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हम ‘हिंदी’ के और ‘हिंदी’ हमारी

हम ‘हिंदी’ के और ‘हिंदी’ हमारी

by प्रवीण कुलकर्णी
in सामाजिक, सितंबर- २०१२
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हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है या नहीं, इस विवाद में न पड़ते हुए इस सत्य को सभी स्वीकार कर लें कि यह भाषा सबसे ज्यादा व्यवहार में लाई जाती है। इसी कारण हिंदी भाषा का यत्र-तत्र-सर्वत्र प्रयोग हो रहा है। हिंदी दिवस के अवसर पर हर भारतीय यह कि संकल्प कि वह अपनी माातृभाषा के साथ साथ हिंदी को भी हृदय से अंगीकार करेगा।

मराठी भाषा-भाषी लोग हिंदी के मुकाबले अंग्रेजी को ज्यादा महत्त्व दे रहे है। वे अपने बच्चों को हिंदी के स्थान पर अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में प्रवेश दिलाने में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं। उनके मन में इस बात को भर दिया गया है कि अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में प्रवेश नहीं दिलाया तो उनका बच्चा आगे चलकर किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में पास नहीं हो पाएगा। अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में हिंदी को विदेशी भाषा की कतार में रखा जा रहा है। हिंदी, संस्कृत जैसी भाषा को जर्मन, फ्रैंच की श्रेणी में एच्छिक विषय के तौर पर पढ़ाया जाने लगा है। हिंदी, संस्कृत के मुकाबले जर्मन- फ्रैंच भाषा में ज्यादा अंक प्राप्त होते हैं, ऐसा भ्रम भी कुछेक स्कूलों में विद्यार्थियों के मन में भरा जा रहा है। इस कारण विद्यार्थी अच्छे अंक मिलने की संभावना को ध्यान में रखकर हिंदी-संस्कृत के स्थान पर जर्मन-फ्रैंच भाषा पढ़ने लगे हैं। हिंदी भाषा मराठी भाषा के बेहद करीब है, इसका मुख्य कारण यह है कि इन दोनों भाषाओं की लिपि देवनागरी ही है।

महाराष्ट्र में हिंदी फिल्में, हिंदी धारावाहिक देखने वालों की अच्छी खासी संख्या है। इस कारण हिंदी समझने-बोलने वालों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। मराठी भाषा-भाषी तथा और अंग्रेजी को ज्यादा महत्त्व न देने वाले व्यक्ति अपनी विशिष्ट शैली में हिंदी में सामने वाले व्यक्ति से बोलते हैं। लेकिन मराठी व्यक्ति, जिस शैली में हिंदी बोलता है, उसे सुनकर हिंदी इस देश की संपर्क भाषा है, इस बात को मन स्वीकार नहीं करता, इस कारण ही यह कहना पड़ता है कि महाराष्ट्र में हिंदी की स्थिति उतनी अच्छी नहीं हैं, जितनी होनी चाहिए। कुछ वर्ष पूर्व देश के शिक्षा मंत्री ने विद्यार्थियों को कक्षा एक से ही मातृ भाषा के साथ-साथ अंग्रेजी पढ़ाने का निर्णय लिया था। छोटी आयु के विद्यार्थी अलग-अलग भाषाएं बहुत जल्दी सीख जाते हैं। उस समय लोगों में यह भ्रम भी फैलाया गया कि अंग्रेजी भाषा विश्वस्तरीय भाषा है और समूचे विश्व में बोली जाती है, इसलिए अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होना बहुत जरूरी है। अंग्रेजी को कक्षा एक से अनिवार्य करने के बाद सरकार ने अपने इस निर्णय को सफल बनाने के लिए प्राथमिक शिक्षकों को अंग्रेजी पढ़ाने का विधिवत प्रशिक्षण भी दिया। पहली कक्षा से ही अंग्रेजी की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी की स्थिति ऐसी है कि वह लगातार दस वर्ष अंग्रेजी पढ़ने के बाद भी अंग्रेजी का एक वाक्य ठीक से नहीं लिख पाते। प्राथमिक स्तर पर अंग्रेजी पढ़ाने वाले शिक्षकों की हालत भी विद्यार्थियों से कुछ अलग नहीं है। पिछले दिनों एक चैनल द्वारा प्रसारित की गई रिपोर्ट से इस बात का पता चला कि प्राथमिक स्तर पर अंग्रेजी पढ़ाने वाले शिक्षक को अंग्रेजी भाषा की जानकारी कितनी है।

