योग से ही विश्वशांती संभव है -रमेशभाई ओझा

योग और अध्यात्म का बहुत गहरा संबंध है। भारतीय जीवन दर्शन और अध्यात्म को अपने प्रवचनों के माध्यम से लोगों तक पहंचाने का कार्य प्रख्यात प्रवचनकार श्री रमेशभाई ओझा जी के द्वारा निरंतर किया जा रहा है। योग के संदर्भ में उनके विचारो को जानने हेतु लिये गये साक्षात्कार के कुछ अंश

  जून को ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ के रूप में मान्यता मिली है। योग प्रचार की दृष्टि से यह कितना महत्वपूर्ण है?

वास्तव में भारतीयों ने अत्यंत उदारतापूर्वक विश्व मानवता को अनेक बातें प्रदान की हैं। जिसमें मेरे-तेरे वाला भेद नहीं है, संकीर्णता नहीं है। योग इन्हीं में से एक है। हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योग को विश्व के सन्मुख लाने हेतु यूनो में प्रस्ताव रखा, उन्हीं के प्रयासों से ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ मनाया जा रहा है। ये हमारे लिए जितने कल्याण की बात है उतनी ही विश्व मानवता के लिए भी आनंद की बात है। मैं इस निर्णय का मन:पूर्वक स्वागत करता हूं और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अभिनंदन भी करता हूं।

 क्या ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ की घोषणा होना भारत के पुन: विश्वगुरु बनने की ओर उठा एक कदम है?

एक प्रसिद श्लोक है-

 अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम।

उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥

संपूर्ण विश्व घरोंदे की तरह होता है। विज्ञान एवं तंत्रज्ञान के विकास के कारण दुनिया छोटी हो गई है। ये तो आज हुआ है। लेकिन उदार मनवाले हमारे भारत ने संपूर्ण विश्व को एक घरोंदे की तरह सदियों से ही देखा है। इतनी उदार विचारधारावाले ऋषियों ने मनिषियों ने जो भी बातें कही हैं, वह विश्व की मानवता के कल्याण के रुप में ही निकली है। इसलिए भारत को विश्वगुरु के रुप में देखा जाता है। एक बात बताता हूं, संपूर्ण विश्व जिसे गुरु के रुप में मान्यता दे, वह विश्व गुरु है ऐसा मानने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन वह गुरु जिसके विचार संपूर्ण मानवता के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है वह विश्वगुरु है। भारतीय मनीषा इस प्रकार की ही है। भारतीय विचारों की स्वीकृति जितनी बढेगी उतना विश्व का कल्याण होगा। आज दुनिया में जो तनाव है, आतंक है, मानवता अस्थिर दिखाई दे रही है, ऐसे में भारतीय मनीषियों की यह उदार विचारधारा विश्व में शांति लाने का काम करेगी। २१ जून सेे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस प्रारंभ हो रहा है। इससे विश्व की मानवता का कल्याण  होगा।

 योग और अध्यात्म में क्या संबंध है?

धर्म सिढी है, अध्यात्म मंदिर है। सीढीयां अलग-अलग हो सकती हैं। परंतु वह एक ही मंदिर में जाती है। सीढी सबके लिए साधन हो सकती है साध्य नहीं हो सकती। श्रीमद्भागवत में भगवान कपिल जिस योग की बात करते हैं वह अध्यात्मिक योग ही है।

‘योग: आध्यात्मकां पुंस: मनोनिश्रेय साधते।’ अध्यात्मिक योग जो है वही निश्रेयस कल्याण का मार्ग है। अध्यात्म शब्द का शाब्दिक अर्थ देखे तो वह है अधि आत्म। जो पर से हमें अपनी आत्मा की ओर ले आए उस यात्रा को अध्यात्म कहते हैं। ‘स्वस्मिन तिष्ठति इति स्वस्थ:’। जो अपने ‘स्व’ में स्थित हो गया वह स्वस्थ हो गया। स्वस्थ या स्वास्थ्य को हम योग से भी जोडते हैं। हमारा ‘स्व’ स्वरूप से ही शांत है। जो शांत है वह शांती को कायम करेगा, जो अशांत है उसकी अशांती उसके व्यवहार में प्रगट होनेवाली है। योग इन सारी बातों क,ा समस्याओं का समाधान है। जो अष्टांग योग है उसका आरंभ ही यम और नियम से होता है। यम का अर्थ ही संयम है। और नियम जो है…अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य। पतंजली योग दर्शन के हिसाब से यह पांच नियम है।  यह युनिव्हर्सल बाते है। यह सब धर्मो में मान्य है। ‘योग‘ अन्य धर्मों की जो परंपरा है उसी में से मार्ग निर्माण करता है और उस परम चेतना से मिलाप करवाता है।

 हमारे प्राचीन ग्रंथों में योग का महत्व बताया गया है। आज के समय में इसका क्या महत्व है?

