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पर्यटन क्षेत्रों से समृद्ध महाराष्ट्र

पर्यटन क्षेत्रों से समृद्ध महाराष्ट्र

by पूजा बापट
in पर्यटन, प्रकाश - शक्ति दीपावली विशेषांक अक्टूबर २०१७
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महाराष्ट्र इतिहास, अध्यात्म एवं संस्कृति से भरापूरा है और पर्यटन के अनोखे अवसर प्रदान करता है। प्रकृति ने इसे खूब सौगात दी है। यहां के समुद्र तट और अरण्य दोनों समान रूप से आकर्षक है।
महाराष्ट्र पर्यटन की दृष्टि से बहुत समृद्ध है। परंतु ऐसा लगता है कि जितना आवश्यक है उतनी शासकीय मदद नहीं मिलती या फिर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण प्रदेश पर्यटन के विकास में पिछड़ रहा है। यहां कई ऐतिहासिक किले हैं, पत्थरों में उकेरी हुई उत्कृष्ट चित्रकारी है, कास पठार जैसे अनेक स्थान हैं जो महाराष्ट्र में ‘वैली ऑफ फ्लॉवर्स’ के रूप में जाने जाते हैं।
शिवाजी के किले
शिवाजी महाराज के अतुलनीय पराक्रम का इतिहास महाराष्ट्र की पहचान है। शिवाजी महाराज का नाम आते ही उनके द्वारा मुगलों के कब्जे से जीते गए किले याद आते हैं। शिवाजी महाराज कहा करते थे, संपूर्ण महाराष्ट्र में हिंदवी स्वराज्य की स्थापना तो भगवद् इच्छा है। शिवाजी महाराज के मराठी राज्य की पहली राजधानी यानी ‘राजगड़’। यह किला मुरुंबदेव पहाड़ पर स्थित है। दुर्गराज राजगढ़ यदि शिवाजी महाराज की महत्वाकांक्षा को दर्शाता है तो रायगढ़ का किला शिवाजी की कर्तव्यपरायणता का प्रतीक है। राजगड़ शिवाजी महाराज का पहला प्रमुख राजकीय केंद्र था। यह बुलंद एवं मजबूत किला आज भी हमें हिंदवी स्वराज की गवाही देता है।
‘रायगड़’ में शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ। यह केवल महाराष्ट्र के इतिहास की ही नहीं वरन संपूर्ण भारत के इतिहास की एक विलक्षण घटना थी जो स्वर्णाक्षरों में लिखने लायक है। शिवाजी ने इस किले को अपना निवास स्थान बनाया। यह किला बहुत बड़ा एवं विशाल है। रायगड़ में बहुतेरे कुएं, सरोवर इत्यादि हैं। मुस्लिम सत्ता को धत्ता बताते हुए रायगड़ को शिवाजी महाराज ने अपनी राजधानी बनाया एवं लोगों की इच्छाओं के अनुसार यश प्राप्त किया।
‘शिवनेरी’ २६ मई १९०९ को राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक घोषित किया गया। यही वह किला जहां शिवाजी महाराज का जन्म १९ फरवरी १६३० को हुआ। इसकी चढ़ाई कठिन है। यह महाराष्ट्र के जुन्नर गांव में स्थित है। पुणे एवं मुंबई से एक दिन में आकर एवं इस किले को देख कर वापस जाया जा सकता है। किले पर चढ़ने के लिए दो रास्ते हैं। एक साखली का रास्ता एवं दूसरा सात दरवाजे पार कर जाने का रास्ता।