सच तो यह है कि अंग्रेजी को महत्त्व उन लोगों द्वारा ज्यादा दिया जा रहा है, जो हिंदी भाषा को अंग्रेजी के मुकाबले महत्त्वहीन व तुच्छ मानते हैं। यह बिडंवना ही है कि देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति ज्यादातर कार्यक्रमों में हिंदी बोलना पसंद नहीं करते। न जाने उन्हें हिंदी बोलने में क्या आपत्ति रहती है। केंद्र सरकार के मंत्री भी ज्यादातर अवसर पर हिंदी बोलना पसंद नहीं करते, ऐसा क्योंं है? एक हिंदी फिल्म में अभिनय करने के लिए करोड़ों रुपये लेने वाले फिल्मी कलाकार भी विभिन्न चैनल में साक्षात्कार के समय हिंदी बोलना पसंद नहीं करते। अगर हिंदी को राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देना है तो हिंदी की इस तरह हो रही उपेक्षा पर विराम लगाना होगा। हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए केंद्र तथा हर राज्य की सरकार की ओर से कोई भी प्रयास नहीं किये जा रहे हैं। हिंदी भाषा विस्तार के लिए कुछ संस्थाएं जरूर स्थापित की गई हैं, पर इन संस्थाओं की ओर से भी हिंदी के सर्वांगीण विकास के लिए किए जाने वाले प्रयत्न नगण्य ही माने जाएंगे। विद्यालयीन शिक्षा के दौरान भाषा का जो क्रम निर्धारित किया गया है, उस क्रम को बदला जाना नितांत आवश्यक है। मातृ भाषा, राष्ट ्रभाषा और अंग्रेजी भाषा के क्रम को स्वीकार किया जाना जरूरी है। पर्याय के तौर पर हिंदी अथवा अंग्रेजी में किया एक भाषा को चुनने की छूट दी जानी चाहिए। किसी भी माध्यम के विद्यालय में (कम से कम महाराष्ट्र) में मातृ भाषा और राष्ट्र भाषा की पढ़ाई को अनिवार्य करना चाहिए। कक्षा एक से अंग्रेजी भाषा को अनिवार्य करने के स्थान पर अगर उस समय हिंदी को अनिर्वाय भाषा किया गया होता तो वर्तमान में महाराष्ट्र में हिंदी भाषा को मराठी की बराबरी का स्थान मिल गया होता। अंग्रेजी पूरे विश्व की भाषा नहीं है। रूस, चीन, जपान जैसे देशों ने अंग्रेजी भाषा की मदद से प्रगति नहीं की। इन देशों के नेता-विदेश में भी अपनी भाषा का प्रयोग करते हैं, सुनन वाले की अगर इच्छा होगी तो वह अपने साथ एक अनुवादक भी रख सकता है। भारत के नेता इस तरह का विचार क्यों नहीं कर सकते? मुझे अंग्रेजी का बहुत अच्छा ज्ञान है, यह बताने में गर्व क्यों महसूस होता है?

अंग्रेजी पर भाषा न जानने से प्रगति रुक जाएगी, कम से कम ऐसा भ्रम तो नहीं फैलाया जाना चाहिए। अंग्रेजी भाषा को देश के सिर्फ 10 प्रतिशत लोग ही समझ पाते हैं, 70 प्रतिशत लोगों को आज भी अंग्रेजी अच्छी तरह से नहीं आती है, बावजूद इसके देश भर में अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों की बहुलता क्यों है? संसद में, सरकारी कार्यालयों में कुछ विशिष्ट श्रेणी के लोग अंग्रेजी की इतनी प्रशंसा करते दिखाई देते हैं कि मानो वे भारत नहीं इंग्लंड के वाशिंदे हों। हिंदी भाषा देश की प्रमुख संपर्क भाषा होनी ही चाहिए। सरकारी काम-काज मेेंं हिंदी का उपयोग बढ़ना चाहिए। कम से कम केंद्र सरकार के काम-काज में हिंदी का शत-प्रतिशत प्रयोग अनिवार्य किया जाए। सभी विद्यालयों में हिंदी की पढ़ाई को अनिवार्य किया जाए और इसके लिए सरकार की ओर से आवश्यक कदम भी उठाए जाए। हिंदी के प्रचार-प्रसार में आ रही बाधाओं को शीघ्र समाप्त किया जाए।

पहले विश्व मराठी सम्मेलन में वरिष्ठ साहित्यकार कुसुमाग्रज ने अपने प्रतिपादन में कहा था कि मराठी भाषा के सिर पर राजभाषा का मुकुट है, पर तन में फटे हुए वस्त्र पहन कर वह मंत्रालय के प्रवेश द्वार पर खड़ी भाषा की ही तरह है। आज भी मराठी भाषा की स्थिति कुछ अलग नहीं है, बल्कि उसकी हालत और ज्यादा बिगड़ गई है और तो और हिंदी भाषा की हालत भी मराठी जैसे ही है। हिंदी की खराब हालत के लिए हर भारतीय जिम्मेदार है और जो लोग हिंदी हैं हम, हम वतन हैं, ऐसा कहते हैं, उनके लिए यह सबसे ज्यादा विषाद का विषय है। हिंदी-मराठी की अपेक्षा तथा अंग्रेजी को मिलता सम्मान, महत्त्व हमारी मातृ भाषा तथा देश के 70 प्रतिशत लोगों द्वारा बोली जाने वाली हिंदी को कहां ले जाएगी, कोई कह नहीं सकता, पर इस बात का बेहद दु:ख है कि हम सभी भारतीय एक साथ रहते हुए भी अपनी-अपनी मातृभाषा व देश की सबसे

प्रिय भाषा हिंदी के अस्तित्व को ही समाप्त करने में लगे हुए है। हिंदी दिवस पर हमें यह संकल्प लेना होगा कि कम से कम अपने स्तर पर सभी लोग हिंदी का सम्मान बढ़ाकर उसके प्रचार प्रसार में अपना योगदान देंगे। हिंदी भाषा में देश का सम्मान निहित है, इसलिए अंगे्रजी भाषा का ज्ञान प्राप्त करते समय हमें सदैव यह सोचना होगा कि हिंदी हमारी पहचान है और अंग्रेजी सिर्फ जानकारी तक ही सिमित है। अंग्रेजी सीखते-सीखते हिंदी का तिरस्कार करना राष्ट्रहित में नहीं है, क्योंकि हिंदी समूचे देश की भाषा है और अंग्रेजी चंद भारतीयों की भाषा है। हम सबको मिलकर हिंदी के उत्कर्ष का संकल्प लेना चाहिए और मिलकर सदैव यही कहते रहना चाहिए कि ‘हम हिंदी के है और हिंदी हमारी है’।

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