपटने के लिए सामूहिक प्रयास शुरू हो गए हैं।

सुशील शर्मा

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