हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
आर्य समाज का विस्तार

आर्य समाज का विस्तार

by हिंदी विवेक
in आर्य समाज विचार दर्शन विशेषांक २०१९, सामाजिक
0

यद्यपि आर्य समाज का प्रादुर्भाव भारत में और हिन्दू समाज में हुआ, जहां इसके लाखों अनुयायी और प्रशंसक हैं, तथापि इसकी प्रगति भारत तक ही सीमित नहीं रही। वह समुद्र‘ पार करके विदेशों तक विस्तृत हुई। वैदिक आदर्शों और शिक्षाओं के अनुसार महर्षि दयानंद का मिशन सम्पूर्ण जगत के लिए अभिप्रेत था और है। उनकी द़ृष्टि में संसार भरके प्राणी और विविध मत-मतांतरों के अनुयायी समान थे जो एक ही प्रभु की संतान हैं। जिस प्रकार सूर्य, चंद्र आदि सभी के लिए अभिप्रेत है उसी प्रकार वेद और वेद ज्ञान अभिप्रेत है।

आर्य समाज की सेवाएं

आर्य समाज की मानव समाज, विशेषत: हिन्दू समाज के प्रति की गई सेवाएं सर्वविदित हैं। आर्य समाज ने गौरवपूर्ण अतीत एवं उसकी विशद मूल्यवान पैतृक सम्पदा से देशवासियों को परिचित करके उनके प्रति प्रेम और आदर जागृत करके, स्त्री-पुरुषों सभी के लिए वेद के द्वार खोल कर जो अनेक व्यक्तियों मु‘यत: स्त्रियों और शूद्रों के लिए बंद थे, धार्मिक और सामाजिक सुधार करके जाति का अपरिमित उपकार किया है। प्राचीन गुरुकुलों के आदर्श पर राष्ट-ीय शिक्षा प‘णाली का, वयस्क, अंतरजातीय एवं विधवा विवाहों का प्रचलन, अमेल, वृद्ध एवं बहु विवाह का वर्जन, अज्ञान एवं अंधविश्वास के प्रभावाधीन धर्म के नाम पर अधर्म एवं स्वार्थी तथा पतित लोगों के द्वारा धर्म के कर्म पर अधर्म और उसे बदनाम करने की प्रकि‘या पर कुठाराघात, उत्कृष्ट साहित्य का प‘णन एवं प्रकाशन आदि-आदि उसकी धार्मिक एवं समाज सुधार विषयक प्रगतियों की एक छोटी सी तालिका कही जा सकती है।

अस्पृश्यता और जन्मना जातपात के उन्मूलन, पाश्चात्यता तथा ईसाइयत के दुष्प्रभाव और निरक्षरता निवारणार्थ आर्य समाज के वातावरण से ओतप्रोत लोक शिक्षा का प्रसार, दलितोद्वार, अकाल, बाढ़, महामारी, भूकंप आदि आपत्तियों से पीड़ित जन समाज की सेवा, सहायता, रक्षा आदि की दिशा में आर्य समाज ने जो प्रयास किया है उसका संसार व्यापी आदर हुआ है। आर्य समाज की शिक्षा संस्थाओं ’ें 60 लाख से अधिक लड़के-लड़कियां शिक्षा पा रहे हैं। अनाथों, असहाय एवं पीड़ित देवियों की सहायता और सुरक्षा के निमित्त अनाथालयों, विधवाश्रमों, वनिताश्रमों, गुरुकुलों, स्कूलों, कॉलेजों आदि संस्थाओं का जाल बिछा हुआ है। जिनमें गुरुकुल कांगड़ी, डी.ए.वी. कॉलेज लाहौर (अम्बाला) गुरूकुल वृंदावन, फिरोजपुर अनाथालय, (स्वामी दयानंद द्वारा स्थापित) कन्या महाविद्यालय जालंधर सबसे पुराने हैं। दलित एवं अस्पृश्य कहे जाने वाले लोगों के बच्चों को गुरूकुलों में शिक्षा देकर और खानपान वस्त्रादि में समानता का व्यवहार रख कर उन्हें यह अनुभूति न हो कि वे दलित ा अस्पृश्य वर्ग से सम्बद्ध थे। उन्होंने प्रांतीय भावना के उन्मूलन में भी बड़ा योग दिया है। आर्य समाज की सेवाओं की देश-विदेश के सुप्रसिद्ध तत्वेत्ताओं, इतिहासकारों, साहित्यकारों, पत्रकारों एवं नेताओं ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की है।

