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संविधान पर अमल ही मेरा जीवन ध्येय – सांसद गोपाल शेट्टी

संविधान पर अमल ही मेरा जीवन ध्येय – सांसद गोपाल शेट्टी

by अमोल पेडणेकर
in दिसंबर २०१८, साक्षात्कार
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मुंबई के शताब्दी अस्पताल में इसी माह डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की पूर्णाकृति प्रतिमा का अनावरण और साथ में आंबेडकर उद्यान का शुभारंभ हो रहा है। इस अवसर पर राष्ट्रपुरुषों की प्रतिमाओं, दलित पिछड़े वर्गों, अपने निर्वाचन क्षेत्र में किए गए कामों, 2019 के चुनावों समेत राजनीतिक परिवेश पर बोरिवली क्षेत्र के भाजपा सांसद श्री गोपाल शेट्टी से हुई प्रदीर्घ बातचीत के सम्पादित अंशः

आपने शताब्दी अस्पताल में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की प्रतिमा की स्थापना की है। इसके पीछे आपका क्या उद्देेश्य है?

मेरे मन में सभी महापुरुषों के प्रति बहुत आदर तथा सम्मान है। उनकी प्रेरणा लेकर ही मैं समाज में काम करता हूं। इससे मुझे कई  उपलब्धियां भी प्राप्त हुईं। मैं जब डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के जीवन को पढ़ता हूं तो मुझे बहुत आश्चर्य होता है; क्योंकि उन दिनों देश के हालात बहुत खराब थे और डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ऐसी परिस्थितियों में पले-बढ़े, देश में नहीं वरन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई उपलब्धियां उन्होंने हासिल कीं। परंतु उपलब्धियां हासिल करने के बाद भी उन्होंने अपने आपको समाज के हित के लिए झोंक दिया। बड़े-बड़े लोगों के साथ, समाज के साथ संघर्ष किया। समाज में इतनी बड़ी क्रांति की। ऐसा महान नेता मिलना भारत की उपलब्धि है।

इसके पूर्व मैंने सरदार वल्लभभाई पटेल, छत्रपति शिवाजी महाराज, डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी, नेताजी सुभाषचंद्र बोस आदि महापुरुषों की प्रतिमाएं भी लगाई हैं। इन सभी के बाद एक महिला ने मुझे पूछा क्या आप केवल महापुरूषों की ही प्रतिमाएं लगाएंगे? क्या महिलाओं का योगदान नहीं है? वह बात मेरे मन को छू गई। अत: मैंने झांसी की रानी की प्रतिमा स्थापित की।

इस बार मेरे मन में यह संदेह था कि कहीं कोई मुझे यह न पूछें कि आपने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की प्रतिमा क्यों नहीं लगाई। इसलिए मुझे लगा कि यह मेरे लिए अच्छा मौका है डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की प्रतिमा स्थापित करने तथा उनके नाम पर एक उद्यान बनाने का। अस्पताल के पास ही हमें एक मैदान भी उपलब्ध था। अत: मैंने यही जगह उचित समझी और यहीं डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर उद्यान बनाने का विचार किया।

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की प्रतिमा तथा आसपास के परिसर का स्वरूप कैसा है?

यह डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की पूर्ण प्रतिमा है। जिसके साथ ही लोगों के बैठने के लिए गुंबद बनाया जाएगा। मैं जब भी शताब्दी अस्पताल में आता हूं तो मुझे यहां के रोगी, उनके साथ आने वाले लोग सभी डरे-सहमे से लगते हैं। वे तो सिक्योरिटी या पुलिस वालों से भी डरे रहते हैं। मुझे ऐसा लगता है कि डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने हमें जो संविधान दिया है, वह डरने या डराने के लिए नहीं है। वह सभी लोगों को खुलकर जीने के लिए है। हर तरह की सुविधा हमारे लोगों को मिलनी चाहिए। इसलिए डोम बनवा रहा हूं। इस डोम में लोग आसानी से बैठ सकेंगे। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर को देखेंगे तो अपनापन हो जाएगा। इससे बहुत बड़ा लाभ होगा। दूसरी बात यह कि शताब्दी अस्पताल के मरीजों को तो अस्पताल से खाना दिया जाता है; लेकिन उनकी तीमारदारी के लिए आने वाले लोगों को बाहर खाना लेना पड़ता है। वे हर रोज होटल में जाकर खाना नहीं खा सकते। इसलिए वहां कुछ संस्थाएं हैं जो उन्हें दोपहर का भोजन निःशुल्क देती हैैं। लेकिन बैठने के लिए जगह न होने से टेम्पो के पास या फिर सड़क पर खड़े होकर खाना खाते हैं। वह मुझे अटपटा लगता है। इसलिए वहां गुंबद बनवा रहा हूं। उस गुंबद में बैठ कर लोग खाना खा सकते हैं। यह उसके पीछे की दूसरी कल्पना है।

