हैदराबाद की भारत में विलय की कहानी
निज़ाम ने इस ‘मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एमआईएम) नामक संगठन को कार्य दिया कि या तो हिंदुओं को तलवार की नोक पर मुसलमान बनाओ या फिर इस्लाम स्वीकार नहीं करने पर मौत के घाट उतार दो ताकि जनमत संग्रह की स्थिति में हिन्दू भारत में विलय के पक्ष में आवश्यक संख्या बल खो दें । निज़ाम का यह आतंकवादी संगठन निर्बाध रूप से अपने कार्य को अंजाम तक पहुँचाने में जुट गया। भारी संख्या में हिंदुओं को मार दिया गया और प्रताड़ित होकर बहुतों ने इस्लाम स्वीकार कर लिया। हैदराबाद में व्यापक स्तर पर भारत-विरोधी गतिविधियां चल रही थीं, पाकिस्तान द्वारा भारी-मात्रा में गोला-बारूद वहां भेजा जा रहा था और भारत में विलय के पक्षधर हिंदू जनता की रजाकार सेनाओं द्वारा हत्याएं की जा रही थीं और बाहर से मुसलमानों को लाकर हैदराबाद में बसाया जा रहा था। इन सबको देखते हुए 12 सितंबर 1948 को कैबिनेट की एक अहम बैठक हुई जिसमें नेहरू और पटेल के साथ उस समय भारतीय सेना के सभी बड़े अफसर मौजूद थे। भारत ने 13 सितम्बर 1948 को हैदराबाद को भारत में विलय करने के लिए ऑपरेशन पोलो शुरू किया। 5 दिन युद्ध हुआ, जिसके अंत में रजाकार और निजाम के सैनिक गीदड़ की तरह भाग खड़े हुए। भारत की विजय हुई और 17 सितम्बर 1948 को हैदराबाद का भारत मे विलय हो गया।