उत्तरी भारत की संत-परंपरा

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शरीरी तौर पर मनुष्य और सृष्टि के अन्य जीवों में भेद नहीं है। लेकिन मनुष्य की चेतना में शेष प्रति जिज्ञासा भाव उसमें गुणात्मक अंतर उत्पन्न कर उसमें पृथ्वी के अन्य जीवों की तुलना में उर्ध्व स्थान पर प्रतिष्ठित कर देता है। आदि मानव से आधुनिक मनुष्य तक की विकास यात्रा का यही निष्कर्ष है कि अन्य जीवों की भांति मनुष्य नामक प्राणी की दिनचर्या जन्म से मृत्यु के बीच केवल खाने-सोने तक सीमित नहीं रही।

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