एशिया महाशक्तियों का अखाड़ा

सीरिया का गृहयुद्ध बरबादी की ओर है। अमेरिका और रूस जैसी महाशक्तियों का वह अब रणांगण बन गया है। दोनों ने अपने वैश्विक दांवों के लिए सीरिया को शतरंज बना दिया है। उधर, एशिया में उत्तर कोरिया के रूप में एक विध्वंसक समस्या खड़ी हो रही है। वहां चीन आड़े आ रहा है। इस तरह दुनिया अब महाशक्तियों के लिए जोरआजमाइश का मैदान बनती दिखाई दे रही है।

सीरिया सरकार द्वारा अपने ही नागरिकों पर किए गए रासायनिक हमलों और उसके भीषण परिणामों को सोशल मीडिया, समाचार चैनलों पर सारी दुनिया ने देखा। इन रासायनिक हमलों में मरने वालों की संख्या सौ से अधिक है। उनमें महिलाएं एवं बच्चे अधिक संख्या में हैं। इस घटना के बाद सीरिया के एक फौजी हवाईअड्डे पर अमेरिका ने हमला किया। अमेरिका का कहना है कि यह हमला इसलिए किया गया ताकि सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद यह जान लें कि अपने ही लोगों पर रासायनिक अस्त्रों से हमला करना कितना अनुचित है। हमने केवल उसी हवाईअड्डे पर हमला किया जहां से असद के लड़ाकू विमानों ने रासायनिक हथियार लेकर सीरिया के इडलिब प्रांत के खान शेखून पर उड़ानें भरी थीं। लेकिन उल्लेखनीय यह है कि रूस व सीरिया के विमान हवाई हमला करने के लिए जिस रनवे का इस्तेमाल करते हैं उसी को अमेरिका ने बरबाद कर दिया।

दूसरी ओर, रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल को लेकर रूस ने सीरिया का समर्थन किया है। सीरियाई लड़ाकू विमानों द्वारा उग्रवादियों के हथियारों के गोदाम पर निशाना साधने के बाद यह घटना हुई। रूस का दावा है कि आतंकवादियों के पास ये रासायनिक हथियार मौजूद थे। लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सीरिया पर हमला करने के आदेश से अमेरिका और रूस के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई है। यह संघर्ष पूरी दुनिया को भीषण संकट में डालने की स्थिति में पहुंच गया है। सीरिया की युद्धभूमि अब आंतरिक कलह तक सीमित नहीं रही है। वह अब दुनिया की रणभूमि होते दिखाई दे रही है। सन २०११ में ‘अरब जनांदोलन’ के रूप में यह आंदोलन आरंभ हुआ था। बशर अल असद को सत्ता से हटाना इस आंदोलन का मूल उद्देश्य था। सीरिया की विकट आर्थिक स्थिति और मुक्तता के अभाव के कारण सीरियाई नागरिक त्रस्त थे। इस आंदोलन में एक १३ वर्षीय किशोर बलि चढ़ा और एक बड़े आंदोलन की चिंगारी भभकी। सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद ने बलप्रयोग कर सैकड़ों आंदोलनकारी नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद फौज से एक गुट बाहर हो गया। उनकी मदद के लिए इस्लामिक स्टेट था ही। बशर अल असद के विरोधी विद्रोही गुटों को अमेरिका का समर्थन प्राप्त था। आज दुनिया में आतंकवाद का नंगा नाच करने वाले ‘इसिस’ को सीरिया में अमेरिका ने समर्थन देकर बड़ा किया है। असद अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए उठापटक कर रहे हैं। उन्हें रूस व चीन का समर्थन प्राप्त है।

इस गृहयुद्ध के कारण सीरिया की अर्थव्यवस्था पूरी तरह चौपट हो चुकी है। मध्य पूर्व के अन्य देशों में जिस तरह वहां के स्थानीय नेतृत्व के विरुद्ध बगावत हुई और वह सफल भी रही, उसी तरह वह सीरिया में सफल होगी ऐसा वहां के बागियों को लगता था। अमेरिका की सहायता से असद को सत्ता से उतार देने की बागियों को उम्मीद थी। लेकिन वह सफल होते नहीं दिख रही है। परिणाम यह है कि अपनी सत्ता बचाए रखने के लिए बागियों के खिलाफ असद ने जिस दमनतंत्र का इस्तेमाल किया उससे सीरिया में अराजक पैदा हो गया है। अपनी जान बचाने और अपना घरबार, अपनी धनसम्पदा छोड़ कर सीरियाई नागरिक पड़ोसी देशों में पनाह ले रहे हैं। इन शरणार्थियों का पुनर्वसन यूरोप व एशिया के अनेक राष्ट्रों के लिए गंभीर समस्या बन चुका है।

