राष्ट्र गौरव का अमृत पर्व

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कई दशकों के संघर्ष और तमाम क्रांतिकारियों के साहस के परिणामस्वरूप 15 अगस्त, 1947 को  हम अपने देश के बड़े भू-भाग पर अपनी इच्छानुसार शासन और अन्य व्यवस्था को स्थापित करने का अधिकार प्राप्त कर सके। इसलिए स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में हम सबमें दिखने वाला उत्साह, देश में उत्सव जैसा वातावरण, अत्यंत स्वाभाविक व उचित ही है। स्वतंत्रता के इस अमृत महोत्सव पर अत्यंत आनंद और गौरव की भावना से ओतप्रोत डॉ. मोहनराव भागवत का आलेख...

बंटवारे के पूर्व श्रीगुरुजी का सिंध में भाषण

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यह कल्पना करना भी कठिन है कि हमारी खंडित मातृभूमि, सिंधु नदी के बिना हमें मिलेगी। यह प्रदेश सप्त सिंधु का प्रदेश है। राजा दाहिर के तेजस्वी शौर्य का यह प्रदेश है। हिंगलाज देवी के अस्तित्व से पावन हुआ, ये सिंध प्रदेश हमें छोड़ना पड़ रहा है। इस दुर्भाग्यशाली और संकट की घड़ी में सभी हिंदुओं को आपस में मिलजुल कर, एक-दूसरे का ध्यान रखना चाहिए। संकट के यह दिन भी खत्म हो जाएँगे, ऐसा मुझे विश्वास है" "गुरुजी के इस ऐतिहासिक भाषण से सभी सुनने वालों के शरीर पर रोमांच हो उठे। हिंदुओं में एक नए जोश का संचार हो उठा।

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