राजनीतिक शुचिता के पुरोधा पं. दीनदयाल उपाध्याय
पं. दीनदयाल के लिए राजनीतिक अस्तित्व से अधिक राजनीतिक शुचिता और अस्मिता की चिंता जीवन पर्यन्त रही और उन्होंने सीना ठोंककर उसे सफलीभूत किया, क्योंकि उनके लिए सिद्धांत अमूल्य थे, राजनीति उनके लिए सफलता-विफलता का दर्पण नहीं थी| पंडितजी के इस जन्मशती वर्ष पर प्रस्तुत यह आलेख-