हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
“स्टैच्यू ऑफ यूनिटी”एक अद्भुत शिल्प

शंखेश्वर महातीर्थ में बनेगा – भव्य श्रुत मंदिर

by विजय मराठे
in जनवरी २०१९
0

समस्त जैन संघ के गौरव स्थान शंखेश्वर महातीर्थ में अनुपम, भव्य-दिव्य श्रुत मंदिर बनाया जा रहा है। जैन धर्म ग्रंथों की सुरक्षा के अलावा इसमें अन्य विभिन्न सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाएंगी।

जैन समाज की कार्य कुशलता एवं व्यापार का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है। अल्पसंख्यक होने के बावजूद आत्मविश्वास व निर्भयता के साथ हर क्षेत्र में जैन समाज ने अभूतपूर्व सफलता के नित नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। जैन समाज जितना महत्व अपने कार्यक्षेत्र को देता है उससे अधिक महत्व वह अपने धर्म को देता है। धर्म के प्रति पूर्ण आस्था-विश्वास, भक्ति भाव एवं पूर्ण समर्पण के चलते उन्हें सिध्दियां प्राप्त होती हैं अथवा कह सकते हैं कि ऊर्जा, सकारात्मक शक्ति प्राप्त होती है। जिसके बल पर प्रगतिपथ पर वह सबसे अग्रणि भूमिका में दिखाई देते हैं। अपनी आध्यात्मिक शक्ति को और बलवती बनाने के लिए गुजरात के पाटण जिला स्थित शंखेश्वर महातीर्थ में जैन समाज ने महा दिव्य-भव्य श्रुत मंदिर बनाने का शुभ संकल्प लिया है। इस संदर्भ में महातीर्थ के वरिष्ठ जैन मुनि जी से हुई वार्ता के संक्षिप्त अंशः

श्रृत मंदिर निर्माण करने की मूल संकल्पना क्या है?

जैन धर्म के प्रवचन श्रृत का ह्रदय ‘श्रृत मंदिर‘ है। गणधर, पूर्वधर एवं श्रृतधर द्वारा प्राप्त ज्ञान हजारों ग्रथों में ग्रंथित है। इन ग्रंथों को प्राचीन अर्वाचीन हस्तलिखितों को वैसे ही मुद्रित रूप में संरक्षित करने हेतु श्रृत मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। शंखेश्वर देवता की पवित्र पूण्यभूमि में श्रृत मंदिर को बनाने का निर्णय सभी जैन बंधुओं ने एकमत से किया क्योंकि यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का आवागमन होता रहता है। इसके अलावा अभ्यासकों एवं संशोधकों द्वारा जानकारी एकत्रित करने हेतु सतत अध्ययन यहां चलता रहता है।

भगवान महावीर ने सम्पूर्ण विश्व का सार बताया है कि “जिसे हम जगत कहते हैं, उसके तीन स्वरूप हैं- उत्पन्न होना, स्थिर रहना एवं विनाश होना। प्राचीन समय में मौखिक पाठ होते थे। मौखिक बोलना, उसे कंठस्थ करना तथा उसे याद रखना। यह परंपरा लगभग 980 वर्षों तक निर्बाध चली। इसके बाद 12 वर्षों तक आए भयंकर अकाल की स्थिति में प्रज्ञाशक्ति एवं मेधाशक्ति क्षीण होने लगी। तब आचार्यों ने निर्णय किया कि इसकी कोई वैकल्पिक  योजना बनानी चाहिए। महावीर के निर्वाण पश्चात गुरूकुल परंपरा के वलभीपुर नामक प्रसिद्ध गांव में 500 आचार्य एकत्रित हुए और उन्होंने ज्ञान संगोष्ठी द्वारा धर्म के मर्म को लिपिबद्ध किया। इसके बाद कालचक्र बदला और यवनों (मुसलमानों) ने भारत पर आक्रमण कर दिया। जिसके बाद क्रूर आक्रांताओं ने हिंदू व जैन धर्मियों के श्रद्धास्थान मंदिरों का ध्वंस करना शुरू कर दिया। इसी दौरान उन्होंने हमारे धर्म ग्रंथों को जलाना शुरू किया। बताया जाता है कि वलभीपुर गांव में लगभग एक करोड़ धर्मग्रंथों को लिपिबद्ध कर संरक्षित किया गया था। उसे भी उन्होंने जला दिया, उसमें से शेष बचे हुए ग्रंथों का गुप्त रूप से जतन किया गया। अकबर बादशाह के राज में एक समय ऐसा भी आया, जब श्रेष्ठ आचार्यों के निवेदन को मान कर अकबर ने फतेहपुर सिकरी में पहली बार श्रृत मंदिर की स्थापना करवाई थी। दुर्भाग्यवश इसके बाद के इस्लामिक शासन के दौरान देश के असंख्य धार्मिक स्थलों, मंदिरों को ध्वस्त किया गया, जिसमें श्रृत मंदिर भी शामिल है।

इसके बाद बड़ी संख्या में मंदिरों का रूपांतर मस्जिदों में किया गया। सभी धार्मिक स्थलों पर धर्मग्रंथों की होलियां जलाई जाने लगीं। सन 1642 के बाद जितने ग्रंथ शेष रहे, उनका संग्रह किया गया।

