समाज को समर्पित समस्त महाजन

‘समस्त महाजन’ केवल जीवदया को ही समर्पित नहीं है, वह मूल्यों पर आधारित शिक्षा तथा विपदा की स्थिति में फंसे मानव की सेवा को भी समर्पित है। इसलिए जल, जंगल, जानवर और जमीन इन चार बातों के संवर्धन के लिए कार्य करना हमारा मिशन है। संस्था के इन कार्यों की रूपरेखा को विशद किया संस्था के अध्यक्ष गिरीशभाई शाह ने एक विशेष भेंटवार्ता में। प्रस्तुत है उसके महत्वपूर्ण अंश-
समस्त महाजन संस्था की स्थापना का मूल उद्देश्य क्या है?
संपूर्ण विश्व में कोई भी जीव भूखा न सोए और भूख की वजह से न मर जाए। मनुष्य मांगकर खा सकता है पर मूक जीव मांग नहीं सकते। हमारे कार्य का प्रारंभ यहीं से होता है। मछली को आटा देना है, पक्षी को दाना देना है और पशु को चारा देना है। इस कार्य की पूर्ति के लिए कार्य करना हमारा प्रमुख उद्देश्य है। दूसरा उद्देश्य है, मूल्य आधारित शिक्षा देना। आज अपनी परंपराओं, संस्कारों से जुड़ी शिक्षा व्यवस्था लुप्त होती जा रही है। उस शिक्षा व्यवस्था याने मूल्य आधारित शिक्षा व्यवस्था की पुनर्स्थापना करना। उसके प्रचार-प्रसार हेतु अपना योगदान देना।
प्राकृतिक आपदा में समाज को सहायता देना जैसे समस्त महाजन के प्रमुख उद्देश्य हैं। जल, जंगल, जानवर और जमीन इन चार बातों के संवर्धन के लिए अपना संपूर्ण योगदान देना समस्त महाजन की कार्य की दिशा है।
समस्त महाजन द्वारा जो सामाजिक कार्य किए जा रहे हैं उनका संस्कार स्रोत क्या है?
संस्कार के स्रोत हमारे प. पू. चंद्रशेखरजी विजय महाराज हैं। उन्होंने मुझे सामाजिक कार्य का यह विचार दिया। १९८२ में उनसे पहली बार मिला तब मैं युवा था। १९९० तक मैं मेरे उद्योग में सफल रहा। तब तक बीच-बीच में उनके दर्शन होते रहते थे। १९९६ में उनके इसी तरह दर्शन हो गए। तब अचानक उनके मुंह से निकला कि तुमने उद्योग में बहुत कुछ कमाया है, अब थोड़ा जीवदया का काम करो। मुझे आश्चर्य हुआ। वह मेरे गुरु थे। उनकी आज्ञा प्रमाण मानकर मैंने जीवदया का कार्य करना प्रारंभ किया।
समस्त महाजन के अन्य उपक्रम कौन से हैं?
आज की पीढ़ी को हम मूल्यरहित शिक्षा दे रहे हैं। इससे समाज का स्तर गिरता जा रहा है। समस्त महाजन ने पहली से बारहवीं तक मूल्याधारित, अपनी संस्कृति से जुड़ा, भविष्य में अच्छे संस्कार देने वाला, समाज निर्माण करने वाला शिक्षा पाठ्यक्रम विकसित किया है। हमने गुजरात सरकार को यह शिक्षा पाठ्यक्रम पेश किया है। इसके अलावा प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकम्प, सुनामी, बाढ़, बारिश का प्रलय होने पर हम सहायता करते हैं। यह सहायता हम पैसे के रूप में नहीं देते। उस क्षेत्र का विकास करते हैं।
समस्त महाजन दशकोन्मुख है। आप जब इसका पुनरावलोकन करते हैं तो क्या पाते हैं?
