सर्दियों के मौसम में कोहरा छा जाना एक सामान्य सी बात है। प्रातःकाल घर से निकलने पर यदाकदा जब हमें अपने से कुछ ही मीटर दूर कुछ भी नजर नहीं आता है तो हम जानते हैं कि यह सब कोहरे की वजह से है।
दरअसल, हवा में मौजूद जलवाष्प जब ठंड की वजह से जल के सूक्ष्म कणों अथवा बर्फ के नन्हें रवों में बदल जाती है तो हवा अपारदर्शी हो जाती है। इस अपारदर्शी हवा को ही कोहरा कहते हैं।
समुद्री तटों, बड़ी झीलों के किनारे, पहाड़ों, नम क्षेत्रों वाली घाटियों और महासागरों के ऊपर कोहरा छाना एक आम बात है। जमीन पर कोहरा सर्दियों के मौसम में प्रातःकाल के दौरान देखने को मिलता है। कोहरा कई पहाड़ी घाटियों में भी छाता है। वहां ऊपरी गर्म हवा ठंडी हवा को जमीन के निकट रखती है। ऐसा कोहरा प्रायः सुबह के समय होता है। सूरज निकलने के बाद ठंडी हवा गर्म होती है और ऊपर उठती है। इसके बाद से कोहरा छंटना शुरू हो जाता है। कोहरा बादलों की तरह आसमान में नहीं अपितु धरती के समीप छाता है।
कोहरा कैसे बनता है? इस सवाल का जवाब समझने के लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि एक निश्चित तापमान पर हमारे चारों तरफ मौजूद हवा एक निश्चित मात्रा से अधिक जलवाष्प धारण नहीं कर सकती है। दूसरी मुख्य बात यह है कि तापमान यदि अधिक होगा तो हवा जलवाष्प की अधिक मात्रा को धारण कर सकती है। अब यदि किसी तापमान पर हवा में जलवाष्प की मात्रा अपने इष्टतम स्तर पर है और अचानक हवा के तापमान में गिरावट हो जाए तो उस स्थिति में इसमें मौजूद जलवाष्प की कुछ मात्रा जल की बूंदों में तब्दील हो जाएगी। मोटे तौर पर कोहरा ऐसी ही परिस्थिति में बनता है। दरअसल, वातावरण के तापमान में आई गिरावट हवा की जलवाष्प को धारण करने की क्षमता को घटाती है।

कोहरे का निर्माण जिन जल बूंदों की वजह से होता है, उनका व्यास एक सेंटीमीटर के सौवें भाग से भी कम होता है। एक घन मीटर कोहरे में एक ग्राम के सौवें भाग के लगभग जल होता है जबकि बादलों के एक घन मीटर में एक डेसीग्राम से लेकर तीन ग्राम तक जल रहता है। यही वजह है कि कोहरे में मौजूद जल का धरती पर वर्षण नहीं होता है। जैसे-जैसे वातावरण का तापमान बढ़ता है, हवा में लटकती ये जल की सूक्ष्म कणिकाएँ पुनः जलवाष्प में बदल जाती हैं।
कोहरा बादलों से अधिक अपारदर्शी सिर्फ इसलिए होता है क्योंकि जल की मात्रा कम होने के बावजूद इसमें जल कणिकाओं की संख्या अधिक होती है। सूक्ष्म जल कणों की अधिकता के कारण कोहरा अधिक अपारदर्शी होता है क्योंकि वे कम संख्या वाले बड़े जल कणों की तुलना में अधिक प्रकाश सोखते हैं।
सामान्यतया कोहरा जिन परिस्थितियों में बनता है, उनके आधार पर उसे मौसम विज्ञानियों ने रेन एरिया फॉग, स्टीम फॉग, रेडिएशन फॉग, आदि जैसे नाम दिए हैं। यूं मुख्य रूप से कोहरा एडवेक्शन फॉग (अभिवहन कोहरा) और रेडिएशन फॉग (विकिरण कोहरा), इन दो रूपों में विभाजित किया गया है।
एडवेक्शन फॉग तब बनता है जब गर्म हवा का एक विशेष हिस्सा किसी नम प्रदेश के ऊपर पहुंचता है। कई बार कोहरा काफी घना भी होता है जिससे दूर देखने में परेशानी महसूस होती है। समुद्र के किनारे रहने वाले लोग एडवेक्शन फॉग से परिचित होते हैं।

