जड़ों की तलाश में देश

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देश में जो परिवर्तन हो रहा है वह केवल सत्ता परिवर्तन नहीं है। एक प्रधान मंत्री गया एवं दूसरा आया, या अखिलेश गए एवं योगी आए ऐसा यह परिवर्तन नहीं है। यह परिवर्तन भारत का अपनी जड़ों की ओर लौटने का परिवर्तन है। ....अब सही अर्थों में राजनीति के स्वदेशीकरण का

एशिया महाशक्तियों का अखाड़ा

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सीरिया का गृहयुद्ध बरबादी की ओर है। अमेरिका और रूस जैसी महाशक्तियों का वह अब रणांगण बन गया है। दोनों ने अपने वैश्विक दांवों के लिए सीरिया को शतरंज बना दिया है। उधर, एशिया में उत्तर कोरिया के रूप में एक विध्वंसक समस्या खड़ी हो रही है। वहां चीन आड़े आ रहा ह

मजदूर आंदोलन में बदलाव

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हमारे देश के मजदूर आंदोलन में थकावट आ गई है। १९९० के दशक में भारत द्वारा स्वीकारी गई नई आर्थिक नीति का स्वाभाविक परिणाम मजदूर आंदोलन को आज की स्थिति को दर्शाता है। नई आर्थिक नीति में खुली बाजार अथर्र्व्यवस्था इ. को महत्व प्राप्त है। बाजार से सरकार की दख

मर्यादा भंग न हो…!

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सम्पूर्ण देश में अप्रैल के पहले सप्ताह में एक अलग ही मुद्दे पर गहमागहमी थी| इस गर्मागर्म बहस का मुद्दा था महामार्गों पर स्थित शराब की दुकानें| उच्चतम न्यायालय के फैसले के कारण इन दुकानों को अब ५०० मीटर के दायरे से आगे ले जाना होगा|

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