एक ही बात बता सकता हूं। आत्मा को बहुत संतोष मिलता है। उसी के लिए काम करते हैं। १२,००० एकड़ में काम किया है। १२,००० एकड़ भूमि का वनीकरण हुआ है। ८० तालाब बनाए गए हैं। करोड़ों रुपया समाज कार्य के लिए सामाजिक संस्थाओं को दान में दिया है। अनेक गौशालाओं व गौसेवा परियोजनाओं को हमने बल प्रदान किया है। यह कार्य राष्ट्र, समाज, पर्यावरण और धर्म से जुड़ा है तो उस कार्य से मन को शांति तो मिलती ही है।
उत्तराखंड त्रासदी में आपकी संस्था ने क्या-क्या सहायता दी?
टीवी पर उत्तराखंड त्रासदी की खबर देखी। आप इस तरह के कार्य कर रहे होते हैं तो समझ में आ जाता है कि क्या करना है। हवाई जहाज द्वारा हमारी छः लोगों की टीम देहरादून पहुंची तथा वहां की सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग से सम्पर्क किया कि हम यहां राहत कार्य करना चाहते हैं तथा उनसे सर्टिफिकेट लिया। अन्य बहुत सारी संस्थाएं आईं, पर बहुतों को काम करने में परेशानी हो रही थी क्योंकि उन्होंने सरकारी मशीनरी से इजाजत ही नहीं ली थी। ॠषिकेश के नदी किनारे की झोपड़पट्टियों में बहुत खराब स्थिति थी। हमारी संस्था ने उनके पुनर्निर्माण में मदद की। चूंकि यहां से सामान ले जाने पर माल ढुलाई का ज्यादा खर्च होता इसलिए हमने खरीदी का काम भी वहीं किया। ऐसे समय में वहां के लोगों ने भरपूर सहयोग दिया क्योंकि उन्हें लगता था कि यह सहायता हमारे लोगों को ही दी जा रही है। वहां की पूरे ४५० घरों की बस्ती का दो दिनों के भीतर पुनर्वसन किया, जिसका काफी अच्छा प्रभाव पड़ा। इतने बड़े हादसे के बाद इतने कम समय में लोगों का जीवन पटरी पर आना, बहुत प्रभावशाली रहा। लगभग ५० गर्भवती महिलाओं को सारे सुरक्षा उपकरण उपलब्ध कराए।
आपने जलाशयों के निर्माण के लिए भी कार्य किया उस पर प्रकाश डालें।
पिछले साल जब अकाल पड़ा था तब हमने बीड जिले में काम किया था। हम वहां के हर गांव में गए। आर्थिक सहायता तो की लेकिन उसका स्वरूप भीख के रूप में नहीं था। हमने वहां के तालाब को खोदना शुरू किया। गांव के लोगों ने ही इसे खोदा। उस मिट्टी को गांव के खेतों में डाला। इस काम का उन्हें २५० रु. के रोज के हिसाब से मेहनताना दिया। पहले दिन २५० रुपये दिए। दूसरे दिन २५० रु. का अनाज दिया। तीसरे दिन २५० रु. का चारा दिया। चौथे दिन २५० रु. का किराना सामान दिया। पांचवेें दिन फिर से २५० रुपये नगद दिए। यह क्रम ४० दिन तक चलाया। एक गांव में करीब १० लाख रुपये खर्च किए। आज ११७ गांवों में पानी की समस्या नहीं।
इसी तरह जालना में ६०० एकड़ का बड़ा तालाब बना है। उसकी मिट्टी किसानों को दी। जिनके खेत खत्म हो गए थे उनको नई मिट्टी और अच्छी मिली। तालाब की सफाई होने से मिट्टी कचरा निकलने से वहां बारिश का पानी जमा होने की जगह बन गई तो वहां पर तालाब पूरी तरह भर गए।
मुंबई के दामूपाडा इलाके में भीषण आगजनी हुई थी। उस समय भी समस्त महाजन संस्था ने सर्वप्रथम राहत कार्य शुरू किया था। उस समय का आपका अनुभव साझा करें।
दामूपाडा की पूरी बस्ती आज की चपेट में आ गई थी। उके पास कुछ भी नहीं बचा था। हमने सबसे पहले उनके खाने की व्यवस्था की क्योंकि साफ-सुथरा अन्न और जल मिलना सबसे अधिक आवश्यक होता है। शुरू में कुछ दिन हमे उन्हें खिचडी दी। उसके बाद उन्हें पुन: अपना परिसर साफ-सुथरा करने के लिए प्रेरित किया। फिर धीरे-धीरे अन्य जीवनोपयोगी वस्तुओं को भी बांटा। हमारा कार्य देखकर कई अन्य लोग भी आवश्यक वस्तुएं प्रदान करने के लिए आगे आए। लोगों ने हमें भोजन बनाने के लिए गैस सिलेंडर दिए, कुछ ने उन्हें कपडे बांटें कुछ ने तो जलेबी और अन्य मिठाइयां भी बांटी। यहां हमने एक बात महसूस की कि लोगों ने उतना ही लिया जितनी उनको आवश्यकता थी। कहीं कोई छीना झपटी या अप्रिय घटना नहीं हुई।
संस्था द्वारा नियमित रूप से चलाए जा रहे उपक्रम कौन से हैं?