‘तोरणा‘ किला यानी प्रचंडगढ़। ‘शिवाजी महाराज ने जब किले जीतने प्रांरभ किये, तब सब से पहले इस किले को जीता। इस किले पर तोरण प्रजाति के कई वृक्ष होने के कारण इसका नाम तोरणा पड़ा। परंतु जब शिवाजी महाराज ने इस किले को जीता तब उनके ध्यान में आया कि इस किले का विस्तार बहुत बड़ा है अत: उन्होंने इसका नामकरण ‘प्रचंडगढ़’ कर दिया।
‘सिंहगड़’ आदिलशाह के काल का किला है। पुरंदर के समझौते में यह किला मुगलों को दिया गया था। इसका पुराना नाम ‘कोंडाना’ था। शिवाजी महाराज के विश्वस्त सुबेदार तानाजी मालुसरे ने स्वत: के प्राणों का बलिदान देकर यह किला जीता था। उनका पराक्रम किसी सिंह से कम नहीं था इसीलिए महाराज के उस समय के उद्गार थे, ‘‘गड़ मिला, पर सिंह चला गया।’’ उसी समय शिवाजी महाराज ने इसका नाम कोंडाना से बदल कर ‘सिंहगड़’ रखा। तानाजी स्मारक के साथ-साथ कल्याण दरवाजा एवं राजाराम स्मारक भी वहां स्थित हैं।
‘प्रतापगड़’ महाबलेश्वर-महाड के रास्ते पर महाबलेश्वर से २० कि.मी दूर है। १६५७ में शिवाजी महाराज के आदेश पर मोरोपंत पिंगले ने इस किले का निर्माण कराया। प्रतापगढ़ के मध्यभाग पर भवानी माता का पत्थर से बना मंदिर है। देवी की मूर्ति काले पत्थर से निर्मित है। पास ही केदारेश्वर मंदिर है। प्रतापगड़ के पास ही ऐसी जगह है जहां से सजा सुनाए गए अपराधियों को बुर्ज से नीचे ढकेल दिया जाता था। प्रतापगड़ के नीचे ही १० नवंबर १६५९ को शिवाजी व अफजलखान की ऐतिहासिक मुलाकात हुई थी जिसमें शिवाजी द्वारा अफजलखान का वध कर दिया गया था। प्रतापगड़ पर शिवाजी महाराज का अश्वारूढ पुतला है तो प्रतापगड़ के नीचे अफजलखान की कब्र है।
समर्थ रामदास स्वामी द्वारा स्थापित हनुमान मंदिर
लोगों में आपस में परस्पर विश्वास एवं आत्मीयता निर्मित हो, इस हेतु समर्थ रामदास ने रामनवमी एवं हनुमान जयंती के उत्सव प्रारंभ किए। उन्होने मौके की जगहें चुन कर मारुति के मंदिरों की स्थापना की जिसमें से सात मंदिर सातारा जिले में स्थित हैं। इनके स्थान है-१) शहापुर- यहां मूर्ति चूने से बनी है। २) महारूद्र हनुमान- मसूर में स्थित यह मूर्ति ग्यारह स्थापित मूर्तियों में सब से सुंदर है। ३) दास हनुमान चाफल-भगवान श्रीराम के सम्मुख दोनों हाथ जा़ेडकर हनुमान जी खड़े हैं। इसकी ऊंचाई ६ फुट है। ४) बाल मारुति- सन् १५७१ में शिंगणवाडी में इसकी स्थापना की गई। ५) मठ में स्थापित हनुमान- उंब्रज- १५७० में इसकी स्थापना की गई। समर्थ रोज चाफल से उंब्रज स्नान हेतु जाते थे अत: यहां इसकी स्थापना की गई एवं बाद में मठ भी बनाया गया। ६) माजलगांव के हनुमान- इसके विषय में दंतकथा है कि गांव की सीमा पर घोड़े के आकार का बड़ा पत्थर था। लोग इसी पत्थर की ग्रामरक्षक हनुमान मान कर पूजा करते थे। बाद में समर्थ रामदास के हाथों उसकी प्राणप्रतिष्ठा की गई। ७) प्रताप मारुति चापूल- श्रीराम मंदिर के पीछे साधारणतया ३०० फुट के अंतर पर यह मंदिर है। इसे भीम मारुति या वीर मारुति भी कहा जाता है। इस मंदिर का शिखर ५० फुट ऊंचा है। मूर्ति की उंचाई सात से आठ फुट है। इसके अतिरिक्त मनपाडले, पारगांव (त्रि-कोल्हापुर) शिराले तथा बोरगांव (जि.सांगली) में अन्य चार हनुमान मंदिर स्थित हैं।
