हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result

ऋतुओं की रानी बारिश

by डॉ. सुषमा श्रीराव
in जुलाई २०१७, सामाजिक
0

सूर्यदेवता के कोप से धरती जली जा रही थी। सूर्यदेवता आसमान में चढ़ते ही जा रहे थे। घरों और सड़कों पर मानो आग बरस रही थी। बिजली भी चली गई थी। पंखा झलने वाले हाथ थकने लगे थे। दोपहर की झपकी आखों से कोसों दूर थी। लू चल रही थीं। सडकें तवे के समान तप रही थीं ।
तभी….आसमान में बदली छाई। कुछ घटाएं भी दिखने लगीं। उनका साथ देते हुए, बादल भी उन्हें घेरने लगे। हवाएं तेज हो गईं, बिजली चमकने लगी। कुछ ही देर में सारा आसमान बादलों से ढंक गया। मिट्टी की सोंधी-सोंधी खुशबू आने लगी। छुटपुट होने वाली बूंदाबांदी, तेज हवाओं से परेशान उड़ती धूल को मानो मां की तरह थपक-थपक कर सुला रही थी, और धूल भी नन्हें शिशु की तरह एकदम से शांत होकर बैठ गई। रुनझुन बरसती बूंदों की लड़ियां, स्पर्श के बिना ही, तपते हुए तन के साथ, बेचैन मन को भी, भिगोने का सुखद अहसास करा रही थी। गर्मी के प्रभाव और वर्षा के अभाव से होने वाली, जन-जन की व्याकुलता बारिश की रिमझिम ने शांत कर दी थी ।

सौंदर्य लुटाती बारिश….
प्रकृति का तो स्वरूप ही बदल गया है। पौधे, बेलें और लताएं बारिश की बौछारों में स्नान कर निखर उठी हैं। ऐसा लगता है, मानो हरे रंग के वस्त्र पहन विरहणी प्रिया नववधु सा श्रृंगार किए, अपने प्रियतम की बांट जोह रही है। धरती की हरियाली मानो टूट कर झमक आई है।
इस पहली बारिश का आनंद पशु-पक्षी भी ले रहे हैं। पक्षी चहकने लगे हैं।
कोयल, गोरैया, टिटहरी और मोर भी अपनी हाजिरी लगा रहे हैं। मोरों का मनभावन नृत्य आरंभ हो गया है। मेंढ़क टर्र-टर्र की ध्वनि से वर्षा का स्वागत कर रहे हैं। भैसें और गायें बारिश की बूंदों में भीग कर आनंदित होकर रंभा रही हैं। चरागाहों से लौटती भेड़ें और बकरियां में…में..की ध्वनि से, अपनी प्रसन्नता प्रदर्शित कर रही हैं। रात्रि में झींगुरों का संगीत अपनी चरम सीमा पर है।
बारिश का आंचल क्या लहराया कि सारी दुनिया मानो चहक उठी। हमारी प्रकृति पग-पग पर अपना सौंदर्या लुटाती है। बारिश के इसी अलौकिक सौंदर्य के कारण ही इसे ऋृतुओं की रानी कहा जाता है।

बचपन की बारिश
वर्षा तेज हो गई है। ताल तलैया, नदी नालों में पानी भरने लगा। कागज की कश्तियां बना कर उसे पानी में तैराने की बच्चों में मानो होड़ सी लग गई। बच्चों की टोलियां घरों से निकल कर उधम मचा रही हैं। किसकी नाव आगे जाएगी? सोचते हुए बड़े-बूढ़ें भी अपना बचपन याद करनेे लगे और बच्चों की दौड़ व होड़ तथा नाव की दौड़ में शामिल हो गए, मानो कह रहे हों..
मुझको लौटा दो, बचपन का सावन।
वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी॥
सड़कों पर जमा हुए पानी में ‘‘छई छपाक छई’’ खेलने का मजा ही कुछ और होता है। गांवों में नदी और तालाब लबालब भर जाते हैं। बच्चे और बड़े सभी वहां तैरने का आनंद उठाते हैं।
रिमझिम गिरती बारिश में बच्चों और युवाओं का प्रिय खेल है, फुटबॉल और बास्केटबॉल। बारिश में युवक बिना रेनकोट पहने, भीगते हुए बाइक राइडिंग का खूब मजा लेते हैं। बारिश में सारा वातावरण खुशनुमा हो जाता है। कई बार तो सात रंगों वाला इंद्रधनुष भी दिखाई देता है।

कवियों की बारिश….
बारिश के सौंदर्य ने अनेक लेखकों और कवियों को प्रभावित किया है। उन्होंने कई छंदों और कविताओं का सृजन किया है। महाकवि कालीदास का महाकाव्य ‘मेघदूतम्‘ कौन नहीं जानता? बारिश के मौसम में ही महाकवि ने इसकी रचना की थी। सूरदासजी ने कृष्ण के जन्मोत्सव के प्रसंग में बादलों की गतिविधि का सर्वोत्तम चित्रण किया है। ‘वृढिट पड़े टापुर टुपुर‘ रवीन्द्रनाथ टैगोर की मोहित करनेवाली कविता है।
कुछ ऋतुप्रधान राग होते हैं, जो केवल उसी ऋतु में गाए जाते हैं। बारिश से प्रेरणा लेकर ही बादल राग, गौड़ मल्हार आदि प्रचलन में आए। प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि तानसेन जैसे गायक इन रागों से वर्षा तक करा देते थे।
भारतीय संगीत में बारिश खुशी का मौसम है। बारिश में लोकगीत सबसे ज्यादा गाए जाते हैं। आल्हा, कजरी, झूला सब बारिश के गीत हैं। ये गीत पीढ़ी-दर-पीढ़ी परंपरा से आते हैं। अनेक उच्चकोटि के लेखक एवं कवि हैं, जिन्होंने बारिश को अपनी कविता का माध्यम बनाया।