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का नाम लेकर नकारात्मक राजनीति की जाती है। आप सकारात्मक राजनीति कर रहे हैं। इसके पीछे का कारण क्या है?

देखिए, आप कुछ करेंगे तो आपको कुछ कहने का मौका मिलता है। अगर आप कुछ नहीं करेंगे तो आपको बोलने का मौका नहीं मिलता। प्रीतम पन्नाले नाम की एक नगरसेविका दलित सीट से चुन कर आई है। मैं चार साल से बहुत बार वहां गया। उनके काम भी करके दिए हैं। मैं एक कार्यक्रम में गया था। मैंने उन्हें प्रेरणा देने वाली बात कही। मैंने कहा कि, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने ये सब इसलिए नहीं किया कि आप उनकी जंयती मनाए, उनके नाम से जुलूस निकाले, कार्यक्रम करते रहे, बल्कि इसलिए किया कि लोगों का जीवन-स्तर ऊंचा उठे। आप जैसे लोगों को इसके लिए कार्य करना चाहिए। जब मैं यह सब कह रहा था तब वहां बैठी महिलाएं बहुत प्रसन्न हुईं; क्योंकि मैं तो उनके मन की बात कह रहा था। ये नेता लोग तो उन्हें पकड़ कर लाते हैं, बिठाते हैं, भाषण सुनाते हैं। मैंने कहा, आप बाहर निकलो इससे। बाहर निकलने की आवश्यकता है। आरक्षण का भी मामला इन दिनों चल रहा है। भारतीय जनता पार्टी की भूमिका पहले से ही स्पष्ट है कि जो गरीब है, पिछड़ा है उसे आरक्षण मिलना चाहिए- दस साल, बीस साल मिलना चाहिए। सारे राजनीतिक दलों के लोग मिल कर ये तय करें। आरक्षण ये कोई प्रगति का मार्ग नहीं है। शिक्षा ही प्रगति का मार्ग है।

चार साल से आप सांसद हैं। आपके इस कार्यकाल में समाज का जो पिछड़ा वर्ग है, दलित वर्ग है उसके लिए आपने कौन-कौन से कार्य किए हैं?

देखिए, मैं सिर्फ दलित की बात नहीं करता, मैं तो गरीब की बात करता हूं। उसे पानी, बिजली, शौचालय, घर दिलाने के लिए तो मैंने अपना सारा जीवन लगाया है। इसीलिए तो मैं राजनीति में आया हूं। और ये सारा मैं करता हूं। हमने ऐसे पंद्रह हजार लोगों को गैस का कनेक्शन दिया है। चूल्हा मुफ्त में दिया है। यह एक बहुत बड़ी क्रांति है, ऐसे मैं मानता हूं। यह सब सिर्फ दलित समाज में पैदा हुए उनके लिए ही नहीं है, ये तो जो गरीब है, पीड़ित है, दुखी है उनके लिए है। यह सारा काम तो मैंने किया है पहले चरण के रूप में, लेकिन दूसरा चरण है आप शिक्षित हो जाओ। अपने पैर पर खड़े हो जाओ, आधा जीवन आप आरक्षण पाने में मोर्चों, आंदोलनों में गंवा देते हैं। इसके बजाय आप कामकाज करो, पैसे मिलेंगे तो आगे निकल जाओगे इसे समझाने की जरूरत है समाज को।

आपने पिछले तीन दशकों में समाज के लिए जो सकारात्मक कार्य किया है उसका परिणाम आपको किस प्रकार महसूस हो रहा है?

