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सैकड़ों निराधार बेटियों के ‘पापा’ महेश सवाणी

by pallavi anwekar
in मार्च २०१८, साक्षात्कार
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सैकड़ों निराधार बेटियों के ‘ पापा ’ बने सूरत के पी . पी . सवानी समूह के श्री महेश सवानी जी ! उतही उनके दामादों की संख्या हो गई। उनके इस सेवा कार्य को देख कर अचरज होता है। उनके पिताश्री से आरंभ बेटियों को सम्बल देने का यह यज्ञ अविरत चल रहा है। यही नहीं, बेटियों और दामादों की दिक्कतों को वे उसी तरह हल करते हैं जैसे उनके अपने पापा कर सकते थे। बेटियों और दामादों से उनका यह रिश्ता जीवनभर का और अनूठा है।

 सेवा के प्रति आपका क्या दृष्टिकोण क्या है?
यह भावना मेरे पिताजी से होकर मुझ में आई। १९७० के दशक में जबकि हमारी आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी, तब भी वे अपनी आमदनी का एक हिस्सा समाज के लिए निकाल कर रखते थे। अर्थात् यह भावना हमें घुट्टी में मिली। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद इक्कीस साल की उम्र में जब मैं व्यवसाय में उतरा तो हम २० दोस्तों ने मिल कर ब्लड बैंक बनाया क्योंकि उस समय हमारे वराछोड़ में ऐसी कोई सुविधा न थी। एक-एक हजार मिला कर बनाया गया वह बैंक आज तीन सौ करोड़ से अधिक का हो चुका है। मुंबई में व्यवसाय के दौरान सूरत से आपरेशन के लिए आने वालों को अपने फ्लैट में ठहराते थे तथा खून की आवश्यकता पड़ने पर हीरा मार्केट में लोगों से खून दिलवाते थे। पिताजी से एक चीज हमेशा सीखने को मिली कि, किसी इंसान के चेहरे पर खुशी लाना करोड़ों रुपए कमाने से ज्यादा सुखकर है।
क्या इस कार्य हेतु आपने कोई फाउंडेशन बनाया है?
नहीं, हमारा कोई फाउंडेशन नहीं है। पी. पी. सवानी ग्रुप हमारी व्यक्तिगत संस्था है जिसमें मेरे पिताजी तथा हम तीन भाई सदस्य हैं। हम किसी से डोनेशन नहीं लेते। हमें जब भी कभी लगता है कि किसी की सहायता करनी चाहिए तो हम सहायता करते हैं।
अर्थात् सारा कार्य आप अपने व्यवसाय के लाभांश के एक हिस्से से करते हैं?
   बिलकुल। २००८ तक पिताजी अपने हिसाब से सामाजिक कार्य करते थे पर उसके बाद हमने उसे व्यापक रूप देने की शुरुआत की। आज हम सूरत शहर में चार बड़े सामाजिक कार्य करते हैं। सूरत में ६८०० बच्चे ऐसे हैं जिनके पिता नहीं हैं। हम ऐसे बच्चों को दसवीं तक की मुफ्त शिक्षा दिलवाते हैं, वह भी उसी विद्यालय में जिसमें वे पढ़ते हैं। जबकि इस तरह की बच्चियों को स्नातक तक की पढ़ाई में सहयोग देते हैं। इस समय लगभगम ३९७ बच्चियां स्नातक की पढ़ाई कर रही हैं। इसकी शुरुआत अपने पिताजी के जन्मदिन पर करते हुए ‘वयोत्सव’ नाम दिया है। दूसरा कार्यक्रम हमने अपनी मां के जन्मदिन पर शुरू किया- ‘जननी’, जिसके तहत हमने उन २२ हजार परिवारों को, जिनके घर की मुखिया विधवा हैं तथा बच्चे छोटे हैं, न्योता दिया कि उस विधवा महिला तथा उसके बच्चे का इलाज हमारे पी.पी. सवानी मल्टीस्पेशियालिटी हास्पिटल में मुफ्त किया जाए जब तक कि उस बच्चे की शिक्षा न पूरी हो जाए। ये सुविधाएं केवल सूरत जिले के लिए हैं। हमारा अगला बड़ा कार्य है पिता विहीन बच्चियों की शादी करवाने का। इसके तहत हम गुजरात भर की लड़कियों का विवाह करवाते हैं। इस साल से तो इसमें राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश तथा बिहार की सूरत निवासी बेटियां की भी शामिल होंगी। हमारा अगला सेवा कार्य है इन बच्चियों के पहले बच्चे के प्रसव का खर्च उठाना। इसके लिए हमने सूरत शहर के तीन बड़े अस्पतालों के साथ अनुबंध किया है जहां इनके प्रथम प्रसव का पूरा खर्च तथा पैदा होने वाले बच्चे तीन साल का इलाज का खर्च हमारी संस्था देगी।
आपने अपनी इस सेवा भावना के तहत केवल विधवा बहनों का ही चुनाव क्यों किया?