अशांती उस जमाने में हुआ करती थी और आज नहीं है ऐसी बात नहीं हैं। बिमारीयां उस जमाने में हुआ करती थीं और आज नहीं है ऐसी बात नहीं है। वरन बिमारीयों की संख्या बढ रही है। जिस तरह से समाज में स्पर्धा का युग है, उसके चलते अशांती बढ़ रही है। इसे देखते हुए योग की जरुरत वर्तमान समय में बहुत जादा है।

 कृपया भक्तियोग पर प्रकाश डालें।

भगवदगीता में ज्ञानयोग, भक्तियोग और कर्मयोग की बातें कही गई है। हम जिसे चरित्र कहते है उसके तीन कमरे हैं…विचार, भावना और क्रिया। इन तीन के अलावा चौथा कोई कमरा नहीं है। हम विचारों में जीते है, हम भावनाओं में जीते है और हम क्रियायों में जीते है। विश्व का हर मानव इन तीन बातों में ही जीवन जीता है। ‘ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते’ यदि हम विचार के माध्यम से, बुद्धि के माध्यम से उस परम चैतन्य की ओर पहुंचते हैं तो वह ज्ञानयोग है।  कई लोगों में भावुकता ज्यादा होती है। उस भाव को वे परमात्मा से जोडते हैं। हेतु रहित प्रेम करते हैं। इस भाव से जब परमात्मा से जुडते हैं उसे भक्तियोग कहते है।  कुछ लोग कुछ ना कुछ करते ही रहते है, शांत नहीं रहते है। जब वह ऐसी बातों से, क्रियाओं से परमात्मा से जुडते है, तो उसे कर्मयोग कहते हैं। सत्य से जब विचार जुड गया तो सदविचार बन गया, सत्य से जब भाव जुड गया तो सद्भाव बन गया और कर्म जब सत्य से युक्त हो गया तो वह सतकर्म हो गया। आप जहां भी हैं, वहां से सत्य सेे जुड सकते हैं। और उस सत्य को जुडने का उपाय भी है। आप विचार प्रधान है तो कर्म योग है, आप भावना प्रधान है तो भक्ती योग है। और आप कर्म प्रधान है तो कर्म योग है। इस दृष्टी से योग शब्द अध्यात्म से जुडा हुआ है।

 आप आध्यात्मिक प्रवचनकार के रूप में जाने जाते हैं। क्या आपको लगता है कि इस स्तर तक पहुंचने में योग ने आपकी सहायता की है?

जैसा कि अभी हमने योग शब्द की चर्चा की है। योग शब्द व्यापक अर्थ में है। इसमें ज्ञान, भक्ति, कर्म तीनों बातें है। मैं पंतजली योग दर्शन का ज्ञाता नहीं हूं। मेरा उसमें कोई विशेष प्राविण्य नहीं है। जो जानकारी आध्यात्मिक ग्रंथों से मिली है उसी को दोहराने की चेष्टा करता हूं। शास्त्रों से मार्गदर्शन प्राप्त करना और उन शास्त्रों को समाज तक पहुंचाने का प्रयास करता हूं। यह बातें करते समय यम नियम की बातों का पालन होता है। हम योग के शिखर तक तो नहीं पहुंचे है, सीढियां चढ रहे हैं। ध्यान हो रहा है। समाधी तो बहुत दूर की बात है।

 साधना और ध्यान का योग से क्या संबंध है?

जिस दिन से आपने समाधी तक पहुंचने के लिए चलना प्रारंभ किया उस दिन से ध्यान का प्रारंभ होता है। आप इसके लिए जो भी अनुष्ठान करते हों, वह साधना है। बिना साधना के कुछ प्राप्त नहीं होता। एक निश्चित लक्ष्य की ओर बढना ही साधना है।

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में जिन योगों का वर्णन किया है उनकों आज की जीवनशैली से कैसे जोडेंगे?