वैसे तो हमने शुरुआत जीवदया को लेकर की लेकिन आगे चलकर जब संस्था के पास पैसा आने लगा तथा यह महसूस किया कि और क्षेत्रों में कार्य किया जा सकता है तो हमने उस सेवाभाव को तमाम क्षेत्रों में विस्तार दिया। हमने देखा कि कड़ी के छात्रावास के पास लगभग १० एकड़ जमीन है पर वहां मात्र बीस-पच्चीस छात्राओं की ही व्यवस्था है। साथ ही वहां के ट्रस्टी ने बताया कि उन पर कुछ बकाया भी है तो हमने तुरंत चेक काटकर एक लाख बासठ हजार के बकाये का भुगतान कर दिया। साथ ही उन्हें कहा कि आप यहां पर बच्चियों की संख्या बढ़ाइए तथा संन्यासियों के लिए एक उपाश्रय भी बनवाएं। हमने वहां पर जरूरी निर्माण कार्य भी कराया। फिर हमने सोचा कि ऐसे बोर्डिंग्स को डेवलप किया जा सकता है। पता चला कि गुजरात भर में ऐसे १०१ बोर्डिंग्स हैं। पिछले पांच वर्षों में इस पर काफी कार्य किया तथा निरंतर कर रहे हैं। जीवदया तथा बोर्डिंग्स के मामलों में हम नए खोलने की बजाय पुराने संस्थानों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। अब तो बाढ़, अकाल, सूखा, भूकम्प जैसी तमाम आपदाओं में सेवा करने हेतु ‘समस्त महाजन’ अग्रिम पंक्ति में खड़ा रहता है।
समस्त महाजन संस्था से जुड़े ज्यादातर लोग व्यवसायी हैं। आप सभी लोग अपनी व्यस्त दिनचर्या में से समय निकालकर यह काम कैसे करते हैं?
यह सही बात है कि इस संस्था से जुड़े ज्यादातर लोग व्यवसायी हैं। इसलिए हमें समय प्रबंधन करना पड़ता है ताकि व्यवसाय में भी समस्या न खड़ी हो तथा समाज सेवा का कार्य सुचारु रूप से चले। मुंबई से बाहर के लिए हम लोग शनिवार को जाकर सोमवार सुबह आ जाते हैं। हमारी विशेषज्ञों की टीम तथा अन्य लोग बैठकर किसी भी घटना विशेष पर चर्चा करते हैं तथा लगातार आ रहे फंड को किस प्रकार समाज के सद्हेतु लगाया जाए इस पर विचार करते हैं।
 
संस्था के रूप में आप समाज से किस प्रकार की सहायता की अपेक्षा रखते हैं?
