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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर सार्थक विहंगम दृष्टि

by धर्मेन्द्र पाण्डेय
in दिसंबर २०१७, संघ
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वैसे तो ‘संघ’ शब्द के कई पर्याय हैं; मसलन वृंद, समुदाय, समूह, गण, झुंड इत्यादि। पर इस शब्द का प्रयोग करने पर सबसे पहली जो तस्वीर हम सबकी आंखों में आती है, वह है भगवा ध्वज तले सफेद व खाकी पहिरावे में ‘नमस्ते सदा वत्सले…’ की मधुरिमा से आलोकित स्वयंसेवकों का समूह जो निःस्वार्थ भाव से जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपने आपको समर्पित करते हुए राष्ट्र भावना को सार्थकता प्रदान करते हैं। अपने प्रवास के ९ दशकों में तमाम कठिनाइयों, दबावों तथा प्रतिबंधों को परे करते हुए विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसमूह बन चुके ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ पर असंख्य पुस्तकें आ चुकी हैं, कुछ उनके स्वभावगत समर्पण को दर्शाने वाली तो कुछ धुर विरोधी भी। इन तमाम पुस्तकों की श्रेणी में एक और शोधपरक पुस्तक आई है, ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (विहंगम दृष्टि, भाग-१) केशव से माधव तक’ जिसमें लेखक प्रो. त्रिलोकीनाथ सिन्हा ने प्रथम दो सरसंघचालकों केशव बलिराम हेडगेवार जी तथा गुरुजी माधव सदाशिव गोलवलकर के जीवन तथा कर्तव्य वृत्त तथा राष्ट्रीय व सामाजिक माहौल को परखने की कोशिश की है।
इस पुस्तक की सबसे बड़ी खासियत है इसका शोधपरक साहित्य जो कि २०० से अधिक पृष्ठों में फैला हुआ है। लेखक के शुचि लेखन ने डॉ. हेडगेवार तथा गोलवलकर गुरुजी के संबंधों की कितनी सटीक व्याख्या की है कि,
‘‘जैसे नियति ने स्वामी रामकृष्ण परमहंस के सान्निध्य में युवक नरेंद्र को पहुंचाकर अध्यात्म की भट्टी में तपाकर विवेकानंद बना विश्व-वंद्य बना दिया वैसे ही सारगाछी आश्रम में स्वामी अखंडानंद की शरणागति में अध्यात्म की भट्टी में माधव नाम के तेजस्वी युवक को भी तपाकर केशव (डॉ. हेडगेवार) के पास मानो नियति ने ही पहुंचाकर लक्षावधि युवकों का हृदय सम्राट बना दिया।’’
जैसा कि ऊपर कह चुका हूं, इस पुस्तक की सबसे बड़ी खासियत है कि इसमें संघ की नियमावली, उसके द्वारा किए जा रहे सामाजिक कार्यों के साथ ही साथ विभाजन की विभीषिका, तत्कालीन जम्मू-कश्मीर मुद्दा, साम्प्रदायिक हिंसा तथा राजनैतिक चिंतन पर खूब मुखर होकर बोला गया है जो कि किसी भी पुस्तक को पठनीय तथा संग्रहणीय बनाने की पहली शर्त है। एक स्थान पर सिन्हा लिखते हैं कि,
‘‘विडम्बना यह है कि भ्रमित नेताओं ने गलत ढंग से धर्मनिरपेक्षता को व्यवहार में हिंदू विरोध के रूप में अपनाया जबकि उसका वास्तविक अर्थ होता है कि शासन द्वारा किसी विशेष धर्म के अनुयायियों के साथ संलग्न न रहकर प्रत्येक धर्मानुयायियों के प्रति सद्भाव रखे।’’
विभाजन की विभीषिका के दौर में पूज्य गुरुजी द्वारा बनाए गए ‘पंजाब रिलीफ कमेटी’ द्वारा लगभग ५० हजार लोगों को राहत पहुंचाए जाने की बात हो या फिर १९५० में असम प्रांत के भीषण भूकंप में किया गया राहत कार्य, १९५१-५२ का महाराष्ट्र व बिहार में आया भीषण भूकंप हो या समय-समय पर आने वाली बाढ़ अथवा सुनामी; संघ के कार्यकर्ता देश व जन सेवा के लिए हमेशा आगे आते रहे हैं। यहां तक कि १९६५ के पाकिस्तान युद्ध के समय तत्कालीन प्रधान मंत्री लालबहादुर शास्त्री के आह्वान पर राजधानी दिल्ली में नागरिक सुरक्षा का दायित्व भी लिया।
पुस्तक की एक और बड़ी खासियत है कि यह आपको बोर नहीं होने देती। साथ ही राजनैतिक घटनाओं का इतना सटीक विश्लेषण किया गया है कि संघ की जानकारियों से बाहर निकलकर यह पुस्तक एक तथ्यात्मक संदर्भ बन जाती है। आप राष्ट्रवादी बहसों के दौरान धड़ल्ले से बेहिचक इस पुस्तक के अंशों का उद्धरण कर सकते हैं जिसके लिए प्रो. सिन्हा कोटि धन्यवाद के पात्र हैं।
हिन्दू राष्ट्र का प्रखर प्रहरी – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
संस्कृति प्रकाशन
लेखक – प्रो. त्रिलोकीनाथ सिनहा
मूल्य – रु ३००/-

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Tags: mohanbhagvatrashtriyarsssanghभगवाध्वजभारतीय इतिहासहिंदुधर्महिंदुराष्ट्र

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