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किसने रची शाहीन बाग की साजिश?

किसने रची शाहीन बाग की साजिश?

by अवधेश कुमार
in देश-विदेश, मार्च २०२० - सुरक्षित महिला विशेषांक, सामाजिक
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शाहीन बाग का धरना झूठ और फरेब पर आधारित मोदी-शाह के खिलाफ कुत्सित साजिश का हिस्सा है। जरा आंदोलन स्थल पर जाइए और निरपेक्ष भाव से आंकलन कीजिए तो इस फरेब और इसके पीछे की अदृश्य शक्तियों का पर्दाफाश हो जाएगा।

शाहीन बाग देश से विदेशों की सुर्खियां बना रहा है। हालांकि अब उसकी लौ धीमी हो रही है। संख्या घट रही है। जिन लोगों को नागरिकता संशोधन कानून, एनसीआर एवं एनपीआर के बारे में झूठ फैला कर, डरा कर साजिश के तहत लोगों को भड़काया गया ताकि सरकार को बदनाम किया जा सके उनकी चिंता यह है कि आगे क्या किया जाए? हिंसक और सांप्रदायिक तत्व पर्दे के पीछे से भूमिका निभा रहे थे उनमें से अनेक उत्तर प्रदेश में गिरफ्तार हो चुके हैं। लखनऊ में हुए प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह से कड़ा रुख अपनाया उसके बाद विरोधियों को लगा कि भ्रम पैदा करके अगर लोगों को भड़काते रहेंगे तो खैर नहीं।

योगी आदित्यनाथ की लानत-मलानत करने वाले शायर मुनव्वर राणा की पीड़ा यह है कि उनकी दोनों बेटियों पर भी मुकदमा हो गया। वे भूल गए जो भी कानून तोड़ेगा उसके खिलाफ मुकदमा होगा और वह नाम के लिए नहीं होना चाहिए। आप यदि देश विरोध नारे लगाएंगे तो आपको फूलों की माला नहीं पहनाई जाएगी। हालांकि शाहीन बाग के धरनाकारियों के विरुद्ध ऐसा मुकदमा दर्ज नहीं हुआ है, लेकिन जिसे सच देखना और समझना हो वह निरपेक्ष भाव से वहां जाए; शांति से हो रहे घटनाक्रमों, लोगों की गतिविधियों, उनकी आपसी बातचीत सब का पर्यवेक्षण करें तो उसके सामने साफ हो जाएगा जो तस्वीर बनाई गई है, सच वह नहीं है। निष्पक्ष पर्यवेक्षण ही साबित कर देगा कि विरोध और धरना झूठ, भ्रम, गैर जानकारी, नासमझी, पाखंड, सांप्रदायिक सोच तथा भाजपा, संघ एवं नरेन्द्र मोदी व अमित शाह के प्रति एक बड़े वर्ग के अंदर व्याप्त नफरत की सम्मिलित परिणति है। कहने की आवश्यकता नहीं कि भाजपा विरोधी राजनीतिक पार्टियां और संगठन भी नफरत और सांप्रदायिकता को बढ़ावा देकर अपना उल्लू सीधा करने की रणनीति अपना रहे हैं।

बहरहाल, धरने का झूठ यह है कि नागरिकता संशोधन कानून मुसलमानों के खिलाफ है। कई लोग कहते मिल जाएंगे कि मोदी और शाह मुसलमानों को बाहर निकालना चाहते हैं या हमें कैद में रख देंगे, जो भ्रम है जिसे योजनापूर्वक फैलाया गया है। ज्यादातर को पता ही नहीं कि नागरिकता कानून, एनपीआर या एनआरसी क्या है। जिसकी आप कल्पना नहीं कर सकते वे बातें वहां सुनने को मिल जाएंगी। नासमझी यह है कि इसके पीछे भूमिका निभाने वाले कुछ लोग मानते हैं कि इससे मोदी सरकार के खिलाफ माहौल बनेगा एवं यह समय के पूर्व ही गिर जाएगी। पाखंड यह कि इसके पीछे गंदी राजनीति है, इस पर आने वाले भारी खर्च को अदृश्य शक्तियां वहन कर रही हैं और कहा जा रहा है कि लोग खर्च कर रहे हैं। सांप्रदायिक सोच के बारे में तो प्रमाण देने की जरूरत ही नहीं है। जिस तरह के नारे वहां लग रहे हैं उनमें कई ऐसे हैं जो सीधे-सीधे अपराधों की श्रेणी में आता है। यह भी एक जांच का विषय है कि आखिर उस धरने पर हो रहा खर्च कहां से आ रहा है। जिस तरह के टेंट वहां लगे हैं, जाड़े में रहने से लेकर सारी व्यवस्थाएं हैं, भोजन, नाश्ता, बेहतरीन साउंड सिस्टम ….सबका वित्त पोषण कहीं से तो हो रहा होगा। यह एक रहस्य है। आयोजक कहते हैं कि हम किसी से नकद या पेटीएम से कुछ लेते ही नहीं। तो खर्च कौन कर रहा है?

