साहित्य प्रागंण में थिरकती गंगा

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सबके पाप धोती, पोंछती मां गंगा आज स्वयं मलिनाम्बरा हो गई है। आवश्यकता है इसे पुन: श्वेताम्बरा करने की। यदि उसे स्वच्छ करने में अब भी हम प्रमादवश असफल रहे, तो कवियों की वह टोली, जो गंगा के किनारे चाण्डाल या कौवा तक बनकर भी रहने की इच्छुक है, हमें क्षमा नहीं करेगी।

ज्योतिषां ज्योति :

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दीपमालिका प्रकाश का पर्व है। घर-आंगन, गली और चौबारा-सर्वत्र दिये जलाकर आलोक के प्रति आस्था व्यक्त करने का यह पावन प्रसंग प्रतिवर्ष हमारे सम्मुख आता है और ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ (हे प्रभु! हमें अन्धकार से उजाले की ओर ले चलो -) की प्रार्थना अनायास मुखरित कर जाता है।

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