भारत की ‘अग्नि-छाया’

इस समय देश मश्ं हर तरफ उथल-पुथल का वातावरण बन गया है। हर दिन भ्रष्टोचार का कोई प्रकरण सामने आ रहा है। राजनीतिक विवाद, प्रान्तीयता, मगरूर नेतागीरी, अण्णा हजारे का जोर से चल रहा भ्रष्टाचार विरोधी जन आन्दोलन, बाबा रामदेव के आरोप-प्रत्यारोप, सुनामी की तरह बढ़ती चली आ रही मंहगाई और इन सबके साथ दो महीने से चल रहा क्रिकेट का आई. पी. एल मैच चर्चा के विषय बने हुए हैं।

इन सबके द्वारा हो रहे मनोरंजन में कमी होने से पूर्व ही भारत की सेना के प्रमुख द्वारा निर्माण किया गया जन्म तिथि सम्बन्धी विवाद और उसके पश्चात उनके द्वारा प्रधानमंत्री को लिखे गये पत्र का मीडिया में लीक होना, भारतीय सेना की छवि विश्व के सामने कमजोर रूप में लाकर उसका ‘वस्त्रहरण’ किया गया।

इस तरह के चतुर्दिक व्याप्त निराशा के वातावरण के बीच देश के वैज्ञानिकों ने भारतीयों का उत्साहवर्धन करने का प्रशंसनीय कार्य किया है। भारत की सुरक्षा क्षमता में विश्वास बढ़ाने का कार्य भारत के वैज्ञानिकों ने किया। अन्तरमहाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइल, अग्नि-5 का सफलता पूर्वक परीक्षण करके अपने देश की सामरिक क्षमता तथा महाशक्ति बनने के योग्यता का परिचय दिया है। पूरी तरह स्वदेशी तकनीव एवं सामग्री से अग्नि-5 का निर्माण करके वैज्ञानिकों ने अपनी अनुसंधान क्षमता का साक्ष्य प्रस्तुत किया है। पाकिस्तान और चीन भारत के पड़ोसी शत्रु राष्ट्र हैं। अग्नि-5 के परीक्षण को उनके साथ किसी स्पर्धा के रूप में नहीं देखना चाहिए। इस यशस्वी सफल परीक्षण से भारतीय वैज्ञानिकों का मनोबल बढ़ा है। सन् 1998 में किये गये सफल परमाणु विस्फोट के पश्चात अमेरिका और कनाडा सहित अनेक यूरोपीय देशों ने भारत पर आर्थिक व तकनीकी प्रतिबन्ध लगा दिया था। स्वदेेशी तकनीक से अग्नि-5 को तैयार करके भारतीय वैज्ञानिकों ने उन देशों को करारा जवाब दिया है। दुनिया को शत्रुदेशों को अपनी ताकत दिखाने के लिए प्रत्येक बार युद्ध करने की जरूरत नहीं होती। युद्ध न करते हुए दुश्मनों को अपनी ताकत बताने और उनके द्वारा कोई कदम उठाने से पूर्व गम्भीरता पूर्वक विचार करने के लिए बाध्य करने के लिए इस तरह के कार्य किये जाते हैं। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर हर क्षेत्र में भारत की शक्ति बढ़ रही है, यह बताने के लिए और शत्रुओं को सावधान करने के उद्देश्य से ही अग्नि-5 मिशाइल का परीक्षण किया गया है। अनेक यशस्वी कार्यों का ही यह एक भाग है।
अग्नि-5 मिशाइल परमाणु अस्त्रों का वहन करने में पूरी तरह से सक्षम है। यह अपनी नोंक पर एक टन (1000 किलोग्राम) वजन के परमाणु अस्त्रों को लेकर 20 मिनट में 5,000 किमी. दूर स्थित लक्ष्य को भेदने की क्षमता रखती है। श्रीलंका और पाकिस्तान ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण चीन और यूरोप का काफी भाग अग्नि-5 की पहुँच में आ जाते है। इस मिशाइल से पाकिस्तान और चीन के सामरिक और आर्थिक महत्व के ठिकानों पर भारत हमला कर सकता है। इसी तरह यह ‘गेम चेंजर’ की सफल भूमिका निभा सकती है। आण्विक और पारम्पारिक अस्त्रों में अग्नि-5 का प्रयोग होने के साथ ही सुरक्षा के अन्य क्षेत्रों में भी इसका उपयोग किया जायेगा। इसलिए भारत अपने सुरक्षा बेड़े में अग्नि-5 को शामिल करके बहुत महत्वपूर्ण कार्य किया है।

