फंडिंग एजेन्सी के हाथों में आंदोलन
इस तरह एनजीओ में धीरे-धीरे फंडिंग एजेन्सी का दबाव अधिक बढ़ने लगा और आंदोलन समाज के हाथ से निकल गया। वर्ना देश में कोई भी आंदोलन समाज से कट कर कैसे चल सकता है? जैसे दिल्ली में हाल में ही सीएए और एनआरसी के खिलाफ आंदोलन चला। जिसकी वजह से लाखों लोगों की जिन्दगी प्रभावित हुई। स्कूल बस, एम्बुलेन्स तक को शाहीन बाग आंदोलन में बाधित किया गया। क्या महीनों ऐसे रास्ता बंद करके बैठे लोगों के समूह को आंदोलन कह सकते हैं, जिस आंदोलन में कोई मानवीय पक्ष दिखाई ना देता हो।