स्वतंत्रता संग्राम और विज्ञानविदों की गौरव गाथा

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महेंद्रलाल सरकार, बीरबल साहनी, जगदीश चंद्र बोस, सत्येंद्र नाथ बोस, रूचिराम साहनी, पी.सी.राय, सी.वी.रामन, प्रमथनाथ बोस, मेघनाद साहा, विश्‍वेश्‍वरैया आदि वैज्ञानिक सेनानियों के कारण ही स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय विज्ञान और वैज्ञानिकों की भूमिका बहुत प्रखर रूप से उभर कर सामने आई। वर्ष 1940 में सीएसआईआर की स्‍थापना करने वाले शांति स्‍वरूप भटनागर का मानना था कि गुलामी के कारण देशवासि‍यों में साहसिक प्रवृत्ति की भावना कमजोर पड़ गई है। देश के वैज्ञानि‍क क्षितिज में नई प्रतिभाओं एवं नवीन खोज को प्रेरित करने के उद्देश्‍य से उनके मार्गदर्शन में अनेक नई प्रयोगशालाओं की स्‍थापना का मार्ग प्रशस्‍त हुआ। माना जाता है कि उनके व्‍यक्तित्‍व के निर्माण में रूचिराम साहनी का महत्‍वपूर्ण योगदान था जिन्‍होंने अपना पूरा जीवन स्‍कूल और कॉलेजों में विज्ञान की लोकप्रियता और विज्ञान शिक्षण में सुधार के लिए समर्पित कर दिया था।

जिसने थके हुए भारत में नए प्राण फूंक दिए

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भारत के स्वतंत्रता संग्राम को वंदेमातरम मंत्र ने अदभुत शक्ति प्रदान की थी। इस मंत्र के प्रणेता थे महान उपन्यासकार बंकिम चंद्र चटर्जी। बंकिम चंद्र चटर्जी का जन्म 26 जून 1838 का बंगाल प्रांत के परगना जिले में स्थित कंतलपाड़ा नामक गांव में हुआ था। इनके पिता मिदनापुर के डिप्टी कलेक्टर थे और माता घरेलू  साध्वी महिला थी।

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