गंगा स्वच्छता हेतु संत सहयोग आवश्यक – श्री अशोक सिंघल

विश्व हिंदू परिषद के पूर्व अध्यक्ष श्री अशोक सिंघल का मानना है कि केवल घोषणाओं या विज्ञापनबाजी से गंगा स्वच्छ नहीं होगी। उसकी स्वच्छता के लिए संतों का सहयोग लेना आवश्यक है। इसके बिना यह योजना अधूरी ही रह जाएगी। उन्होंने ‘हिंदी विवेक’ से एक विशेष भेंटवार्ता में राममंदिर के निर्माण एवं हिंदुत्व के अन्य मुद्दों पर भी अपनी बेबाक राय रखी और कहा कि अगले १५ साल तक यह सरकार रहेगी और हिंदुत्व के मुद्दे पूरे होंगे। पेश है इस भेंटवार्ता के महत्त्वपूर्ण अंश-

गंगा नदी का नाम सुनकर हमारे मन में श्रद्धा, भौगोलिक विस्तार, पवित्रता जैसे कई भाव आते हैं। आपके इस संबंध में क्या विचार हैं?
गंगा हमारी संस्कृति का प्रतीक है। जैसी भावना हमारी भारतमाता के प्रति है, गौमाता के प्रति है, वैसी ही गंगा माता के प्रति है। गंगा संपूर्ण भारत को जोड़ती है। मैं आपको इसका प्रमाण बताता हूं। हमारे यहां सन १९८३ में कुछ यात्राएं निकाली गई थीं। गंगोत्री से शुरू होकर दो बड़ी यात्राएं दक्षिण की ओर गईं थीं। एक रामेश्वरम् तक और दूसरी कन्याकुमारी तक गई थी। तीसरी यात्रा असम से गुजरात तक गई थी। इनके साथ ही ३०० छोटी-छोटी यात्राएं भी निकाली गई थीं। मां गंगा का पूजन इन यात्राओं का लक्ष्य था। यात्राओं में गंगोत्री से भरे हुए गंगा जल को विशेष रूप से सजाया गया था। इस यात्रा का नाम था ‘एकात्मता यात्रा’। इस यात्रा के देशभर के ९० प्रमुखों में से कुछ दक्षिण भारत के थे। उनका कहना था कि हमारे यहां गंगा को कोई नहीं मानता। परंतु जब यात्रा त्रिवेंद्रम पहुंची तो १ लाख लोगों ने उस यात्रा का जोरदार स्वागत किया। यात्रा के दौरान वनवासी क्षेत्रों से २५००० लोग इकट्ठा हुए। हमने जब उनसे पूछा कि उन्हें यात्रा की जानकारी कैसे मिली तो उन्होंने बताया गंगा मां ने हमें सपने में आकर न्यौता दिया। एक महीने में लगभग १० करोड़ लोगों ने इस यात्रा में हिस्सा लिया था। समाज में गंगा के प्रति कितनी श्रद्धा है इसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता। हमें किसी के मन में श्रद्धा जगाने की आवश्यकता नहीं है। वह हजारों वर्षों से हमारे रक्त में ही है।

आज समाज में गंगा प्रदूषण की अत्यधिक चर्चा होती है। क्या गंगा वास्तव में प्रदूषित हो गई है? प्रदूषण रोकने के लिए कौनसे उपाय आवश्यक हैं?

गंगा की दो मुख्य समस्याएं हैं। एक उसकी अविरलता की है और दूसरी उसकी निर्मलता की है। संसार में कई नदियां हैं। परंतु केवल गंगा में ही विशिष्ट गुण है आत्मशुद्धि का। यह गुण और किसी नदी में नहीं है। अंग्रेज जब गंगा के जल को लंदन तक ले जाते थे तो उसे कहीं भी बदलना नहीं पड़ता था। परंतु जब थेम्स या नील नदी के जल को लाते थे तो उसे मार्ग में कई बार बदलना पड़ता था। अब तो वैज्ञानिकों ने भी इस बात की पुष्टि कर दी है कि गंगा का पानी वर्षों तक खराब नहीं होता।