अष्टविनायक
भगवान गणेश के आठ मंदिरों को ‘अष्टविनायक’ कहा जाता है। पश्चिम महाराष्ट्र व कोंकण में स्थित इन मंदिरों का अपना अलग इतिहास है। इन सभी मंदिरों को पेशवाओं के काल सें महत्व प्राप्त हुआ।
ज्योतिर्लिंग
भारत के १२ ज्योर्तिलिंगों में से चार महाराष्ट्र में स्थित हैं।
मराठवाडा में परभणी से दक्षिण की ओर २४ मील दूर परली वैजनाथ हैं। यहां का शिवालय बड़ा है। दूसरा ज्योतिर्लिंग पुणे से ११२ कि.मी. दूर भीमा नदी के उदगम स्थल पर भीमाशंकर है। यहां भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर का वध किया था ऐसी आख्यायिका है। तीसरा ज्योतिर्लिंग नाशिक शहर से ३५ कि.मी दूर त्र्यंबकेश्वर में गोदावरी नदी के किनारे स्थित है। इसे दक्षिण की काशी भी कहते हैं। ब्रह्मगिरि पर्वत की तलहटी में यह स्थित है। गोदावरी नदी का उद्गम इसी पर्वत से है। चौथा ज्योतिर्लिंग दौलताबाद से दस मील दूर घृष्णेश्वर में है। घृष्णा की प्रार्थना पर साक्षात शिवशंकर यहां प्रकट हुए थे। मंदिर के पास ही शिवकुंड स्थित है।
श्री तुलजा भवानी मंदिर
महाराष्ट्र की कुलदेवता तुलजा भवानी माता का तुलजापुर स्थित मंदिर देवी के साढ़े तीन पीठों में एक है। इस मंदिर का निर्माण हेमाड़पंथी शैली में है।
सोने की जेजुरी- गर्द पीले रंग वाली ‘मल्हारी मर्त्तंड’ की जेजुरी सोने से बनी प्रतीत होती है। महाराष्ट्र की आराध्य देवता है। लाखों भक्तों का यह श्रद्धास्थान पुणे जिले की पुरंदर तहसील में है। आजकल जेजुरी में हरियाली नजर आने लगी है। इस स्थान पर वर्षा कम होती है। यह क्षेत्र पथरीला है।
विदर्भ का पर्यटन
विदर्भ के दो मुख्य भाग कर सकते हैं। पूर्वी एवं पश्चिमी विदर्भ। वाशिम, अकोला, यवतमाल, अमरावती तथा बुलढाना जिले पश्चिम विदर्भ के तथा गड़चिरोली, नागपुर, चंद्रपुर, भंडारा, गोंदिया तथा वर्धा जिले पूर्वी विदर्भ के हैं।
पूर्वी विदर्भ में चंद्रपुर से ४५ कि.मी. दूर स्थित ताडोबा राष्ट्रीय उद्यान एवं अंधारी वन्य जीव अभयारण्य उन व्याघ्र प्रेमियों के लिए अद्भुत अनुभूति है जो जंगल के राजा के दर्शनों के लिए जंगलों में आतुरता से घूमते रहते हैं। ताडोबा का जंगल रॉयल बंगाल टायगर बाघों की प्रजाति के लिए प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त यहां चीते, जंगली बिल्लियां, हिरण, बारहसिंगे, चीतल, जंगली भैंसे, जंगली सुअर, नीलगाय, जंगली मुर्गे एवं चित्ते वाले हिरन पाए जाते हैं। रेंगने वाली प्रणियों में मगर, अजगर, इंडियन कोब्रा प्रमुखता से मिलते हैं। इंडियन स्टार प्रजाति के कछुए भी यहां मिलते हैं। यह जंगल अभयारण्य घोषित होने के बाद भी करीब साठ गांव जंगल के अंदर बसे हैं एवं अपनी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा कर रहे हैं।
