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आतंकवाद के खिलाफ जनजागरण

आतंकवाद के खिलाफ जनजागरण

by अमोल पेडणेकर
in फरवरी-२०१५, सामाजिक
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सामाजिक जागरण और तत्पर कार्रवाई से आतंकवाद की जड़ें उखाड़ देना संभव है। इसके लिए हम सभी को तैयार रहना चाहिए और स्वयं अपनी ओर से प्रयास करने चाहिए।
१९९४ से लेकर आजतक भारत में फैला आतंकवाद और आतंकवादी हमलों को देखते हुए हमारे सामने एक सवाल खड़ा होता है कि आतंकवाद का खात्मा कब होगा? पिछले २० साल की घटनाओं को देखने पर ध्यान में आता है कि आतंकवाद बढ़ रहा है। किसी न किसी कारणवश आतंकवाद खत्म होने के बजाय बढ़ रहा है। आतंकवादी कारनामों में आतंकवादियों का उद्देश्य क्या होता है? उन्हें लोगों में डर, घबराहट फैलानी होती है। इससे नागरिकों में असुरक्षा का वातावरण निर्माण होकर देश की सुचारू व्यवस्था पर आघात होता है। असुरक्षा के माहौल में देश प्रगति-पथ पर अग्रसर नहीं हो सकता। लगातार होनेवाले आतंकवादी हमले सिर्फ आतंकवादी करतूत न होकर बिना खर्च का युद्ध है, यह एक प्रकार की युद्ध नीति है।
जिहादी युद्ध प्रकार यह भी एक युद्ध नीति है। जिहादी युद्ध आंतरिक, बाह्य, राजनीतिक, कूटनीतिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक, आर्थिक और सैनिकी विरोध में किया जाता है। जिहादियों की युद्धनीति का हिस्सा है कि दुश्मन की क्षमता और शक्ति सदैव दुर्बल होनी चाहिए। दुश्मन की शक्ति पर, आम आदमी की विचारधारा पर आक्रमण करते रहना चाहिए। जिहादी युद्ध नीति का एक सिद्धांत यह भी है कि उन्हें न किसी प्रकार की जल्दी है, न समय की पाबंदी है। उनका प्रमुख उद्देश्य यह है कि दुश्मन की राष्ट्रीय इच्छाशक्ति पर प्रहार करके उनको हतोत्साहित करना। ‘एक व्यक्ति को मारो और हजार व्यक्तियों को डराओ’ इस सिद्धांत पर जिहादी आतंकवादी चलते हैं। आतंकवादी भारत को परास्त या पराजित नहीं कर सकते पर भारत को हमेशा युद्ध जैसे हालात में रखने की कोशिश करते हैं। पिछले तीस सालों से यही हो रहा है। इस आतंकवादी युद्ध नीति को देखकर लगता है कि भारत में फैला आतंकवाद और हमेशा होनेवाले आतंकवादी हमले यह घातक युद्ध नीति का हिस्सा है। यह प्रहार सिर्फ कानूनी-व्यवस्था पर नहीं होता, बल्कि पूरे भारतवर्ष पर होता है।
क्या हम इस बात को समझते हैं? विगत चार दशकों से ईशान्य भारत, पंजाब, कश्मीर में आतंकवाद जड़ें जमाए हुए हैं। ओसामा बिन लादेन की मृत्यु के बाद आतंकवादी कार्रवाइयां जोर पकड़ेगी यह निश्चित था। हमें लगता था कि ओसामा की मौत का बदला आतंकवादी अमेरिका से लेंगे। पर दुर्भाग्य की बात यह है कि इतनी मजबूत सुरक्षा-व्यवस्था और गुप्तचर विभाग की जागरूकता हमारे देश में नहीं। दस आतंकवादी मुंबई आकर तीन दिन तक जानलेवा हमले करते हैं। ‘इसिस’ की सहायता करनेवाले ट्विटर अकाउंट बंगलुरु से अनेकों साल चलाया जाता है और हमारे खुफिया एजेंसियों को कानोंकान खबर नहीं होती। हम मानकर चलते हैं कि सुरक्षा यह पुलिस की जिम्मेदारी है। अपने आसपास क्या हो रहा है, यह जानने की लोगों की इच्छा नहीं होती। लोगों को आपस में बातचीत करने की फुर्सत नहीं होती। आतंकवादी मुंबई, बंगलुरु, दिल्ली, अहमदाबाद, चेन्नई जैसे शहर चुनते हैं क्योंकि बड़े शहर के लोग दूसरों की जिंदगी में नहीं झांकते। किसी की ओर ध्यान न देने की मानसिकता शहरों में पायी जाती है। नया व्यक्ति कौन है, कहां से आया है, कब और कहां जाता है, इसे जानना कोई जरूरी नहीं समझता। इसी मानसिकता के कारण आतंकवादियों को शहरों में अपनी करतूतें जारी रखने का मौका मिल जाता है।
