उनका नेत्रदान हुआ क्या? एक बहुमूल्य सवाल

कुछ समय पूर्व फिल्म जगत की ख्यातनाम अभिनेत्री ऐश्वर्या रायने नेत्रदान करने का अपना इरादा जाहिर किया है ऐसे समाचार आपने अखबारों में पढ़े होंगे। उसके बाद और उसके पूर्व भी अनेक सेलिब्रिटीजने नेत्रदान करने की अपनी इच्छा प्रकट की है। एक व्यक्ति नेत्रदान के कारण दो अंध व्यक्तियों को दृष्टि मिलती है इस लिए इस दान का विशेष महत्व है। दृष्टि यह मनुष्य की जिंदगी में ईश्वर की दी हुई एक अमूल्य देन है, ऐसा मनमें सोचकर हमें अंध व्यक्ति की हमारी दृष्टि देनी चाहिए।
मोतियाबिंद, मधुप्रमेह जैसे रोगों के कारण जिसने हमेशा के लिए दृष्टि गंवा दी है। उसकी समस्या गंभीर होती है। भारत में अंधजनों की संख्या 1.30 करोड़ के आसपास है। इनमें से यदि 46 लाख अंध व्यक्तियों को नेत्रदाता मिल गया तो उन्हें भी इस सुंदर विश्व देखने मिलेगा परन्तु हमारे देश में नेत्र दाताओं की संख्या कुछ हजारों में ही है। इस समस्या का ध्यान में रखकर ही ‘माधव आय (नेत्र) बैंक’ की स्थापना हुई है। इस क्षेत्र में काम करते समाज में नेत्रदान के विश्व में फैली हुई अनेक गलतफहमियों के विषयमें जानकारी मिलना शुरु हुई। किसी व्यक्तिने मृत्यु के बाद नेत्रदान करने का संकल्प किया होने पर भी उसके रिश्तेदार केवल भवनाओं के बल पर नेत्रदान का इन्कार करते हैं। असल में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद नेत्र बैंक को खबर देने पर संबंधित डॉक्टर्स तुरंत उस स्थान पर आकर मृतक की आंखों में से जरुरी हिस्सा ‘कॉर्निया’ निकाल सकते हैं। बादमें इन आँखों का नेत्र बैंक में संभालकर जतन किया जाता है और जिस अंध को इसकी आवश्यकता है उसके लिइ इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए ‘ण्दर्ही ऊहेज्त्हूूग्दह’ तकनीक का उपयोग किया जाता है।

हमारे यहाँ नेत्रदान के विषय में अनेक गलतफहमियाँ हैं। उसके विषय में सामान्य जनताको अवगत कराने की जरूरत है। ईश्वर की ओरसे मिले हुए दृष्टि को वरदान कों मृत्यु के बाद अंध व्यक्ति तक पहुंचाने में कोई आपत्ति नही होनी चाहिए। फिर भी आज भी सामान्य व्यक्ति, मृतक के रिश्तेदार नेत्रदान करने के लिए हिम्मत नहीं करते हैं। एक ओर दुर्घटना अथवा असाध्य रोग के कारण आँखें गँवाने वाले की अथवा जन्म से ही अंध होनेवाली व्यक्तियों की संख्या बढ़ रही है तो दूसरी ओर नेत्रदान करने की अनिच्छा रखनेवाले लोगों की संख्या। ऐसी परिस्थिति होने के कारण अंधजनों की दृष्टि देने का कार्य मुश्किल बन जाता है।

परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु होने पर उनकी आँखों को संभालकर रखने का काम कठिन नहीं है। मृत व्यक्ति की आँखों पर गीला कपड़ा रखने पर वे आँखें ठीक स्थिति में रहेंगी। मृत व्यक्ति का सिर यदि सामान्य तथा छ:ईंच ऊंचा रखा जाए तो कोर्निया निकालने में ज्यादा खून निकलता नहीं है। संभव हो तो कुछ समय के बाद मृतक की आँखों में एन्टिबायोटिक दवाई के बूंद भी डाले जाएं। सब से महत्व की बात यह है कि कोर्निया निकालकर ले जाने के लिए डॉक्टर्स आए तब तक आँखों को गीला रखने का भूलना नहीं चाहिए। इसके लिए उस कमरे के सारे पंखे तुरंत बंद कर देने चाहिए। मृत्यु के बाद चार से छ: घंटो में मृत व्यक्ति की आँखों पर से ‘कोर्निया’ नाम का दर्शक हिस्सा निकालना अत्यंत जरूरी होता है। यह करने में केवल दस या पंद्रह मिनट लगते हैं। मृतक व्यक्ति को किसी भी प्रकारका संसर्गजन्य रोग नहीं है न यह देखने के लिए अल्प प्रमाण में खून भी लिया जाता है। इसके पश्चात् कोई कानूनी मुश्किल खड़ी न हो इसलिए नेत्रदाता तथा अंध व्यक्ति इन दोनों के नाम गुप्त रखे जाते हैं। दृष्टिदोष अथवा मोतिया बिंद जैसा कोई रोग हो तो भी ऐसी व्यक्ति की भी आँखें पुन: उपयोग में ली जा सकतीं हैं। परन्तु उन्हें कोई संसर्गजन्य बीमारी की तकलीफ न होनी चाहिए। मेनन्जायटीस, कॉलरा, धनुर्वात, हेपिटायटीस, सिरके ऊपर हे हिस्से का कैन्सर तथा हाथीरोग हुए मृतक की आँखें अंध व्यक्ति के काम में नहीं ली जा सकती किन्तु ऐसी व्यक्ति नेत्रदान कर सकती है। वे आँखें खराब कोर्नियावाले अथवा दूसरे कोर्नियाकी जगहमें लगाने में काम आतीं हैं अथवा संशोधन के लिए उपयोग में ली जातीं हैं।

घरमें किसी की मृत्यु होती है तब रिश्तेदारों का मन उद्विग्न होता है। ऐसे समय उन्हें अन्य लोगों के द्वारा नेत्रदान के विषय में सुझाव देना चाहिए और यह भी समझाना चाहिए कि मृत व्यक्ति की दो आँखें दूसरे दो दृष्टिहीन व्यक्तियों के जीवन में प्रकाश फैला देंगी। ऐसा स्मरण कराने के लिए यही उचित समय होता है।

मेरे पतिका दो साल पूर्व निधन हो गया उस समय मैं नागपूर में नहीं थी। वहाँ मुझे भी अकल्पनीय और मेरे जीवन की सबसे दु:खदायक घटना के समाचार मिले। परन्तु उस समय अन्य लोगों ने नेत्रदान के विषय में सुझाव दिया और मैं ने अपनी अनुमति माधव नेत्रपिढी (बैंक) को दी। मैं नागपूर पहुंची उसके पूर्व मेरे पतिका नेत्रदान हो चूका था। आज उस वजह से दो व्यक्ति इस दुनिया को देख रहीं हैं। यह माननेवाली बात है कि ऐसे समय हमें नेत्रदान का निर्णय लेने में बहुत कष्ट होता है मगर मनुष्य इस दुनियासे एक बार गया कि वापस आता नहीं है। तब कोई तो उनकी आँखोंसे इस विश्व को देख रहा है। हमें ऐसी तसल्ली होनी चाहिए। इस घटना के एक मास पूर्व मेरी माताजी की मृत्यु हुई थी और उनका भी नेत्रदान किया गया था। वो वनवासी कल्याण आश्रम की पूरे समय की कार्यकर्ता थी। उनके नेत्रदान के कारण कल्याण आश्रम में भी नेत्रदान के महत्व के बारे में सकारात्मक अभिगम पैदा हुआ। इस प्रकार हम अपने स्वजनों की स्मृति जागृत रख सकते हैं।

मेरी सहेली ने अपने स्वयं के बेटे का भी नेत्रदान किया। एक के बाद घटा हुईं इन दोनों दुखदायक घटनाओं के कारण मेरे परिवार एवम सहेली-दोस्तों में नेत्रदान के विषय में जागरूकता निर्माण हुई और उनके मुंहसे सहजतासे ही शब्द निकल गए कि दुर्भाग्य से ऐसी घटना घटने पर पहला फोन हम मृत्यु के प्रमाणपत्र के लिए डॉक्टर को करते हैं वैसा ही दूसरा फोन नजदीक की नेत्र (आय) बैंक को करना चाहिए। तब आपके रिश्तेदारों में ऐसी घटना घटती है तब आप पूछेंगे ना ‘उनका नेत्रदान हुआ क्या?’
चुटकीभर खाक या अंधों को आंख…फैसला आपको करना है।

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