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उत्तराखंड को देवभूमि यूं ही नहीं माना जाता

उत्तराखंड को देवभूमि यूं ही नहीं माना जाता

by कुलदीप एस राणा
in ट्रेंडींग, देश-विदेश, मई - सप्ताह तिसरा
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उत्तराखंड राज्यवासियों का आपदाओं से बेहद करीब का नाता रहा है। पहाड़ी प्रदेश होने के कारण समय समय पर प्राकृतिक आपदाएं यहां के जनजीवन को प्रभावित करती रही है। संकट के दौर में उत्तराखंड के जनमानस ने बेहद धैर्य व संवेदनशीलता
का परिचय दिया है और उन विकट परिस्थितियों का एक दूसरे के साथ मिल डटकर सामना किया है।

कोरोना वैश्विक महामारी के इस विकट परीक्षा के समय में भी राज्य के नागरिकों की जागरूकता एवं सवेदनशीलता ने कोरोना वायरस के संक्रमण को सीमित क्षेत्रों तक ही सीमित रखा है। संकट के समय प्रदेश के ग्राम पंचायत से लेकर राजनीतिक दल, स्वयंसेवी संस्थाए, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता सभी एकजुट हो समाज में असहाय, निर्धन जनों की जीवन से जुड़ी जरूरतों भोजन इत्यादि की व्यवस्थाओं में लगे हुए हैं। जगह जगह पर भोजन के पैकेट वितरित करते लोग दिख जाते हैं। उत्तराखंड में समाज का प्रत्येक नागरिक अपनी अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए कोरोना संकट से लड़ रहा है।

उत्तराखंड में 15 मार्च को कोरोना संक्रमण का पहला मामला प्रकाश में आया। विदेश से प्रशिक्षण प्राप्त कर लौटे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी के प्रशिक्षु अधिकारियों के हल्द्वानी स्थित राजकीय मेडिकल कालेज की निर्दिष्ट प्रयोगशाला में तीन जांच सेम्पल कोरोना पॉजिटिव पाए गए। उत्तराखंड सरकार ने उक्त मामलों से स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए राज्य में कोविड-19 वायरस
संक्रमण को महामारी घोषित कर दिया। 6 मार्च से ही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने प्रदेश के नागरिकों में संक्रमण के फैलने से रोकथाम व बचाव की तैयारियां शुरू कर दीं। खुले बाजार में सेनेटाइजर व मास्क की पर्याप्त उपलब्धता के साथ ही कालाबाजारी को रोकने की दिशा में प्रशासनिक तंत्र को अलर्ट कर दिया, प्रदेश में चिकित्सालयों को पूर्ण तत्पर रहने व सभी राजकीय मेडिकल कालेज को कोरोना उपचार हेतु चिह्नित कर आइसोलेशन वार्ड तैयार करने हेतु जरूरी संसाधनों से अपग्रेड कर दिया। जिसका लाभ यह हुआ कि प्रदेश में जब कोरोना वायरस पॉजिटिव की पुष्टि होने लगी तो राज्य का मेडिकल कालेज उनके उपचार के लिए काफी हद तक तैयार हो चुका था।

5 अप्रैल तक जहां देश में कोरोना संक्रमितों के कुल 3577 मामले सामने आ चुके थे और प्रत्येक 8 घंटे में एक मौत होने से मृतकों के आंकड़ा 83 तक पहुंच चुका था। उत्तराखंड में कोरोना पॉजिटिव पाए गए भारतीय वन सेवा के तीनों प्रशिक्षु अधिकारी कोरोना वायरस से जंग जीत पूर्ण स्वस्थ हो अस्पताल से घर लौट रहे थे।