मैं और मेरे अपने तक ही दुनिया सीमित रखने की मानसिकता को हमें छोड़ देना चाहिए। देश की, समाज के लोगों की और स्वयं की भी सुरक्षा अपनी ही जिम्मेदारी है, ऐसा मानकर चलना चाहिए। अपने आसपास की सुरक्षा भी हम वैसी ही करें जैसी हम अपने परिवार की सुरक्षा करते हैं। क्या हमारे आसपास, पडोस में कोई नए संदेहास्पद लोग घूम रहे हैं? क्या अपनी पार्किंग में कोई नई गाड़ी खड़ी है? इसके प्रति सतत सजग रहना जरूरी है।
आतंकवादी आसमान से नहीं टपकते। जहां पर हमला करना है, वहां पर नजदीक ही वे अपनी व्यवस्था करते हैं। आतंकवादी उस जगह की रेकी करते है जहां पर हमला करना है। वहां से जल्द से जल्द नौ दो ग्यारह होने के रास्ते तलाशते हैं। स्थानीय लोगों से ही उन्हें सारी मदद मिलती रहती है। अपने जाने पहचाने लोगों के पास भी कोई नए चेहरे दिखाई दें तो उन पर नज़र रखनी चाहिए। भारत की आबादी की तुलना में पुलिस-बल कम है। पुलिस को भी नागरिकों की सहायता की जरूरत होती है। अब आम आदमी को भी पुलिस जैसी पैनी नज़र रखने की जरूरत है। आसपास संदेहास्पद घटनाएं हो रही हो तो त्वरित पुलिस को सूचित किया जाना जरूरी है।
समाज को किन बातों से खतरा हो सकता है, इसका अंदाजा लेकर, उनसे समय पर ही निजात पाना जरूरी है। भारत से सीधे युद्ध न करते हुए भी भारत को आतंकवाद के साये में रखने की साजिश को समझना होगा। संगठित होकर समाज-प्रबोधन करने का वक्त आ गया है। समाज और राष्ट्रकर्तव्य के प्रति सजग होने का समय आया है क्योंकि आतंकवादियों का चेहरा नहीं होता। वे अपने में ही कहीं छिपे हैं। पढ़े-लिखे हैं, पर बिक गए हैं, अपना ईमान बेच दिया है।
आतंकवादी जिस तरह प्रशिक्षण लेकर आतंक फैलाने का काम करते हैं; उससे ज्यादा प्रखरता से हमें आतंकवाद का सामना करने का प्रशिक्षण लेना चाहिए। सामाजिक संस्थाओं, संगठनों को इसके लिए आगे आना चाहिए। नैतिक जिम्मेदारी समझ कर इस महत्वपूर्ण विषय पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। लोगों के पास पहुंच कर आतंकवाद के विरोध में लड़ने के लिए प्रचारात्मक कार्यक्रम करना चाहिए। आतंकवादी हमला होने पर हमारा राष्ट्र प्रेम जोर पकड़ता है। पर यह जोर, यह उफान टिकता नहीं। कुछ ही दिनों में भुला दिया जाता है, और यहीं पर आतंकवादी सफल होते हैं; क्योंकि हम सामान्य आदमी उदासीन बने रहते हैं। हम निष्क्रिय हो रहे हैं, यह सच है और इस सच को हम पहचानें।
कभी-कभी आतंकवाद से ज्यादा आक्रामक हमारे न्यूज चैनल्स होते हैं। आतंकवादियों से ज्यादा डर या घबराहट मीडिया फैलाता है। २६-११ की घटना को सीधे दिखाने का फायदा आतंकवादियों को हुआ था।
आतंकवादी कार्रवाई होने पर मीडिया सकारात्मक खबर दें। विज्ञापन प्रसारित करते समय मीडिया हर मिनट के लिए लाखों रुपयों की मांग करता है। आतंकवादी कार्रवाई दिखाते वक्त मुफ्त में लंबी-लंबी कवरेज देता है, यह गलत है
आतंकवादी हमला, बम विस्फोट की शृंखला, आतंकवादियों का भारत के विरोध में अघोषित युद्ध है। इस युद्ध का मुकाबला करते हुए हममें कुछ खामियां हैं। आतंकवाद का खात्मा करने के लिए हमारे अंदर की खामियों को भी नष्ट करना पडेगा। इस युद्ध पर विजय प्राप्त करने का यही उपाय है। सामाजिक जागरण और तत्पर कार्रवाई से आतंकवाद की जड़ें उखाड़ देना संभव है। इसके लिए हम सभी को तैयार रहना चाहिए और स्वयं अपनी ओर से प्रयास करने चाहिए।
——–

अमोल पेडणेकर

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