देखिए, जहां तक मेरे निर्वाचन क्षेत्र की बात है तो मैं संतुष्ट हूं। मुझे अच्छे कार्यकर्ता मिले, अच्छे मतदाता मिले जो मुझे समझ पाए। हम दोनों में ऐसा तालमेल बन गया है कि काम करने में आनंद मिलता है। परिणाम अच्छे मिलते हैं। अधिकारियों के साथ लड़ता हूं। पुलिस वालों से लड़ता हूं। लेकिन, उन्होंने भी किसीे बदले की भावना से व्यवहार नहीं किया। उन्होंने मुझे हमेशा मदद की है। इसे मैं अपनी बहुत बड़ी उपलब्धि मानता हूं। ये भगवान की देन हो सकती है। अगर आप किसी पुलिस वाले से लड़ो तो वह अपने अधिकार का उपयोग करके आपको परेशान कर सकता है। लेकिन मेरे पूरे जीवन में ना तो कभी पुलिस ने परेशान किया, न अधिकारियों ने।

सांसद के रूप में चार साल  की उपलब्धि को आप किस प्रकार परिभाषित करेंगे?

संसदीय कामकाज को समझने में समय लगता है। जो पहली बार संसद में आते हैं उनकी तो बहुत दयनीय स्थिति होती है। लेकिन, मैं पंद्रह साल तक तीन बार पार्षद रहा, दस साल विधायक रहा और अभी सांसद के नाते काम करता हूं। मैं आज भी नगरसेवक के स्तर का ही काम करता हूं। मैं संसदीय स्तर का जो भी काम करना है, वह अवश्य करता हूं, लेकिन अधिक समय में नीचे के स्तर का ही काम करता हूं। इससे बड़े पैमाने लोगों का काम होता है। लोग संतुष्ट होते हैं तो मुझे भी अच्छा लगता है। मोदी जी की सरकार के कार्यकाल के साढ़े चार सालों में निश्चित ही बहुत बड़ा बदलाव मैंने अपनी आंखों के सामने देखा है। लोग उसे समझ नहीं पाते, हम उन्हें समझा नहीं पाते यह बात अलग है। लेकिन मोदी जी ने बहुत सारा प्रयास किया। इन सारी चीजों के परिणाम आने वाले दिनों में दिखाई देंगे। हमने 1400 पुराने निरर्थक कानूनों को रद्द किया। नए-नए कानून बनाए। पुराने अनावश्यक कानूनों से होने वाली परेशानी से हमने लोगों को मुक्त किया। लेकिन, नए कानूनों का लाभ होने में थोड़ा समय लगेगा।

आपके व्यक्तिगत स्तर पर अपने निर्वाचन क्षेत्र में जो कार्य किए हैं उन कार्यो के बारे में बताइए।

मैंने साढ़े चार साल में सड़कों के विकास का काम बहुत बड़े पैमाने पर किया है। इन दिनों मालाड़ में काम चल रहा है। गार्डन प्ले ग्राऊंड जितने भी थे उनके विकास का काम कर रहा हूं। यह दीर्घावधि काम है। आगे जो भी आएगा वह उसे और अच्छा बनाएगा। लेकिन जगह आरक्षित हो गई है। वह लोगों को मिलने लगी है। आज बोरिवली जैसे उपनगर में शादियों के लिए 28 खुले मैदानों की व्यवस्था हो गई है। मैं मानता हूं कि यह बड़ी उपलब्धि है। सैकड़ों एकड़ आरक्षित भूमि पर मैंने झोपड़पट्टी नहीं बसने दी। यह जगह बच्चों को खेलने के लिए उपलब्ध हो गई है। जो झोपड़पट्टी बसी थी उन्हें अलग से घर दिलवाकर मैदान खाली करवाया। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है।

ऐसी कौनसी बात है जो आपके मन में थी, लेकिन आप कर नहीं पाए?