आर्य समाज व राष्ट-ीय जागरण

स्वामी दयानंद सरस्वती ही 19वीं शती में पहले ’हानुभाव थे जिन्होंने ‘स्वराज्य और स्वदेशी’ का नारा दिया था। महर्षि ने धार्मिक एवं समाज सुधार के कार्य तथा देशप्रेम की भावना जगा कर स्वराज्य प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त किया था। फ‘ांस के सुप्रसिद्ध मनीषी रोमा रोला ने महर्षि दयानंद को राष्ट्री  जागरण का सूत्रधार बताया है। अन्य चोटी के देशवासियों ने भी उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कह कर उनकी प्रशंसा की है। कांग‘ेस के इतिहासकार श्री पट्टाभिसीतारमैया ने ’हात्’ा गांधी को राष्ट-पिता तथा महर्षि दयानंद को राष्ट-पितामह की पदवी से सम्बोधित करके उनके कार्य का अभिनंदन किया है। महर्षि दयानंद देश के राजनीतिक एकीकरण के लिए विदेशी शासन का अंत चाहते थे। उन्होंने अपने अमर ग‘ंथ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में अपनी यह आकांक्षा स्पष्टतया प्रकट की है (समु-8)।

भारत के स्वतंत्रता संग‘ाम में जेल जाने और बलिदान करने वालों में आर्य जनों की सं‘या सर्वाधिक थी। आर्य समाज ने देश को जितने नेता और देशप्रेमी क‘ांतिकारी दिए उतने अन्य किसी समाज ने नहीं दिए। श्री लाला लाजपत राय, स्वामी श्रद्धानंद जी महाराज, भाई परमानंद जी, सरदार अजितसिंह जी, सरदार भगत सिंह के चाचा श्री मदनलाल ढींगरा, श्री रामप्रसाद बिस्मिल, श्री गेंदालाल जी, ठा. रोशन सिंह जी, सरदार भगत सिंह, श्री श्यामजी कृष्ण वर्मा इस श्रृंखला की कतिपय देदीप्यमान कड़ियां हैं। आर्य समाज ने सत्ता प्राप्त करने की कभी इच्छा नहीं की क्योंकि उसने देशप्रेम तथा कर्तव्य भावना से प्रेरित होकर ही स्वतंत्रता संघर्ष में योग दिया था। भारत के संविधान में उन आदर्शों एवं कार्यक‘म को स्थान दिया गया है जिनका आर्य समाज प्रचार करता है और जिन्हें आश्रय देता रहा है- यथा राष्ट-भाषा हिंदी, शराब व गोहत्या बंदी आदि। क्या यह बात आर्य समाज के कार्यक‘म की विशिष्टता और उसकी विजय की द्योतक नहीं है? इस समय आर्य समाज स्वराज्य को सुराज्य में बदलने के लिए प्रयत्नशील है। हिंदी को राष्ट-संघ की स्वीकृत भाषाओं में स्थान दिलाए जाने के लिए आर्य समाज ने ही सबसे पहले सामूहिक एवं संगठित रूप में आवाज उठाई है (देखें सार्वदेशिक आर्य महासम्मेलन व मॉरिशस का प्रस्ताव)।