इस सच से तो कोई इनकार कर ही नहीं सकता कि इतने लंबे धरना से राजधानी दिल्ली के लाखों लोग इससे लगने वाले जाम से परेशान होकर इसके खिलाफ हैं। एक मुख्य मार्ग को इतने लंबे समय तक जाम किए रहना कौन सी लोकतांत्रिकता है? लोगों को इसी का उत्तर नहीं मिल रहा कि अगर आपको धरना करना है, भले इसका कोई तार्किक आधार नहीं, तब भी आप अनुमति लेकर जंतर-मंतर जैसे स्थान पर करिए ताकि किसी को परेशानी न हो। यह तो दागागिरी है कि हम सड़क को ही धरना स्थल बना देंगे। जब यह प्रश्न पूछा जाता है कि नागरिकता कानून से इस देश के मुसलमानों का क्या लेना-देना है तो धरने के पीछे की शक्तियां कहती हैं कि यह  एनपीआर एवं एनआरसी से जुड़ा है। वे समझाते हैं कि एनपीआर में हमसे पहचान मांगी जाएगी, खानदान का विवरण मांगा जाएगा और नहीं देने पर नाम के सामने सब लिख दिया जाएगा तथा एनआरसी में  नाम नहीं होगा। इस तरह सब लोग भारत के नागरिक नहीं रहेंगे। वे यहां तक दुष्प्रचार कर रहे हैं कि एक बार एनआरसी में नाम नहीं आने के बाद तुमको जिस सेंटर में रखा जाएगा वहां मोदी और शाह केवल एक शाम का भोजन देंगे। आप अगर शाहीन बाग नहीं गए हैं तो आपको इस पर सहसा विश्वास नहीं होगा कि ऐसा भी कहा जा रहा होगा। आप वहां चले जाइए तो आपका इन महान विचारों से सामना हो जाएगा।

