कामकाजी महिलाओं की फैशन

महिलाएं जॉब क्या करने लगीं, कई वर्गों में बंट गईं। गरीब, अर्ध-मध्यम और मध्यम वर्ग के अपने-अपने पैमाने बन गए। उनके फैशन के भी मानक बदल गए। माना कि हर सिक्के के दो पहलू हैं- नकारात्मक और सकारात्मक। जरा देखें कहां पहुंचना चाहते हैं हम-

है जॉब!

जॉब परिवार को चलाने की गाड़ी है जिसमें जीवन के सब सपने हैं और इस गाड़ी को पहले घर के मुखिया यानि पुरुष वर्ग चलाता था। तब छोटे-छोटे सपने, छोटे-छोटे खर्च होते थे; किन्तु अब इस युग में जहां अबला, सबला बन चुकी है, पढ़ाई में अव्वल आ रही है, वहीं पुरुषों के साथ प्रत्येक क्षेत्र में कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं। गृहस्थी की गाड़ी चलाने में भी स्त्रियां पुरुषों का भरपूर साथ दे रही हैं।

जॉब का सम्बंध समाज के प्रत्येक तबके से है। इस को कई हिस्सों में बांटा जा सकता है-

गरीब वर्ग

यहां स्त्रियां घरों में चौका बरतन करती हैं, फैक्ट्रियों में काम करती हैं। अपनी योग्यता के अनुरूप कोई न कोई काम ढूंढ़ ही लेती हैं

अपने, अपने बच्चों के, परिवार के सपने पूरा करने की कोशिश करती हैं। यहां स्त्रियां अधिकतर शादीशुदा होती हैं।

मध्यम वर्ग

यहां स्त्रियां शादीशुदा व कुंवारी दोनों होती हैं। शादीशुदा वर्तमान संवारने का प्रयास करती हैं और कुंवारी आगामी सपनों को पूरा करने के लिए तत्पर रह्ती हैंं। इनको हम कई वर्गों में विभक्त कर सकते हैं।

एक वे जो काफी शिक्षित होती हैं और ऊंचे पदों पर विराजमान होती हैं जैसे डॉक्टर, टीचर, बैंक, अन्य अधिकारी वर्ग, पुलिस/सेना या बड़ी-बडी मल्टीनेशनल कम्पनियों में मैनेजर या कोई बड़ी पोस्ट पर कार्यरत। दूसरी वे जो कुछ कम पढ़ी होती हैं- कम्पनी, फैक्ट्री, अस्पताल या किसी प्राइवेट सेक्टर के अतिरिक्त अपना एनजीओ खोल लेती हैं या व्यवसाय करती हैं। तीसरी वे जो और कुछ कम पढ़ी होती हैं किन्तु स्कूल, अस्पताल, कम्पनी या अन्य किसी सैक्टर में ग्रुप डी का कार्य करती हैं।

जिस प्रकार स्त्रियों में जॉब का दायरा भिन्न-भिन्न है उसी प्रकार से उनके फैशन भी अलग अलग हैं। प्रत्येक स्त्री के फैशन को सर्वप्रथम उसकी पसंद; फिर उसका परिवार, उसका सामजिक माहौल, उसके संस्कार व उसकी आकांक्षाएं प्रभावित करते हैं।

यूं तो वस्त्र व श्रृंगार हर स्त्री को पसंद है और उनका अधिकार भी है। आज इस अत्याधुनिक युग में इसका नया नाम प्रचलित है फैशन। ये फैशन सिर्फ कपडों/गहनों तक ही सीमित नहीं रहा वरन खाने, पीने, चलने, रहने, बोलने, रिश्तों को निभाने, न निभाने का भी फैशन है। सर्वप्रथम बात करते हैं घरों में चौका बर्तन करने वाली स्त्रियां अधिकांश उन्ही घरों से मिले वस्त्रों को पहनती हैं, किन्तु ये मेकअप करने में माहिर होती हैं ढेर-ढेर चूड़ियां पहनना, गहरी लिपस्टिक, बिंदी व लम्बी गहरी मांग। आजकल तो मोबाइल जरूरत के साथ-साथ फैशन में आ गया है। यही हाल फैक्ट्रियों में जाने वाली महिलाओं का है ये एक पर्स भी साथ रखती हैं और कान में इयरफोन, क्योंकि ये बस या ट्रेन में जाती हैं, जिससे इनका सफर अच्छा कटता है।

दूसरी होती हैं मिडल क्लास महिलाएं यानि मध्यम वर्ग। इनके फैशन होते हैं नया सूट, साड़ी, मोबाइल, गाड़ी, मॉल, सेल में जाना, उच्च आकांक्षाएं, आर्थिक रूप से परिवारों, रिश्तेदारों व दोस्तों से प्रतिस्पर्धा। इसके लिए वे अधिक से अधिक कार्य करती हैं। ओवर टाइम भी करती हैं यहां तक कि कई बार राह भी भटक जाती हैं। संस्कार, मूल्यों को भूल जाती हैं, पाश्चात्य सभ्यता को उच्च श्रेणी का दर्जा देती हैं। पश्चिमी डिजाइन के वस्त्रों को पहनना, अंग्रेजी भाषा बोलना फैशन का प्रथम बिन्दु है। ये लक्षण प्राइवेट कम्पनी अथवा सेक्टर में अधिक मिलते हैं। मध्यम वर्ग की महिलाओं के वस्त्रों की पसंद कुछ अलग किस्म की होती है। ये महंगे से महंगे वस्त्र खरीदना व पहनना पसंद करती हैं। अच्छी से अच्छी घडी, गहने लेना पसंद करती हैं। इसके लिए अच्छा मेहनताना मिलने के बावजूद ये कई बार लोन भी ले लेती हैं, जिसके परिणाम कई बार खतरनाक सिद्ध होते हैं।