कृष्ण के तीन सखा हैं। एक है उद्धव, दूसरे हैं अर्जुन और तिसरे हैं सुदामा। उद्धव ज्ञानी सखा है। अर्जुन कर्मयोगी सखा है और सुदामा भक्तीयोग रुपी सखा है। तो जीवमात्र परमात्मा का सखा है। उपनिषद कहते हैं-

 द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिशस्वजाते।

तयोरन्य: पिप्पलम् स्वादुअत्ति अनिश्नअनन्य:अभिचाकशोति।

एक शाखा पर दो पक्षी बैठे है। सुंदर पंखों वाले, गीत गानेवाले। फरक यह है कि एक पक्षी वृक्ष के मीठे फल को खा रहा है, दूसरा है जो उसे प्रेमपूर्वक देख रहा है। कुछ भी खा नहीं रहा है। वह जो देख रहा है वह परमात्मा है। सभी अर्थ में लोग परमात्मा की ओर आकृष्ट होते है। वही परमात्मा सभी का सखा है। उससे आप चाहे कर्म से जुड जाओ, भक्ती से सेवा में लग जाओ, या ज्ञान से जुड जाओं। यह योग ही है। गीता में जो योग बताए गये हैं, वह मनोवैज्ञानिक दृष्टीकोन से एकदम सत्य हैं।

 योग के माध्यम से मानव मन की शांति से लेकर विश्वशांति तक सभी कुछ किस प्रकार संभव है?

‘स्वस्थ भाव’ योग से प्राप्त होता है। स्वस्थ भाव के लिए अंतरमन से संपर्क करना जरुरी है। कुछ समय तो गुजारो अपने साथ। योग वह अवसर देता कि हम स्वयं जुडें। शांति कोई बाहर से नहीं आती है। शांति हमारा ‘स्वरुप’ है और जैसे आप ‘स्वरुप’ मे स्थित हो गये तो शांती मिलती है। शांत होने के लिए कुछ नहीं करना पडता है। शांत होने के लिए जो कुछ कर रहे हो उसे बंद करना पडता है। पानी को शांत करने के लिए, थंडा करने के लिए कुछ नहीं करना पडता है। पाणी का तो स्वरुप ही ‘थंडा’ है। वह गरम है क्योंकि हमने उसके नीचे आग लगा दी है। आग बुझा दो, पानी अपने मूल ‘स्वरुप’ में आ जाएगा। मात्र दस मिनिट का सकारात्मक चिंतन यानी ध्यान आपकी २४ घंटों की नकारात्मक सोच को संतुलित कर देता है। इस ध्यान को चिंतन को हम जितना बढ़ाएंगे उतने ही हम ‘नो प्रोब्लेम’ व्यक्ति बन जाएंगें। समस्या आए तो भी कहेंगे की ‘कोई समस्या नहीं, हो जाएगा।’ इस तरह से व्यक्ति, समाज, राष्ट्र में शांति कायम होगी। विश्व शांति तक पहुंचने का प्रारंभ ‘व्यक्ति’ है। व्यक्ति शांत हो गया तो विश्व शांती संभव है।

 ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ की घोषणा होने के बाद पहला ‘अंतरराष्ट्रीय योग शिविर’ चीन में आयोजित हो रहा है। इस संदर्भ में आपका क्या मत है?

२१ जून कोसंपन्न होनेवाले आंतरराष्ट्रीय योग दिवस में संपूर्ण विश्व सहभागी होगा। चीन जो हमारा पारंपरिक शत्रु है, वह भी योग दिवस मना रहा है। चीन मे ९० हजार लोग विश्व से योग उत्सव के लिए आनेवाले है। जिसमे २००० भारत से है। चीन जिनके हाथ हमारे संबंध अच्छे नहीं है वह दुनिया के सबसे बडा योग शिबीर का आयोजन कर रहा है। उसे हम ‘योग शक्ति’ के रुप मे देखेंगे। दुनिया में कोई समस्या ऐसी नहीं है। जिसका समाधान नहीं है। समस्या पैदा होती है तभी अपने गर्भ से समाधान लेकर पैदा होती है। आवश्यकता है धैर्य की। समाधान को प्रसूत तो समस्या ही करती है। कुछ वातावरण निर्माण करना जरुरी है। जो विधायक, सकारात्मक सोचवाला हो। योग से संबंधो का स्वरुप भी सुधरेगा ऐसी हम आशा करते है। हमारे प्रयासों से हमारे पडोसी देश मे सकारात्मक सोच निर्माण हो और परस्पर मित्रत्व का भाव जागृत हो यही हम आशा करते है।

 

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