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कायनात बदलने की ताकत रखनेवाले  -ब्रजकुमार शर्मा

कायनात बदलने की ताकत रखनेवाले -ब्रजकुमार शर्मा

by हिंदी विवेक
in विशेष
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सागर ऊपर से शांत दिखाई देता है।लेकिन उसके अंदर कितनी हलचल है, इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। बिल्कुल, ऐसा ही व्यक्तित्व है – मणिपुर निवासी अरिबम ब्रजकुमार शर्मा जी का। दिखने में बिल्कुल शांत, लेकिन अंतःकरण में हलचल इतनी कि वश चले तो कायनात बदल दें।

मणिपुर के वैष्णव मतावलम्बी परिवार में एक अप्रैल, 1938 को जन्मे अरिबम ब्रजकुमार शर्मा के सिर से माँ का साया छह वर्ष की उम्र में ही उठ गया था। दूसरी ओर, वही दौर था बर्मा से सटे मणिपुर में द्वितीय विश्वयुद्ध की हलचलों का।

पिता ब्रजकुमार शर्मा की देखरेख में बालक अरिबम का बचपन आजादी के ठीक पहले देश में हो रहे इन घटनाक्रमों को देखते-सुनते गुजरा और इन्हीं घटनाक्रमों ने तैयार किया एक धीर-गंभीर एवं विचारशील व्यक्तित्व। देश की आजादी के तुरंत बाद मणिपुर राज्य तो भारत का हिस्सा बना लेकिन राज्य का सामाजिक तानाबाना बिखरता नजर आ रहा था।

पहाड़ों में बसा नगा समुदाय नगालैंड का हिस्सा बनने को आतुर था, तो दक्षिण के मिजो-कुकी समुदाय मिजोरम में जाने को तैयार थे। मणिपुर राजघराने के महाराज कुमार प्रियब्रत सिंह एवं अरिबम ब्रजकुमार शर्मा ने मिलकर इस बिखराव को रोकने  एवं पहाड़ों और मैदानों के बीच सामंजस्य बैठाने के लिए एक मुहिम चलाने का फैसला किया। इसी प्रयास के तहत 60 के दशक के अंत में एक संगठन ‘मणिपुर कल्चरल इंटीग्रेशन कॉन्फ्रेंस’ का गठन किया गया। महाराज कुमार प्रियब्रत सिंह इस संस्था के अध्यक्ष बने और अरिबम ब्रजकुमार शर्मा जी महासचिव।  अरिबम उस समय तक इंफाल के सुप्रसिद्ध डी.बी.कॉलेज के सांख्यिकीय विभाग में लेक्चरर बन चुके थे।

वह मणिपुर के सांस्कृतिक एकीकरण की मुहिम के तहत अपने साथियों के साथ पीठ पर अपना राशन-पानी लादकर, पहाड़ों में दूर-दूर स्थित गांवों में जाते।लोगों से उनकी समस्याएं जानते, और उनसे अपनी संस्कृति रीति-रिवाज बचाए रखने का आग्रह करते। कई बार तो इस प्रयास में उन्हें अपनी रातें विकट जंगलों में गुजारनी पड़ी और नगा विद्रोहियों की धमकियों से भी दो-चार होना पड़ा। इस मुहिम के चलते अरिबम को लंबे समय तक परिवार से भी दूर रहना पड़ा।

लेकिन अरिबम के इस त्याग का लाभ समाज को हुआ। पहाड़ी क्षेत्रों के दुख-दर्द और अभावों की जानकारी उनके द्वारा ही मणिपुर सरकार तक पहुंची और पहाड़ों में बसे नगा और कुकी समुदाय के गांवों तक शिक्षा, स्वास्थ्य और राशन जैसी बुनियादी सुविधाएं पहुंचने लगीं।  समस्या बुनियादी सुविधाओं तक ही सीमित नहीं थी। ईसाइयत का प्रभाव भी पहाड़ी क्षेत्रों में तेजी से अपने पांव पसारता जा रहा था। जिसके कारण मणिपुर का वनवासी समुदाय अपने रीति-रिवाज और संस्कृति से विमुख होता जा रहा था।

पहाड़ी गांवों में अपने प्रवासों के दौरान अरिबम ने इस संकट को भी गहराई से महसूस किया। और लोगों को उनके रीति-रिवाज और संस्कृति को बचाए रखने के लिए प्रेरित करना शुरू किया। अरिबम ने इस मुहिम को धार देने के लिए खेल प्रतियोगिताओं का सहारा लिया। राज्य के अलग-अलग हिस्सों में साल में दो बार बड़ी खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन होने लगा। जिसमें वनवासी क्षेत्रों की युवा प्रतिभाएं आगे बढ़कर हिस्सा लेने लगीं। बालकों-बालिकाओं, दोनों में खेल के प्रति रुचि जगने लगी। इसी रुचि जागरण का परिणाम है कि आज देश का नाम रोशन करनेवाली कई खेल प्रतिभाएं मणिपुर दे चुका है।

