भारत का प्रहरी नाबम अतुम

यह भूमि कितनी सुन्दर है, पर्वतों की एक माला है,
पाती प्रथम है सूर्य किरण, यह कहलाती पूर्वांचल।

हमारे देश में सूर्य की प्रथम किरण अरुणांचल प्रदेश की भूमि पर पड़ती है। यहां के ऊंचे-ऊंचे गगनचुम्बी पर्वत शिखर, कल-कल, बहती-सियांग, सुबनसिरी, कॉमेड जैसी नदियां, मानो यह भारत का स्वर्ग ही है। यह प्रदेश भारत की उत्तर-पूर्व सीमा पर प्रहरी जैसा खड़ा है। चीन अधिकृत तिब्बत और ब्रह्मदेश इसके पड़ोसी हैं। यहां न्यीशी, आदी, आपातानी, मिश्मी, गालो जैसी अनेक जनजतियां सहयोग-पूर्वक हज़ारों वर्षों से रहती आई हैं। हर जनजाति की अपनी विशेष सांस्कृतिक पहचान है। प्रत्येक की अपनी बोली-भाषा, गीत-नृत्य तथा विशिष्ट पूजा-पद्धति भी है।

इसी अरुणांचल प्रदेश के पापुमपारे जिले के आम्पोली गांव में श्री नाबम इपो और श्रीमती नाबम येनी के परिवार में श्री नाबम अतुम जी का जन्म हुआ। पिताश्री नाबम इपो न्यीशी समाज के प्रतिष्ठित एवं न्याय प्रिय व्यक्ति थे। श्री नाबम अतुम जी की विद्यालयीन शिक्षा इटानगर में हुई। सन् 1965 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के द्वारा श्रा पद्मनाभ आचार्य ने ‘मॉय होम इंडिया’ प्रकल्प आरंभ किया, जिसके अंतर्गत उत्तर-पूर्वांचल के छात्रों को पढ़ाई करने हेतु देश के विभिन्न भागों में परिवारों में रहकर पढ़ने की सुविधा प्रदान की जाती थी।

सन् 1968 में इसी योजना के अंतर्गत श्री नाबम अतुम जी को श्री दत्ता जी डिडोलकर नागपुर ले गए; जहां वे श्री किशोर जी काले के घर पर रह कर धर्मपीठ विद्यालय में प्रवेश लिया। प्रारंभ में मराठी भाषा उन्हें बहुत कठिन लगी, लेकिन उनकी लगन से वार्षिक परीक्षा में उन्होंने मराठी विषय में ही प्रथम स्थान प्राप्त किया। अध्ययन के साथ -साथ खेल-कूद में भी वे सदैव अव्वल रहे और उन्होंने वहां एक वर्ष व्यतीत किया। तत्पश्चात् महाविद्यालयीन शिक्षा पासीघाट अरुणाचल प्रदेश से पूर्ण किया । नाबम अतुम जी न्यीशी जनजाति के पहली पीढ़ी के पढ़े-लिखे व्यक्ति माने जाते हैं। पढ़ाई के पश्चात् सन् 1978-79 में शिक्षक के रूप में, बाद में डिस्ट्रिक्ट इनफॉरमेशन्स एंड पब्लिक रिलेशन अ‍ॅाफिसर के पद पर रहकर उन्होंने अपनी सेवा प्रदान की। उनकी कार्य-कुशलता को देखते हुए सन् 1994-98 तक अरुणांचल प्रदेश लोकसेवा आयोग के सदस्य तथा सन्1998-2004 तक लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने सराहनीय कार्य किये।

सन् 1997 में अतुम जी अरुणांचल विकास परिषद (सामाजिक स्वयंसेवी संगठन) के सम्पर्क में आए। यह संगठन अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम से संलग्न है। कल्याण आश्रम के वरिष्ठ कार्यकर्ता श्री भास्कर राव जी एवं श्री वसंत राव जी के विचारों से अतुम जी प्रभावित हुए और उन्होंने निश्चय किया कि सामाजिक संगठन का कार्य ही जीवन का लक्ष्य रहेगा। सन् 1997 से 2011 तक अरुणांचल विकास परिषद के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने अपनी सेवाएं दीं, उनके नेतृत्व में शिक्षा के विविध उपक्रम परिषद की ओर से प्रारंभ प्रारंभ किए गए। चीन के बढ़ते आक्रामक मंसूबों को ध्यान में रखते हुए सीमांत दर्शन यात्रा फरवरी 2010 में सम्पन्न हुई। इस यात्रा के अंतर्गत 97 कार्यकर्ताओं द्वारा भारत-तिब्बत (चीन) सीमावर्ती क्षेत्र में बसे गांवों का सर्वेक्षण किया गया। ग्रामवासियों के साथ अनौपचारिक चर्चा के अंतर्गत देश-भक्ति जगाने का अनोखा प्रयास किया गया, जिसकी स्थानीय प्रशासन तथा महामहिम राज्यपाल जी ने भी भूरि-भूरि प्रशंसा की।