रेडिएशन फॉग तब बनता है जब धरती की ऊपरी परत ठंडी होती है। ऐसा प्रायः शाम के समय होता है। धरती की ऊपरी परत ठंडी होने के साथ ही हवा भी ठंडी हो जाती है, जिस कारण कोहरा उपजता है। कोहरे के घनत्व से भी मौसम विज्ञानी कई बातों का पता लगाते हैं। जिस तापमान पर हवा में मौजूद जलवाष्प जल कणिकाओं में परिवर्तित होने लगती है, उस तापमान को मौसम विज्ञानी ओसांक कहते हैं। इस प्रकार से कोहरा या तो हवा के ठंडा होने पर बनता है अथवा हवा में उसी तापमान पर और अधिक जलवाष्प पहुँचने से बनता है।
यदि बरसने वाले जल का तापमान हवा के तापमान से अधिक हो अथवा हवा के संपर्क में मौजूद जल सतह का तापमान उसके तापमान से अधिक हो तो इन दोनों परिस्थितियों में हवा जलवाष्प से संतृप्त हो जाती है। फलस्वरूप, उसमें पहुँचने वाली अतिरिक्त जलवाष्प जल की सूक्ष्म कणिकाओं में तब्दील होकर कोहरा बनाने लगती है।
हवा की गति में यकायक होने वाले बदलाव, भूमि की सतह से होने वाला ऊर्जा विकिरण, तथा अन्य कई दूसरे कारणों से हवा का तापमान घटने से वह अंदर पहले से मौजूद जलवाष्प के कारण जब अतिसंतृप्त होने लगती है तो कोहरा बनने लगता है।

सर्दियों के मौसम में जब आकाश अपेक्षाकृत साफ़ होता है, रात बीतते-बीतते पृथ्वी की सतह अक्सर बहुत ठंडी हो जाती है। ऐसा होने पर इन दिनों सूर्योदय से कुछ देर पहले अचानक कोहरा छाने लगता है। यूं ऐसी स्थिति में कोहरा तभी छाया रह सकता है जब हवा लगभग शांत हो। इसके साथ यह भी जरूरी है कि वाष्प के जल कणिकाओं में तब्दील होने के लिए उस हवा में पर्याप्त मात्रा में नाभिक यानी न्यूक्लिअस मौजूद हों।
इस संदर्भ में यह सोचना गलत होगा कि यदि वातावरण बहुत अधिक ठंडा होगा तो कोहरा छाने की संभावना अधिक होगी। दरअसल, पंद्रह डिग्री फॉरेनहाइट यानी ऋण 9.4 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान वाले वातावरण में कोहरा दुर्लभता से बनता है। ऋण 26 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान वाले स्थलों पर तो कोहरा कतई भी नहीं बनता है। हाँ, दुनिया के कुछ नगरों और हवाई पट्टियों पर बनने वाला बर्फीला कोहरा समस्याएं पैदा करता है। इस बर्फीले कोहरे की वजह वह नमी होती है जो हवाई जहाजों में जलने वाले ईंधन तथा समीपस्थ जल सतहों से वायु में पहुँचती है।
कोहरा जब अपारदर्शी नहीं होता यानी ऐसा कोहरा जिसमें हम एक किलोमीटर दूर तक सीधे देख सकते है, उसे तब कुहासा या धुंध कहते हैं। यूं धुंध केवल हवा में जल कणिकाओं की वजह से ही पैदा नहीं होती अपितु धूल, धुंआ जैसे घटक भी धुंध पैदा करते हैं। इसके अलावा यदि हवा में जल सोखने वाले कण मौजूद हों, तब भी धुंध छा सकती है।
कोहरे के साथ यदि हवा में धुआँ अथवा अन्य प्रदूषक मौजूद हों तो तब इसे ‘धूम कोहरा’ कहते हैं। धूम कोहरा को अंग्रेजी में स्मोग कहते हैं। इस शब्द का निर्माण स्मोक (धुआँ) तथा फॉग (कोहरा) से हुआ है। सन् 1905 से यह ‘स्मोग’ शब्द प्रचलन में आया है। ‘धूम कोहरा’ पर्यावरण प्रदूषण की देन है।
मौसम विशेषज्ञों के अनुसार सर्दियों में जब तापमान गिरने लगता है तब यदि हवा में मौजूद नमी बढ़ जाए तो धुंध और कोहरे की स्थिति बनती है। ऐसी स्थिति में हवा में मौजूद प्रदूषक कण कोहरे के साथ मिलकर धूम कोहरा का सृजन करते हैं। यदि हवा का बहाव धीमा हो तो यह गहराने लगता है। इसकी वजह से आँखों में जलन, सांस नली में उत्तेजना, खांसी, तथा अन्य सांस संबंधी समस्याएं महसूस होती हैं। ‘धूम कोहरा’ सांस संबंधी बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों के लिए जानलेवा भी साबित हो सकता है।
बहरहाल, सामान्य कोहरा भी कई तरह की समस्याएं पैदा करता है। यह प्रातःकालीन यातायात में बाधा उत्त्पन्न करता है। कई बार तो इसके कारण हवाई जहाजों की उड़ानों को विलंबित अथवा रद्द तक करना पड़ता है। पिछले कई दशकों से वैज्ञानिक कुछ ऐसे ठोस उपायों के लिए प्रयत्नशील हैं जिनसे कोहरे को जरूरत पड़ने पर हटाया जा सके। वे इसके लिए ठोस कार्बन डाइऑक्साइड (ड्राई आइस), सिल्वर आयोडाइड, प्रोपेन गैस, पानी, तथा कैल्शियम क्लोराइड का छिड़काव आजमा चुके हैं। बहरहाल, अभी तक कोई ऐसा आसान और सस्ता तरीका नहीं मिल पाया है जिससे कोहरे पर तुरंत काबू पाया जा सके।
– सुभाष चंद्र लखेड़ा
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