ग्लोबलाइजेशन और लोकलाइजेशन मॉडल

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मेष संक्रांति के दिन हमारे गांव में हर साल मेला लगता है जिसमे पूरा गांव सम्मिलित होता है और मेले से घरेलू प्रयोग की हर वस्तु लेते हैं बनाने वाले सब आस पास गांव के ही होते हैं लेकिन दुर्भाग्य अब कोई मेला देखने जाता नही और दुकाने कम होती…

गांव के वे पुराने सूने घर आज भी राह देखते हैं

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किसी दिन सुबह उठकर एक बार इसका जायज़ा लीजियेगा कि कितने घरों में अगली पीढ़ी के बच्चे रह रहे हैं? कितने बाहर निकलकर नोएडा, गुड़गांव, पूना, बेंगलुरु, चंडीगढ़, मुंबई, कलकत्ता, मद्रास, हैदराबाद, बड़ौदा जैसे बड़े शहरों में जाकर बस गये हैं? कल आप एक बार उन गली मोहल्लों से पैदल…

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