संघ की शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य पर विगत 1 अक्टूबर को वर्तमान सरकार द्वारा 100 का स्मारक सिक्का जारी किया गया। जिसको लेकर विरोधियों के बीच विरोध की राजनीति गरमा गई है। आखिर क्या कारण है कि विरोध की चिंगारी इनके आसपास छिटक रही है।
आजकल हर तरफ एक विषय पुरजोर तरीके से भारत के राजनीतिक पटल पर गर्माहट के साथ प्रसारित हो रहा है। विषय है संघ द्वारा एक अक्टूबर 2025 को जारी होने वाला सिक्का। यह 100 का सिक्का है जो चांदी से बना है। यह संघ के शताब्दी वर्ष में एक स्मारक सिक्का के रूप में जारी किया गया है। इस सिक्के पर एक और भारत का राष्ट्रीय चिन्ह अंकित है और दूसरी ओर भारत माता को संघ का ध्वज लेते हुए एवं स्वयंसेवकों को नमन करते हुए दिखाया गया है, साथ ही सिक्के पर राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय इदं न मन संघ का ध्येय वाक्य लिखा है। शायद यही कारण है कि स्मारक सिक्का अब स्मारक सिक्का की दृष्टि से नहीं अपितु संघ के विरोध की दृष्टि से देखा जा रहा है। हर विपक्षी इस सिक्के को स्मारक सिक्के की दृष्टि से न देखकर संघ के प्रचार प्रसार की दृष्टि से देख रहा है। जबकि स्मारक सिक्के पूर्व में भी विशेष अवसरों पर मुद्रित हुए हैं।
यह कोई पहला अवसर नहीं जब किसी विषय पर सिक्का जारी किया गया हो। सिक्के जारी करने के अधिनियम हैं, कानून हैं और उसी के तहत कोई सरकार यह कार्य सम्पादित कर सकती है। 1906 में जो सिक्का अधिनियम बना था उसके अंतर्गत सोने या चांदी के सिक्कों के स्थान पर ताम्बे के सिक्कों का चलन हुआ था। 1975 में इसे संशोधित कर दिया गया और कहा गया कि केंद्र सरकार के विशेष अधिकार के अंतर्गत 100 या इससे अधिक मूल्य के सिक्के डाले जा सकेंगे। 1969 से लगातार स्मारक सिक्के डाले जा रहे हैं 10, 20 और 50 मूल्य के स्मारक सिक्के कई बार ढाले गए हैं। सरकार को सिक्के जारी करने का अधिकार है और उसका विपणन मूल्य तय करने का भी। सरकार किसी समाजसेवी या संगठन पर सिक्का या डाक टिकट जारी कर सकती है। यही स्मृति सिक्का या स्मृति डाक टिकट कहा जाता है। यह सिक्के विपणन में नहीं लाए जाते इन्हें खरीदा जा सकता है।
ऐसे स्मारक सिक्के किसी घटना या विशिष्ट लोगों की याद में जारी किए जाते हैं। इन सिक्कों की डिजाइन में उस घटना या व्यक्ति की स्मृति के चिन्ह होते हैं। ज्ञातव्य हो की सबसे पहला स्मारक सिक्का डॉ. भीमराव अंबेडकर पर जारी किया गया था, इसके बाद मौलाना अबुल कव्वाल कलाम आजाद, रवींद्रनाथ टैगोर, मदर टेरेसा, बेगम अख्तर और स्वामी विवेकानंद पर 20 सिक्के अब तक जारी हो चुके हैं। 1964 में तो प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू की स्मृति में सिक्का ढाला गया तो उसे बाजार में विपणन हेतु लाया गया था। प्रश्न यह भी उठता है कि आखिर ऐसे सिक्कों को सरकार क्यों ढालती हैं जिनका चलन नहीं होता। तो यह बात निकलकर आती है कि विशिष्ट घटना या व्यक्ति की स्मृति में निकाले गए स्मारक सिक्के बाजार में बिकते हैं और राज्य सरकार के खाते में वह धनराशि जाती है जो राजकोष को आर्थिक लाभ पहुंचाती है यहां तक कि सिक्कों को सहजने वालों के शौक को पूरा करती है।