गंगा केवल आत्मशुद्धि नहीं करती, वह लोगों के मन भी साफ कर देती है। बड़े-बड़े ॠषियों ने गंगा के किनारे तपस्या की है। इसमें आध्यात्मिक और वैज्ञानिक शक्ति है। इसकी रक्षा इसलिए नहीं की जा सकी क्योंकि अंग्रेज इसकी शक्ति को नष्ट करना चाहते थे। गंगा प्रदूषण का कार्य उनके जमाने से ही शुरू हो गया था। उन्होंने ही इस पर बांध बनाकर उसकी अविरलता को बाधित कर दिया था। उन्होंने गंगा को केवल पानी के रूप में देखा और भारत में भी ऐसी ही शिक्षा प्रणाली का विकास किया कि हमारे यहां के लोग भी यही समझने लगे है कि यह तो पानी है। इससे बिजली पैदा की जाए, पैसा कमाया जाए। अभी तक गंगा की अविरलता को रोकने के लिए जितनी भी परियोजनाएं बनाईं गईं, उन्हें संतों ने, विश्व हिंदू परिषद ने अपनी ताकत से रोका। इन योजनाओं में गंगा को एक सुरंग से बहाने की योजना थी। फिर गंगा कभी भी ऊपर दिखाई नहीं देती। न उसे सूर्य का प्रकाश मिलता और न ही हवा मिलती।

हमारे यहां के राजनीतिज्ञ और एडमिनिसिट्रेटर अध्यात्म से कोसों दूर हैं। वे चाहते हैं कि ये परियोजनाएं कार्यान्वित हों। अत: हमारे दबाव में फिलहाल तो इन्हें केवल स्थगित किया गया है, परंतु हमारा यह प्रयास है कि हमेशा के लिए बंद कर दिया जाए। बिजली बनाने के लिए इन परियोजनाओं की बात होती है। लेकिन बिजली तो अन्य माध्यमों से भी बनाई जा सकती है। उन माध्यमों, उन साधनों को तो लोगों ने छोड़ दिया परंतु हिंदू धर्म को नष्ट करने के साधनों पर बल दिया जा रहा है।

मेरे हिसाब से तो ये सारी योजनाएं भ्रष्टाचार का माध्यम बनती जा रही हैं। बड़ी योजनाएं अक्सर विफल होती हैं फिर भी बनाई जाती हैं। क्योंकि जितनी बड़ी परियोजना होती है उतना अधिक पैसा खाने को मिलता है। गंगा की अविरलता की रक्षा की कोई बात नहीं करता।
अब देखें उसकी निर्मलता की बात, तो सबसे पहले यह देखना होगा कि उसमें जल कितना है। गंगा में कई छोटी-छोटी नदियां आकर मिलती हैं। परंतु हरिद्वार के आगे बड़ी मात्रा में गंदगी मिलती है। गंगा को साफ रखने के लिए जितना पानी आवश्यक है, उतना गंगा में है ही नहीं। इसे साफ रखने के लिए संतों ने हमेशा ही आग्रह किया परंतु सरकारों ने कभी संतों की सहायता नहीं ली। संतों का समाज पर इतना प्रभाव है कि उनके एक इशारे पर सारा समाज उनके पीछे-पीछे चलने लगता है। अगर सरकारें गंगा के किनारों के घाटों को साफ रखने की जिम्मेदारी कुछ बड़ी संस्थाओं और संतों को दे देते तो गंगा में प्रदूषण फैलने ही नहीं दिया जाता। सरकार के सामने पैसा अग्रणी रहा है। प्रदूषण के इन कारणों के केवल सरकार नहीं रोक सकती। उसे जनता की सहायता से ही रोकना होगा। जनता की सहायता लेनी है तो पेपर में प्रकाशित करने से या होर्डिंग लगाने से कुछ नहीं होगा। प्रत्यक्ष संपर्क से ही कार्य होगा। कुछ अत्यंत कडे नियम बनाए जाने चाहिए। उनका पालन करवाने के लिए संत खडे रहेंगे। यहां एक बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि गंगा का पेट भरा रहे। जितना जल गंगा में गंगोत्री से निकलते समय होता है उतना जलस्तर कायम होना चाहिए।

धार्मिक अनुष्ठानों के कारण भी गंगा प्रदूषित होती है। क्या यह सही है?

