हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
‘वंदे मातरम’: संसद, राष्ट्रबोध और विकसित भारत की बहस

‘वंदे मातरम’: संसद, राष्ट्रबोध और विकसित भारत की बहस

by हिंदी विवेक
in विषय
0

लगभग डेढ़ 100 वर्ष पहले जब भारत औपनिवेशिक दासता के अंधकार में डूबा हुआ था, तब बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने उपन्यास आनंदमठ में वंदे मातरम् की रचना की। यह केवल एक गीत नहीं था, बल्कि वह भावनात्मक शक्ति थी जिसने गुलाम भारत को अपनी धरती, अपनी पहचान और अपने स्वाभिमान से फिर जोड़ा। 1870 के दशक में जन्मा यह गीत स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ चलता हुआ आज 21वीं सदी के भारत की संसद तक आ पहुँचा है। 8 दिसंबर 2025 को लोकसभा में ‘वंदे मातरम् ’ के 150 वर्ष पूरे होने पर हुई विशेष बहस ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह रचना आज भी केवल इतिहास नहीं, बल्कि समकालीन भारतीय राजनीति और राष्ट्रचेतना का जीवंत प्रतीक बनी हुई है।

गुलामी के दौर में वंदे मातरम् का उद्घोष केवल भावनात्मक नारा नहीं था, बल्कि वह औपनिवेशिक सत्ता के विरुद्ध सांस्कृतिक प्रतिरोध का स्वर था। लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, अरविंदो घोष और महात्मा गांधी जैसे नेताओं ने इसे जन-जन की चेतना से जोड़ा। सुजलाम् सुफलाम् मलयजशीतलाम् के माध्यम से भारत केवल एक भू-भाग नहीं, बल्कि एक जीवित माता के रूप में प्रस्तुत हुआ। रवींद्रनाथ ठाकुर ने ठीक ही कहा था कि इस गीत में भारत की आत्मा बोलती है। इसीलिए यह गीत केवल राजनीतिक क्रांति नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण का आधार बना।

आज जब संसद में इस गीत को लेकर तीखी बहस हुई, तो वह केवल अतीत की व्याख्या पर नहीं, बल्कि वर्तमान राष्ट्रबोध और भविष्य की दिशा पर भी केंद्रित थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि 1937 के कालखंड में ‘वंदे मातरम’ के कुछ अंशों को राजनीतिक दबाव में हटाकर राष्ट्रचेतना को खंडित किया गया। विपक्ष ने इसे इतिहास को अपने अनुकूल मोड़ने का प्रयास बताया। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और डीएमके के नेताओं ने यह तर्क दिया कि इस गीत को विभाजनकारी राजनीति से अलग रखकर राष्ट्रीय एकता के प्रतीक के रूप में देखा जाना चाहिए। यह टकराव दरअसल इस बात का संकेत है कि ‘वंदे मातरम’ आज भी राजनीतिक बहस के केंद्र में है और इसकी व्याख्या को लेकर राष्ट्र की वैचारिक दिशा तय करने की कोशिशें जारी हैं।

यह बहस ऐसे समय में हुई है जब भारत ‘विकसित भारत 2047’ की ओर कदम बढ़ाने का संकल्प दोहरा रहा है। आज का भारत केवल भावनात्मक राष्ट्रवाद से नहीं, बल्कि नीति, तकनीक, सुरक्षा और वैश्विक भूमिका से भी संचालित हो रहा है। संसद में जब डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप, रक्षा आत्मनिर्भरता, सीमाओं की सुरक्षा और सामाजिक न्याय जैसे विषयों पर चर्चा होती है, तो वह आधुनिक भारत के उस स्वरूप को रेखांकित करती है जिसमें विकास और राष्ट्रबोध साथ-साथ चल रहे हैं। इस संदर्भ में ‘वंदे मातरम्’ केवल अतीत का गीत नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य की प्रेरणा भी बनता दिखाई देता है।

प्रधान मंत्री मोदी के नेतृत्व में उभरा राष्ट्रवाद स्वयं को सांस्कृतिक और विकासोन्मुख राष्ट्रवाद के रूप में प्रस्तुत करता है। ‘वंदे भारत’ ट्रेनें, जल जीवन मिशन, हर घर नल योजना, डिजिटल भुगतान प्रणाली, स्वदेशी रक्षा उत्पादन और अंतरिक्ष अभियानों को इस सोच के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। ‘वंदे मातरम’ का सुजलाम्-सुफलाम आज जल संरक्षण, कृषि सुधार और हरित ऊर्जा के नए संदर्भों में व्याख्यायित किया जा रहा है। चंद्रयान, गगनयान और अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की बढ़ती भूमिका उस आत्मविश्वास का संकेत है जिसे स्वतंत्रता संग्राम के समय इस गीत ने जन्म दिया था।