भद्रावती या भांडक नाम से पहचाना जाने वाला गांव अपनी ऐतिहासिक स्थापत्य कला की पहचान देता है। गोंड राजा शंकर सिंह के समय का भांकागड़ यानी आज का यह भद्रावती किला। यह तीन एकड़ में फैला हुआ है। इस किले के प्रवेश द्वार पर गोंड राजाओं का राजचिह्न उकेरा गया है। गोंड, सातवाहन और कौशल वंश की संस्कृति अपने में जतन किया हुआ यह गांव किले के साथ मुख्यत: यहां के जैन मंदिर के लिए जाना जाता है। स्वच्छ, शांत एवं प्रसन्न वातावरण से भरा यह मंदिर पर्यटकों को मन:शांति देता है।
आनंदवन (वरोरा) – स्वत: के लिए न जी कर अन्यों के लिए जीने की अनुभूति कराने वाला यह गांव है। यह नागपुर से १०० कि.मी. दूर है। मॅगेसेसे पुरस्कार विजेता बाबा आमटे द्वारा कुष्ट रोगियों की सेवा के लिए स्थापित यह आनंदवन केवल एक संस्था न होकर मनुष्यता को जीवित रखने वाला एक सुंदर साकार अनुभव है। आनंदवन केवल महारोगियों का निवास स्थान या अस्पताल न होकर उनका पुनरुत्थान करने वाला परिवार ही है। यहां की सब से अलग विशेषता है यहां के निवासी नित्योपयोगी एवं आकर्षक सुंदर वस्तुएं बनाते हैं एवं स्वयं के जीविकोपार्जन के लिए सकारात्मक कार्यों में अपना हाथ बंटाते हैं। आमटे परिवार के इस दिव्यत्व तेज का अनुभव आनंदवन को प्रत्यक्ष भेंट देकर ही किया जा सकता है।
कोंकण
अष्टागर- अलीबाग या श्रीबाग के चारों ओर फैले परिसर को अष्टागर कहते हैं। इसमें अलीबाग, आष्टी, नागाव, चौल एवं रेवदंड़ा गांव आते हैं। मुंबई से अलिबाग का प्रवास गेट वे ऑफ इंडिया से समुद्र मार्ग से किया जा सकता है। गेट वे से मांडवा का कैटरमन का सफर अलग आनंद देता है। मांडवा जेट्टी से बस द्वारा अलीबाग जा सकते हैं। कैटरमन अर्थात नौका के किराए में मांडवा-अलीबाग बस किराया भी समाविष्ट है। अलीबाग पहुंचने के बाद अष्टागार का सफर प्रारंभ होता है। अरब समुद्र में स्थित कुलाबा किला अष्टागार का स्वामी है। छत्रपति शिवाजी महाराज एवं बाद में आगरी लागों के कब्जे में रहे कुलाबा किले को देख कर फिर अलीबाग गांव में आ सकते हैं। यहां वेधशाला, उमा महेश्वर मंदिर, बालाजी मंदिर एवं कान्होजी आंग्रे का निवास स्थान एवं उनकी समाधि सिथत है।
रत्नागिरी- भरी बरसात में कोंकण का सौंदर्य और भी निखर आता है। मूसलाधार वर्षा से रत्नागिरी जिले के सभी जलप्रपात जल से भरे होते हैं। मुंबई गोवा राजमार्ग पर रत्नागिरी की ओर जाते समय संगमेश्वर से २० कि.मी. दूर निवली के जलप्रपात का दर्शन होता है। ऊंची चट्टानों से गिरने वाले इस जलप्रपात की सुंदरता देखते ही बनती है। वीर नामक स्थान पर देवपाट का बारह मासी जलप्रपात है। इस जलप्रपात को जाने का रास्ता घनी झाड़ियों में से होकर जाता है। चिपलूण से मुंबई की ओर जाते समय ५ कि.मी. दूर सवतसडा जलप्रयात है। मुंबई से आते समय राजमार्ग के बगल से ऊंचाई से यह जलप्रपात गिरता हुआ दिखता है। जुलाई से अक्टूबर तक इसमें भरपूर पानी होता है। संगमेश्वर तहसील में देवरुख से १८ कि.मी के अंतर पर सह्याद्री की निसर्गरम्य घाटियों में बसा हुआ श्री क्षेत्र मार्लेश्वर भगवान शंकर के स्थान के रूप में प्रसिद्ध है। पहाड़ का चक्कर लगा कर ऊंचाई पर जाने पर यह देवस्थान स्थित है। यहां पर एक बड़ा जलप्रपात है जो मार्लेश्वर जलप्रपात के रूप में जाना जाता है।
