मिहरे-नीम रोज़ मिर्ज़ा ग़ालिब

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शायरी पसंद करनेवाला शायद ही कोई हो जिसे ग़ालिब का यह शेर पता न हो। हृदय में जागृत हुए प्रेम के दुख से व्याकुल कवि के ये उद्गार मन को ‘स्पर्श’ कर जाते है। प्रेम कवि के मन को इतनी पीड़ा देता है कि वह किसी भी तरह कम नहीं होती।

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