भाषा विहीन संस्कृति की ओर

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भाषा जातीय संस्कृति की संवाहिका होती है, इस विचार से सभी विद्वान सहमत हैं। अलग-अलग और समाजों की संस्कृति भिन्न-भिन्न होती है। जैसी इसी प्रकार, उस संस्कृति को अभिव्यक्ति प्रदान करने वाली भाषाएं भी भिन्न-भिन्न होती हैं। अत: किसी भाषा का क्षरण और मरण उससे संबंद्ध संस्कृति पर गहरे आघात का सूचक होता हैं।

हम ‘हिंदी’ के और ‘हिंदी’ हमारी

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हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है या नहीं, इस विवाद में न पड़ते हुए इस सत्य को सभी स्वीकार कर लें कि यह भाषा सबसे ज्यादा व्यवहार में लाई जाती है।

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