बारिश में पिरोया संगीत
हल्की-हल्की बारिश और चाय पकौड़ियों का स्वाद मन में ताजगी भर देता है। इनके साथ यदि संगीत का साथ हो, तो सोने में सुहागा। संगीत और बारिश का मिलाप मन में, एक अलग ही उमंग और तरंग भर देता है। इसका श्रेय जाता है, सिने जगत को, जहां बारिश को नायिका के सौंदर्य के साथ जोड़ा गया है। सिने जगत के कारण ही हम बरसात के मौसम को प्यार-मुहब्बत से जोड़ देते हैं। यदि हिंदी सिने जगत पर नजर डालें तो पता चलता है कि बारिश और सावन पर हर दशक में गीत बनते आ रहे हैं। १९६० में रुमझुम बरसे बदरवा, मस्त हवाएं आईं, १९५० से १९६० तक ठंडी हवा काली घटा, आ ही गई झूम के, जारी जारी ओ कारी बदरिया, एक लड़की भीगी भागी सी, बरसात में तुमसे मिले हम सजन और श्री ४२० का प्यार हुआ इकरार हुआ गीत आज भी प्रेमियों के दिलों से जुड़ा है। १९६० से लेकर अब तक रिमझिम गिरे सावन, भीगी भीगी रातों में, आज रपट जाएं…रिमझिम रिमझिम रुनझुन रुनझुन भीगी भीगी रुत में और लगी आज सावन की ऐसी झड़ी है; बारिश के खुशनुमा गीत हैं। अभी २०१७ का गीत ‘ये मौसम की बारिश ये बारिश का पानी’ सबकी जुबान पर चढ़ा हुआ है। सिने जगत में बारिश में फिल्माए गए गीतों की सूची इससे भी लंबी है।
इस तरह बारिश की बूंदों के साथ पिरोया गया संगीत जब सिनेमा के परदे पर अवतरित होता है तो दिल के साथ आत्मा को भी छू लेता है। यह बारिश प्रेमी प्रेमिका की जुदाई में उनके बीते हुए दिनों की खट्टी-मीठी यादों को ताजा कर देती है। बारिश के पानी में वे अपना दर्द बहाने की कोशिश करते हैं।

मुंबई की बारिश
मुंबई की बारिश का उल्लेख किए बिना बारिश का स्वागत अधूरा लगेगा। ‘मुंबई में बारिश कभी भी होने लगती है’, ‘मुंबई की बरसात का क्या है एतबार’ वाले गीत की तरह उफनता हुआ सागर और सागर के किनारे गेट वे इंडिया या मरीन ड्राइव पर घूमते प्रेमी जोड़े। जब सागर की लहरें हिलोरें मार कर जोर से किनारे पर टकराती हैं तो अपनी बौछारों से प्रेमी जोड़ों को भी भिगो देती हैं। अक्सर बारिश में लोग समुद्री तट पर आते हैं, गरम गरम सेंका हुआ भुट्टा और चाय या वड़ा पाव और चाय, ऊपर रिमझिम बारिश, ऐसा समां बंध जाता है कि मन मयूर नाचने लगता है। मुंबई में बारिश में ट्रैफिक के कारण सड़कों पर गाड़ियों की कतारें नजर आती हैं। लोगों को ट्रैफिक की समस्या का सामना करना पड़ता है। लोकल ट्रेनों और बसों पर भी इसका असर पड़ता है। यहां के लोग बहुत जिंदादिल हैं। बारिश के कारण तापमान और उमस में मिलने वाली राहत का अहसास उनकी इन परेशानियों को छू मंतर कर देता है।

सुकून लाती बारिश
हमारा भारत कृषिप्रधान देश है। बारिश के आते ही किसान झूमने लगते हैं, क्योंकि अच्छी बारिश यानि अच्छी उपज। बारिश में धान के खेतों से, हवा के झोंकों में अलौकिक गंध आती है। रिमझिम करती बारिश अपने जल से, धरती मां की प्यास बुझाकर उसे उर्वर बनाती है। और धरती मां हमें धन-धान्य से भर देती है।
जल ही जीवन है। बारिश ना हो, तो संसार का अस्तित्व ही समाप्त हो जाए। हमारे देश में जल संकट मंडरा रहा है। यदि बारिश का जल संचित करके रखा जाए, तो इससे वर्ष भर के जल की आपूर्ति हो सकती है। सूखे का सामना भी नहीं करना पड़ेगा ।रिमझिम व झमाझम बरसती बारिश और बादल हमें बहुत कुछ देते हैं। बस हमें उनका दान संभालने की योग्यता अर्जित करनी होगी।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp

डॉ. सुषमा श्रीराव

Next Post

जनसंख्या वृद्धि एक हाइड्रोजन बम

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0