विदेश प्रचार

आर्य समाज की यह मान्यता है और सही मान्यता है कि वैदिक धर्म के अनुायियों के पास समस्त मानव जाति में उत्थान और कल्याण के लिए विशेष संदेश है और इसका अधिकाधिक प्रचार करना उसका दायित्व है। इस भावना से प्रेरित होकर और अपने उच्च एवं श्रेष्ठ मिशन में आस्था रख कर आर्य जन न केवक्ष भारत में ही अपितु भारत से बाहर भी जन कल्याण का कार्य कर रहे हैं। इस प्रकार कार्य समाज आंदोलन अपने विश्व स्वरूप का परिचय दे रहा है।

पूर्वी अफ‘ीका, दक्षिण अफ‘ीका, दक्षिण अमेरिका, ’ॉरिशस, फिजी, गुयाना, ब‘ह्मदेश, यूनाइटेड किंगड़म, थाईंलैंड़, मलेशिया आदि में आर्य समाज की जड़ें जम गई हैं और वहां बड़ा ठोस कार्य हो रहा है। वहां देश की भांति आर्य प्रतिनिधि सभाओं, समाजों, स्कूलों, कॉलेजों, अनाथ आश्रमों, विधवाश्र’ों, वनिताश्रमों आदि का जाल बिछा हुआ है। श्री महात्मा आनंद स्वामी जी जापान में भी प्रचार कार्य कर आए हैं। आर्य समाज का अमेरिका तथा यूरोप के अन्यान्य देशों में भी विस्तृत किए जाने की योजना है। अवश्य अमेरिका के विश्वविद्यालयों के छात्र आर्य समाज विषय पर शोधग‘ंथ लिखने लगे हैं। 2-3 छात्रों के इस प्रकार के ग‘ंथ छप चुके हैं। यह प्रारंभ शुभ हैं। सार्वदेशिक सभा ने इन विद्वानों का मार्ग दर्शन किया है।

आर्य समाज परीक्षणों में

आर्य समाज का मार्ग, जिसका आधार सत्य है, सुगम और सरल नहीं रहा है। अंग‘ेजी शासन ने एक समय मु‘यत: ईसाई मिशन एवं सम्प्रदायवादियों के प्रत्यक्ष ा अप्रत्यक्ष कुचक‘ के कारण, जो जगह-जगह शास्त्रार्थों में हार चुके थे और जिनके स्वार्थों की पूर्ति में आर्य समाज का प्रचार तथा कार्य खटकता रहा था, आर्य समाज को राजद्रोही संस्था मान कर इसके अस्तित्व को मिटाने की असफल चेष्टा की थी। इसी कुचक के फलस्वरूप पटियाला के केस का नाटक रचा गया था और चोटी के कई आर्यों को गिरफ्तार करके उन पर मुकदमा चलाया गया था परन्तु आरोप सिद्ध न होने पर केस वापस ले लिया गया था। गुरुकुल कांगड़ी को राजद्रोही संस्था मान कर उसके अस्तित्व को मिटाने की चेष्टा की गई। कहा गया कि यह राजद्रोहियों का गढ़ है और राजद्रोही उत्पन्न करने की फैक्टरी है। बिजनौर जिले के कलेक्टर, उत्तर प्रदेश के गवर्नर और बाद में रेम्जे मेकडानल्ड, जो बाद में बि‘टेन के प्रधान मंत्री बने थे, जांच-पड़ताल के लिए गुरुकुल गए और आरोपों में उन्होंने कोई सार न पाया। सत्य की विजय हुई। 1918 में धौलपुर रियासत में अपने स्वत्व की (अमर शहीद स्व. श्रद्धानंद जी के नेतृत्व में) 1939 में हैदराबाद राज्य में अपने धार्मिक अधिकारों तथा आर्य समाज के अस्तित्व की, सिंध में सत्यार्थ प्रकाश की (दोनों श्री महात्मा नारायण स्वामी जी के नेतृत्व में) पंजाब में हिंदी रक्षा के लिए आर्य समाज को भीषण परीक्षणों में से गुजरना पड़ा और विजयश्री के साथ लौटा। (लोहारू, पानीपत, मुरादाबाद आदि में अनेक स्थानों पर नगर कीर्तन के अपने अधिकार की रक्षा के लिए प्रशासनों के साथ संघर्ष भी करना पड़ा।)

