विस्थापन, विस्थापन, विस्थापन!

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जरूरी है कि विस्थापन की पीड़ा को समझा जाए। विडंबना यह है कि अपने विस्थापन की पीड़ा को तो लोग समझते हैं, लेकिन दूसरों के विस्थापन के लिए अंधे, गूंगे और बहरे बन जाते हैं। नौकरी में तबादले आम बात है। एक शहर से दूसरे शहर की बात तो दूर, एक ही शहर में एक कार्या

भगवा…

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भगवा हमारी जातीय स्मृति में श्रद्धा, वैराग्य, पवित्रता और शुचिता का प्रतीक बनकर बैठा है। स्थायी रूप से भगवा काल की गति का साक्षी है। जो कोई भी भगवा धारण कर हमारे सामने खड़ा है, उसके सामने हम नतमस्तक होते हैं। भगवा सब का है। भगवा पंथ निरपेक्ष! जाति निरपेक्ष! भगवा मांगे सबकी खैर, भगवा निरबैर! भगवा नहीं मानता छुआछूत, सब देवदूत!

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