हमारा पूरा ध्यान इस बात की तरफ रहता है कि हमें समाज का रचनात्मक सहयोग मिलता रहे। साथ ही हम इस बात का भी पूरा ख्याल रखते हैं कि समस्या की जड़ तक जाया जाए। १९७२ में पूरे महाराष्ट्र में ८८ हजार तालाब खोदे गए थे। अगले चालीस सालों तक किसी ने महाराष्ट्र में अकाल की बात नहीं की। २०१३ में जाकर वहां भीषण अकाल आया। हमने सतारा के मानखटाऊ जैसे तमाम स्थानों पर लोगों को तालाब खोदने में मदद की तथा उन्हें प्रति दिन के हिसाब से सेवा शुल्क भी दिया। साथ ही हम लोगों से यह अपेक्षा रखते हैं कि वे तालाबों में मछली मारना बंद करें ताकि पानी बना रहे।
अब उन तालाबों की क्या स्थिति है? क्योंकि तालाब खोद देने से कुछ नहीं होता बल्कि रखरखाब जरूरी होता है।
बिलकुल सही बात कही आपने। २०१३ में तालाब खोदने के बाद हमें लगा कि अब लोग उनकी देखभाल स्वयं करेंगे पर २०१६ में एक बार फिर महाराष्ट्र के १६ जिलों के १२३ तालुकाओं के २७,७२३ गावों में अकाल पड़ा। तब हमने फैसला किया कि अब हम महाराष्ट्र के इन क्षेत्रों में अगले दस वर्षों तक कार्य करेंगे ताकि इस अभियान को व्यापक रूप दे सकें। यह सिर्फ हमारे वश का काम नहीं है बल्कि सारे समाज तथा जितनी भी संस्थाएं कार्य कर रही हैं, उन सब को कार्य करना पड़ेगा।
मुंबई की कई दुकानों में हमें समस्त महाजन संस्था की दानपेटी दिेखाई दिखाई देती है। इसका क्या उद्देश्य है?
हमने ऐसी लगभग पांच सौ से ज्यादा दान पेटियां लगाई हैं, जिनसे आने वाला सारा पैसा उस महीने के सामाजिक कार्यों में लगा देते हैं । इस प्रकार हमारे कार्यों में लोगों की सहभागिता हो जाती है।
समस्त महाजन संस्था के अध्यक्ष के नाते आपकी भविष्य की योजनाओं की जानकारी दीजिए।
महाराष्ट्र के गावों में तालाबों के पुनर्व्यवस्थापन के लिए हमने १० मशीनें खरीद ली हैं ताकि कार्य में सुगमता हो। लोगों से खुदाई का कार्य कराने की बजाय कम्पेनिंग व मैपिंग का कार्य ले रहे हैं। अब तो लोग सामने से पैसा दे रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि यह कार्य उनके फायदे के लिए किया जा रहा है। सरकार के सामने भी यह प्रस्ताव रख रहे हैं कि इसमें लोगों का सहभाग होना चाहिए ताकि वे इससे जुड़ाव महसूस कर सकें। आगे हम कई संस्थाओं के साथ मिलकर जल संरक्षण पर व्यापक कार्य करने वाले हैं। २० अप्रैल को जो हमने कार्य किया उसमें दीनदयाल उपाध्याय शोध संस्थान हमारे साथ जुड़ा तथा हमने मिलकर ४७ गावों में कार्य किया।
 
संस्था को अब तक कई पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। कृपया हमारे पाठकों को इसकी जानकारी दें।
देखिए, हम यह सारा कार्य समाज की उन्नति के लिए करते हैं न कि पुरस्कारों के लिए। यह सही है कि लोगों व संस्थाओं को हमारा काम सही लगा तो उन्होंने हमें समय-समय पर पुरस्कृत किया पर मुझे नहीं लगता कि उनका उल्लेख करना बहुत आवश्यक है।
‘हिंदी विवेक’ के माध्यम से आप समाज को क्या संदेश देना चाहेंगे?
किसी भी राष्ट्र की प्रगति में उसके प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग अत्यावश्यक है। अतः हम सबका फर्ज बनता है कि हम जन जागरण लाएं ताकि हमारी भविष्य की पीढ़ियां एक उच्च व स्वस्थ जीवन जी सकें। हम जल संसाधनों के दोहन को रोकने के प्रति लोगों को शिक्षित करें ताकि अकाल जैसी स्थितियां ना बनें।

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