इस तथाकथित आंदोलन की सबसे शर्मनाक हरकत है बच्चों और घरेलू महिलाओं का दुरुपयोग। यह भयावह है कि इसमें छोटे-छोटे बच्चों से गंदे, हिंसक और सांप्रदायिक संदेश दिलवाए जा रहे हैं। उनके अंदर किस तरह का जहर भरा जा रहा है यह उनके बयानों एवं नारों से मिल जाएगा। एक बच्चा-बच्ची जिसे आजादी का अर्थ नहीं मालूम उसे रटवा कर ‘हमें क्या चाहिए- आजादी’ का नारा लगवाया जा रहा है। एक बच्ची को पूरा बयान रटा दिया गया, जिसमें वह कह रही थी कि मोदी और शाह हमें मारने वाले हैं; हम उन्हें मार डालेंगे। वे हमको सेंटर यानी डिटेंशन सेंटर में रख कर एक ही शाम खाना देंगे, वह भी भरपेट नहीं। जरा सोचिए, इस तरह बच्चों के अंदर भय, सांप्रदायिकता और हिंसा का बीज बोने वाले आखिर देश को कहां ले जाना चाहते हैं? एक बच्चा नारा लगा रहा है कि जो हिटलर की चाल चलेगा और उसके साथ सब बोल रहे हैं कि वो हिटलर की मौत करेगा। उसे हिटलर के बारे में कुछ नहीं पता लेकिन उसे बता दिया गया है। बच्चे कितने खतरनाक मानसिकता से बड़े होंगे और क्या करेंगे यह सोच कर ही भय पैदा हो जाता है। बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष ने स्वयं पत्र लिखकर जिले के डीसी तथा पुलिस के बाल संरक्षण विभाग से जांच करके रिपोर्ट मांगी है। आयोग ने यह कहा है कि जिस तरह के नारे बच्चों के सुनने को मिल रहे हैं वे डरावने हैं। ऐसा लगता है कि उनका मानसिक उत्पीड़न हो रहा है। इससे उनको निकालने की जरूरत है। उनकी पहचान कर काउंसेलिंग की जाए। साथ ही उनके माता-पिता की भी काउंसेलिंग हो। यह रणनीति है कि बच्चों और महिलाओं को आगे रखो ताकि इन पर कोई कार्रवाई हो तो हमें छाती पीटने का मौका मिल जाए कि महिलाओं और बच्चों के साथ बर्बरता की गई। कुछ लोगों का तर्क है कि विरोध-प्रदर्शन-आंदोलन हमारा संवैधानिक अधिकार है। जरूर है; किंतु यह संवैधानिक भी तो हो। यह निहायत ही एक खतरनाक क्रम है जो विरोध प्रदर्शन के संवैधानिक दायरे में नहीं आ सकता। सबसे पहले तो किसी विरोध या आंदोलन का तार्किक आधार होना चाहिए। नागरिकता कानून मुसलमानों के खिलाफ है नहीं। सच यह है कि इसका किसी भारतीय से लेना-देना नहीं है। तो फिर विरोध किस बात का? एनपीआर 2010 में हुआ, 2015 में उसको अद्यतन किया गया। दोनों समय कोई समस्या नहीं आई तो अब कैसे आ जाएगी? एनआरसी अभी आया नहीं। जब आएगा और उसमें कुछ आपत्तिजनक बातें होंगी तो उसका विरोध किया जा सकता है। तो जिस विरोध का कोई तार्किक आधार नहीं है, जो विरोध दूसरे के अधिकारों का हनन कर रहा है, जिसमेें बच्चों का रैडिकलाइजेशन किया जा रहा है, जिसमें एक समुदाय को भड़काने जैसे सांप्रदायिकता के तत्व साफ दिख रहे हैं, जिसका पूरा उद्देश्य ही कुत्सित राजनीति है यानी मोदी-शाह को बदनाम कर सरकार को फासीवादी साबित करो, भारत को कलंकित करो कि यहां ऐसा कानून बना दिया गया है जिससे मुसलमानों की नागरिकता ही चली जाएगी… संवैधानिक अधिकार की परिधि में किसी दृष्टिकोण से आ ही नहीं सकता।

नागरिकता संशोधन कानून के विरोध, हिंसा, आगजनी, उपद्रव के दौरान उसके व सहयोगी संगठनों के 73 बैंक खातों में 120 करोड़ रुपये जमा कराने के प्रमाण हैं और एक-दो दिन के भीतर ही उसमें से अधिकांश रकम को निकाल भी लिया गया। हिंसक प्रदर्शनों के दौरान बैंक खातों से एक दिन में कई-कई बार पैसे निकाले गए। उदाहरण के लिए 12 दिसंबर को एक खाते से कुल 90 बार निकासी की गई थी। पीएफआई के नेहरू प्लेस (दिल्ली) स्थित खाते के साथ ही पश्चिम उत्तर प्रदेश के बहराइच, बिजनौर, हापुड़, शामली, डासना जैसी जगहों के खातों में भारी मात्रा में बार-बार नकदी जमा की गई। इसकी पड़ताल हो रही है।