भारत का परमाणु कार्यक्रम शान्तिपूर्ण कार्यों के विकास के लिये है। इसका उद्देश्य अन्य देशों के साथ दुश्मनी मोल लेने या उन पर आक्रमण करने की तैयारी करना नहीं है। इसका प्रमाण भी हमने कई बार दिया है। वर्ष 1998 में द्वितीय परमाणु विस्फोट की सफलता को भारत ने ‘स्माइलिंग बुद्ध’ नाम देते हुए वह सारा कार्य सिद्ध किया था। इसी तरह अग्नि-5 को ‘‘शान्ति का अस्त्र’ की संज्ञा देते हुए इसका उपयोग शान्ति स्थापना हेतु करने का निश्चय भारत ने व्यक्त किया है। स्वतन्त्रता प्राप्त होने के बाद से आज तक भारत ने किसी भी देश के साथ न तो विवाद उत्पन्न किया और न किसी के ऊपर आक्रमण ही किया। परमाणु कार्यक्रम और मिशाइल विकास के कार्यक्रम भारत ने अपने बहुमुखी विकास को सम्मुख रखकर किया है। इसी तरह उपग्रह प्रक्षेपण का कार्य भी देश की आवश्यकताओं और शान्ति पूर्ण कार्यों को ध्यान में रखकर ही किया जा रहा है।
परन्तु हमारे पड़ोसी देश चीन ने अपनी सुरक्षा को सामने रखकर विगत् कई वर्ष पूर्व ही अपने मिसाइल कार्यक्रम को गति प्रदान की। भविष्य में होने वाले सभी युद्ध सूचना और तकनीकी ज्ञान के आधार पर लड़े जायेंगे आकाश में निर्णायक युद्ध लड़ा जायेगा। चीन इस बात को भलीभांति जानता है, इसलिए उसने पुराने प्रक्षे पास्त्रों के स्थान पर नयी मिसाइलों को तैनात कर दिया है। इसी के साथ ही युद्धभूमि की सुरक्षा, शत्रु की भूमि पर नियंत्रण, सैनिकों की हलचल, उनके लिए दिशा निर्देश ये सारे कार्य उपग्रह पर अवलंबित होकर किये जायेंगे। इस क्षेत्र में चीन सबसे आगे रहने के लिए प्रयत्नशील है। अपना यात्री यान चन्द्रमा पर भेजने के लिए चीन की योजना उसके आकाश पर वर्चस्व स्थापित करने के उद्देश्य का ही एक भाग है।
अपने इन सारे प्रयासोे के जवाब में भारत द्वारा ‘अग्नि-5’ मिसाइल का परीक्षण चीन को कतई अच्छा नहीं लगा और इस पर उसने अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी है, यह स्वाभाविक ही है। अग्नि-5 के सफल परीक्षण पर चीन ने कहा कि भारत को अपनी अच्छी सड़कों, पीने के पानी, गरीबी निवारण की ओर ध्यान देना चाहिए। इन सबके अतिरिक्त भारत सुरक्षा के लिए अत्यधिक व्यय कर रहा है।