सीरिया के आंतरिक संघर्ष का अमेरिका व रूस लाभ उठा रहे हैं। अपनी वैश्विक राजनीति के दांव दोनों प्रतिस्पर्धी राष्ट्र सीरिया के शतरंज पर चल रहे हैं। इसमें सीरिया के निर्दोष नागरिक, उनकी समस्याओं की ओर किसी का ध्यान नहीं है। सीरिया का गृहकलह तथा अमेरिका-रूस की ताकत आजमाने के खेल में भौगोलिक रूप से सम्पन्न, कृषिप्रधान, तेलसम्पन्न सीरिया स्मशान में तब्दील हो गया है। तेल भंडार और खनिज सम्पदा के कारण वहां की समस्या में हस्तक्षेप कर सत्ता अपने कब्जे में रखने के लिए अमेरिका-रूस के स्वार्थी प्रयत्न चल रहे हैं। सीरिया में शिया-सुन्नी में संघर्ष को बढ़ाने में इन बाहरी राष्ट्रों का बड़ा योगदान है। शिया-सुन्नी संघर्ष के कारण आम लोगों पर अत्याचार बढ़ गए हैं। शिया-सुन्नी में झगड़ा अलगाववादियों का हित-साधन कर रहा है। इसी कारण सीरिया में अपनी जड़ें विस्तारित करने का उन्हें अवसर मिल गया। बशर अल असद को सत्ता से हटाने के लिए हुआ आंदोलन ‘इसिस’ जैसे धार्मिक संगठनों के हाथ में चला गया है। उनके खात्मे के लिए बशर अल असद द्वारा उठाए गए कदमों से आतंकवादियों की अपेक्षा आम नागरिक ही अधिक बलि चढ़ रहे हैं। यूनानी संस्कृति की भूमि सीरिया अब स्मशान भूमि के रूप में पहचानी जा रही है।

सीरिया के संघर्ष में अमेरिका और रूस प्रत्यक्ष रूप से उतरे हैं इसलिए उसे अब महासत्ताओं के संघर्ष का रूप मिल गया है। सीरिया का संघर्ष मूलतया सत्ता परिवर्तन के लिए है। बशर अल असद को सत्ता से हटाने के लिए सऊदी अरब, कतर जैसे अरब देश, कुछ पश्चिम यूरोपीय देश, अमेरिका मैदान में उतरे हैं, जबकि उनकी सत्ता बनाए रखने के लिए रूस, चीन, इराक प्रयास में हैं। इन सब में इन बड़े राष्ट्रों ने अपने हित साध ही लिए हैं। भारतसमेत अन्य देशों को रूस ने अत्याधुनिक सुपरसोनिक विमानों की बिक्री की है। इन लड़ाकू विमानों का परीक्षण रूस ने सीरिया के रणांगण में किया है। सीरिया का भविष्य तय करने का अधिकार केवल सीरियाई नागरिकों को है। वह इन बड़े राष्ट्रों को किसने दिया? अमेरिका ने रासायनिक हथियारों के जखीरे को लेकर इराक में जो किया, वही सीरिया में हमले कर किया जा रहा है। इराक का भविष्य बचाने का मुखौटा धारण कर अमेरिका ने इस तेलसम्पन्न देश को नेस्तनाबूद कर दिया। अब भविष्य सुधारने का दिखावा कर अमेरिका-रूससमेत बड़े देश सीरिया को बरबाद कर रहे हैं।

आश्चर्य की बात यह है कि हाल के हमले की अपेक्षा कई गुना बड़ा रासायनिक हमला सीरियाई सरकार ने आंदोलन करने वाले अपने ही सुन्नी नागरिकों पर २०१३ में किया था। उस समय विपक्ष की राजनीति करने वाले डोनाल्ड ट्रम्प ने राष्ट्रपति बराक ओबामा के विरोध में अभियान चलाया था। उस समय ट्रम्प कहते थे कि ‘अमेरिकी संसद की अनुमति के बिना सीरिया के खिलाफ कोई कदन उठाने के प्रयास न किए जाए।’ यही क्यों, ट्रम्प की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी घोषित होने के बाद भी उन्होंने निरंतर यही कहा कि सीरिया पर हमले न किए जाएं। लेकिन सत्ता में न होते हुए और सत्ता में रहते समय अपनी नीतियां समान रखने वाला राजनेता दुर्लभ होता है। ट्रम्प ने अमेरिका राष्ट्रपति बनने के बाद सीरिया पर हमला कर यह साबित कर दिया कि वे किसी भी तरह का अंतरराष्ट्रीय निर्णय करते समय हिचकेंगे नहीं। ट्रम्प ने दुनिया को यह संदेश भी दिया है कि मेरे नेतृत्व वाली अमेरिका के खिलाफ जाने का कोई प्रयास न करें और हम तलवार को केवल धार ही लगाते नहीं बैठते, वह चलाते भी हैं।

