बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के शुरुआती रुझान लगभग 205 सीटों की बढ़त के साथ ही बिहार में एनडीए की सरकार प्रचंड बहुमत के साथ बनती हुई नजर आ रही है। खास बात यह है कि 2020 के चुनाव में तीसरे नंबर पर रहने वाला जदयू इस बार भाजपा के साथ जुड़वां भाई की तरह बराबर नजर आ रहा है। एनडीए के इस प्रचंड बहुमत के पीछे बिहार सरकार की योजनाओं और साथ ही नीतीश कुमार की साफ छवि का असर देखने को मिल रहा है।
एनडीए सरकार की ओर से महिलाओं की गोलबंदी का असर इस चुनाव पर देखने को मिला। चुनाव से ठीक पहले महिलाओं के खातों में 10 हजार रूपये, वृद्धा पेंशन के नाम पर बुजुर्गों को 400 के बदले 1100 रुपए प्रति माह, मुफ्त 5 किलो चावल, साथ ही 125 यूनिट बिजली फ्री और अन्य योजनाओं का जादू इस तरह लोगों पर चढ़ा कि महिला एनडीए गठबंधन के अलावा किसी और गठबंधन को मत देते ही नहीं नजर आई।

नीतीश कुमार की जीविका योजना की पिछले कुछ सालों में खूब सराहना हुई है। महिलाओं को इस योजना के तहत सरकार ने 10-10 हजार रुपये रोजगार शुरू करने के लिए दिए। इस योजना में महिलाओं को 6 महीने बाद 2 लाख रुपये दिए जाने का भी प्रावधान महिलाओं पर खासा असर देखने को मिला।
बिहार विधानसभा चुनाव की मतगणना शुरू होते ही बिहार में इस बार सत्ता की चाबी फिर से एनडीए को सौंपते हुई जनता नजर आई। नीतीश कुमार फिर मुख्यमंत्री बनेंगे, यह तो चुनाव के बाद सर्वे प्रतिवेदन में ही साफ हो गया था। सवाल यह था कि कितने बहुमत के साथ नीतीश कुमार दोबारा मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन, इस तरह प्रचंड बहुमत मिलने की उम्मीद खुद एनडीए के नेताओं ने भी नहीं की थी।
जनता ने अपार बहुमत देकर एनडीए को पूर्ण बहुमत की सरकार दी है। कुछ लोगों को लग रहा था कि नीतीश कुमार को इस बार सत्ता से हाथ धोना पड़ेगा। वे लोग इस बात से अनजान थे कि नीतीश कुमार के पीछे महिलाओं की एक साइलेंट फोर्स काम कर रही है। यह साइलेंट फोर्स ही बिहार में बड़ी ताकत बनकर उभरी है। यह साइलेंट फोर्स ही तय की बिहार में एनडीए का राज होगा।
बिहार में आजादी बाद से 4 बार ही वोटिंग 60 फीसदी से ज्यादा मत पड़ा है। साल 1951-52 से 2020 तक हुए बिहार विधानसभा चुनावों में मतदान प्रतिशत केवल तीन बार ही 60 प्रतिशत से अधिक रहा।
चुनाव आयोग के अनुसार 2025 में इस बार दोनों चरणों के विधानसभा चुनाव में मतदान का प्रतिशत करीब 66.91 फीसदी रहा, जो 2020 के चुनावों (57.29%) के आंकड़ों से करीब 10 प्रतिशत अधिक रहा है। इसमें सबसे बड़ा खेला महिलाओं ने किया। इस बार दोनों चरणों में पुरुषों की तुलना में कम से कम 4,34,000 अधिक महिलाओं ने मतदान किया है। प्रतिशत के हिसाब से महिलाओं का मतदान प्रतिशत 71.6% रहा, जबकि पुरुषों का 62.8% रहा। यानी कुल मिलाकर पुरुषों के मुकाबले महिलाओं ने 10 फीसदी ज्यादा मतदान किया।
महिला किसी के लिए साइलेंट किलर तो किसी के लिए किंग मेकर साबित हुई है। बिहार में यही महिलाएं साइलेंट फोर्स बनकर, जो जाति-धर्म से परे वोटिंग कर सत्ता का समीकरण तय की हैं। देखने की बात यह है कि ये महिलाएं महागठबंधन पार्टी के लिए साइलेंट किलर बन गई और एनडीए को सत्ता की चाबी सौंप दी हैं।
बिहार में शराबबंदी लागू करने के चलते नीतीश कुमार की महिलाओं में लोकप्रियता काफी है। चुनाव के नजदीक आकर सरकार की ओर से की गई घोषणाओं ने भी चुनाव नतीजे एनडीए के पक्ष में कर दी हैं। नीतीश कुमार एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री बनते हुए नजर आ रहे हैं।

2025 विधानसभा चुनाव के पहले चरण में बिहार की कुल 243 सीटों पर महिलाओं ने जमकर वोटिंग की, इसमें महिलाओं का रुझान इस बार नीतीश कुमार की तरफ साफ नजर आई। यह महज 10 हजारी योजना ही नहीं, बल्कि पिछले 20-25 साल में साइकिल योजना से लेकर जनरेशनल स्कीमों ने महिलाओं में एक स्थायी झुकाव बनाया है।
रिकॉर्ड मतदान का मतलब यह नहीं होता है कि सत्ता बदल जाएगी और सत्ता को दोबारा लाने के लिए भी रिकॉर्ड मतदान किया जाता है। महिलाएं अगर बढ़-चढ़कर वोट दे रही हैं, तो उसका यह मतलब नहीं है कि वो इसलिए दे रही हैं कि कोई जीते या कोई हारे। वो इसलिए दे रही हैं क्योंकि अब महिलाएं अपनी बात आगे रख रही हैं। यही वजह है कि महिला वोटरों की अहम भूमिका इस बार चुनाव में बन गई। पुरुष वोटरों की अपेक्षा महिलाएं बढ़-चढ़कर मतदान में भाग ली और महागठबंधन को सत्ता में आने रोक दी।
बिहार में पुरुष मतदाता के लिए जाति बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन महिला मतदाता के लिए वो उतनी महत्वपूर्ण नहीं है। इस बार नीतीश कुमार महिलाओं की वजह से रिकॉर्ड नंबर लेकर फिर से सत्ता में आई हैं और हिंदुस्तान में एक नए तरह का वोट बैंक निर्णायक रूप से स्थापित हो गया है। महिलाओं को दिए जाने वाले पैसे लाभार्थी योजना नहीं, यह एक परिवार, पोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा और उनके छोटे उद्यमों में जाता है और बेहतर तरीके से समाज में वापस आता है।
- राघव झा

