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भारतीय रेल का एवरेस्ट: चिनाब पुल

by सरोज त्रिपाठी
in अगस्त २०१७, सामाजिक
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शिवालिक की पहाड़ियों के बीच चिनाब नदी पर बन रहा नया पुल ऊंचाई, डिजाइन और भारतीय इंजीनियरिंग कारीगरी का नायाब नमूना होगा, जिसकी मिसाल सदियों तक दुनिया भर में दी जाएगी। यह एफिल टॉवर और कुतुब मीनार से भी ऊंचा होगा।

भारतीय रेलवे जल्द ही दुनिया में एक नया इतिहास रचने जा रहा है। जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में शिवालिक की ऊंची पहाड़ियों के बीच बहने वाली चिनाब नदी पर भारतीय रेलवे दुनिया का सबसे ऊंचा रेल पुल बना रहा है। इस नदी को अंग्रेजी स्पेलिंग के कारण चेनाब कहा जाता है। कुछ भारतीय हिस्सों में इसे चंद्रभागा भी कहते हैं। इस नदी पर बन रहा रेल पुल दुनिया भर में अपनी वास्तु और अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर फ्रांस की राजधानी पेरिस में बने एफिल टॉवर से भी ३५ मीटर ऊंचा होगा। इतना ही नहीं यह पुल दिल्ली के कुतुब मीनार से करीब ५ गुना ऊंचा होगा। रेलवे के मुताबिक चिनाब नदी पर बन रहे इस पुल की ऊंचाई ३५९ मीटर होगी। ये पुल १३१५ मीटर लंबा होगा और इसकी चौड़ाई १३.५ मीटर होगी। इस बेजोड़ पुल को बनाने में २५ हजार मीट्रिक टन स्टील का इस्तेमाल होगा। रेलवे के तमाम अफसरों और सैकड़ों मजदूर दिन-रात इस पुल को बनाने में जुटे हैं। रेलवे के मुताबिक फिलहाल इस पुल का काम ७० फीसदी पूरा हो चुका है और उम्मीद जताई जा रही है कि दिसंबर २०१८ तक यह पुल पूरी तरह बन कर तैयार हो जाएगा। इस पुल को बनाने में करीब ११९८ करोड़ रुपए खर्च होंगे। शिवालिक की पहाड़ियों के बीच बन रहे इस पुल की ऊंचाई, इसकी डिजाइन और इसे बनाने में इस्तेमाल इंजीनियरिंग को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि तैयार होने के बाद यह पुल इंसानी कारीगरी का नायाब नमूना होगा, जिसकी मिसाल सदियों तक दुनिया भर में दी जाएगी।

उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेल लिंक परियोजना

चिनाब नदी पर बन रहा ये पुल उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेल लिंक परियोजना का सबसे अहम हिस्सा है। ये पुल जम्मू को श्रीनगर से जोड़ेगा। इस लिहाज से इस पुल की अहमियत बहुत ज्यादा है। उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेल लिंक परियोजना को चार भागों में बांटा गया है।
पहला है उधमपुर से कटरा तक का रेल रूट, जो २५ किलोमीटर लंबा है। जुलाई २०१४ में ये रेल रूट पूरा हो चुका है और इस पर ट्रेनों की आवाजाही शुरू हो चुकी है।
दूसरा है कटरा से बनिहाल का रेलवे रूट, जो कि १११ किलोमीटर लंबा होगा। चिनाब नदी पर बन रहा सबसे ऊंचा पुल इसी रूट का हिस्सा है। रेलवे के मुताबिक यह रूट २०२१ तक पूरी तरह तैयार हो जाएगा।
तीसरा है बनिहाल से काजीगुंड का १८ किलोमीटर लंबा रास्ता जो कि जून २०१३ में बनकर तैयार हो चुका है और इस रुट पर भी ट्रेन दौड़ने लगी है।
चौथा है काजीगुंड से बारामुला का ११८ किलोमीटर का हिस्सा। ये रूट भी २००९ में ही पूरा हो चुका है।

