भारतीय दर्शन कर्म और कर्मफल पर टिका हुआ है

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कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफल हेतु: भू: ते संग: अस्तु अकर्मणि।। भगवतगीता 2.47 भगवतगीता का यह श्लोक लगभग सभी लोग जानते हैं। कृष्ण कह रहे हैं कि तुम्हारा अधिकार कुशलता पूर्वक कर्म करने में है उसके परिणाम में नहीं। इसलिए न तो कर्मफल की आकांक्षा करो और न ही…

भगवान कृष्ण द्वारा कर्म योग की सही व्याख्या

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ग्रह पर हर व्यक्ति जीवन में समृद्ध होने के लिए जीवन प्रबंधन सिखना चाहता है, खुश रहना चाहता है, शांत मन चाहता है, और जीवन के उद्देश्य पर स्पष्टता प्राप्त करना चाहता है।  भगवद गीता में भगवान कृष्ण ने जीवन के हर पहलू को बडी गहराई से समझाया है।  गीता…

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