मणिपुर के तमेंन्लोंग जिले के लुग्काऊ गांव जो नागा पहाडों के शिखर पर स्थित है। इस गांव में रोंगमई नागा समाज के लोग रहते है। दि. 24 दिसंबर को लुग्काऊ गांव में प्रात: काल से लोगों की लोगों की चहलपहल शुरु हो गई। गांव के सभी लोग और बाहर से पधारे लगभग 100 से अधिक अतिथि भी स्नानादी से निवृत्त होकर तैयार होकर गांव के पुजारी के घर (पाईकी) के पास जमा हो रहे थे। अब जक दिन भी नहीं खुला था। ठंडी हवा बह रहीं थी। धीरे –धीरे लगभग 300 लोग जमा हो गए। ठीक 5.30 बजे जेलियांगरोंग हेराका (हिंदू) समाज के पारंपारिक गीत ढोल के ताल पर लोग गाने लगे, मानो मिले सूर मेरा तुम्हारा।
सभी लोग समाज प्रमुखों के नेतृत्व में धीरे-धीरे चहल कदमी करते हुए कारवां आगे जाने लगा। और सभी लोग पहुँचे हेराका मंदिर (केलुमकाई) के पास। इसमें महिला, पुरुष, बच्चे सब थे, फिर भी कोई अनावश्यक दौडधूप नहीं, शोर शराबा नहीं। सभी लोग मंदिर के प्रांगण में खडे हो गए और तीन युवक पारंपारिक प्रार्थना का परिधान पहनकर पूर्व दिशा की ओर मुंह कर के खड़े हो गए और सामने पहाडों से सूर्य भगवान अपना दर्शन धीरे-धीरे देना शुरु किया और सभी लोग सुस्वर धीर-गंभीर स्वरों में सूर्य की प्रार्थना करने लगे। सामने खड़ेतीन युवक प्रार्थना के ताल पर सूर्य देवता को सलाम करते हुए नृत्य करने लगे। यह प्रार्थना मानों साम वेद का गान हो रहा है इतना कर्ण मधुर था। बाद में पुजारी ने प्रार्थना की। पश्चात सभी लोगों ने मंदिर में प्रवेश किया और भगवान के वेदी पर जाकर भक्तिभाव से मस्तक टेकने लगे। भावना से पूरित भक्ति का दर्शन हो रहा था। पुजारी ने एवं जेलियांगरोंग हेराका समाज के प्रमुखों की मार्गदर्शन सभी को प्राप्त हुआ।
प्रसाद रूप भोजन के बाद फिर सभी बंधु-भगिनी रानी गाईदिन्ल्यु के समाधी के पास बनाए पंडाल में एकत्रित हुए। सम्मेलन में स्वागत गीत, पारंपरिक नृत्यों का रंगारंग प्रदर्शन मनमोहक रहा। मंचासीन अतिथियों का स्वागत सम्मान किया गया। गाँव के सचिव ने मंदिर का इतिहास एवं पुनर्निर्माण के कार्य का हिसाब सामने रखा।
इस गाँव में हेराका पंथ के संस्थापक हेपाऊ जादोनांग ने लगभग 100 वर्ष पूर्व जो प्रथम 4 मंदिर बनाए उसमें इस लुग्काऊ गांव में मंदिर बनाया। रानी गाईदिन्ल्यु का जन्म इसी गाँव में 1915 में हुआ था।
जादोनांग के साथ गाईदिन्ल्यु भी 1928 से (13 वर्ष की आयु में) हेराका पंथ के भक्ति आंदोलन में एवं स्वतंत्रता आन्दोलन में कंधे से कंधा मिलाकर सक्रिय हुई। ब्रिटिश सैनिकों ने यह मंदिर तोड़ दिया। समय-समय पर उसे बनाते गए, लेकिन सभी लोगों ने उसे सुन्दर बनाने की योजना बनाकर पुनर्निर्माण किया।


इस कार्य में लगभग 40 लाख की लागत लगी है, आश्चर्य तो यह है कि 55 परिवार के इस गाँव के लोगों ने 28 लाख रुपये का सहयोग जुटाया। गाँव के लोगों के कच्चे घर है लेकिन मंदिर भव्य बनाया है। हर परिवार से लगभग 50 हजार का सहयोग मिला है। समाज में भक्तिभाव जगता है तो समर्पण की भावना भी प्रबल होती है।
कार्यक्रम में अतिथि के रूप में पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री सुदर्शन भगत, विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय मंत्री अरुण जी नेटके, कल्याण आश्रम के अखिल भारतीय संगठन मंत्री अतुल जोग एवं हेराका संगठन के प्रमुख हेगाऊकाम्बे पामे जी उपस्थित रहे।