हालांकि तब तक राज्य के 6 जिलों में 24 नए कोरोना पॉजिटिव का भी पता चल चुका था जिनका चिह्नित अस्पतालों के आइसोलेशन वार्ड में इलाज चल रहा था। कोरोना संकट के इस दौर में उत्तराखंड भी जमात के दुष्प्रभाव से नहीं बच पाया। दिल्ली निजामुद्दीन मरकज से लौटे जमातियों ने उत्तराखंड में भी आंकड़ों को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई है। देश भर में जमातियों की कारगुजारियों को देखते हुए उत्तराखंड पुलिस द्वारा छिपे हुए जमातियों के विरुद्ध हत्या की कोशिश का मुकदमा दर्ज कर कानूनी कार्रवाई शुरू करने का निर्णय लिया गया। जो बेहद कारगर साबित हुआ। जमाती स्क्रीनिंग हेतु आगे आने लगे। सूबे के तथाकथित सेकुलर बुद्धिजीवियों ने पुलिस के इस निर्णय पर अनेक सवाल भी खड़े किए। किंतु संक्रमित जमातियों से संक्रमण फैलने से रोकने में उक्त निर्णय काफी महत्वपूर्ण साबित हुआ।

राज्य सरकार ने जनहित में अनेक निर्णय लागू किए हैं। पुलिस के माध्यम से झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लोगों को निशुल्क राशन वितरण सुनिश्चित किया गया। लॉकडाउन के दौरान अतिआवश्यक सेवाओं की निरंतरता बनाए रखने के लिए प्रशासनिक अमले की जिम्मेदारियां निर्धारित कर दी गईं।

प्रदेश के जिन जिलों में कोरोना संक्रमित पाए गए उन क्षेत्रों को हॉट स्पॉट घोषित कर आवाजाही को प्रतिबंधित कर दिया ताकि संक्रमण उस क्षेत्र से बाहर न फैल सके। मेडिकल टीम भेज कर वहां रहने वाले नागरिकों का चिकित्सकीय परीक्षण भी सुनिश्चित किया गया।

कोरोना वायरस के संक्रमण का उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में न पहुंच पाने के पीछे यहां की भौगोलिक संरचना एवं यहां के मठ मंदिरों के पौराणिक धार्मिक व्यवस्था भी रही है। उत्तराखंड में हर वर्ष होने वाली चार धाम यात्रा में वर्ष 2019 में लगभग 35 लाख देशी-विदेशी श्रद्धालु शामिल हुए थे। ऐसे में यदि उत्तराखंड में चारधाम यात्रा शीतकाल के कारण बंद नहीं होती तो संक्रमण के साथ-साथ मौत का आंकड़ा भी कई गुना होता। इस वर्ष 26 अप्रैल को अक्षय तृतीया के दिन से यात्रा आरंभ होनी थी, लेकिन राज्य सरकार ने यात्रा पर फिलहाल पूर्ण रूप से रोक लगा रखी है।

उत्तराखंड में यात्रा के अलावा मैदानी शहरी क्षेत्रों में से पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रों की तरफ आवागमन की रफ़्तार कम ही रहती
है। कोरोना संक्रमण का 13 में से 6 पर्वतीय जिलों में न पहुंच पाने के पीछे यह भी एक महत्वपूर्ण वजह रही है।

लॉकडाउन के दौरान हल्द्वानी के बनभूलपुरा में स्वास्थ्य परीक्षण करने गई मेडिकल टीम को भारी विरोध का सामना करना पड़ा था। इस क्षेत्र में तबलीगी जमात में शामिल सात लोग कोरोना संक्रमित पाए गए थे। पुलिस को स्थिति को संभालने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी। हल्द्वानी का यह क्षेत्र मुस्लिम आबादी बाहुल्य इलाका है। इस क्षेत्र के अतिरिक्त राज्य में कहीं भी विरोध देखने को नहीं मिला। सिस्टम की सतर्कता के साथ ही जनता द्वारा महामारी से उत्पन्न हालातों से निरंतर जूझते रहने की प्रवृति के सुखद परिणाम राज्य में अब दिखने लगे हैं। प्रदेश में संक्रमण की रफ्तार काफी नियंत्रण में आ गई है। उत्तराखंड में कोरोना से उत्पन्न हालातों में डॉक्टर्स, स्वास्थ्य कर्मी व पुलिसकर्मी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहें हैं। संकट के इस दौर में जनता के बीच से अनेक ऐसे समाज सेवक उभर कर सामने आए जो अपने-अपने क्षेत्रों में गरीबों को भोजन कराने के साथ ही कोरोना संक्रमण से बचाव को लेकर जागरूकता फैलाने का काम कर रहे हैं। राज्य सरकार समर्पित पुलिस कर्मियों, स्वास्थ्य कर्मियों व स्थानीय नागरिकों को कोरोना योद्धाओं की उपाधि देकर प्रोत्साहित कर रही है। लॉकडाउन का सख्ती से अनुपालन व जागरूकता से ही कोरोना वायरस के सामूहिक संक्रमण को रोका जा सकता है।