हालाँकि ‘वंदे मातरम’ की समकालीन व्याख्या को लेकर असहमति भी उतनी ही गहरी है। एक पक्ष इसे सांस्कृतिक एकता और राष्ट्रगौरव का प्रतीक मानता है, तो दूसरा पक्ष इसके राजनीतिक उपयोग पर सवाल उठाता है। यह बहस अपने आप में भारतीय लोकतंत्र की जीवंतता का प्रमाण है, जहाँ प्रतीकों की व्याख्या भी खुली बहस के दायरे में होती है। संसद की हालिया बहस ने यह साफ कर दिया कि राष्ट्रभक्ति की अभिव्यक्ति के तरीकों पर मतभेद हो सकते हैं, लेकिन राष्ट्र की केंद्रीयता से कोई विमुख नहीं है।

आज भारत की वैश्विक भूमिका भी ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की सोच से जुड़ती दिखाई देती है। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में बढ़ती सक्रियता, रूस-यूक्रेन संकट में संतुलित कूटनीति, जी-20 की अध्यक्षता और वैश्विक आर्थिक मंचों पर भारत की भूमिका-ये सभी उस आत्मविश्वासी भारत की छवि निर्मित करते हैं जो अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ा है, लेकिन वैश्विक जिम्मेदारियों से भी पीछे नहीं हटता। इस दृष्टि से ‘वंदे मातरम’ केवल राष्ट्रीय नहीं, बल्कि वैश्विक नैतिकता से भी जुड़ता है।

‘विकसित भारत 2047’ का लक्ष्य केवल आर्थिक उन्नति तक सीमित नहीं है। यह सामाजिक समरसता, तकनीकी नवाचार, पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक चेतना के संतुलन का भी संकल्प है। स्वच्छ भारत अभियान, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, हरित ऊर्जा, नेट-जीरो 2070 का लक्ष्य और एक पेड़ माँ के नाम जैसे कार्यक्रम इसी व्यापक दृष्टि का हिस्सा हैं। इन सभी प्रयासों में ‘वंदे मातरम’ की वह भावना अंतर्निहित है जिसमें मातृभूमि की सेवा सर्वोच्च कर्तव्य मानी जाती है।

सवाल यह है कि क्या ‘वंदे मातरम’ आज भी उसी तरह एकजुट करने वाली शक्ति बना रह सकता है, जैसे वह स्वतंत्रता संग्राम के दौर में था? संसद की ताज़ा बहस इसका आंशिक उत्तर देती है। आरोप-प्रत्यारोप, वैचारिक संघर्ष और राजनीतिक मतभेदों के बावजूद यह स्पष्ट है कि राष्ट्र की केंद्रीय अवधारणा सभी राजनीतिक धाराओं के लिए अभी भी अपरिहार्य बनी हुई है। इसी अर्थ में ‘वंदे मातरम’ एक सांस्कृतिक धरोहर के साथ-साथ एक जीवंत राजनीतिक प्रतीक भी है।

डेढ़ सौ वर्षों की यात्रा के बाद ‘वंदे मातरम’ जिस मोड़ पर खड़ा है, वहाँ वह केवल स्मृति का विषय नहीं, बल्कि सतत पुनर्व्याख्या की मांग भी करता है। यह गीत हमें याद दिलाता है कि राष्ट्र केवल भौगोलिक सीमा नहीं, बल्कि साझा चेतना, साझी जिम्मेदारी और सामूहिक भविष्य का नाम है। संसद में हुई बहस ने यह भी स्पष्ट किया कि राष्ट्रप्रेम की भावना आज भी उतनी ही प्रबल है, भले ही उसके स्वर और रूप बदल गए हों। आज जब भारत विश्व मंच पर अपनी नई पहचान गढ़ रहा है, तब यह आवश्यक है कि ‘वंदे मातरम’ को केवल राजनीतिक हथियार नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आत्मा के प्रतीक के रूप में देखा जाए। यही इसकी सबसे बड़ी प्रासंगिकता है-तब भी, अब भी और आने वाले समय में भी।

-डॉ. संतोष झा

Share this:

  • Click to share on X (Opens in new window) X
  • Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook
  • Click to share on LinkedIn (Opens in new window) LinkedIn
  • Click to share on Telegram (Opens in new window) Telegram
  • Click to share on WhatsApp (Opens in new window) WhatsApp
Tags: #VandeMataram #IndianCulture #Patriotism #UnityInDiversity #NationalPride #IndianHeritage #CulturalCelebration #FreedomStruggle #IncredibleIndia #LoveForCountry

हिंदी विवेक

Next Post
शीत लहर की चपेट में आने से बचें

शीत लहर की चपेट में आने से बचें

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0