तृतीय होती हैं कुछ कम पढ़ी-लिखी होती हैं किन्तु इनके स्वप्न बड़े होते हैं। अधिकांशत: अपनी जरूरतों को धीरे-धीरे इतना बढ़ा लेती हैं कि दिशा भूल जाती हैं। परिवार से अलग हो जाती हैं।

फैशन कोई भी हो शुद्ध व संस्कारित हो अपने देश का हो तभी जीवन में सफलता व खुशी मिलती है।

अब बात उन आदतों की जो अब फैशन के नाम पर घरों में हमारी जिंदगियों में घुस गई हैं। इनका निकल पाना असम्भव सा है-

1) घर का काम न करना– कामकाजी होने के कारण घर का काम न करना। इसकी वजह से मोटापा,आलस, घर परिवार में अन्य विसंगतियां उत्पन्न होती हैं। माना कि जॉब करने वाली स्त्रियों के पास घर के काम के लिए समय कम होता है किन्तु यह भी सत्य है कि ये भी फैशन माना जाता है कि कामवाली बाई से काम कराया जाए भले ही अधिक ऊर्जा, अधिक समय लगे।

2) जिम जाना– चुस्त और तन्दुरुस्त दिखने के लिए जिम जाना। विविध डाइट चार्ट के अनुरूप अपने खानपान की दिनचर्या रखना। कई बार इसके भी भयंकर परिणाम सामने आते हैं।

3) मां न बनना– ये तो कमाल ही है। कई महिलाएं तो जॉब के लिए शादी ही नहीं करतीं इसलिए कि उन्हें अपना फिगर खराब नहीं करना है। करती हैं तो ज्यादा उम्र में करती हैं। फिर उन्हें मां बनने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है, और ऐसा भी देखने को मिलता है कि काफी महिलाएं मां नहीं बनना चाहतीं। ये चिंताजनक विषय है। फैशन के नाम पर आज हम एकल परिवार तक आ पहुंचे हैं और हमारी संस्कृति धीरे धीरे अपना अस्तित्व खोती जा रही है।

4) अहम– महिलाओं का जॉब करना गृहस्थी की गाड़ी को चलाना। समरूपता से संगीनी का धर्म निभाना होता है, कभी-कभी ऐसा भी होता है कि अहम् की पराकाषठा घरों को तोड़ देती है। पति पत्नी ही नहीं बच्चों का भविष्य बर्बाद हो जाता है।

5) एकांतवास– समय के अभाव, विशेष व्यक्तित्व, अहम् व अन्य कई कारणों से जॉब वाली स्त्रियां समाज से दूर होती चली जाती हैं यहां तक कि रिश्तेदारी निभाना भी मात्र फॉर्मेलिटी लगता है। महानगरों में और स्थिति खराब है। घर में चार सदस्य हैं तो वे भी छुट्टी वाले दिन ठीक से मिल पाते हैं, अन्यथा भागमभाग ही रहती है।

6) भविष्य– सच है बच्चे ही हमारा भविष्य हैं और इनकी प्रथम गुरु मां होती है जो इनमें संस्कार के बीज रोपती हैं। आज बच्चों की मनोदशा और दिशा भंग होने का एक कारण ये भी है कि मां जॉब में होने के कारण इन्हें पूर्णतः समय नहीं दे पाती- वो लाड़-प्यार वो संस्कार अधूरे रह जाते हैं जो पूरे होने थे। देखा जाए तो स्थिति विकट है। किन्तु हमें सकारात्मक सोचना चाहिए।

7) आधुनिकता की परिभाषा- जॉब करने वाली कुछ ऐसी महिलाएं या लड़कियां हैं जिनकी आधुनिकता की परिभाषा है बेतरतीब कपडे, बॉय फ्रेंड बनाना व बदलना, शराब व सिगरेट पीना या कोई नशा करना, बालों को विविध रंगों से रंगना, फटे कपड़े पहनना, शरीर के विभिन्न हिस्सों को स्थायी रूप से मशीन से रंगवाना, गलत संगत में भटकना, रात-रात भर घर से बाहर रहना, क्लबों में जाना आदि। ऐसी महिलाएं अपने साथ-साथ पूरे परिवार का भविष्य बर्बाद कर देती हैं। इन आदतों से बचना बहुत जरूरी है। फैशन के नाम पर अपनी संस्कृति व समाज नहीं छोड़ना चाहिए।

अंत में यही कहना चाहूंगी हर सिक्के के दो पहलू होते हैं।

सकारात्मकता यही है कि जॉब करने से स्त्रियों का आत्मसम्मान बढ़ा है, जिन घरों की स्त्रियां जॉब करती हैं उन परिवारों की आर्थिक स्थिति अच्छी हुई है। आज के युग में प्रत्येक स्त्री का शिक्षित होना व स्वावलंबी होना बहुत आवश्यक है। परंतु उसके लिए स्वयं के शरीर और परिवार व समाज के साथ खेल सही नहीं है। स्त्री विमर्श के एक दोहे से बात को विराम देना चाहूंगी-

दह जाउंगी तो आग हूं

बह जाउं तो नीर

ढह जाउं तो रेत हूं

सह जाउं तो पीर।

 

This Post Has 2 Comments

  1. SUSHMA BHANDARI

    Bahut achha laga is vishy par likhna

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