महाराष्ट्र कई समुद्र किनारों से लाभान्वित है। उदाहरणार्थ वेलणेश्वर, गुहागर, हरिहरेश्वर, किहीम, सासवणे इत्यादि ऐसे अनेक समुद्र किनारे हैं जो मन को लुभाते हैं।
महाराष्ट्र के सौंदर्य को बढ़ाने वाली कई गुफाएं यहां स्थित है। विविध प्रकार की चित्रकारी से भरी गुफाओं में ८०% गुफाएं महाराष्ट्र में स्थित हैं। वास्तव में ये केवल गुफाएं न होकर धार्मिक वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने हैं। विविध धर्मी लोगों ने इन गुफाओं की चित्रकारी में अपना योगदान दिया है। यहां पर ब्राह्मी, संस्कृत तथा प्राकृत में लिखे शिलालेख मिलते हैं।
महाराष्ट्र का नंदनवन समझा जाने वाला ठंडी हवा का स्थान यानी महाबलेश्वर-पंचगनी का परिसर। यह परिसर बहुत ही सुंदर व देखने लायक है। समुद्र तल से १३७२ मीटर ऊंचाई पर स्थित महाबलेश्वर कृष्णा, वेण्णी, कोयना, सावित्री एवं गायत्री इन पांच नदियों का उद्गम स्थल है। यहां पंचगंगा का मंदिर है। महाबलेश्वर के मंदिर का यादव राजा ने १३हवीं सदी में निर्माण कराया। अफजलखान के तंबू पर से काट कर लाया गया सोने का कलश महाबलेश्वर मंदिर को अर्पण किया गया। विल्सन पाईंट व माखरिया पाईंट एवं इस तरह के कई दर्शनीय स्थान हैं। विल्सन पॉईंट के पास गेहूं-गेरुआ संशोधन केन्द्र है। यहां गेहूं पर लगने वाले गेरुआ रोग का अध्ययन तथा उसपर शोध होता है। यहां एक मधुमक्खी पालन केन्द्र भी है। यहां एक कगार पर सब से प्राचीन हेमाडपंथी शिवमंदिर है। यहां अतिमहाबलेश्वर एवं महाबलेश्वर दो बड़े मंदिर भी हैं। १२ वर्षों के तीर्थाटन के बाद ई.स. १६४४ में समर्थ रामदास स्वामी ने सर्वप्रथम यहां आकर धर्मोपदेश देने की शुरुआत की। यहां उन्होंने पहला हनुमान मंदिर स्थापित किया। कोयना बांध का शिवसागर जलाशय एवं कांदारी धाटी में घने जंगल के परिसर में नवीन महाबलेश्वर अर्थात जलारण्य प्रकल्प पर्यावरण की दृष्टि से खास आकर्षक प्रकल्प विकसित हो रहा है।
पंचगनी-पांच पहाड़ों पर स्थित गांव यानी पंचगनी। ठंडी जलवायु का स्थान न केवल महाराष्ट्र में वरन पूरे भारत वर्ष में जाना जाता है। दर्शनीय विविध प्वाइंट्स, भिलार टेबललैंड, किडीज पार्क यहां स्थित हैं। इसके अलावा मॉरल रिआर्नामेंट सेंटर है। यहां देश-विदेश से विद्यार्थी पढ़ने हेतु आते हैं। गुरेघर में मैप्रोफ्रूट प्रोडक्टस जॅम बनाने की फैक्टरी आठ एकड़ में फैली है। वहां के ग्रीन हाउस में सैकड़ों प्रकार के कैकटस देखने को मिलते हैं।

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