हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
महापुरुष जातियों तक सीमित नहीं होते

महापुरुष जातियों तक सीमित नहीं होते

by कृष्णगोपाल
in दिसंबर २०१८, व्यक्तित्व
0

लोग महामानव डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के जीवन को समग्रता से नहीं पढ़ते। किसी एक कोण से उन्हें देखकर अपने स्वार्थ से प्रेरित होकर उसकी व्याख्या करने लगते हैं। अपने-अपने स्वार्थ के लिए जब हम उनका उपयोग करने लगते हैं तो समाज में विभाजन उत्पन्न होता है। प्रस्तुत है ‘हिंदी विवेक’ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में रा.स्व.संघ के सह सरकार्यवाह श्री कृष्ण गोपाल जी के भाषण के कुछ महत्वपूर्ण सम्पादित अंशः-

आंबेडकर जी का कथन था कि इस देश की भाषाएं इस देश का विलक्षण सौंदर्य हैं। सभी भाषाएं राष्ट्रभाषाएं हैं, लेकिन हिंदी सभी को जोड़ कर रखने का सामर्थ्य रखती है। अत: मराठीभाषी होते हुए भी वे हिंदी को सारे देश को बांधे रखने वाला सूत्र मानते थे। डॉ. बाबासाहब आंबेडकर विलक्षण और अलौकिक प्रतिभा के धनी थे। अनेक प्रकार की विपरीत परिस्थितियों में पले-बढ़े और आगे आए। परंतु उनके नाम को लेकर राजनीति करने वाले लोगों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। धीरे-धीरे देश में ऐसा वातावरण निर्माण किया गया, ऐसी भ्रांत धारणा उत्पन्न की गई कि वे किसी विशिष्ट वर्ग के ही नेता हैं। यह इस देश का दुर्भाग्य है कि नेताओं को उनकी जातियों तक ही सीमित रखने का प्रयत्न किया जाता है। यहां तो दुर्भाग्य ऐसा बढ़ गया कि लोग नेताओं को लेकर अपने राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति करने में लग गए। इसके कारण एक महान व्यक्तित्व छोटा होता जाता है।

डॉ. बाबासाहब आंबेडकर महाराष्ट्र में एक अत्यंत पिछड़ी जाति में जन्मे और बचपन से ही अस्पृश्यता का दंश झेलते हुए बड़े हुए। वे एक विशेष जाति में जन्मे जरूर थे पर वे किसी विशेष जाति के नहीं थे। जो लोग ‘वर्ग संघर्ष’ को मानते हैं उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि आंबेडकर जी ने कभी भी ‘वर्ग संघर्ष’ की बात नहीं की। उन्होंने हमेशा सामंजस्य की बात की। कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि वे सवर्णों के विरोधी थे। यह बात बिलकुल गलत है। उन्होंने ऐसी कुछ मान्यताओं का विरोध किया था जिसके कारण समाज में भेदभाव की भावना बढ़ रही थी। जिन परंपराओं/रुढ़ियों से समाज में भेदभाव है, उसका उन्होंने विरोध किया।कुछ लोग उन्हें मार्क्सवादी मानते थे, जबकि वे तो कम्युनिज्म के घोर विरोधी थे। कुछ लोग उन्हें धर्म विरोधी मानते थे, जबकि वे परंपराओं को मानने वाले थे। लोग उनके जीवन को समग्रता से नहीं पढ़ते। किसी एक कोण से उन्हें देखकर अपने स्वार्थ से प्रेरित होकर उसकी व्याख्या करने लगते हैं। अपने-अपने स्वार्थ के लिए जब हम उनका उपयोग करने लगते हैं तो समाज में विभाजन उत्पन्न होता है।

डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने तो बचपन से इस भेदभाव को ही देखा है। वे जब बड़ौदा रियासत में नौकरी करने लगे तो उन्हें पिछड़ी जाति के होने के कारण वहां रहने के लिए किराए से कमरा नहीं मिल रहा था। उन्होंने एक पारसी होटल में फर्जी नाम से एक कमरा पर लिया। कुछ दिन बाद यह बात फैल गई कि रियासत में कोई महार लड़का नौकरी कर रहा है। बात होटल तक भी पहुंची और जब पता चला कि डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ही वह हैं तो उन्हें तुरंत होटल छोड़ने का निर्देश
दिया गया। वे बाहर आकर एक पेड़ के नीचे बैठ गए। उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे। उनके पास डिग्रियां तो बहुत थीं पर रहने को कमरा नहीं था। यही उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट था। यहीं से उनकी सोच शुरू हुई। वे चाहते तो बहुत बड़े वकील बन सकते थे। उन दिनों इतनी उपाधियों वाला शायद ही कोई व्यक्ति हो। वे बहुत धनवान बन सकते थे। अपने ज्ञान के बूते ऊंचे पद प्राप्त कर सकते थे। परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन बहते हुए आंसुओं के साथ ही उन्होंने यह संकल्प लिया कि मेरा यह जीवन अब मेरे लिए या अर्थोपार्जन के लिए नहीं है। यह जीवन अब उस वर्ग के लिए है जो इतना अपमानित है। उसी क्षण से उनके जीवन की दिशा बदल गई और उन्होंने समाज के उस वर्ग के लिए संघर्ष करना शुरू कर दिया। उन्होंने देखा, दलितों को मंदिरों में जाने की अनुमति नहीं थी, तालाब से पानी नहीं लेने दिया जाता था, अगर कोई ले लेता तो उस तालाब को शुद्ध करने के प्रयत्न होने लगते थे।

वे इन सब के विरोध में आवाज उठाते हैं। उस मूक समाज को वाणी देते हैं। उस समाज को एक मंच देते हैं जिसे समाज ने दूर रखा है। उस समाज को धीरज देने का काम करते हैं जिसके मन से उठने की इच्छा ही समाप्त हो चुकी है। जिस तरह मार्टिन लूथर किंग तथा अब्राहम लिंकन ने नीग्रो लोगों के लिए कार्य किया उससे भी बड़ा कार्य यह था। अत: उनके जीवन का एक बड़ा आयाम यह है कि उन्होंने एक बहुत विशाल वंचित वर्ग में आत्मविश्वास का संचार किया। यहां एक बात ध्यान रखने योग्य है कि उनका संघर्ष निर्वैर था। उनका कोई बैरी या शत्रु नहीं था। शत्रु वे परंपराएं, वे मान्यताएं थीं, वे भ्रांतियां थीं जो समाज को वर्गीकृत करने का काम करती हैं। अत: उन्होंने जो किया वह ‘वर्ग संघर्ष’ नहीं था। वह कुछ अधिकारों की प्राप्ति के लिए किया गया संघर्ष था।

जब लोग ये कहते थे कि उन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई में राजनीतिक रूप में हिस्सा नहीं लिया तो डॉ. आंबेडकर का जवाब होता था कि ‘मैं आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने को तैयार हूं, पर क्या कोई मुझे इस बात का विश्वास दिलाएगा कि स्वतंत्रता के बाद मेरा समाज भी स्वतंत्र हो जाएगा। अगर कोई यह विश्वास दिलाता है तो मैं कांग्रेस से भी ज्यादा तीव्रता से आजादी की लड़ाई लडूंगा।’ परंतु उस समय का नेतृत्व उन्हें यह विश्वास नहीं दिलवा सका।

