मैं एक मीसा बंदी
“समाज का जाति अनुसार विचार करने वाले प्रगतिशील महानुभावों द्वारा संघ को मनुवादी कहते देखकर मेरे क्रोध की सीमा न रही। हिंदू समाज का अस्तित्व उन्हें स्वीकार नहीं था। परंतु जातीय अहंकार, जातीय भावना भड़काने से उन्हें कोई एतराज नहीं था। जातीय भावना भड़काकर समता पर आधारित समाज रचना करने का उपदेश करना यह उनके ढोंगीपन की सीमा थी।”