चिनाब पुल की खासियत

चिनाब पर बन रहे इस पुल का निर्माण भारतीय रेलवे की एक इकाई कोंकण रेल कॉर्पोरेशन कर रहा है। स्टील से बन रहे इस पुल की डिजाइनिंग और निर्माण के लिए दुनिया के बेहतरीन पुल विशेषज्ञों से सलाह-मशवरा किया गया और उनकी मदद ली गई। चिनाब नदी का यह इलाका दुर्गम पहाडियों के बीच का है। आड़ी-तिरछी पहाड़ियों के बीच पुल का निर्माण हमेशा से एक बड़ी चुनौती रहा है। कश्मीर घाटी के मौसम ने भी इस पुल के निर्माण में कम चुनौतियां नहीं खड़ी कीं। बर्फबारी और सर्द हवाओं ने इस पुल को बनाने में जुटे अफसरों और मजदूरों को नाको चने चबवा दिए। यही वजह है कि इस पुल को बनाने के लिए भारतीय रेलवे को फिनलैंड, जर्मनी और डेनमार्क जैसे देशों के पुल निर्माण विशेषज्ञों की मदद लेनी पड़ी। पूरे इलाके के गहन सर्वे और जानकारों से सलाह-मशवरे के बाद इस पुल का अंतिम डिजाइन तैयार हुआ। चिनाब पुल को कुछ इस तरह से डिजाइन किया गया है कि २६६ किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से बहने वाली तेज हवाएं भी इसका बाल तक बांका नहीं कर सकेंगी। पुल में हवा की तेज गति को भांपने वाले सेंसर भी लगे है, जो किसी भी आपात स्थिति में खुद-ब-खुद ट्रेन का परिचालन बंद कर देंगे। शून्य से २० डिग्री कम तापमान हो या तपती गर्मी में ४५ डिग्री तक का तापमान, इस पुल में लगे स्टील को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकते। इतना ही नहीं पुल को बनाते वक्त भूकंप के खतरे को भी ध्यान में रखा गया। भूकंप आने के लिहाज से देश को पांच हिस्सों में बांटा गया है और चिनाब नदी का यह इलाका भूंकप आने के लिहाज से सीस्मिक जोन-४ में आता है। लेकिन इस रेल पुल को बनाने के लिए सीस्मिक जोन-५ के आधार पर टेस्ट किए गए हैं। मतलब यह कि अगर रिक्टर पैमाने पर ८ की तीव्रता का भूकंप आया तो भी इस पुल को कोई नुकसान नहीं होगा। सबसे खास बात यह कि इस पुल की पुताई के लिए जिस पेंट का इस्तेमाल किया गया है वह कोई साधारण पेंट नहीं है। रेलवे के मुताबिक इस पेंट की औसत उम्र १५ से २० साल है। इस पेंट को रिसर्च और डिजाइनिंग संस्था RDSO ने लंबे शोध के बाद तैयार किया है। इस पेंट पर धूप, बारिश और बर्फ का असर नहीं के बराबर होता है।

कश्मीर में बन रहा यह बेमिसाल पुल जम्मू और श्रीनगर को जोड़ेगा। ऐसे में इस पुल की अहमियत बहुत ज्यादा होगी, लिहाजा यह रेल पुल आंतकियों के निशाने पर भी हो सकता है। इस खतरे को ध्यान में रखते हुए रेलवे ने इस पुल को ब्लास्ट प्रूफ बनाया है। रेलवे का दावा है कि इस पुल पर ४० टन विस्फोटक के दबाव से हमला किया जाए तो भी इसको कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। रेलवे अपने इस पुल की उम्र १२० साल बता रहा है, लेकिन अगर इसका रखरखाव सही से किया गया तो ये पुल सालों-साल काम आता रहेगा।

चिनाब पुल के फायदे

रेलवे के इस पुल के बन जाने से जम्मू-कश्मीर देश के बाकी हिस्सों से हर मौसम में १२ महीने जुड़ा रह पाएग, क्योंकि सर्दियों में भारी बर्फबारी की वजह से अक्सर सड़क मार्ग बंद हो जाता है और श्रीनगर समेत कश्मीर के कई इलाके देश से कट जाते हैं। साथ ही चिनाब पुल के बनने के बाद जम्मू से श्रीनगर आने-जाने में ४ से ५ घंटे का वक्त कम लगेगा। ऐसे में इस पुल के बन जाने से कश्मीर के पर्यटन को तो बढ़ावा मिलेगा ही, वहां रह रहे लोगों की आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी। रेलवे ने इस परियोजना के लिए जिन लोगों की जमीन ७५ फीसदी से ज्यादा अधिग्रहीत की है, उनके परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी गई है। यही नहीं, परियोजना में काम करने वाले लोगों को चिनाब तक पहुंचाने के लिए रेलवे ने २०० किलोमीटर लंबी सड़क भी तैयार की है, जो कि इस रेल लाइन के शुरू होने के बाद स्थानीय लोगों के आने-जाने के काम भी आएगी।

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