दरअसल मेरे एक दूर के भाई की मृत्यु अपनी बेटियों की शादी के एक सप्ताह पहले हो गई थी। हमने उसकी शादी करवा पूरा खर्च वहन किया। उस दौरान अपनी भाभीजी का दुःख देख कर मैंने निर्णय किया कि हमें आगे चल कर इस तरह की महिलाओं का सहयोग करने में आगे आना है। हमारी पूरी मंशा है कि उनकी बच्चियों को हर वह उड़ान मिले जो उन्हें अपने पिता के रहने पर मिल सकती थी। पहले साल हमने ४७ विवाह कराए। पिछली बार हमने २५१ बच्चियों की शादी करवाई।
आप तो सेवा भावना के तहत कार्य करते हैं पर ठगने वाले लोग भी तो मिल जाते होंगे। इसकी रोकथाम कैसे करते हैं?
   कभी-कभी ऐसे लोग भी मिल जाते हैं। पर हमारी पूरी मंशा रहती है कि दो चार की गड़बड़ी के कारण बाकी बच्चियों के ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। वैसे ज्यादातर यही होता है कि दूसरी बच्चियां ही बता देती हैं कि सामने वाली लड़की झूठ बोल रही है। बहुत सारी लड़कियां तो ऐसी भी आती हैं जो सिर्फ मेरी बेटी बनना चाहती हैं तथा उन्हें कुछ और नहीं चाहिए होता है।
जैसा कि आपने कहा कि आप शादी के बाद भी जिम्मेदारियां निभाते हैं तो ये जिम्मेदारियां किस प्रकार की होती हैं?
   ठीक उसी तरह, जैसे एक बाप की होती हैं। सूरत में रहने वाली ज्यादातर बेटियां हफ्ते में एक बार जरूर मिलती हैं। रक्षाबंधन के दिन लगभग १२०० से अधिक बेटियां मेरे बेटे को राखी बांधने आती हैं। मकर संक्रांति के अवसर पर मैं उनके घर प्रथानुसार चिक्की भेजता हूं। आम के सीजन में आम तथा दीपावली पर सूखा मेवा जाएगा। साल में एक बार उनका मिलन कार्यक्रम होता है। हमने दामादों तथा बेटियों का ग्रुप बनाया है। २५ बेटियों अथवा दामादों पर एक कैप्टन होता है। हमें जो सामान भेजना होता है उनके पास भेज देते हैं। वे बाकी के लोगों को सामान बांट देते हैं।
लड़कियों के लिए दूल्हे आप ढूंढते हैं या उनके परिवार वाले?
यह परिस्थिति पर निर्भर करता है। कभी हम ढूंढते हैं तो कभी घर वाले। हम प्रति वर्ष लगभग २० से २५ बेटियों की मंगनी करवाते हैं।
फादर्स डे पर आपकी मानस पुत्रियों ने एक कार्यक्रम किया था। उस समय किस तरह के भाव मन में आए?