कैसे इस पर अतिवादी तत्व हावी हैं उसका एक उदाहरण देखिए। एक पक्ष 26 जनवरी को शाहीन बाग धरने का अंत करना चाहता था लेकिन अतिवादी और नियंत्रणविहीन तत्व इतने हावी हो गए कि उन्होंने भनक लगते ही 29 जनवरी को भारत बंद का आह्वान कर दिया। हालांकि भारत बंद तो हुआ नहीं, लेकिन इससे शाहीन बाग को अंतहीन कथा बनाने में अतिवादियों को सफलता मिल गई। 26 जनवरी को खत्म करने की जगह भारी भीड़ जुटा दी गई। जब एक बार आप इस तरह झूठ और फरेब से लोगों को डरा कर, उकसा कर घर से निकाल देते हैं, परोक्ष रूप से पूरे अभियान का वित्त पोषण करते हैं,  वहां जाकर भाषण दे आते हैं कि जब तक सरकार झुके नही ंतब तक बैठे रहो तो फिर एक समय आता है जब सूत्र आपके हाथों से निकल जाता है। जेएनयू, जेमेई, एएमयू सहित अन्य जगहों के अतिवादी समूहों ने इस आंदोलन को ऐसी स्थिति में ला दिया है कि कांग्रेस, आम आदमी पार्टी आदि ताली पीटने वाले बाहर से कुछ भी कहें अंदर से उनकी धड़कनें बढ़ गईं हैं। वे करें तो क्या करें।

पीएफआई की उजागर हुई साजिशों के बाद इस धरने के पीछे की साजिश पर किसी तरह का संदेह नहीं रह जाता। प्रवर्तन निदेशालय या ईडी द्वारा पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के खातों की जांच से जो जानकारियां आईं हैं वो भयभीत करने वाली हैं। ईडी ने गृह मंत्रालय को सौंपी रिपोर्ट में माना है कि विरोध प्रदर्शनों के दौरान पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों के बैंक खातों में लेन-देन का विस्तृत ब्योरा उसकी भूमिका को संदिग्ध बना देता है। इस दौरान पीएफआई के खातों में बड़ी मात्रा में रकम जमा की गई और निकाली गई, जो संगठन के पहले की जमा और निकासी के तरीके से बिल्कुल अलग थे। नागरिकता संशोधन कानून के विरोध, हिंसा, आगजनी, उपद्रव के दौरान उसके व सहयोगी संगठनों के 73 बैंक खातों में 120 करोड़ रुपये जमा कराने के प्रमाण हैं और एक-दो दिन के भीतर ही उसमें से अधिकांश रकम को निकाल भी लिया गया। हिंसक प्रदर्शनों के दौरान बैंक खातों से एक दिन में कई-कई बार पैसे निकाले गए। उदाहरण के लिए 12 दिसंबर को एक खाते से कुल 90 बार निकासी की गई थी। पीएफआई के नेहरू प्लेस (दिल्ली) स्थित खाते के साथ ही पश्चिम उत्तर प्रदेश के बहराइच, बिजनौर, हापुड़, शामली, डासना जैसी जगहों के खातों में भारी मात्रा में बार-बार नकदी जमा की गई। इसकी पड़ताल हो रही है।

हिंसक प्रदर्शन के दिन या उससे एक दिन पहले इतनी निकासी शांति और सद्भावना स्थापित करने के लिए तो नहीं हो सकती। इसके आधार पर ईडी का यह निष्कर्ष तत्काल सच लगता है कि छह जनवरी तक सीएए के खिलाफ हिंसक प्रदर्शनों के लिए पीएफआई ने धन की व्यवस्था की थी। छह जनवरी के बाद की जांच अभी जारी है। वस्तुतः नागरिकता कानून विरोधी हिंसा की साजिश और उसे अमल में लाने में पीएफआई की भूमिका के बारे में कई राज्यों की पुलिस ने केन्द्र सरकार को रिपोर्ट दी है। उत्तर प्रदेश से करीब सवा सौ इसके लोग गिरफ्तार हो चुके हैं। इससे पीएफआई की समस्या तो बढ़ी है लेकिन उसके साथ उनकी भी बढ़ी है जो प्रत्यक्ष तौर पर पीएफआई से जुड़े नहीं थे लेकिन उनके खातों से पैसे गए या खातों में आए। नागरिकता संशोधन विधेयक 4 दिसंबर को संसद में पेश हुआ, और इसके बाद से पीएफआई से जुड़े खातों में करोड़ों की नकदी आना और निकालना शुरू हो गया। जांच एजेंसी की जानकारी से यह बात सामने आई है कि 4 दिसंबर 2019 से 6 जनवरी 2020 तक 15 बैंक खातों में 1.40 करोड़ रुपये जमा किए गए थे जिसमें 10 खाते पीएफआई के और पांच खाते रेहब इंडिया फाउंडेशन के थे। जमा करने के बाद 2000 से लेकर 5000 तक की राशि बार-बार निकाली गई थी। ज्यादातर जमा और निकासी धरना प्रदर्शन के दिन या उस वक्त के आसपास होती थी। जिस तरीके का मनी ट्रेल हुआ है उससे यह साबित होता है कि विरोध प्रदर्शन की लिए ही पैसा जुटाया गया और खर्च किया गया। इनमें कुछ वकीलों के खातों में भी धन स्थानांतरण का प्रमाण है जिसमें कपिल सिब्बल, दुष्यंत दवे, इंदिरा जयसिंह आदि शामिल हैं।