यह केवल हमारे धर्म और पूजा पदधति को बदनाम करने के लिए जारी प्रयास है। पूजा के फूल या दीयों से कितना प्रदूषण होगा? गंदे नालों से जो प्रदूषित जल गंगा में छोडा जाता है वह न जाने कितने विषैले पदार्थों से भरा होता है। इस सत्य को छिपाने के लिये धार्मिक अनुष्ठानों की बातें की जाती हैं। धार्मिक अनुष्ठानों से होने वाला प्रदूषण तो जनता की सहायता से रोका जा सकता है।

मोदी सरकार के द्वारा जो नमामि गंगा योजना शुरू की गई है, उसके बारे में आपका क्या मत है?

इस तरह की योजना संतों के सहयोग के बिना पूरी नहीं हो सकती। विहिंप ने इस ओर सरकार का बार-बार ध्यान आकर्षित किया है। जब यह योजना शुरू की गई थी, तभी हमने कहा था कि केवल अखबारों में विज्ञापन छापने से लोगों के मन में श्रद्धा उत्पन्न नहीं होती। लोगों के मन में श्रद्धा तो पहले से हैं।

जनसामान्य को गंगा स्वच्छता से जोड़ने के लिए क्या किया जाना चाहिए?

अगर सरकार वाकई जनता की सहायता चाहती है तो उस प्रकार की योजना बनानी चाहिए। समस्त समुदाय तो इसके लिए तैयार ही है। न केवल संत जनता भी तैयार होगी। आज तक किसी भी सरकार ने ऐसी योजना नहीं बनाई जिसमें जनता या संतों का सीधा सहभाग हो। गंगा से जुडे एक नहीं सौ काम करने के लिए लोग तत्पर होंगे बशर्तेसभी को उनके अनुकूल काम सौंपें जाएं।

गंगा स्वच्छता अभियान या योग दिवस को लोक हिंदू प्रतीकों को जनता पर थोपने के रूप में देखते हैं। आपकी इस बारे में क्या राय है?

ाष्ट्रीय योऐसा विचार करने वाले हैं ही कितने लोग? मुट्ठी भर ही होंगे। उन्हें क्या समझाना है। जो लोग भारत को ही नहीं जानते उन्हें ये सब समझाने का कोई अर्थ नहीं है। ये बहुत थोड़े दिन के लिए है। जब भारत में भातीय शिक्षा प्रणाली शुरू हो जाएगी तो ऐसी सोच ही पैदा नहीं होगी। हम तो ऐसी शिक्षा के बारे सोचते हैं जिससे लोगों को यह अलग से सिखाने की जरूरत ही नहीं पडनी चाहिए कि गंगा, गौ, भारतमाता क्या है। वह उन्हें जन्म से पता रहे और जीवन के अंत तक याद रहे।

सरकार तो गंगा स्वच्छता के लिए प्रयासरत है ही, परंतु विहिप रा.स्व. संघ या उनके सहयोगी संगठन इस दृष्टि से क्या कार्य कर रहे हैं?