बॉक्सिंग चैंपियन एम.सी.मैरीकॉम को तो हम इसी मंच पर ‘वन इंडिया अवार्ड’ से सम्मानित भी कर चुके हैं। अरिबम ब्रजकुमार शर्मा ने खेलों के जरिए एक और बड़ा काम कर दिखाया। मणिपुर के मैदानी इलाकों में यौशेंग के नाम से होली का त्योहार – पांच दिन मनाया जाता है। इन पांच दिनों के दौरान जमकर रंग खेलना और शराब पीकर लड़ना-झगड़ना युवाओं की आदत बन चुका था। अरिबम शर्मा जी ने इस कुप्रथा को भी खेलों से ही खत्म करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने यौशेंग त्योहार के पांच दिनों में राज्यस्तरीय खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन शुरू करवा दिया। युवा वर्ग नशाखोरी छोड़, इन प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए आगे आने लगा।

आज चित्र बदल चुका है। मणिपुर में पांच दिन का यौशेंग त्योहार नशाखोरी के लिए नहीं, बल्कि गांव-गांव में होनेवाली खेल प्रतियोगिताओं के लिए जाना जाता है। यहां तक कि होली न खेलनेवाला पहाड़ों में बसा नगा और कुकी समुदाय भी खेलकूद प्रतियोगिताओं का आयोजन कर पूरे पांच दिन ‘यौशेंग फेस्टिवल’ धूमधाम से मनाने लगा है। शराबखोरी युवाओं ही नहीं, बड़ों में भी बड़ी समस्या बन चुकी थी। अरिबम ने इसे खत्म करने का रास्ता भी ढूंढ निकाला।

उन्होंने महिलाओं के बीच जाकर उन्हें शराबखोरी के विरुद्ध खड़े होने के लिए प्रेरित किया। उन्हें तैयार किया कि वे अपने पतियों-पुत्रों को शराब से बचाने के लिए आंदोलन करें और ऐसा हुआ भी। जिसके परिणामस्वरूप राज्य सरकार को मणिपुर में शराबबंदी का निर्णय लागू करना पड़ा। इंफाल से करीब 50 किलोमीटर दूर स्थित एक गांव के वनवासियों में प्रथा है कि वहां गांव में 30 घर होने के बाद 31वां परिवार कहीं और नया गांव बसाकर रहता है। इस प्रथा की आड़ में गांव के कई परिवारों को ईसाई मिशनरियों ने करीब सवा सौ किलोमीटर दूर उखरूल में ले जाकर बसा दिया और उनपर अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज छोड़ने का दबाव बनाने लगीं। वहां बसने गए लोगों ने जब यह संदेश ‘मणिपुर कल्चरल इंटीग्रेशन कॉन्फ्रेंस’ को पहुंचाया, तो महाराज कुमार प्रियब्रत सिंह और अरिबम शर्मा जाकर इस पूरे गांव को सेना के ट्रकों से वापस लाए और उनके पुराने गांव के निकट ही एक नया गांव बसा दिया। तराव नामक यह गांव आज 35 वर्ष बाद भी अपनी उस वापसी को भूल नहीं पाया है।

अरिबम शर्मा यूँ तो शांत एवं चुपचाप रहनेवाले इंसान हैं। लेकिन अपने प्रिय ग्रामवासियों एवं वनवासियों के बीच पहुंचकर उनके चेहरे पर भी मुस्कान खेलने लगती है क्योंकि वनवासी समुदाय में उन्हें अपना सच्चा शुभचिंतक नजर आता है। मणिपुर के 34 विभिन्न समुदायों की संस्कृतियों और रीति-रिवाजों को संरक्षित करने के लिए अरिबम ब्रजकुमार जी ने न सिर्फ मणिपुर के कोने-कोने की यात्राएं कीं, बल्कि वह म्यांमार के मांडले एवं व असम में बसे मणिपुरी मैतेयी समुदाय को जोड़ने में लगे हैं। अपने सांख्यिकीय शोधों से अरिबम जी यह सिद्ध करने में सफल रहे हैं कि मणिपुर की बढ़ी हुई आबादी में बहुत बड़ा योगदान म्यांमार और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों से आए लोगों का है।

समाज के प्रति समर्पण की इसी भावना को देखते हुए उनकी सेवानिवृत्ति के पांच वर्ष बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उन्हें मणिपुर के संघचालक की जिम्मदारी सौंपी, जिसे वह 18 वर्ष तक निभाते रहे। इसके अतिरिक्त सेवाभारती और विद्याभारती जैसे संगठनों में भी वह अपनी सक्रिय भूमिका निभा चुके हैं। अरिबम ब्रजकुमार शर्मा के सामाजिक लक्ष्य पूरे नहीं होते, यदि उन्हें अरिबम मेमचाउबी देवी जैसी जीवनसंगिनी नहीं मिलतीं। समाज के विभिन्न क्षेत्रों में दी गई अरिबम ब्रजकुमार शर्मा की सेवाओं को देखते हुए ‘ माई होम इंडिया’ उन्हें वर्ष 2018 का ‘वन इंडिया सम्मान’ देते हुए खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा है।

 

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Comments 1

  1. Kamlesh Shah says:
    6 years ago

    Greatest working and thinking about awesome today manipur intarneshnal name so spl thenks aribam ji maharaj Kumar priybrat sinhji

    Reply

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