नई हिन्दी कविता के विविध रंग

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तुकांत-अतुकांत, छंदयुक्त-छंदमुक्त, हायकू इत्यादि कविता के कई रूप हैं। कम शब्दों में भावों की अभिव्यक्ति ही कविता की पहचान रही है। समय के साथ इसमें कई धाराएं बनीं और कई धाराएं मिली परंतु कविता रूपी भागिरथी निरंतर प्रवाहमान है।

हम करें शक्ति आराधन

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भारतीय संस्कृति में शक्ति के साथ आचरण की सम्पन्नता पर भी विशेष जोर दिया जाता है। इसीलिए भारतीय संस्कृति सम्पूर्ण विश्व में अनुपम एवं बेजोड़ है। वर्तमान भारत सम्पूर्ण विश्व को मानवता का पाठ पढ़ाने के लिए तैयार है तथा विश्वगुरु बनने की राह पर है।

युग प्रवर्तक साहित्यकार नरेंद्र कोहली

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भारतीय ज्ञान, परंपरा, संस्कृति और आध्यात्मिकता से परान्गमुख साहित्यकारों के खेमें भिन्न-भिन्न मंचों से पश्चिम के अनुकरण को आधुनिकता सिद्ध करने की होड़ में ताल ठोंक रहे थे। ऐसे में नरेंद्र कोहली जी ने अपांक्तेय रहकर अपने लेखन में भारतीय पौराणिक एवं ऐतिहासिक चरित्रों के माध्यम से वर्तमान समय की गुत्थियां सुलझाते हुए आधुनिक समाज की नींव रखने में श्रेयष्कर भूमिका निभाई। साहित्य के द्वारा भारतीय जनमानस में भारतीय महापुरुषों को स्थापित करने का श्रेय कोहली जी को जाता है।

उत्तर प्रदेश : साहित्यिक प्रदक्षिणा

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  साहित्य और रक्षा दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिन पर उत्तर प्रदेश निवासी गौरव कर सकते हैं। संस्कृत से लेकर हिंदी और उर्दू की यह भूमि कर्मस्थली रही है। इस भूमि ने ऐसे-ऐसे नामवर साहित्यकार दिए हैं जिनका डंका आज भी बजता है। इसीलिए कहा जाता है कि ‘यहां

 साहित्य में गांव

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 आदिम मानव से आज के सभ्य मनुष्य की सहस्रों वर्ष की यात्रा में भारतीय साहित्य ने अनेक रूप बदले; लेकिन गांव उसकी आत्मा से प्रत्यक्षतः अथवा अप्रत्यक्षतः सदैव जुड़ा रहा है| आधुनिक साहित्य में गांव लोक के रूप में उपस्थित है|

अप्प दीपो भव

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जीवन में प्रकाश की महत्ता निर्विवादित, सर्वविदित एवं सर्वस्वीकार्य है। जीवन में जो शुभ व कल्याणकारी है, वह सब प्रकाश का स्वरूप है तथा जो अशुभ व अकल्याणकारी है उसे अन्धकार की संज्ञा से अभिहीत किया जाता है। हमारे जीवन में सदैव शुभ ही शुभ घटित होता रहे, इस हेतु हमें निरंतर प्रकाश की साधना करनी पड़ती है।

उत्तर प्रदेश के वीर पुरुष

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इतिहास में उन्हीं व्यक्तियों का नाम अंकित होता है, जो मानव जाति के कल्याण के लिए अपना जीवन अर्पित कर देते हैं। स्वयं कष्ट उठाकर दूसरों का दुःख दूर करने का कार्य वीरता की श्रेणी में आता है।

ताकि आलोक की साधना हमारा संस्कार बने

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हमारी मान्यता है कि प्रभु श्रीराम लंका विजय के पश्चात् सीता, लक्ष्मण व वानर भालू योद्धाओं के साथ अयोध्या वापस लौटे तो अयोध्यावासियों ने पूरे नगर को दीपों से सजाकर अपनी प्रसन्नता उजागर की. तभी से उस अवसर की स्मृति में प्रतिवर्ष दीप-

भाषा विहीन संस्कृति की ओर

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भाषा जातीय संस्कृति की संवाहिका होती है, इस विचार से सभी विद्वान सहमत हैं। अलग-अलग और समाजों की संस्कृति भिन्न-भिन्न होती है। जैसी इसी प्रकार, उस संस्कृति को अभिव्यक्ति प्रदान करने वाली भाषाएं भी भिन्न-भिन्न होती हैं। अत: किसी भाषा का क्षरण और मरण उससे संबंद्ध संस्कृति पर गहरे आघात का सूचक होता हैं।

तुलसी की सामाजिक समरसता

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तुलसीदास जिस समय अपने विश्वप्रसिद्ध प्रबंध ‘रामचरित मानस’ की रचना कर रहे थे, देश में मुस्लिम शासकों का साम्राज्य स्थापित हो चुका था। मुसलमान परम्पराये, रहन-सहन और संस्कृति भारतीय हिन्दू पराम्पराओं और सनातन संस्कृति से मेल नहीं खाती थीं।

अप्रतिम शौर्य की जनगाथा- आल्हा

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‘आल्हा’ अथवा ‘आल्हखण्ड’ बारहवीं शताब्दी में रचित दो बनाफर राजपूत वीरों आल्हा और ऊदल की वीरता का महाकाव्य है। इस महाकाव्य के रचइता जगनायक या जगनिक महोबा के चंदेल राजा परमाल के दरबारी कवि एवं दिल्ली के सम्राट पृथ्वीराज के प्रसिद्ध दरबारी कवि चंदबरदाई के समकालीन थे।

भारतीय स्थापत्य कला का सुन्दर वर्णन करती पुस्तक

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सामान्यत : पहाड़ों में स्थित कन्दराओं को गुफा कहा जाता है। बहुधा इन गुफाओं का निर्माण प्राकृतिक रूप से होता है। प्रागैतिहासिक काल में वर्षा, ताप व शीत से बचाव के लिए मनुष्य व अन्य जीव-जन्तु इन गुफाओं में शरण लेते थे।

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