आर्य समाज को नींव पक्के करने वाले आर्यजन

आर्य समाज ने धर्म प्रचारार्थ दलितोद्धार एवं शुद्धि के कार्यार्थ, संस्कृति की रक्षार्थ जितने बलिदान दिए उतने अन्य किसी समाज ने नहीं दिए हैं। आर्य समाज के शहीदों की सं‘या तो बेशुमार है।

आर्य समाज की जड़ को पक्की करने के लिए आर्यजनों को बड़े कष्ट सहन करने पड़े हैं। जात की बिरादरियों ने सामाजिक बहिष्कार किया, घरवालों ने साथ छोड़ा, उनके बच्चों तक को जहर देकर मरवाया गया। सरकारी कर्मचारियों को आर्य समाज से सम्बद्ध होने के संदेह के कारण नौकरियों तक से हाथ धोना पड़ा, उनकी पदोन्नतियां रोकी गईं यद्यपि उनकी ईमानदारी एवं कार्यकुशलता से अधिकारीगण प्रभावित थे। आज के युग में आर्य समाज का काम करना और उससे सम्बंध रखना सुगम है; परन्तु 80,90 वर्ष पूर्व की परिस्थिति के प्रकाश में ऐसा करना सरल न था। महर्षि दयानंद की भावना उन वीरों में काम करती थी इसीलिए उन्होंने उन पर विजय पाई। वही भावना उनमें उत्साह, आशा और कर्मठता का संचार करती थी। महर्षि दयानंद ने अपने निर्वाण से कुछ ही समय पूर्व आर्य समाज मेरठ के उत्सव ’ें भाषण देते हुए एक भविष्यवाणी की थी जिसने आर्यजनों में त्याग तथा उत्साह की भावना भरने में जादू का काम किया था। उन्होंने कहा था:-

“आप में से अनेक सज्जन उत्पन्न होंगे जो उत्तमोत्तम कार्य कर दिखाएंगे। प्राणपण से अपने पवित्र प्रणों की पालना करेंगे। आर्य समाज का बड़ा विस्तार होगा। कालांतर में ये वाटिकाएं हरीभरी, फूलीफली, लहलहाती दिखाई देगी। ईश्वर कृपा से यह सब कुछ होगा परन्तु मैं न देख सकूंगा।”

आर्यजनों की यह भावना डी.ए.वी. आंदोलन में भी विशिष्ट रूप में दिख पड़ी, जिसके प्रस्तोता महात्मा हंसराज जी थे। उन्होंने तथा उनके अनेक सहयोगियों एवं शिष्यों ने नाममात्र का वेतन लेकर इस आंदोलन में जान ड़ाली। डी.ए.वी. कॉलेज लाहौर पंजाब की प्रथम नम्बर की और देश की दूसरे नम्बर की शिक्षा संस्था मानी जाती थी। आर्य समाज द्वारा प्रचारित वैदिक धर्म की शिक्षाओं का और उसमें निहित धार्मिक शैली का, जिसमें मनुष्यों सहित पशु-पक्षी आदि सभी प्राणियों के लिए स्थान है और पृथ्वी को सुंदर बनाए रखने की प्रेरणा है, संसार व्यापी प्रचार हो, प्रसार हो यही हमारी कामना है।

 

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp

हिंदी विवेक

Next Post
स्थापना तथा उपलब्धियां

स्थापना तथा उपलब्धियां

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

- Select Visibility -

    No Result
    View All Result
    • परिचय
    • संपादकीय
    • पूर्वांक
    • ग्रंथ
    • पुस्तक
    • संघ
    • देश-विदेश
    • पर्यावरण
    • संपर्क
    • पंजीकरण

    © 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

    0