एक बात मेरे मन में है। आज सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती है। सरदार पटेल की दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमा का हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी गुजरात में आज ही अनावरण कर रहे हैं। सरदार वल्लभभाई पटेल ने इतने सारे राजा-रजवाड़ों को एक करके भारत को विशाल संघ राज्य बनाया, लेकिन आजादी के सत्तर साल बाद इतने सारे प्रधानमंत्री, मंत्री, विधायक, सांसद, पार्षद होने के बावजूद नौकरशाही को सुधारने में हमें सफलता नहीं मिली। आधी समस्या तो हमारी नौकरशाही हैं। कानून बनता है लेकिन उस कानून के लाभ लोगों को नहीं मिलते। उन लाभों को पहुंचाने का काम जनप्रतिनिधि का होता है।  जनप्रतिनिधि या तो उसे ठीक से समझता नहीं है, और समझता हो तो उसमें उतनी क्षमता नहीं होती। इसे मैं बहुत बड़ी परेशानी मानता हूं। इसे दूर करना जरूरी है। मैं इसे दूर करने के लिए संघर्ष का आज सरदार वल्लभभाई पटेल के जंयती के अवसर पर संकल्प लेता हूं।

संसद में आपके द्वारा उपस्थित किए गए प्रश्नों के बारे में बताइए। क्या उसका कोई असर हुआ?

पहला मुद्दा तो कांग्रेस के जमाने से बंद पड़ा सीओडी का काम पुनः आरंभ करवाना था। पर्रिकर जी उस समय रक्षा मंत्री थे। उन्होंने उसमें से सीओडी आर्मी लाइन को क्लियर किया। लेकिन, नेवी के लोगों ने उसमें अड़ंगा डाला। मैं खुश हूं कि सीओडी का आधा काम पूरा हुआ। लेकिन जो आधा काम बाकी है उसके लिए मुझे बहुत दुख है। कोई जमीन खाली पड़ी है, तो वह आज नहीं तो दस साल बाद विकसित होगी; लेकिन जिनके घर टूट गए, लोग बेघर हो गए उन्हें आज भी घर नहीं मिल रहा है इससे बड़ा दुख मेरे लिए और कोई नहीं है। दुसरा मुद्दा रेल्वे में मैं बहुत बड़ा बदलाव कर पाया। यह संतोष का विषय है। बोरिवली स्टेशन आप देखें। मेरे सांसद बनने के बाद उसके विकास में बहुत तेजी आई।

नरेंद्र मोदी के बाद पूरे देश में आपको सर्वाधिक वोट मिले हैं। इसके क्या कारण हैं?

मैं यह दावा नहीं करता कि मुझे ही मिले हैं। इसका मैं स्पष्टीकरण देना चाहता हूं। वोटों के मामले में जो दस टॉप टेन हैं उनमें सात भारतीय जनता पार्टी के हैं, जो पहले से सांसद थे। दो अन्य दलों के हैं। मैं अकेला ऐसा सांसद ऐसा हूं जिसने कांग्रेस से सीट छीनी और पहली बार सांसद बना हूं। मैं महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा वोटों से जीता हूं तथा देश में टॉप टेन में मेरा नाम है। मुझे संतोष है कि मैं बहुत कम पैसे खर्च करके चुनाव लड़ता हूं और जीतता हूं। इसमें कार्यकर्ताओं का योगदान और मतदाताओं का आशीर्वाद है। अन्यथा यह संभव नहीं है। मैं अन्य राज्य से आया व्यक्ति यहां काम करता हूं। मेरे समाज के लोग यहां 10 प्रतिशत भी नहीं हैं। इसलिए मैं यहां जीतता हूं यह दावा नहीं करूंगा; बल्कि मुझे लगता है कि लोग मुझे जितवाते हैं। इसलिए विजय का सारा श्रेय लोगों को है।

2019 के चुनाव की दृष्टि से आप अपने-आप को किस प्रकार महसूस करते हैं?

देखिए, मैंने बहुत काम किया है। पार्टी के नेताओं ने मुझे बहुत सम्मान दिया है। कार्यकर्ताओं ने भी उतनी ही मदद की। मतदाताओं ने भी उतना न्याय दिया है। मैं मानता हूं कि मोदी जी जिस प्रकार काम करते हैं उसमें मेरे प्रतिनिधि बनकर काम करने या नहीं करने की बात कोई मायने नहीं रखती। काम करने वाले व्यक्ति तो बिना पद के भी काम करते हैं। पार्टी कहेगी तो करेंगे। लेकिन मुझसे अच्छा अगर कोई काम करता है तो आगे आए। मैं स्वागत करने के लिए हमेशा आगे रहूंगा।

2019 के चुनाव में यदि आप पुनः भाजपा के प्रत्याशी बनते हैं तो क्या आप को 2014 की तरह ही लोगों का भारी प्रतिसाद मिलेगा?