अमेरिका के सीरिया पर हमले की उत्तर कोरिया ने निंदा की है। इसके बाद अमेरिका ने अपनी युद्ध नौकाएं उत्तर कोरिया की ओर रवाना कर दी। इस बीच उत्तर कोरिया ने अपना शक्ति प्रदर्शन करने वाली सेना की परेड के दौरान अमेरिका को बेबाक तरीके से जवाब दिया कि, ‘‘तुम हम पर हमला करो इसके पहले हम तुम पर हमला करने की ताकत रखते है।’’ पिछले कुछ दिनों में उत्तर कोरिया ने उपखंडीय प्रक्षेपास्त्रों का परीक्षण किया है, जो सफल नहीं रहा। यह भी आशंका है कि उत्तर कोरिया ने परमाणु हथियार विकसित किया है। वह प्रक्षेपास्त्रों में इस बार भले ही असफल रहा हो, लेकिन भविष्य में सफल होने पर अमेरिका, दक्षिण कोरिया, जापान के लिए वह बड़ी चिंता का विषय होगा। किम जोंग उन नामक ३३ वर्ष का युवा वहां का तानाशाह है। लेकिन हिटलर भी शर्मसार हो ऐसी उसकी विचारशैली है। अपने अत्यंत गरीब देश में दक्षिण कोरिया विरोधी द्वेषपूर्ण माहौल बनाए रखने का उसका निरंतर प्रयास होता है। इस रहस्यमय उत्तर कोरिया और उसके तानाशाह किम जोंग उन से दुनिया को रासायनिक हथियारों का खतरा है। इसी कारण उत्तर कोरिया अमेरिका के निशाने पर है, जबकि चीन उत्तर कोरिया का समर्थन कर रहा है।

सीरिया में युद्ध अपराध जोरों पर है, लेकिन उन्हें रोकने में विश्व की इन दो महासत्ताओं को किंचित भी यश नहीं मिला है। पिछले छह साल के अंतराल में सीरिया की समस्या का कोई समाधान खोजा नहीं गया है। अमेरिका बशर अल असद के खिलाफ खड़ा हो और रूस उसका समर्थन करता रहे यह सूत्र कायम है। सीरिया की समस्या बरबादी की ओर उन्मुख है, जबकि एशिया में उत्तर कोरिया के रूप में एक नई भीषण और विनाशकारी समस्या अपनी जबान लपलपा रही है। और, डोनाल्ड ट्रम्प की नीति है कि विश्व में कोई भी अमेरिका के मार्ग में आड़े आने का प्रयत्न न करें। हम हथियारों को धार लगाते ही नहीं बैठते, उन्हें चलाते भी हैं। ट्रम्प की यह नीति स्वयं अमेरिका एवं एशिया में शांति स्थापना में कितनी सहायक होगी यह समय ही बताएगा।

पिछले पंद्रह दिनों में अमेरिका ने दो महत्वपूर्ण कार्रवाइयां करके दुनिया में खलबली मचा दी है। पहली सीरिया पर ‘मिसाइल’ से हमला और दूसरा अफगानिस्तान पर ‘मदर ऑफ ऑल बम’ से किया गया हमला। इन दोनों हमलों से अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति यह दिखाना चाहते हैं कि ‘अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में वे कोई भी निर्णय ले सकते हैं।’

दोनों हमलों का उद्देश्य भले ही वहां के आतंकवादियों का खत्मा करना हो परंतु पूरी दुनिया में इसके संबंध में संभ्रम का वातावरण है। अफगानिस्तान में आतंकवादियों पर किया गया हमला कितना सफल रहा इस पर भी प्रश्न चिन्ह है। वहां के राष्ट्रपति अशरफ गनी का तो यह कहना है कि इस बम हमले में आतंकवादियों की तुलना में सामान्य नागरिक ही अधिक मारे गए हैं। दुनिया अमेरिका की ओर इस आशंका से देख रही है कि क्या अमेरिका ने अपने ‘मदर ऑफ आल बम’ का परीक्षण करने के लिए ही यह हमला किया था? रूस ने भी कुछ महीने अपने अत्याधुनिक सुपर सोनिक विमानों का परीक्षण करने के लिए सीरिया की धरती को ही चुना था। इससे एक नई समस्या उपस्थित हो गई है कि विश्व की महाशक्तियां अपने शक्ति परीक्षण के लिए एशिया की जमीन का उपयोग करने लगी हैं।

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