
करोडों घण्टे, लाखों दिन, अनगिनत महीने, अनेक वर्ष और लगभग पांच शतक बितने के बाद ये दिन आया है। क्या है इस दिन की विशेषता? इस दिन भी सूरज पूरब से ही निकलेगा और निसर्ग अपनी गति से ही चलेगा। फिर क्या है जो अलग है?क्या अद्भुत होगा? क्या है जो विलक्षण है? गौरवास्पद है? क्या है जो संस्मरणीय है?
अलग यही है कि अनेक शतकों के अन्याय का परिमार्जन होगा।
अद्भुत यही है कि जिस घटना की आस में करिब पचीस पीढ़ियाँ बीत गई वो अब घटनेवाला है।
विलक्षण यही है कि जो सपना हिन्दू समाज ने देखा वो साकार होने जा रहा है।
गौरवास्पद यही है कि हिन्दू समाज को उसका खोया हुआ आत्मसम्मान वापस मिलेगा।
संस्मरणीय यही है कि अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर की नींव रखी जायेगी।

धर्मांध मुस्लिम आक्रमणकारियों ने सोमनाथ मंदिर उध्वस्त किया था वैसे ही मीर बांकी, बाबर के सेनापति ने अयोध्या में श्रीराम मंदिर ध्वस्त किया था। हिन्दू श्रद्धा को अपने पैरों तले रौंदकर गरिमा को ठेस पहुंचाने का काम असहिष्णु आक्रमणकारियों ने बारबार किया। सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार स्व. वल्लभभाई पटेल के प्रयत्नों से हुआ और पांच अगस्त दो हज़ार बीस को श्रीराम मंदिर के पुनःनिर्माण का शुभारंभ हो रहा है। “श्रीरामजन्मभूमि तीर्थक्षेत्र न्यास” सकल हिन्दू समाज द्वारा किये गए आर्थिक योगदान के बूते भव्य मंदिर का निर्माण करनेवाले है। हिन्दू समाज जागृत है, प्रयत्नशील है ये इस बात से सिद्ध होता है। ईस्वी सन पंद्रह सौ में अट्ठाईस में बाबर ने हिंदुओं के माथे पर जो कलंक लगाया था वो चार सौ बियानवे सालों बाद निकल जाएगा।
आदर्श राज की मिसाल, रामराज्य की स्थापना करनेवाले, महापराक्रमी रावण को पराभूत करके उनके भाई विभीषण का राज्याभिषेक करनेवाले, एकवचनी, चापबाणी प्रभू रामचंद्र मर्यादा पुरुषोत्तम है। भारतीय संस्कृति के प्रतिक है। राम नाम की महिमा अपार है। किसी से मिलने पर राम राम के सम्बोधन से अंतिम यात्रा में भी राम का नाम लेने तक हमारे रोम रोम में राम बसते हैं।
जहाँ राम का जन्म हुआ वहाँ करोड़ों हिन्दुओं की श्रद्धा है, जहाँ श्रीराम का मंदिर था ये न्यायालय में सिद्ध हो चुका है, वहीं श्रीराम का भव्य मंदिर बनने जा रहा है। ये दिन उत्सव का है। कार्तिक माह की दीपावली इस बार श्रावण कृष्ण द्वितीया को मनाई जाएगी। ये दिन दीपोत्सव के रूप में मनाएंगे। स्व. अटल जी कि ‘ उस रोज दीवाली होती है’ कविता की कुछ पंक्तियां प्रसंगवश याद आती है…
जब प्रेम के दीपक जलते होंसपने जब सच में बदलते हों,मन में हो मधुरता भावों कीजब लहके फसलें चावों की,उत्साह की आभा होती हैउस रोज दिवाली होती है।
हिन्दुओं ने शपथ ली थी, ” सौगंध राम की खाते है मन्दिर वहीं बनाएंगे”
इस शपथ को पूर्ण करने का समाधान सभी राष्ट्रभक्तों को मिलेगा। जो राष्ट्रसमुदाय अपने सांस्कृतिक इतिहास को याद रखता है, वो समाज आत्मसम्मान, आत्मरक्षा और आत्मविश्वास जगाता है।
अयोध्या तो झाँकी है काशी मथुरा बाकी है।
जय श्रीराम, जय जय श्रीराम।