हम जब उनकी परिस्थिति में स्वयं को रखकर विचार करेंगे तो हमें ध्यान में आएगा कि वे क्या थेे। उनके संपूर्ण जीवन का आंकलन थोड़े से ज्ञान से नहीं हो सकता। उनके नाम के आगे जो आंबेडकर उपनाम लिखा जाता है वह उन्हें एक ब्राह्मण अध्यापक ने दिया है। उस अध्यापक को यह लगता है कि आठवीं का यह विद्यार्थी बहुत होशियार है परंतु महार जाति का उपनाम उसके लिए आगे समस्या खड़ी कर सकता है। अत: वे डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के पिता की अनुमति लेकर उन्हें यह (ब्राह्मण) उपनाम देते हैं। केलुस्कर नामक अध्यापक उनके लिए किताबें, फीस और बड़ौदा के राजा से फेलोशिप दिलवाने का प्रयत्न करते हैं। डॉ. आंबेडकर यह स्वीकार करते हैं कि उनके जीवन में केलुस्कर जी का बहुत बड़ा योगदान है। जब मिलिंद कॉलेज में नवीन प्राचार्य लाने का विचार होता है तो वे गजेन्द्रगडकर को खोज कर लाते हैं। लोग कहते हैं डॉ. साहब ने ब्राह्मण प्राचार्य चुना। लेकिन डॉ. बाबासाहब आंबेडकर कहते हैं कि “नहीं, मैंने ब्राह्मण नहीं; योग्य प्राचार्य का चुनाव किया है!” ऐसे व्यक्ति के बारे में जब यह कहा जाता है कि वे ब्राह्मण विरोधी थे तो यह साफ दिखाई देता है कि लोगों ने उन्हें पहचाना ही नहीं है।

पुणे पैक्ट के समय ऐसा लगा कि देश दो हिस्सों में बंट जाएगा। आंबेडकर जी बहुत गुस्से में हैं। सोचते हैं कि मेरे वर्ग का क्या होगा। एक समय वे पृथक निर्वाचन क्षेत्र का विरोध करते हैं। सन 1932 में गोलमेज परिषद में वे पृथक निर्वाचन क्षेत्र की मांग करते हैं। म. गांधी इसका विरोध करते हैं। म. गांधी कहते हैं, “मैं मानता हूं हिंदू समाज के अंदर जातिभेद एक कुरीति है। इसे हटाना चाहिए और इसके लिए मैं हर संभव प्रयास करूंगा। परंतु पृथक निर्वाचन क्षेत्र को मैं स्वीकार नहीं करूंगा। हमेशा के लिए मैं समाज का बंटवारा नहीं होने दूंगा। इसके लिए मैं आमरण अनशन करूंगा।’ यह सब उन्होंने ब्रिटेन के प्रधान मंत्री को भी लिख कर भेजा था। आंबेडकर जी ने कहा, ‘ऐसे महात्मा आएंगे और जाएंगे; परंतु मैं अपने वर्ग का हक लेकर ही रहूंगा।’ लोगों को लगा, देश पर संकट आ गया है। मालवीय जी कश्मीर की यात्रा छोड़ कर मुंबई आ गए। दोनों के बीच निरंतर वार्ताएं हुईं। अंत में आंबेडकर जी मान गए। इस लड़ाई में न कोई जीता न कोई हारा वरन् लोगों ने डॉ. बाबासाहब आंबेडकर को राष्ट्रीय नेता के रूप में मान्यता दी।

जब संविधान निर्माण का समय आया तो जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल विदेश से कोई अच्छा संविधान निर्माता ढूंढ कर लाने वाले थे। तब म. गांधी ने उनसे कहा, ‘किसी को बाहर से बुलाने की क्या आवश्यकता है? आंबेडकर जी को बुलाइये। वे इस कार्य में पूर्ण सहयोग करेंगे।’ अत: जो लोग यह कहते हैं कि म. गांधी और डॉ. बाबासाहब आंबेडकर में द्वेष था तो उन्हें यह घटना ध्यान में रखनी चाहिए। यह कोई छोटी बात नहीं है। यह बड़े लोगों की बड़ी बातें हैं।

डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के जीवन के दो प्रमुख आयामों- संविधान का निर्माण और अस्पृश्यों को समान अधिकार दिलवाना- इसके अलावा भी उनके जीवन में बहुत कुछ था। बहुत कम लोग जानते हैं कि वे बहुत बड़े अर्थशास्त्री थे। उनके द्वारा प्राप्त की गई डिग्रियों में से सबसे ज्यादा डिग्रियां अर्थशास्त्र में हैं। कम उम्र में ही उन्होंने कीन्स और माल्थस जैसे अर्थशास्त्रियों का विरोध करने का साहस दिखाया।

वे एन्थ्रोपलॉजी के ज्ञाता थे। गहन शोध के बाद उन्होंने लिखा कि ‘आर्य सिद्धांत’ ही बिलकुल गलत है। आर्य नाम की कोई जाति नहीं थी। वह विशेषण है। वेदों में कहीं नहीं लिखा कि आर्य कहीं से आए थे। आर्य यहीं के थे और अगर कहीं गए तो यहीं से गए। शूद्र भी आर्य ही थे। कालांतर में कुछ ऐसी घटनाएं घटीं जिसके कारण वे अलग हो गए। उनका यज्ञोपवित बंद कर दिया गया, जिसके कारण उनका स्तर नीचा होता चला गया। जो आंबेडकर जी का समग्र अध्ययन करना चाहते हैं उन्हें यह जरूर पढ़ना चाहिए।

वे जब श्रम मंत्री थे तब उन्होंने श्रमिकों के लिए कानून बनाए। उनके काम करने के घंटे, खाने-पीने का सामान, ओवरटाइम, चिकित्सालय आदि उन्होंने ही बनाए हैं। आज मजदूर संघों सहित बहुत कम लोग यह जानते हैं।

विदेश नीति के बारे में वे कहते हैं कि ‘जब हम आजाद नहीं थे कोई भी देश हमारा शत्रु नहीं था। आज दो -तीन साल बाद कोई भी देश हमारे साथ नहीं है। चीन जब तिब्बत को प्राप्त करने की कोशिश कर रहा था तो उन्होंने आगाह किया कि यह गलत हो रहा है। अगर ऐसा हुआ तो चीन की सीमाएं भारत से जुड़ जाएंगी।

अंतिम समय में उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। सन 1935 में वे कहते हैं कि ‘मैं हिंदू जन्मा हूं परंतु मैं हिंदू मरना नहीं चाहता।’ 1935 में ‘रिडिल्स ऑफ हिन्दुज्म’ लिखा परंतु उसे छपवाया नहींं। उस समय की परिस्थिति के कारण गुस्से से भर कर उन्होंने लिखा परंतु छपवाया नहीं। उनकी मृत्यु के बाद लोगों ने वह निकाला और छपवाया। उन्होंने म. गांधी को वचन दिया था कि मैं ऐसा मार्ग अपनाऊंगा जिससे इस देश की कम से कम हानि हो। बौद्ध धर्म तो यहीं की उत्पत्ति है।

संविधान सभा के अंतिम भाषण में बड़े मार्मिक शब्दों में वे उल्लेख करते हैं कि मुझे डर है कि कहीं यह देश फिर से गुलाम न बन जाए। इन भाषणों में वे राष्ट्र प्रेम से भरे दिखते हैं। उनका जीवन बहुत कठिन जीवन है। विद्वत्ता से परिपूर्ण जीवन है। अपमान के दंश से चुभा हुआ जीवन है। लेकिन उन्होंने कभी भी एक शब्द भी ऐसा नहीं बोला जिससे समाज में वर्गीकरण हो। उनके जीवन को समग्रता से देखने की आवश्यकता है। किसी एक बात को लेकर उनका मूल्यमापन करना उचित नहीं होगा।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazinepersonapersonal growthpersonal trainingpersonalize

कृष्णगोपाल

Next Post
संविधान ने हमें क्या दिया है?

संविधान ने हमें क्या दिया है?

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0