यह स्मारक सिक्के हमारे अतीत की स्मृतियां, महान व्यक्तियों और कला और स्थापत्य के तौर पर होते हैं। हममें से बहुत लोगों को डाक टिकट संग्रह करने का, किसी को विविध प्रकार की माचिस कलेक्शन का या अन्य चीजों को संग्रह करना पसंद होता है, उनमें से सिक्के एवं स्मारक सिक्के भी हैं। इसलिए प्रत्येक सरकार किसी विशिष्ट घटना या व्यक्ति पर सिक्का जारी करने का पूर्ण अधिकार रखती है। यह वर्ष चूंकि संघ का शताब्दी वर्ष है। अतः 1 अक्टूबर को वर्तमान सरकार द्वारा संघ पर स्मारक सिक्के जारी किया गया है, क्योंकि आरएसएस उसका मात्र संगठन है, लेकिन इस पर विपक्ष को बुरा क्यों लगना चाहिए क्यों इसका विरोध होना चाहिए एक विचारणीय तथ्य है। विरोधी या विपक्षी अपने तर्क में नारे लगा रहे हैं कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जो वीर थे वह जंग में गए जो कायर थे वह संघ में गए, कुछ कह रहे हैं कि वे राष्ट्र को स्वाहा कर रहे हैं, कुछ कह रहे हैं कि संघ देश को बांटने वाला संगठन है इसे बैन कर दिया जाना चाहिए। स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब किसी सिक्के पर भारत माता का चित्र अंकित किया गया हो। विपक्षों के सभी प्रश्नों के सटीक उत्तर प्रधान मंत्री मोदी ने अपने भाषण द्वारा दिए। इस विषय में जो भी प्रश्न उठाए गए हैं वह सभी निरर्थक ही जान पड़ते हैं और संघ की छवि को खराब करने वाला षड्यंत्र प्रतीत होते हैं।
इससे पूर्व भी व्यक्ति के नाम पर, संगठन के नाम पर, विशेष अवसर पर स्मारक सिक्के जारी किए गए तब क्यों नहीं कोई प्रश्न किया गया। 1964 में जवाहरलाल नेहरू पर 1 और 5 पैसे के सिक्के जारी किए गए। 1959 में महात्मा गांधी जन्म शताब्दी पर 100 और 20 के सिक्के जारी किए गए। 1980 में ग्रामीण महिला उन्नति पर 100, 10 , 25 और 10 पैसे के सिक्के जारी किए गए। 1981 में पहला विश्व खाद्य दिवस पर 100, 10, 25 पैसे और 10 पैसे के सिक्के जारी किए गए। 1985 में इंदिरा गांधी को श्रद्धांजलि 100, 20 और 5 रूपए के सिक्के जारी कर दिय गए। अंबेडकर जयंती पर 1990 में 1 रूपए के सिक्के जारी किया गया। 1995 में संयुक्त राष्ट्र संघ की 50वीं वर्षगांठ पर 5 रूपए के सिक्के जारी किए गए, 2015 में महात्मा गांधी के अफ्रीका से वापसी पर 100 और 10 रुपए के सिक्के जारी किया गया। यह कुछ एक उदाहरण हैं अन्यथा सूची बहुत लम्बी चौड़ी है। अब बात आती है कि जब पूर्व में भी ऐसा होता रहा है तब संघ की शताब्दी वर्ष में सभी मानकों को पूर्ण करते हुए इस स्मारक सिक्के का आना राष्ट्र के लिए कैसे गलत हो सकता है या इससे राष्ट्र को क्या हानि हो सकती है, यह भी विचारणीय है। यह केवल संघ की आलोचना कर उसकी छवि को खराब करने और अपने-अपने मुखौटों को चमका कर प्रदर्शित करने का असफल प्रयास है। इस अवसर पर हम सबको तो गर्व होना चाहिए की स्वतंत्रत भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है जब भारत माता की भव्य छवि किसी सिक्के पर अंकित की गई है।
-डॉ. नीतू गोस्वामी