गत बार की चुनाव का श्रेय मैं लोगों को देता हूं। फिर इस बार के चुनाव का श्रेय मैं क्यों लूं? यह तो घमंड होगा। मैं तो घमंड से दूर ही रहना चाहता हूं। इसलिए इस बार का श्रेय भी लोगों का ही होगा।

ऐसी कौनसी उपलब्धियां हैं जिनके कारण 2019 में भाजपा की सरकार आ सकती है?

देखिए, भारतीय राजनीति में और हिंदुस्थान की संस्कृति में विश्वास बहुत बड़ी चीज है। एक जमाने में लोग बगैर लिखित एग्रीमेंट के भी केवल विश्वास पर काम करते थे। अब विश्वास कम होता गया है। पहली बार 2014 के चुनाव में मोदी जी पर लोगों ने विश्वास प्रकट किया। मैं मानता हूं कि यह बहुत बड़ी बात है, और जिस तरह लोगों ने विश्वास प्रकट किया उसी तरह से काम करके दिखाने का प्रयास भी मोदी जी ने किया है। मैं मानता हूं कि 2014 के चुनाव को जीतने के बाद 2019 तक मोदी जी ने जनता का जो विश्वास कायम रखा यही उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है।

2019 के चुनाव को लेकर विपक्ष से विभिन्न  साजिशें होने की संभावना है। आपकी राय में भाजपा और जनता को इसे किस रूप में लेना चाहिए?

जब मैं कहता हूं कि मोदी जी ने जनता के विश्वास को कायम रखा है तो इसका दूसरा अर्थ यह है कि विपक्षी दलों के प्रति लोगों का अविश्वास है। इसलिए विपक्षी दल लाख प्रयास करें तब भी उनके मनसूबे सफल नहीं होने वाले हैं। भारतीय मतदाता अब परिपक्व हो गया है। भारतीय मतदाता को अपने मत का मूल्य पता है। इसलिए मतदाता विरोधियों के झांसे में आने वाले नहीं हैं। मैं यह दावा नहीं करता कि मोदी जी ने पांच साल में सारी समस्याओं को खत्म किया है; लेकिन यह दावा जरूर करूंगा कि समस्याएं खत्म करने की अगर किसी में क्षमता है तो वे मोदी जी हैं, भारतीय जनता पार्टी ही है। लोग मन से इस बात को जानते हैं और इसलिए गत बार से ज्यादा सीटें लेकर मोदी जी प्रधानमंत्री बनेंगे।

प्रतिमाओं की सुरक्षा कैसे हो?

मैं कहता हूं कि प्रतिमाओं की सुरक्षा करनी ही क्यों पड़े? प्रतिमाओं से हमें प्रेरणा मिलती है। जहां से हमें प्रेरणा मिलती है उसकी सुरक्षा की बात ही क्यों आए? भगवान की हम पूजा करते हैं इसलिए उसकी सुरक्षा का प्रश्न नहीं होता। इन महापुरूषों को हमें महज प्रतिमा मान कर नहीं प्रेरणास्थान मान कर चलना चाहिए। पहले घरों में दरवाजे नहीं होते थे। अब दरवाजे होते हैं तो तोड़ने का प्रयास होता है। प्रतिमाओं को खुला रख दें, सुरक्षा की बात नहीं होगी। जरूरत है मनोभावों को बदलने की।

एक कार्यकर्ता से लेकर आज एक सासंद तक आप समाज के लिए योगदान दे रहे हैं। अपने मन के भाव स्पष्ट कीजिए।

इस देश में सबकुछ है जो लोगों को आवश्यक है। पहुंचाने में हम कमजोर पड़ते हैं। अगर सारे लोग जुड़ जाते हैं तो देश को तेजी से आगे ले जा सकते हैं। मुझे दुख इस बात का है कि आजादी के सत्तर साल के बाद भी लोगों को लाइट, पानी के लिए संघर्ष करना पड़ता है। इससे बड़ी विड़बंना और क्या हो सकती है?

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