साहित्य प्रागंण में थिरकती गंगा
सबके पाप धोती, पोंछती मां गंगा आज स्वयं मलिनाम्बरा हो गई है। आवश्यकता है इसे पुन: श्वेताम्बरा करने की। यदि उसे स्वच्छ करने में अब भी हम प्रमादवश असफल रहे, तो कवियों की वह टोली, जो गंगा के किनारे चाण्डाल या कौवा तक बनकर भी रहने की इच्छुक है, हमें क्षमा नहीं करेगी।