हमारे संत तो पूछते ही हैं कि क्या करना है, परंतु नियम तो सरकार को ही बनाने होंगे। बिना कठोर नियमों के गंगा की स्वच्छता नहीं होगी। और नियम भी कठोर बनाने होंगे। उनका पालन करने की जिम्मेदारी हमारी होगी। मैंने तो पहले दिन ही सरकार को पत्र लिख दिया था कि इस संबंध में संतों, विहिप के सदस्यों और अन्य हिंदू संगठनों को बुलाकर उनके विचारों को सुनकर फिर योजना बनाई जाए। नमामि गंगा योजना के समय तो ऐसा नहीं हुआ। देखते हैं भविष्य में क्या होता है।

गंगा स्वच्छता के साथ-साथ नदी के तटों पर बसे शहरों का पर्यटन की दृष्टि से विकास करने की सरकार की योजना है। क्या फिर इन स्थलों के प्रति लोगों का श्रद्धाभाव कम हो जाएगा?

यहां धार्मिक पर्यटन तो हो ही रहा है। स्वच्छता की आवश्यकता जरूर है। स्वच्छता के लिए मानसिकता बदलना जरुरी है। मानसिकता बदलने के लिए शिक्षा पद्धति बदलना जरूरी है। आज व्यक्ति कामचोर हो गया है। हमारी अभी की शिक्षा पद्धति में कठोर परिश्रम का भाव ही नहीं है। जब लोग परिश्रम करना नहीं चाहते तो स्वच्छता कैसे रखेंगे? अगर भारतीय शिक्षा पद्धति लागू होती तो जगह-जगह कूड़े के ढेर दिखाई नहीं देते और न ही गंगा मैली होती।

गंगा के प्रवाह को यातायात का माध्यम बनाने पर विचार किया जा रहा है। क्या यह सही है?

यह बिलकुल ठीक नहीं है। गंगा में पानी ही नहीं है तो यातायात कहां से होगा। ३०० क्यूसेक पानी छोड़ कर आप चाहेंगे कि यातायात शुरू किया जाए तो इसका कोई मतलब नहीं है। पहले गंगा में पानी बढाइए फिर आगे विचार कीजिए।

क्या मोदी सरकार के आने पर राम मंदिर निर्माण का कार्य पूरा होगा?

यह काम इसी सरकार में जरूर पूरा होगा। मैंने अभी तक जितनी भी सरकारें देखी हैं किसी के भी कार्यकाल में यह पूरा नहीं हो सकता था क्योंकि उनका सेक्युलरिज्म भारत के सेक्युलरिज्म से बिलकुल अलग है। उनके सेक्युलरिजम का अर्थ केवल मुस्लिम तुष्टिकरण है। सच्चा सेक्युलरिज्म है जीयो और जीने दो। यह भारत के अलावा और कहीं नहीं है।

आने वाले कुछ महीनों में बिहार और उ.प्र. में चुनाव हैं। लालू यादव ने मुसलमानों से आवाहन किया है और उन्हें विश्वास दिलाया है कि राम मंदिर नहीं बनने दिया जाएगा। आपकी इस पर क्या राय है?

अगर उन्होंने यह कहा है तो वे सभी सीटें हार जाएंगे। चुनावों का रुख उन्होंने समझा ही नहीं शायद। वे सोचते हैं कि उन्हें मुसलमानों ने हराया है। नहीं उन्हें तो हिंदुओं ने हराया है। ये अगर मुसलमानों के पीछे पड़े रहे तो हिंदू उन्हें हरा देंगे। मुझे लग रहा है कि भगवान उनकी बुद्धि को नष्ट कर रहा है। वे चाहते हैं कि राज्य में भाजपा का बहुमत हो जाए।

क्या हिंदुत्व के मुद्दे कमजोर पड़ते जा रहे हैं?

नहीं, बिलकुल नहीं। हिंदुत्व के मुद्दे मोदी सरकार में ही पूर्ण होंगे। वें ही इसे पूरा कर सकते हैं। और कोई नहीं कर सकेगा। १५ वर्षों तक ये सरकार निश्चित रूप से चलेगी। वे देश और दुनिया में अपना अलग रूप लेकर खड़े होंगे। अंग्रेज जो भद्दा रूप देकर गए हैं वह नष्ट होगा। परंतु सरकार कोई भी काम अकेले नहीं कर सकती। हम सभी को भी उनका साथ देना होगा।

९८६९२०६१०६

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