श्राद्ध और पितृपक्ष का वैज्ञानिक महत्व

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इस प्रकार से देखा जाए तो पितृपक्ष और श्राद्ध में हम न केवल अपने पितरों का श्रद्धापूर्वक स्मरण कर रहे हैं, बल्कि पूरा खगोलशास्त्र भी समझ ले रहे हैं। श्रद्धा और विज्ञान का यह एक अद्भुत मेल है, जो हमारे ऋषियों द्वारा बनाया गया है। आज समाज के कई वर्ग श्राद्ध के इस वैज्ञानिक पक्ष को न जानने के कारण इसे ठीक से नहीं करते। कुछ लोग तीन दिन में और कुछ लोग चार दिन में ही सारी प्रक्रियाएं पूरी कर डालते हैं। यह न केवल अशास्त्रीय है, बल्कि हमारे पितरों के लिए अपमानजनक भी है। जिन पितरों के कारण हमारा अस्तित्व है, उनके निर्विघ्न परलोक यात्रा की हम व्यवस्था न करें, यह हमारी कृतघ्नता ही कहलाएगी।

पितरों की प्रसन्नता का महापर्व है श्राद्ध पक्ष

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       प्रतिवर्ष आश्विन कृष्ण पक्ष में पितरों की प्रसन्नता अर्थात् अपने परिवार के किसी भी उम्र के दिवंगत स्त्री-पुरुषों की आत्माओं की तप्ति हेतु श्रद्धा पूर्वक किए जाने वाले भोजनादि कर्म "श्राद्ध" कहलाते हैं। कन्या राशि के सूर्य में किए जाने वाले श्राद्धकर्म महालय पार्वण श्राद्ध कहलाते  हैं। इस बार 10 सितंबर से 25 तक सोलह दिन श्राद्ध रहेंगे। श्राद्धों में सभी शुभ कार्य वर्जित कहे गए हैं। श्राद्धों में तिथि का बढ़ना और नवरात्रि में तिथि का घटना अशुभ कारक है। गो, गंगा, सन्त, ब्राह्मण, देवताओं के प्रति सम्मान भाव रखने और दान-पुण्य करने से निश्चित ही विपदाओं से मुक्ति मिलती है और आत्मबल की अभिवृद्धि के साथ सर्वत्र शान्ति होती है। दिवंगत पितरों के प्रति श्राद्धादि कर उन्हें जीवन्त बनाए रखना भारत की उदात्त सभ्यता और संस्कृति का विश्व में उत्कृष्टतम निदर्शन है।

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