कपिल सिब्बल बता रहे हैं कि उनके खाते में जो धन आए उसकी तिथि आंदोलन आरंभ होने के पहले की है। अब जो भी तर्क दीजिए, इस संगठन से आपका संबंध भले वकील के नाते ही रहा है; देश यह जानना चाहेगा कि आपका संबंध ऐसे संदिग्ध संगठनों से क्यों होता है? इंदिरा जयसिंह नरेन्द्र मोदी सरकार के खिलाफ हर ऐसे अभियान की भागीदार होती हैं।

मानवाधिकार के नाम पर आग उगलने तथा उच्चतम न्यायालय का इस्तेमाल कर अपना दबदबा और भय कायम रखने वाली इंदिरा जयसिंह को भी संभव है ईडी की पूछताछ प्रक्रिया से गुजरना पड़े। ऐसे अनेक लोग इसके घेरे में आएंगे जिन्होंने सोचा था कि नरेन्द्र मोदी सरकार के खिलाफ मुसलमानों को भड़का कर अपना हित साधा जा सकता है।

तो हमें अभी प्रतीक्षा करनी होगी। किंतु यह साफ हो गया कि नागरिकता संशोधन कानून पारित होने के पहले से ही देश भर में हिंसा फैलाने तथा प्रचंड विरोध की साजिश रची गई थी। नागरिकता संशोधन कानून, एनपीआर, एनसीआर तो इसका बहाना बना है। बहरहाल, अब जब देश के सामने साफ हो गया है कि पूरा आंदोलन मोदी-शाह के खिलाफ साजिश का अंग है। जिस शाहीन बाग को देश बचाने और संविधान बचाने के आंदोलन का प्रतीक बनाया गया है वह उसी साजिश का अंग है तो जाहिर है, इसका बहुस्तरीय खामियाजा काफी लोगों को भुगतना पड़ेगा। पीएफआई कानूनी तौर पर प्रतिबंधित होगा। जो निजी तौर पर हिंसा में शामिल हए वे कानून के शिकंजे में आ रहे हैं। वे बड़े नाम जिनका चेहरा लेन-देन में उजागर हुआ वे भी सहभागी बनेंगे।

नागरिकता संशोधन कानून के विरोध, हिंसा, आगजनी, उपद्रव के दौरान उसके व सहयोगी संगठनों के 73 बैंक खातों में 120 करोड़ रुपये जमा कराने के प्रमाण हैं और एक-दो दिन के भीतर ही उसमें से अधिकांश रकम को निकाल भी लिया गया। हिंसक प्रदर्शनों के दौरान बैंक खातों से एक दिन में कई-कई बार पैसे निकाले गए। उदाहरण के लिए 12 दिसंबर को एक खाते से कुल 90 बार निकासी की गई थी। पीएफआई के नेहरू प्लेस (दिल्ली) स्थित खाते के साथ ही पश्चिम उत्तर प्रदेश के बहराइच, बिजनौर, हापुड़, शामली, डासना जैसी जगहों के खातों में भारी मात्रा में बार-बार नकदी जमा की गई। इसकी पड़ताल हो रही है।

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