अरुणांचल प्रदेश में स्वधर्म-संस्कृति संरक्षण एवं संवर्धन हेतु

‘इंडिजेनियस फेथ एंड कल्चरल सोसाइटी ऑफ अरुणांचल प्रदेश’ नामक संगठन की स्थापना में श्री अतुमजी की सक्रिय भूमिका थी। तत्पश्चात् व इसके अध्यक्ष भी बने। संगठन द्वारा युवकों को प्रेरित करने हेतु युवा सम्मेलनों की स्वस्थ्य परंपरा प्रारंभ की गई। सन् 2008 के दिसम्बर माह में पासीघाट शहर में, नाबम अतुम जी के नेतृत्व में चार हजार युवकों का सम्मेलन हुआ। इस कार्यक्रम के उद्घाटन में महामहिम राज्यपाल और समापन म मुख्यमंत्री उपस्थित थे। इस कार्यक्रम ने युवकों में देश और धर्म के प्रति अलख जगाई।

आज से दस वर्ष पूर्व अतुम जी को गले के कैंसर रोग के कारण अनेक शारीरिक पीड़ा सहन करनी पड़ी। इस परिस्थिति में भी अपने दायित्व का पालन करते हुए गांव-गांव प्रवास कर लोगों को सामाजिक कार्य हेतु उन्होंने प्रेरित किया। विभिन्न गांवों में प्रवास, वहां के गाड्गीन, नाम्लो (प्रार्थना स्थल) में जाने का उनका क्रम बना रहा, इन सभी प्रयासों से लोगों में स्वधर्म के प्रति अभिमान उत्पन्न हुआ।

अतुमजी अरुणांचल सेवा संघ, रामकृष्ण मिशन, विवेकानन्द केन्द्र, जनजाति धर्म-संस्कृति सुरक्षा मंच जैसी सामाजिक कई संस्थाओं में दायित्व लेकर सक्रिय रहे, उनके अंदर के नि:स्वार्थ समर्पण भाव के कारण वे लोकप्रिय बनें, उनकी दूरदृष्टि और कुशल नेतृत्व की क्षमता के कारण उन्होंने अनेक सामाजिक संस्थाओं का मार्गदर्शन किया, फलस्वरूप नॉर्थ इस्ट जोन कल्चरल सेंटर नामक सरकारी संस्था के सम्मानीय सदस्य के रूप में कार्य करने का मौका उन्हें प्राप्त हुआ।

राष्ट्रीय विचारों के कारण अतुम जी का विभिन्न राष्ट्रीय संगठनों से तथा श्री श्री रविशंकर जी, बौद्ध-गुरु तुल्कु रिम्पोचे जैसे अध्यात्मिक महापुरुषों के साथ भी घनिष्ठ सम्पर्क रहा है। मुम्बई की एक स्वयंसेवी संस्था ‘मॉय होम इंडिया’ द्वारा श्री नाबम अतुम जी को वन इंडिया अ‍ॅवार्ड 2012 दिया गया। मॉय होम इंडिया के निर्णय के कारण पूर्वांचल के के इस राष्ट-रत्न का परिचय देशवासियों को मिला है। विगत 4 जून को सायं 6 बजे मुंबई के रवीन्द्र मंदिर में पुरस्कार वितरण कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य रूप से उपस्थित थे।

अतुलनीय है नाबम अतुम के कार्य नरेंद्र मोदी

मुंबई. नाबम अतुम ने ईशान्य भारत के लोगों के लिए जो कार्य किए वे अतुलनीय हैं, ईशान्य भारत जैसे दुगर्म क्षेत्रों में भी संवाद का कोई भी साधन न होने के बावजूद उन्होंने प्रेरणादायी कार्य किए हैं, ऐसी बात गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कही. मोदी सारस्वत बैंक तथा मॉय होम इंडिया की ओर से संयुक्त रुप से होम इंडिया वन इंडिया-2012 पुरस्कार वितरण समारोह के दौरान कही। मोदी ने कहा कि नाबम अतुम ने कम समय में जो ऊंची उड़ान भरी है,उसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम ही है। रवींद्र नाट्य मंदिर में आयोजित इस कार्यक्रम में गुजरात के मुख्यमंत्री ने कहा कि ईशान्य भारत में पानी का बहुत ज्यादा भंडार है, इस पानी से पर्याप्त मात्रा में बिजली का निर्माण किया जा सकता है, लेकिन दुभाग्य की बात है कि सरकार इस ओर समुचित ध्यान नहीं दे रही है। मोदी ने कहा कि सरकार को सिर्फ अपनी कुर्सी बचाने की फिक्र है। निर्माण कार्य व्यवसायी संजय काकड़े की अध्यक्षता में हुए इस कार्यक्रम में मॉय होम इंडिया के सुनील देवघर भी मुख्य रुप से उपस्थित थे।

अपने सत्कार का उत्तर देते हुए नाबम अतुम ने कहा कि सन् 1962में चीन के आक्रमण के बाद भी केंद्र सरकार की नींद नहीं खुली है। इसी कारण ईशान्य भारत के लोगों को हर हालत में सुरक्षा दी जाए, इतना ही, नहीं, ईशान्य लोगों के बच्चोंं की शैक्षणिक जरुरतें पूरी करना भी

समय की आवश्यकता है। इस मौके पर मुंबई भाजपा की ओर से नाबम अतुम की संस्था को 1 लाख रुपए की धनराशि दानस्वरुप प्रदान की गई, जबकि संजय काकड़े ने भी 10 लाख रुपये की धनराशि प्रदान की।
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