वह मेरे लिए बड़े ही गौरव का क्षण था। सामान्यतः आप किसी लड़की को करोड़ रुपए भी दे दीजिए पर वह आपको पापा नहीं बोलेगी। कहीं न कहीं उनके प्रति किए गए मेरे कार्य उन्हें ऐसा बोलने की प्रेरणा देते हैं। मैं स्वयं को दुनिया का सब से खुशनसीब बाप मानता हूं कि ऊपर वाले ने मुझे इतनी सारी बेटियों का पिता बनाया है।
पी.पी.सवानी ग्रुप के माध्यम से अन्य किन क्षेत्रों में सेवा कार्य किए जा रहे हैं?
२००८ से पहले पिताजी के सानिध्य में हमारा ग्रुप हमारे पटेल समाज के लोगों के लिए विद्यालयों, अस्पतालों आदि के सेवा कार्यों में समाज के अन्य समाज सेवियों के साथ मिल कर कार्य करता था पर २००८ से ग्रुप ने अपने स्वयं के कार्य करने शुरू किए। पी.पी. सवानी विद्यालय इस समय गुजरात का नंबर एक विद्यालय है, ५४ हजार विद्यार्थियों के साथ। सूरत के सभी २५६ विद्यालयों के पिता विहीन बच्चों की सारी फीस हम सीधे विद्यालय को दे देते हैं। आज हम ८६०० बच्चों की फीस देते हैं।
आपका कार्यक्षेत्र सूरत और आसपास का क्षेत्र है। क्या इससे बाहर निकल कर कार्य करने का भी इरादा है?
देखिए, मैं बहुत छोटा आदमी हूं। अपनी क्षमताएं जानता हूं तथा अपनी सीमा से बाहर कार्य करने में विश्वास नहीं रखता। सूरत में काफी लोग हर तरह से मुझ से बड़े हैं। आप इतने व्यापक तौर पर मत करिए पर कम से कम अपने समाज में तो कर ही सकते हैं। इतना नहीं तो अपने आसपास अथवा सोसाइटी में ही कार्य करिए।
आप तो अपने पिताजी की इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं, पर क्या आपकी भावी पीढ़ी भी ऐसा ही सोचती है?
मेरे बेटे ने लंदन से पढ़ाई की है तथा बेटी ने मुंबई से। पिछले वर्ष मेरे बेटे की शादी थी। मैंने उससे पूछा कि तुम्हें किस तरह के इंतजाम चाहिए शादी में? मेरे बेटे ने कहा, ‘‘पापा, मुझे भी उसी तरह से और उसी मंडप में शादी करनी है, जहां दीदियों की हो रही है। शादी तो दो आत्माओं का मिलन होता है।’’ मैंने उसकी सगाई के लिए ११ लाख रुपए देकर कार्यक्रम रखा था पर उसने मना कर दिया। यहां तक कि मेरे पिताजी ने मेरी तथा मेरे भाइयों और बहन की शादी भी सामूहिक विवाह में करवाई थी।
आपके कार्यों का कैनवास काफी बड़ा है। उसके लिए काफी धन की आवश्यकता होती है। वह कार्य कैसे करते हैं?
पहली बात तो यह है कि, मेरी नजर में यह चैरिटी नहीं है; क्योंकि मैं अपनी बेटियों के लिए खर्च करता हूं इसलिए ऊपर वाला स्वयं दे देता है। सब से मुख्य बात यह है कि ये सारी शादियां मैं दिसम्बर में करता हूं। दीपावली में हमारी क्लोजिंग होती है। उसके तुरंत बाद बड़ा काम करना हम सब के लिए कठिन होता है। पिछले साल नोटबंदी के बाद बहुतों को लगा कि मैं शायद न कर पाऊं; पर वह सारा कार्यक्रम भी उतने ही शानदार तरीके से हुआ, जितना हमेशा से होता आया था।
सामान्यतः लोग अपने सपनों को सजाने में जीवन लगा देते हैं। आप समाज के पीड़ित लोगों के लिए जीते हैं। क्या भाव आते हैं आपके मन में?