चीन द्वारा की गयी इस टिप्पणी से ही भारत के यशस्वी मिसाइल परीक्षण का महत्व स्पष्ट होता है। वस्तुत: इस अग्नि-5 मिसाइल द्वारा भारत के किसी भी शहर से चीन के शहर पर निशाना साधा जा सकता है। भारत ने पाकिस्तान के परमाणु के सन्दर्भ में ‘नो फर्स्ट यूज’ कै नीति घोषित की है, किन्तु चीन ने इस तरह की कोई घोषणा या संकल्प व्यक्त नहीं किया है।
अग्नि-5 की सफलता एक दिन के कार्य से नहीं मिली है। भारत ने सन् 1974 में पहला परमाणु परीक्षण किया था। उस समय पूरी दुनिया ने भारत पर तीखी टिप्पणी की थी। वर्ष 1998 में किये गये दूसरे परमाणु परीक्षण कें समय अमेरिका सहित कई पश्चिमी देशों ने भारत पर आर्थिक व तकनीकी प्रतिबन्ध लगा दिये, किन्तु आर्थिक विकास के पथ पर अग्रसर भारत को विश्व अब दुर्लक्ष्य नहीं कर सकता। भारत ने श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व की सरकार के समय पोखरण-2 परमाणु विस्फोट किया। उसके तुरन्त बाद पाकिस्तान ने भी परीक्षण किया। पाकिस्तान के कई नेताओं ने भारत पर परमाणु हथियारों से आक्रमण करने की बात कहा। भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीस ने उसे सटीक उत्तर देते हुए कहा कि पाकिस्तान के हमले से भारत का कुछ भाग ही नष्ट होगा, किन्तु भारत के आक्रमण से पाकिस्तान समूल नष्ट हो जाएगा। इस जवाब के पश्चात ही पाकिस्तान ने अपने बड़बोले की भाषा पर लगाम लगाया।

आज अग्नि-5 के सफल परीक्षण से भारत विश्व के शक्तिशाली राष्ट्रों की पंक्ति में शामिल हो गया है। इसका यह प्रवास अग्नि-1,2,3,4, से होकर यहाँ तक पहुँचा है। धनुष, पृथ्वी, ब्रह्मोस, सागरिका, आकाश, प्रहार इत्यादि अनेक उपलब्धियों के साथ यह प्रवास सम्पन्न हुआ है। जमीन से जमीन पर, जमीन से आकाश में, समुद्र से आकाश में, हवा से जमीन पर, मार करने वाले कई प्रक्षेपास्त्रो का सफल परीक्षण करते हुए जमीन से जमीन पर मार करने वाली अन्तरराष्ट्रीय बैलेस्टिक मिसाइल अग्नि-5 की सफलता तक हम पहुंचे हैं। इस क्षमता को अब तक भारत के अलावा अमेरिका, रूस, फ्रान्स और चीन ने ही प्राप्त किया है।

यद्यपि इस एक मिसाइल की सफलता के साथ हम पूरी तरह सुरक्षित हो गये है, ऐसा मानना जल्द बाजी होगी, किन्तु इतना तो है कि इसके साथ ही भारत विश्व के परमाणु शस्त्र सम्पन्न देशों के संगठन में शामिल हो गया है। सुरक्षा की दृष्टि से अब भारत की जिम्मेदारी अधिक बढ़ गयी है। भारत अपनी स्वदेशी तकनीक व सामग्री से, अपने बलबूते इतनी महत्वपूर्ण उपलब्धि पा सकता है, यह तथ्य पूरी दुनिया की समझ में आ गयी है।

आज भारत के विषय में कुछ व्यक्ति अथवा एन. जी. ओ. यह प्रश्न उठाते हैं कि आखिर इतनी उठापटक किस लिए है? भारत को इतना खर्च करने की जरूरत क्या है। इसका उत्तर सीधा नहीं है। ऐसे अस्त्र-शस्त्र उपयोग करने के लिए नहीं, बल्कि सम्हालकर रखने के लिए है। इन पर हमेशा नजर रखनी पड़ती है। इसे ही सक्षम होना कहते है। क्योंकि कपटी शत्रु और विपत्ति अपने आगमन की सूचना नहीं देते। उनके स्वागत के लिए तैयार रहना ही सुरक्षा के प्रति सजग रहना है। अग्नि-5 जैसी मिसाइल से सम्पन्न होने पर शत्रु कोई भी कदम उठाने से पहले सौ बार सोचेंगे। शत्रु देशों पर अपना प्रभुत्व जमाने के लिए भारत को भविष्य में भी ऐसे ही शस्त्रास्त्र विकसित करते रहना चाहिए।

अग्नि-5 की सफलता ही भारत ने एक साथ कई लक्ष्य साध लिए हैं। भारत परमाणु शस्त्र के क्लब में शामिल हो गया है। वर्ष 2020 एक विश्व स्तर की महाशक्ति बनने की दिशा में भविष्य में होने वाली गतिविधियों की सफलता की हार्दिक शुभेच्छा।

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