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत द्वारा केंद्र सरकार की गाइडलाइन का पूर्णतः अनुपालन के परिणाम कारगर नगर आ रहे हैं। अन्य प्रदेशों के साथ-साथ विदेशों से उत्तराखंड लौटे नागरिकों को चिह्नित कर उन्हें एहतियातन होम कोरंटिन किया जाना सरकार के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण था; किंतु स्थानीय जनता के सहयोग व जागरूकता से यह बेहद सहज तरीके से सफल रहा। सरकार लगातार इन लोगों के स्वास्थ्य की मॉनिटरिंग करती रही है।

तमाम चुनोतियों के बावजूद प्रदेश सरकार ने कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए अगले पांच महीने की व्यवस्था कर ली है। प्रदेश के 11 जिलों के अस्पतालों में आईसीयू के साथ-साथ वेंटिलेटर की व्यवस्था कर दी है। साथ ही कोरोना काल में 2100 डॉक्टरों को नियुक्त किया गया है। प्रवासियों को हरिद्वार व उधमसिंह नगर जिले में लाकर उनका स्वास्थ्य परीक्षण के साथ ही ठहरने की व्यवस्था भी की है। यहां से स्क्रीनिंग के उपरांत ही उन्हें बसों के द्वारा उनके गृह क्षेत्रों को रवाना कर दिया जा रहा है। शहरों से ग्रामों को लौट रहे प्रवासियों की निगरानी हेतु गांव में ग्राम प्रहरी नियुक्त किए गए है। ग्राम प्रहरी की जिम्मेदारी भी स्थानीय ग्रामसभा को दी गई है। ताकि सामूहिक सहयोग से कोरोना से निपटा जा सके। नगर निगम, नगर पालिका,नगर पंचायत से जुड़े कर्मचारी व एनजीओ के कार्यकर्ता शहरी ग्रामीण क्षेत्रों की गलियों, सड़कों, सार्वजानिक स्थानों को सेनेटाइज करने में जुटे दिखाई दे रहे हैं। महिलाएं घरों में मास्क बनाकर मुफ्त वितरित कर रही हैं।

पूरे प्रदेश गरीब मजदूर वर्ग के लिए खानेपीने की व्यवस्थाओं का पुलिस द्वारा बेहद कारगर तरीके से अनुपालन लाभकारी रहा। आम आदमी में पुलिस की छवि बदली है। कोरोना महामारी के संकट भरे समय में राज्य सरकार ने स्थानीय जनता के प्रति बेहद सवेदनशील भूमिका प्रदर्शित की है। लोकतंत्र में जनता सरकार से इसकी उम्मीद भी करती है। सरकार में जनता का विश्वास बढ़ा है। गुजरते समय के साथ उत्तराखंड कोरोना वायरस के दुष्प्रभावों से बाहर आने में सफल होता दिख रहा है।प्रवासी उत्तराखंड वासियों के लौटने से यदि राज्य में कोरोनो संक्रमण में बढ़ोतरी नहीं हुई तो राज्य को कोरोना से मुक्त होने में ज्यादा समय नही लगेगा।

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