मेरा एकमात्र संकल्प बन गया है कि जब तक मैं जिंदा हूं, मेरी बेटियों को कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए। ऊपर वाला इतना दयालु है कि वह मुझे शक्ति देता रहेगा कि मैं अपनी सारी बेटियों का ख्याल रख सकूं।
आपने ऊरी हमले में शहीद हुए सैनिकों के परिवारों के लिए भी काफी काम किया है। उस पर प्रकाश डालिए।
हमने उनके बच्चों को आगे की शिक्षा में सहायता देने का संकल्प लिया है। फेसबुक काफी सहायक हुआ तथा जम्मू के जिलाधिकारी गोपाल शर्मा ने काफी मदद की। उनके सहायतार्थ एक कार्यक्रम भी किया जिसमें दो करोड़ रुपए जुटाए गए। पिछले साल हमारे कार्यक्रम में ऊरी हमले के शहीदों की विधवाओं को दीप प्राकट्य के लिए आमंत्रित किया।
आज भी समाज का एक बड़ा तबका गरीबी का जीवन जीने को अभिशप्त है। क्या उनके लिए भी कुछ करने की योजना है?
मैं करना तो बहुत कुछ चाहता हूं पर मेरी भी अपनी आर्थिक मर्यादाएं हैं। इस साल हमारे पास ६०० से ज्यादा फार्म आए हैं, बच्चियों की शादी के। पर हमारी क्षमता मात्र २५० की ही है। हमने समाज के अगुओं को आवाहन किया। सुरेशभाई लखानी ने कहा है कि अगले साल उनमें से १०८ बेटियों की शादी वे भावनगर में करवाएंगे। इस साल हमारे साथ मुगलिया परिवार जुड़ रहा है। एक साल बाद रमानी परिवार जुड़ रहा है।
आपकी भविष्य की क्या योजनाएं हैं?
हमारा पूरा ध्यान वर्तमान पर है। यदि लोगों का सहयोग मिलता जाए तो मैं अपने इस कार्य को व्यापक स्तर पर करना चाहता हूं। बस मेरी यही इच्छा है कि देश में किसी भी विधवा स्त्री की कोई बिटिया शिक्षा से विहीन तथा कुंआरी न रह जाए।
‘हिंदी विवेक‘ के माध्यम से समाज को क्या संदेश देना चाहेंगे?
मैं आप सब से वही बात एक बार फिर से कहना चाहूंगा जो पहले ही कह चुका हूं। यदि सभी लोग अपने आसपास की विधवाओं को सांत्वना दें तथा आवश्यकता पड़ने पर सहायता करें तो उन्हें न केवल संबल मिलेगा बल्कि उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।
आपके मंच पर राजनेता आते रहते हैं। किसी राजनेता ने प्रेरणा ली हो या सरकार ने कोई योजना बनाई हो, ऐसा है?
मैं इस मामले में नरेंद्र मोदीजी तथा आनंदीबेन पटेल की प्रशंसा करना चाहूंगा। आनंदीबेन जी ने गरीब महिलाओं के लिए ‘पुअर बाइ द मामेरू’ तथा ‘सात फेरे’ योजना बनाई जिसके तहत गरीब बेटियों को १०-१० हजार रुपए मिलते हैं। मैंने अपनी बेटियों को कह रखा है कि आप ये पैसे जमा कर दो। २२ साल बाद आपकी बेटियों की शादी के समय यह राशि लगभग ७ लाख हो जाएगी जो कि आपकी बेटी की शादी के काम आएगी। वर्तमान मुख्य मंत्री विजय रुपानीजी ने भी काफी सहयोग दिया।
आपके इस नेक काम के लिए अब तक आपको कितने पुरस्कार मिल चुके हैं?
पुरस्कारों के विषय में तो बहुत ज्यादा याद नहीं है। मेरा पूरा आफिस ट्राफियों से भरा पड़ा है। फिर भी, लास वेगास में सम्मानित हो चुका हूं। दिल्ली में मदर टेेरेसा पुरस्कार, भारत ज्योति अवार्ड, भामाशाह अवार्ड समेत पांच या छः पुरस्कार मिले हैं। ग्रीनिज बुक, लिम्का बुक, गोल्डेन बुक, इंडिया बुक, एशिया बुक इत्यादि में भी मेरा नाम आ चुका है। अभी तक मेरे ये रिकार्ड नहीं तोड़े जा सके हैं। मैं चाहता हूं कि लोग सामने आएं तथा ये रिकार्ड टूटें

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