हिंदू धर्म की गहराइयों से जुड़ा है जैन धर्म

जैन धर्मियों के आराध्य शंखेश्वर के बारे में जानना जरूरी है। जैन धर्मावलम्बियों की मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण और जरासंध के बीच हुए घमासान युद्ध के दौरान जरासंध ने अपनी मायावी विद्या से श्रीकृष्ण की पूरी सेना को मूर्च्छित कर दिया। जिससे भगवान व्याकुल हो उठे, उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था। तब श्रीकृष्ण के चचेरे भाई नेमिनाथ भगवान, जो जैन धर्म के तीर्थंकर हैं, वह उनके साथ थे। उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा कि आप चिंता मत करिए और जरासंध की माया से उबरने हेतु आप तीन दिन का व्रत करिए। जैन धर्म में इसे अठम कहते हैं। अठम नामक ध्यानधारणा में लीन होने पर अंतिम ध्यानधारणा की प्रक्रिया में साक्षात देव धर्मेन्द्र एवं पद्मावती स्वयं प्रकट होकर मनोकामना पूछेंगे तब उनसे आप जिस देवता की पूजा करते हैं उस देवता की मूर्ति देवलोक से लाकर हमें दें, यह वरदान मांगें। श्रीकृष्ण ने ऐसा ही किया और देवलोक से मूर्ति प्राप्त करने के बाद उस मूर्ति का पूरे विधि-विधान के साथ जलाभिषेक किया गया तथा जलाभिषेक किए गए जल को मूर्च्छित सैनिकों पर छिड़का गया तब सैनिक होश में आए। जागृत हुए सैनिकों ने घनघोर युद्ध किया और युद्ध में विजय प्राप्त की। इसके बाद श्रीकृष्ण ने विजयी शंखनाद किया। कहा जाता है कि तबसे से ही उक्त मूर्ति का नाम शंखेश्वर पड़ा और शंखेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसके साथ ही उनके नाम से शंखेश्वर नगरी की स्थापना भी हुई। वहां एक विशाल मंदिर बनाया गया, जिसमें शंखेश्वर देवता की मूर्ति की स्थापना की गई। ऐसी मान्यता है कि शंखेश्वर भगवान की मूर्ति बेहद जागृत है। जब मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा की जा रही थी तब उपस्थित पुजारियों ने शंखेश्वर देवता का हृदय चक्र प्रभावी रूप से जागृत किया। इसलिए कहा जाता है कि यहां आने वाले भक्तों की मनोकामना तत्काल पूर्ण होती है।

नवनिर्मित श्रृत मंदिर की कुछ खास विशेषताएं

80 हजार वर्ग फुट क्षेत्र में श्रृत मंदिर बनाने की योजना बनाई गई है। मध्यभाग में श्रृतीदेवी मां शारदा की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाएगी। प्रतिमा के समक्ष साधना स्थल बनाया जाएगा, ताकि भक्तों में सद्विवेक जागृत हो। यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए केंद्र स्थान, साधु-संतों के लिए आराधना भवन, धर्मशाला, अन्नशाला, शीतल जलधारा, तीर्थ प्रवेशद्वार प्रथम व द्वितीय, चतुर्मुख जिनालय मणिभद्रवीर देवकुलिका, तीर्थपेढ़ी, प्रसंगभूमि, जिनशासन के 2500 वर्षों का इतिहास समेटे श्रृत दर्शन भवन, सुंदर बगीचा एवं औषधि वन आदि अनेकानेक प्रकार की सुख-सुविधाओं से सुसज्जित और विशेषताएं इसमें समाहित है। बता दें कि इस श्रृत मंदिर का भूमिपूजन 22 अप्रैल को हुआ और आगामी 3 वर्षों में इसे पूर्ण रूप प्रदान किया जाएगा।

विश्व शांति एवं मानवता की रक्षा हेतु आवश्यकता है धर्म ग्रंथों का संरक्षण। उथल- पुथल एवं संघर्षों से भरी इस दुनिया को शांंति, सदाचार, मानवता एवं नैतिकता का संदेश देने तथा आध्यात्मिक पिपासा को तृप्ति प्रदान करने हेतु धर्म ग्रंथों का संरक्षण करना बेहद आवश्यक है। मानवता एवं शांति की सही शिक्षा देने वाले धर्म ग्रंथों की सुरक्षा विश्व कल्याण के लिए हितकारी है। भारत सहित पूरे विश्व को सही राह दिखाने का शुभ कार्य भविष्य में हमारे धर्म ग्रंथ ही करने वाले हैं। विश्व की सारी समस्याओं का समाधान भारतीय धर्म ग्रंथों में निहित है। अत: हम सभी का यह परम कर्तव्य है कि हजारों वर्षों से चली आ रही हमारी महान संस्कृति-सभ्यता की रक्षा हेतु हम तत्पर हो और संघर्षों से जलती इस दुनिया को परम शांति की ओर लाने हेतु भक्ति मार्ग का दीपक जलाते चलें। इसलिए जैन धर्म ग्रंथों की सुरक्षा हेतु अनुपम अद्वितीय अपूर्व एवं वैभवशाली श्रृत मंदिर का भव्य दिव्य निर्माण किया जा रहा है।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp

विजय मराठे

Next Post
युवाओ उठो, अपनी  असीम शक्ति को जगाओ

युवाओ उठो, अपनी असीम शक्ति को जगाओ

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0